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Saturday, September 08, 2007

फिर भी


तुमने ना कर दिया है मुझे फिर भी
आस तुमसे लगाए मैं बैठा हूँ
अब तुम्ही हो मुझे जो जिताओगे
बाज़ी अपनी गँवाए मैं बैठा हूँ

तुमने ना कर दिया है मुझे फिर भी
प्यार रूकता कहाँ है बताओ तो?
हर घडी हर जगह याद आता है
भूलता भी नहीं है भुलाओ तो

तुमने ना कर दिया है मुझे फिर भी
दीप उम्मीद के मैं जलाऊँगा
वक्त शायद कुछ ऐसा करिश्मा हो
तुम को मैं तो दिलों जाँ से चाहूँगा

तुमने ना कर दिया है मुझे फिर भी
तुम भी मेरी तरफ मुड के आओगे
हमने खाई नहीं है कभी फिर भी
सारी कसमें वफा की निभाओगे

तुषार जोशी, नागपुर

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9 कविताप्रेमियों का कहना है :

RAVI KANT का कहना है कि -

तुषार जी,
सुन्दर भाव पर कहीं-कहीं पर लय में थोड़ी कमी जैसे-
तुमने ना कर दिया है मुझे फिर भी
दीप उम्मीद के मैं जलाऊँगा
वक्त शायद कुछ ऐसा करिश्मा हो
तुम को मैं तो दिलों जाँ से चाहूँगा


ये पंक्ति अच्छी लगी-
हमने खाई नहीं है कभी फिर भी
सारी कसमें वफा की निभाओगे

बधाई।

शोभा का कहना है कि -

तुषार जी
अच्छी कविता लिखी है । आपके प्रेम समर्पण ने दिल को छुआ । सबसे अच्छी बात
आपके विश्वास और आशावादिता है । बस यही रहनी चाहिए । बधाई

Sajeev का कहना है कि -

हमने खाई नहीं है कभी फिर भी
सारी कसमें वफा की निभाओगे
ये हुई न बात

रंजू भाटिया का कहना है कि -

तुमने ना कर दिया है मुझे फिर भी
तुम भी मेरी तरफ मुड के आओगे
हमने खाई नहीं है कभी फिर भी
सारी कसमें वफा की निभाओगे

बहुत अच्छी लगी यह पंक्तियां तुषार जी बधाई सुंदर रचना के लिए !!

Anupama का कहना है कि -

अब तुम्ही हो मुझे जो जिताओगे
बाज़ी अपनी गँवाए मैं बैठा हूँ

हर घडी हर जगह याद आता है
भूलता भी नहीं है भुलाओ तो

वक्त शायद कुछ ऐसा करिश्मा हो
तुम को मैं तो दिलों जाँ से चाहूँगा

हमने खाई नहीं है कभी फिर भी
सारी कसमें वफा की निभाओगे

gud lines....framing could have been better....keep going

मनीष वंदेमातरम् का कहना है कि -

तुमने ना कर दिया है मुझे फिर भी
आस तुमसे लगाए मैं बैठा हूँ
अब तुम्ही हो मुझे जो जिताओगे
बाज़ी अपनी गँवाए मैं बैठा हूँ
इन लाइनो से मुझमे हौसला भरने का शुकि्रया

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

तुमने ना कर दिया है मुझे फिर भी
तुम भी मेरी तरफ मुड के आओगे
हमने खाई नहीं है कभी फिर भी
सारी कसमें वफा की निभाओगे

सरल, सहज, सुन्दर।

*** राजीव रंजन प्रसाद

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

इस कविता में शैलेन्द्र के एक गीत 'कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे' (फिल्म- पूरब व पश्चिम) की झलक दीखती है। इस कविता से बिलकुल प्रभावित नहीं किया। आप अनुभवी कवियों में हैं,, थोड़ी और मेहनत करें।

विश्व दीपक का कहना है कि -

सुंदर रचना है तुषार जी। दिल से निकली और दिल तक पहुँच गई।
बधाई स्वीकारें।

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