काश मेरे नसीब में ,रब बख्शी सौगात हो
दिल डूबा हो तुझ में,चाँद तारों से बात हो
नज़रे ज़ीक़ झुकी रहे,मगर तुझे देखती रहूँ
इब्तदा इश्क की सहर, तन्हा मुलाकात हो
मुद्दतें बीतीं दीदार को, जलवे देखे जो यार के
सीने पर लब निसार, आँसुओं की बरसात हो
जख्म लगे पैरों में,राहें ही अजीब थीं वहाँ की
बेफिक्री ने गिराया,उसपर न कोई इल्ज़ामात हों
इल्म शब-ए-ज़िन्दगी,मदहोश आलम बाबस्ता
उसके जहाँ मिलें निशाँ,वहीं जन्नतें शुरुआत हो
दिल डूबा हो तुझ में,चाँद तारों से बात हो
नज़रे ज़ीक़ झुकी रहे,मगर तुझे देखती रहूँ
इब्तदा इश्क की सहर, तन्हा मुलाकात हो
मुद्दतें बीतीं दीदार को, जलवे देखे जो यार के
सीने पर लब निसार, आँसुओं की बरसात हो
जख्म लगे पैरों में,राहें ही अजीब थीं वहाँ की
बेफिक्री ने गिराया,उसपर न कोई इल्ज़ामात हों
इल्म शब-ए-ज़िन्दगी,मदहोश आलम बाबस्ता
उसके जहाँ मिलें निशाँ,वहीं जन्नतें शुरुआत हो
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17 कविताप्रेमियों का कहना है :
रचना के साथ छायाचित्र का प्रयोग प्रस्तुतीकरण में चार चांद लगा रहा है।
"काश मेरे नसीब में" बहुत ही सुन्दर रचना है। हिन्दी के साथ उर्दू का समावेश.... लेखक की अन्य भाषा पर अच्छी पकड दर्शा रही है।
बहुत ही बढिया गज़ल है।
अनुपमा जी
बहुत ही प्यारी गज़ल लिखी है । मज़ा आ गया पढ़कर । इस गज़ल को गाने का मन कार रहा है ।
हार्दिक बधाई ।
लगता है आपने उर्दू कोचिंग ज्वाईन कर ली है अनुपमा जी, सुन्दर लफ्ज़ों का चयन। न सिर्फ हिन्दी-उर्दू के शब्दों का सुन्दर गुलदस्ता बन पडी है आप की गज़ल अपितु भाव पक्ष भी सशक्त है।
नज़रे ज़ीक़ झुकी रहे,मगर तुझे देखती रहूँ
इब्तदा इश्क की सहर, तन्हा मुलाकात हो
इल्म शब-ए-ज़िन्दगी,मदहोश आलम बाबस्ता
उसके जहाँ मिलें निशाँ,वहीं जन्नतें शुरुआत हो
बहुत खूब!!!!
*** राजीव रंजन प्रसाद
नज़रे ज़ीक़ झुकी रहे,मगर तुझे देखती रहूँ
इब्तदा इश्क की सहर, तन्हा मुलाकात हो
वाह !!क्या बात है अनुपमा जी बहुत ही सुंदर लिखा है आपने ..
जख्म लगे पैरों में,राहें ही अजीब थीं वहाँ की
बेफिक्री ने गिराया,उसपर न कोई इल्ज़ामत हों
यह तो बहुत ही अच्छा लगा ..बधाई !!
अनुपमा जी,
खूबसूरत गज़ल के लिए बधाई.
इल्म शब-ए-ज़िन्दगी,मदहोश आलम बाबस्ता
उसके जहाँ मिलें निशाँ,वहीं जन्नतें शुरुआत हो
क्या बात है!
अनुपमा जी!!!
बहुत ही खुबशूरत गजल लिखा है आपने....
