नौवें स्थान के कवि भी हिन्द-युग्म के लिये नये हैं। कवि का भी मानना है कि उन्होने नया-नया लिखना शुरू किया है। 'नुसरत' इनकी पहली रचना है और इतनी प्रतिभाशाली कि हमारे १० जजों ने भी इसका स्वागत किया है। बधाई !
कविता- नुसरत
कवयिता- सन्नी चंचलानी, रायपुर(छत्तीसगढ़)
चीवर जो लिपटा है उसके तन पर
कुछ-कुछ लबादे सा अहसास कराता है
पुराने लाल रिबन से गुँथे
गर्द भरे बालों में
अमूमन दिख जाती है सफेदी
कंधे पर भार तो है पर स्कूल-बैग का नहीं
गंदगी से भरे एक टाट का
नुसरत! नुसरत नाम है इस छोटी लड़की का
गंदगी बटोरती है
उम्र यही कोई नौ-दस बरस
मगर चेहरे पर संजीदगी किसी बुज़ुर्ग की सी
पता नहीं फिक्र कूड़े में दबी रोटी की है
या पेट में दबी भूख की
न जाने क्यों नुसरत गंदगी बटोरती है
नुसरत स्कूल नहीं जाती है
कचरे में ढूँढती है दो जून की रोटी
उतनी ही मासूमियत ढली है उसकी आँखों में
जितनी किसी स्कूल जाने वाली लड़की की आँखों में होती है
लेकिन उन भोली आँखों में 'होमवर्क' पूरा होने का डर नहीं है
भय सालता है उसे टाट के न भरने का, शराबी पिता की मार का
न जाने क्यों नुसरत गंदगी बटोरती है
बचपन में जीती है लेकिन गायब हैं बचपन की निशानियाँ
न खिलखिलाती हँसी, न अल्हड़पन
न वो झूला झूलती है
न सखियों संग मेले जाती है
न जाने क्यों नुसरत गंदगी बटोरती है
कालिख ने ढाँप ली हैं हाथों की लकीरें
गर्दिश में हैं माथे के सितारे
फिर भी किस्मत को कचरे में खोजती है
न जाने क्यों नुसरत गंदगी बटोरती है
बात किसी ज़ंग से तबाह मुल्क की नहीं
बात अपने देश अपने शहर की है
नुसरत यहीं कहीं गली-कूँचे में रहती है
न जाने क्यों नुसरत गंदगी बटोरती है
न जाने क्यों नुसरत गंदगी बटोरती है
रिज़ल्ट-कार्ड
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प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ५, ७॰५, ६॰५, ६॰७५, ६॰७
औसत अंक- ६॰४९
स्थान- पचीसवाँ
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द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक-७, ८॰२, ७॰३, ६॰४९ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰२४७५
स्थान- आठवाँ
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तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-कविता का अंत बेहतर है। कविता में काव्य तत्व कम हैं गद्य का प्रभाव अधिक है।
अंक- ६॰३
स्थान- नौवाँ
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पुरस्कार- प्रो॰ अरविन्द चतुर्वेदी की काव्य-पुस्तक 'नकाबों के शहर में' की स्वहस्ताक्षरित प्रति
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
कालिख ने ढाँप ली हैं हाथों की लकीरें
गर्दिश में हैं माथे के सितारे
फिर भी किस्मत को कचरे में खोजती है
न जाने क्यों नुसरत गंदगी बटोरती है
बात किसी ज़ंग से तबाह मुल्क की नहीं
बात अपने देश अपने शहर की है
नुसरत यहीं कहीं गली-कूँचे में रहती है
न जाने क्यों नुसरत गंदगी बटोरती है
न जाने क्यों नुसरत गंदगी बटोरती है
रचना का बेहद संवेदन शील अंत है, बहुत बधाई।
***राजीव रंजन प्रसाद
...एक बेहतर कविता. पता नहीं यह इतनी पीछे कैसे रह गयी..खैर..इस कविता से लगता है के कवि में एक बडा कवि होने के तत्व पाए जाते हैं..
लिखते रहिये.. उस से भी ज्यादा पढते रहिये..
शुभकामनाएँ!
मान गये सन्नी जी
आपकी पहली रचना ही सम्पूर्ण कवि से कहीं आगे है
ऍसे ही लिखते रहिऍ
aapne bahut hi acche aur rachnatamak thang se us garib varg ko darshaya hai jisko log dekh kar bhi andekha kar dete hai... aise hi likhte rahiye
humari shubhkamnaye aapke sath hai
सन्नी जी,
आप से मैं बहुत नाराज हूँ की इतना अच्छा लिखने के बावजूद आप अपने को नया कवि कहती है ....वास्तव में सच तो यह है की आप हमेशा से ही एक अच्छी कवि रही है.. बस लिखना अभी शुरू किया है ...
विश्वास नही होता की यह आपकी पहली कविता है ...बहुत ही संजीदगी के साथ तथा बहुत ही अच्छे विषय के साथ आपने अपनी रचना लिखी है ...आशा है ...इस प्रकार लिखती रही तो बहुत जल्द आपकी कविता पहले पायदान पर आ जायेगी ...बस ऐसे ही पुरे आत्मविश्वास के साथ अच्छे विषयों के साथ लिखते रहिए .....
सन्नी
बहुत सुन्दर चित्र खींचा है यथार्थ का । पढ़कर लगा कि आँखों के सामने कोई नन्ही बालिका कूड़ा बीन रही है ।
गंदगी बटोरती है
उम्र यही कोई नौ-दस बरस
मगर चेहरे पर संजीदगी किसी बुज़ुर्ग की सी
पता नहीं फिक्र कूड़े में दबी रोटी की है
या पेट में दबी भूख की
न जाने क्यों नुसरत गंदगी बटोरती है
नुसरत स्कूल नहीं जाती है
कचरे में ढूँढती है दो जून की रोटी
एक सफ़ल अभिव्यक्ति के लिए बधाई ।
आदरनीय कवियों
आप सभी की कमेंट्स का स्वागत है, राजीव जी को मे पहले भी पढ़ चुका हु उनकी रचनाये लाजवाब होती है , उनकी कमेंट सबसे पहले आई प्रस्सनता हुयी आप सभी को मेरा हृदय से धन्यवाद ऐसे ही मार्गदर्शन करते रहिए, मंजिल मिल ही जायेगी, कोई भूल हुयी हो तो माफ कीजियेगा, सम्मानीय रविंदरजी मैं लिखती नही हु लिखता हु
सन्नी चंचलानी जी!
आपकी यदि पहली कविता इतनी संवेदनशील
विषय को इतने सशक्त तरीके से प्रस्तुत करती
है तो आगे .....
शुभकामनायें
संवेदन शील रचना ....
यह आपकी पहली कविता है ....????
सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए
बधाई
बहुत ही मर्मस्पर्शी, नुसरत ने झकझोर दिया, ऐसा किरदार चित्रण बहुत कम पढने को मिलता है
जी बिल्कुल पहली कविता है और चरित्र भी वास्तविक है
सन्नी जी,
आप ने 'नुसरत' का सजीव चित्रण किया है।
आप की पहली रचना होने के हिसाब से यह एक सफल प्रयास है।
भाव पक्ष बेहतरीन रहा है।
शिल्प पर और मेहनत की आवश्यकता है। कहीं-कहीं काव्य-रस कम लग रहा है।
आप की अन्य रचनाओं की प्रतीक्षा रहेगी।
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