अचानक पेट दुखा
और उसका मरद
चल बसा !
खेत में खड़ी फ़सल छोड़ कर ..
बुधिया को याद है
तब नहर चल रही थी ,
वो पानी नहीं दे पाया
वहाँ फ़सल सूख रही थी ..
यहाँ बुधिया लाश को गोद में रखे
सुबक रही थी !
जो आटा-दाल घर में पड़ा था
ग्यारह बाम्हनो को जिमा दिया
उसके मरद की तेरहवीं ने,
घर का एक-एक बासन तक बिकवा दिया !
उसने सोचा ..
दलिये में चूहेमार गोली मिलाऊँ
और मर जाऊँ
पर यह मुनिया
इसे किसके भरोसे छोड़ जाऊँ !
फिर सोचा ..
थोड़ा इसे भी खिला दूँगी
पर वो माँ है
कैसे दूध की जगह ज़हर देगी !
वो बर्तन मांज रही थी..
देखा..
एक भेड़िया उसे देख रहा था
बुधिया की विवशता में शायद
अपनी वासना की पूर्ती तलाश रहा था|
बुधिया को पता था
वो क्या चाहता है
पर मुनिया की खातिर
उसे उसके ही घर में
रोज़
बर्तन माँजने जाना पड़ता है !
सीमा पर कोई सैनिक
देश की खातिर जान जोखिम में डालता है
और यहाँ मुनिया की खातिर मुनिया
अपनी अस्मत को
आह् !
कैसी विवशता..
भले ही दारू पीता था
मारता था,पीटता था
पर जैसा भी था, था तो..
अब तो यहाँ इंसान नहीं..
बस भेड़िये हैं
बस ताक में बैठे है
कब नोच लें
अपने शिकार को !
बुधिया..
कोई सहानुभूती जताए,
तो डर लगता है..
कोई मुनिया को बिस्कुट दिलवाए,
तो डर लगता है..
कोई दरवाज़ा खटखटाए,
तो डर लगता है..
रात में बिल्ली गंजी गिराए,
तो डर लगता है..
एक दिन अचानक ..
जो ऊपर बैठा है उसकी आँख लग गयी ,
थोड़ी देर के लिए
बुधिया दुनिया में,
अकेली हो गयी!
कृष्ण उसके भाई नहीं थे
जो उसे बचाने आते ..
जब कोई दु:शासन चीर खींचता
तो उसे बढ़ाते जाते
यहाँ तो बस दु:शासन था
और बुधिया..
घर की कुठरिया में बंद
चीखती-चिल्लाती मुनिया!
पता है !
उस रात
बेबसी
माँ की ममता पर भारी पड़ी..
अगले दिन अख़बार में ख़बर छपी
"फलाने गाँव में
एक विधवा औरत,
अपनी लड़की के साथ ,
जल मरी " !
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18 कविताप्रेमियों का कहना है :
विपुल जी आपकी सबसे बड़ी खासियत यह है आप इतनी सहजता से इतने गम्भीर विषयों को छुते हैं, और कहीँ भी प्रवाह ल्ड्खाडाता नही है बुधिया की एक एक कहानी में बहुत सी कहानियाँ छुपी होती है, जो समाज को बार बार सोचने पर मजबूर कर देती है
जो आटा-दाल घर में पड़ा था
ग्यारह बाम्हनो को जिमा दिया
उसके मरद की तेरहवी ने,
घर का एक-एक बासन तक बिकवा दिया !
इतना मार्मिक चित्रण है ये उफ़...
एक जगह शायद बुधिया होने चाहिए था आपने मुनिया लिख दिया है -
और यहाँ मुनिया की खातिर मुनिया
बस हर बार की तरह आपका अन्त इस बार पहले से सी समझ आ जाता है, आश्चर्य चकित नही करता
पर फ़िर भी एक अत्यन्त ही श्रेष्ट रचना, आप इस बुधिया के मध्यम से जो श्रंखला बाना रहे हैं ..... मुझे लगता है ये कविता के मध्यम से " भारतीय स्त्री समाज की " हर तस्वीर उभार कर सामने रखने मे सक्षम होगा, आगे भी बुधिया के प्रयोग जारी रखियेगा
बुधिया कई बातें कह जाती है कही हुई भी अनकही भी ....
कई बातें बहुत मार्मिक है और कई बहुत सच के क़रीब ,
तारीफ करनी होगी विपुल तुम्हारे लिखने के ढंग की और विचारो की जो यूं भावों में ढल कर सामने आते हैं ....
आगे भी इंतज़ार रहेगा इस का
शुभकामना के साथ
सस्नेह
रंजना[रंजू]
विपुल जी
बुधिया की कहानी एक मार्मिक चित्रण है.
एक श्रेष्ट रचना.
विपुल जी!
आपने अपनी बात कहने के लिए बुधिया का जो माध्यम चुना है,प्रशंसनीय है।
सुन्दर रचना!
अगली बुधिया के इंतज़ार में....
विपुल जी ,बुधिया के माध्यम से भारतीय समाज में नारी की स्थिति को आप सब के सामने बहुत खूबसूरती से रखते हैं ! आपने एक विधवा के जीवन की जटिलताओं को बहुत सरल शब्दों में बखूबी प्रस्तुत किया है ! आपके भाव और अभिव्यक्ति बहुत रोचक है ! इस मन को झझ्कोर देने वाली कविता के लिए बहुत बधाई स्वीकार करें !
