Tushar ji!!!! as usual wonderful creation...full of emmotions n its very touching poem......small but meaningfull.... congrats!!!! ***************** कभी कविता को मेरी डसता आनंद है ऐसे घोर तमस में कोई दिया जलता हो जैसे
कविता के हिंदोले पर आनंद झूलता है जब *****************
तुषार जी, ये कविता कब लिखी थी आपने.....हिंद्युग्म की सबसे छोटी कविताओं में से एक हो गई ये कविता.....खैर, मैं भी बड़ी कवितायें नही लिख पाता...मगर, आपके शब्द ज्यादा सधे हुए हैं...... बधाई...
कभी कविता को मेरी डसता आनंद है ऐसे घोर तमस में कोई दिया जलता हो जैसे
इसमे कविता को आनंद का डसना और अँधेरे में दिए का जलना में क्या साम्य है???जलना तो दिए का स्वभाव होता है पर डसना आनंद का स्वभाव नहीं। वैसे मेरा अल्पजञान भी ठीक से न समझ पाने का कारण हो सकता है। बाकी कविता सुन्दर लगी।
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
tushr, as usual its a beautiful poem,very touching and totally full of maning, gr8.
Tushar ji!!!!
as usual wonderful creation...full of emmotions n its very touching poem......small but meaningfull....
congrats!!!!
*****************
कभी कविता को मेरी
डसता आनंद है ऐसे
घोर तमस में कोई
दिया जलता हो जैसे
कविता के हिंदोले पर
आनंद झूलता है जब
*****************
तुषार जी,
ये कविता कब लिखी थी आपने.....हिंद्युग्म की सबसे छोटी कविताओं में से एक हो गई ये कविता.....खैर, मैं भी बड़ी कवितायें नही लिख पाता...मगर, आपके शब्द ज्यादा सधे हुए हैं......
बधाई...
निखिल
तुषार जी बहुत खूब लिखा-
कविता के हिंदोले पर
आनंद झूलता है जब
चैतन्यमयी होता है
अंतरमन मेरा तब तब
तुषार जी,
कभी कविता को मेरी
डसता आनंद है ऐसे
घोर तमस में कोई
दिया जलता हो जैसे
इसमे कविता को आनंद का डसना और अँधेरे में दिए का जलना में क्या साम्य है???जलना तो दिए का स्वभाव होता है पर डसना आनंद का स्वभाव नहीं। वैसे मेरा अल्पजञान भी ठीक से न समझ पाने का कारण हो सकता है।
बाकी कविता सुन्दर लगी।
आपकी कविता पढकर बहुत अच्छा लगा
पहली बार पढ रहा था
छोटी सी कविता में काफी कुछ कह दिया
तुषार जी,
सुन्दर सारगर्भित रचना की बधाई।
*** राजीव रंजन प्रसाद
कविता के हिंदोले पर
आनंद झूलता है जब
चैतन्यमयी होता है
अंतरमन मेरा तब तब
तुषार जी !
बहुत खूब ....
सुन्दर रचना
बधाई।
aapka prayaas bahut sunder hai...kavita padhne mein thodi kathin lagi lekin 5,6 baar padhne per samajh aayi....badhai....
तुषार जी!
कविता के विषय में मैं रविकांत जी से सहमत हूँ.
कविता इतनी भी छोटी नहीं होनी चाहिए की बातों को ठीक से विस्तार भी न मिल पाये और दूसरी बात यह कविता आपके स्तर की बिलकुल नहीं है।
तुषार जी,
मै शैलेश जी, अजय जी और रविकाँत जी की टिप्पणी से सहमत हूं. आपसे आपेक्षायें अधिक हैं
आर्थों का नाद तरलतम
शब्दों कि दिडधा दिडधा
कविता में लीन यूँ देखो
जीवन है जैसे राधा
बहुत खूब तुषार जी। राधा के माध्य्म से आपने एक कवि की मनोस्थिति का बढिया वर्णन किया है।
बधाई स्वीकारें।
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