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काश मेरे नसीब में ,रब बख्शी सौगात हो
दिल डूबा हो तुझ में,चाँद तारों से बात हो
मुद्दतें बीतीं दीदार को, जलवे देखे जो यार के
सीने पर लब निसार, आँसुऑ की बरसात हो
इल्म शब-ए-ज़िन्दगी,मदहोश आलम बाबस्ता
उसके जहाँ मिलें निशाँ,वहीं जन्नतें शुरुआत हो
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बहुत अच्छी लगी......
please provide meanings of tough urdu words...
अनुपमा जी हिन्दी और उर्दू के शब्द मिला कर आपने बहुत अच्छा प्रयास किया है, मुझे इस तरह की गज़लें हमेशा ही अच्छी लगती है, पर यहाँ भी मुझे हर शेर में गज़ाल्कारी की जो लाय्बधता होती है उसकी कमी खली, आप और बेहतर लिख सकती हैं
गज़ल बेहद उम्दा है अनुपमा जी मगर यह सरल शब्दो में होती तो और भी खूबसूरत लगती...उर्दू के अल्फ़ाज अक्सर गज़ल को खूबसूरती देते है मगर कुछ अल्फ़ाज़ एसे भी है जो लय में कमी पैदा कर देते है...सभी मायनो में गज़ल तारिफ़े काबिल है रदीफ़ काफ़िया सभी कुछ है बस इल्जामात होना चाहिये जिससे लय बनी रहे...
शानू
काश मेरे नसीब में ,रब बख्शी सौगात हो
दिल डूबा हो तुझ में,चाँद तारों से बात हो
उर्दू के क्लिष्ट शब्दों से सजी आपकी गज़ल अच्छी लगी। भाव पक्ष भी सबल है, बस मुझ जैसा पाठक सब शब्दों के अर्थ नहीं जानता। अत: अनुरोध है कि मुश्किल शब्दों के अर्थ भी साथ दे देतीं तो सुविधा रहती।
अनुपमाजी,
ग़ज़ल बहुत ही खूबसूरत है, शिल्प पर बहुत मेहनत की गई है, गौरवजी की बात पर ज़रा गौर फ़रमाएँ, बहुत से पाठक उर्दु के मुश्किल शब्दों से परिचित नहीं होते, अत: उन्हें ग़ज़ल को समझने में परेशानी होती है, आप मुश्किल शब्दों के अर्थ भी साथ में दे दिया कीजिये।
खूबसूरत ग़ज़ल के लिये बधाई स्वीकार करें!
कल रात इस ग़ज़ल पर मेरी अजय जी लम्बी चर्चा हुई। हम दोनों को यह ज्यादा समझ में ही नहीं आ पाई।
'ज़ीक' शब्द 'परेशान' या 'दुखी' के अर्थ में प्रयुक्त होता है। चलिए यह मान भी लें की दूसरे शे'र की प्रथम पंक्ति का अर्थ ग्राह्य है, लेकिन इसकी दूसरी पंक्ति क्या कह रही है, समझ में नहीं आया। 'इब्तदा इश्क़ की सहर'
इब्तदा- शुरूआत
इश्क़- प्यार
सहर- सुबह, सुब्ह
मतलब कहा जा सकता है (वो भी व्याकरण दोष को नज़रअंदाज़ कर दें तो) 'प्यार के सुबह की शुरूआत' या 'प्यार की शुरूआत सुबह की तरह हो और मुलाकात तन्हाई की तरह आध्यात्मिक हो'
तीसरे शे'र का भी पूरा का पूरा का भाव ग्राह्य नहीं है।
इल्म शब-ए-ज़िन्दगी, मदहोश आलम बाबस्ता
उसके जहाँ मिलें निशाँ, वहीं जन्नतें शुरूआत हो
इल्म- ज्ञान
शब-ए-ज़िन्दगी- जिन्दगी की रात
बाबस्ता- जुड़ा हुआ,
आइए इस शे'र को खोलने की कोशिश करें-(दूसरी पंक्ति में व्याकरण दोष भी है, उसे सही करके)
ज़िंदगी की रात का ज्ञान, उससे जुड़ा हुआ मदहोश माहौल
उसकी शाम जहाँ मिले, वही स्वर्ग की शुरूआत हो।
मैं इस ग़ज़ल को नहीं समझ पाया हूँ। मुझे लगता है कि शब्दों के अर्थों को बिना पहचाने उन्हें यहाँ रखा गया है। अनुपमा जी खुद स्पष्ट करें।
शैलेश का कहना सही है.