विपुल जी सबसे सुन्दर बात यह है कि एक विषय कम चुन कर पूरे समय उसमें ही जुडे रहना बहुत से कवि नहीं कर पाते। कविता में कोई भी स्थान नहीं था जहां पर पाठक का मन भटके। यहां तक पलके झपकाने का दुस्साहस भी नहीं किया जा सकता। सुन्दर रचना।
बहुत-बहुत धन्यवाद आप सभी का जो आपने बुधिया को सराहा|बुधिया शृंखला की हर कविता लिखते समय यही मन में होता है की पाठक कहीं दोहराव तो महसूस ना करेंगे! आप लोगों की प्रशंसा ही प्रेरित करती है लिखने को बहुत बहुत धन्यवाद ...
और सजीव जी आप बिल्कुल सही हैं|मैने ग़लती से बुधिया की जगह मुनिया लिख दिया है | यह महज़ टायपिंग की ग़लती है क्षमा चाहूँगा इसके लिए...
विपुल जी,
आपकी जितनी सराहना की जाये कम है। अपने समाज की विषमताओं पर पैनी नज़र रखना और फिर नासूरों से आगाह करने का महत्वपूर्ण कार्य आपकी कलम कर रही है। आपकी उम्र का कवि स्वप्न और प्रेम की कविताओं में जीता है और आप अपनी कलम को यथार्थ के तवे पर पका रहे हैं जो स्तुत्य है।
एक पात्र चुन कर उसके इर्द-गिर्द लिखना कविता की दृष्टि से बहुत अधिक प्रचलित प्रयोग नहीं है। गद्य की अनेक विधाओं में,कार्टून विधा में, व्यंग्यों में लेखक एक पात्र के इर्द-गिर्द लिखता है और वह पात्र यदाकदा आम आदमी का आईना बन जाता है। आपकी बुधिया में वही ताकत है, इस पात्र के माध्यम को अपने ऑबजर्वेशन से, अपनी सोच से और अध्ययन से और तराशो।
इस संवेदनशील और सार्थक रचना के लिये आप बधाए के पात्र हैं।
*** राजीव रंजन प्रसाद
विपुल, बुधिया को पढ़ते वक्त प्रेमचन्द जी की कहानियों में सामाजिक कुरीतियों के प्रति जो क्षोभ होता था, वही महसूस हुआ ।
बुधिया एक बहुत सफ़ल शृंखला है , और आपमें जो कवि है , वह काबिले तारीफ़ है ।
विपुल जी!!
बहुत बढिया....बहुत ही मर्मिक रचना है....बुधिया के मर्म को बहुत ही बेहतरीन ढंग से आपने प्रस्तूत किया है...
विपुल जीं,
अच्छी रचना है मगर एक पाठक की हैसियत से निवेदन है......या तो आप बुधिया के ये सिलसिलेवार चित्रण कुछ हफ़्तों में डाला करें या कविताओं को कोई और शीर्षक दें..."बुधिया" पढते ही आपसे पुरानी उम्मीद बढ़ जाती है....कभी-कभी लगता है कि पुरानी वाली कविता ही पढ़ रह हूँ, क्योंकि उसका रस तब तक उतरता ही नही है.....शायद आप इसे समझ पाएं....
आपको बधाई॥
निखिल अनंद गिरि
विपुल जी,
बुधिया के माध्यम से जो सच आप सामने रखते हैं वह काफ़ी कुछ सोचने को विवश करता है।
पता है !
उस रात
बेबसी
माँ की ममता पर भारी पड़ी..
अगले दिन अख़बार में ख़बर छपी
"फलाने गाँव में
एक विधवा औरत,
अपनी लड़की के साथ ,
जल मरी " !
अंत ने झकझोर कर रख दिया।
विपुल जी ,
बिना कोई प्रशंशा किये सबसे पहले मैं यह जानना चाहूँगा कि क्या (सीमा पर कोई सैनिक देश की खातिर जान जोखिम में डालता हैऔर यहाँ मुनिया की खातिर मुनियाअपनी अस्मत को) पंक्तियों में मुनिया कि जगह बुधिया शब्द का प्रयोग सही नही होता....इससे मेरा मकसद केवल आपको धयान दिलाने से था ....
अब यदि बात करूं मैं अपने विचार प्रकट करने कि तो केवल वह चार शब्द कहना चाहूँगा जो कि मैं हर सर्वश्रेस्थ कविता के लिए प्रयोग करता हूँ .......
Very Good, Wonderful, Funtestic, Mind-Blowing....keep it up always....
मैं आपका बहुत बड़ा प्र्शन्शक हूँ ........
बुधिया श्रंखला की सभी कवितायें अच्छी रही हैं इस कविता में मार्मिकता और सत्य का मिश्रण प्रभावी है।
अगले दिन अख़बार में ख़बर छपी
"फलाने गाँव में
एक विधवा औरत,
अपनी लड़की के साथ ,
जल मरी " !
विपुल जी,
वैसे यह भी तरीका ठीक है कि चरित्र एक, लेकिन समाज के हर अंग का चित्र खींचा जा सके। आप यदि पूरे लगन से लिखते रहे तो 'बुधिया' हिन्दी-कविता की कालजयी चरित्र बन जायेगी।
विपुल!
देरी के लिये क्षमाप्रार्थी हूँ! ’बुधिया’ के बारे में लोग पहले ही काफी कुछ कह चुके हैं. अत: सिर्फ बधाई स्वीकारें.
विपुल जी,
मार्मिक चित्रण
श्रेष्ट......
सार्थक रचना,
बधाई
भाई विपुल,
बुधिया सीरिज तो हम पाठकों पर कहर ढाती जा रही है। मैं भी शैलेश जी से सहमत हूँ कि यह पात्र हिन्दी -साहित्य में कालजयी बनने जा रहा है। इसी तरह अपनी लेखनी को मांजते रहे। तुम्हारा दर्द परोसना अब दिल को अच्छा लगने लगा है।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
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