"शब्दों के अर्थों को बिना पहचाने उन्हें यहाँ रखा गया है।"
कई जगह गम्भीर गल्तियाँ हैं
जैसे..
"मुद्दतें बीतीं दीदार को, जलवे देखे जो यार के"
यहाँ पहली बात दूसरी को काट रही है
और यह लाईन शेर में कुछ जोड नही रही है
"सीने पर लब निसार, आँसुओं की बरसात हो"
शेर जल्दबाजी और नासमझी में लिखे हुए लग रहे है
जख्म लगे पैरों में,राहें ही अजीब थीं वहाँ की
बेफिक्री ने गिराया,उसपर न कोई इल्ज़ामात हों
काश मेरे नसीब में ,रब बख्शी सौगात हो
दिल डूबा हो तुझ में,चाँद तारों से बात हो
अच्छी गज़ल है अनुपमा जी। कुछ शेरों में भाव खुलकर सामने आए हैं। उर्दू के शब्दों का प्रयोग अच्छा लगा।
मेरी इस गज़ल से कुछ शिकायत भी है। कुछ शब्द जबरद्स्ती डाले हुए से लगें , मसलन-
जन्नते-शुरूआत , इसका अर्थ तो हुआ शुरूआत की जन्नत। लेकिन निस्संदेह आप जन्नत की शुरूआत लिखना चाह रहीं होंगी। तब तो शुरूआत-ए-जन्नत होना चाहिए था। आगे से ध्यान रखिएगा।
शुभकामनाओं के साथ-
विश्व दीपक 'तन्हा'
Namste,
Wo kahete hain na kavita, gazal ya koi geet ka jo asli matlab ho wo to keval likhne wala hi jaane...shrota keval anumaan laga sakte hain.agar koi rachna se apne aap ko relate kar sake to lagta hai samajh aa gai....aur koi rachna aisi ho jisse na relate kar sake apne aap ko to vo problematic lagti hai.:)haan jaisa ki Tanha ji ne kaha ki is gazal me aakhri sher me gadbad hai....
chaliye ab aap sabko isse parichit kara saku shayad aap isse khud ko relate kar sake.
काश मेरे नसीब में ,रब बख्शी सौगात हो
दिल डूबा हो तुझ में,चाँद तारों से बात हो=self explanatory
नज़रे ज़ीक़ झुकी रहे,मगर तुझे देखती रहूँ
इब्तदा इश्क की सहर, तन्हा मुलाकात हो=
jab mehboob mile to mulakaat aisi ho ki premika ki udaas nazreen jo uska barson se intezaar kar rahi hai wo jhuki rahe phir bhi rooh use dekhti hi rahe,ishq ki subah si shuruat ho,aur tanhaai me mulaakaata ho
मुद्दतें बीतीं दीदार को, जलवे देखे जो यार के
सीने पर लब निसार, आँसुओं की बरसात हो=
Mehboob ke jalwe dekhe mudatten beet chuki hain,abki jab mile to kuch is kadar ki uska mehboob use gale se laga le(seene par lab nisaar) aur aasu baraste rahe
जख्म लगे पैरों में,राहें ही अजीब थीं वहाँ की
बेफिक्री ने गिराया,उसपर न कोई इल्ज़ामात हों=
premika ke pairon me jo zakhm lage hain intezar me uske liye wo khud hi zimeddar hai ki chal nahi paa rahi theek se mehboob par koi na ilzamaat ho
(इल्म शब-ए-ज़िन्दगी,मदहोश आलम बाबस्ता
उसके जहाँ मिलें निशाँ,वहीं जन्नत की शुरुआत हो)
aisa lika tha typing me gadbad hui hai
इल्म शब-ए-ज़िन्दगी,मदहोश आलम बाबस्ता
उसके जहाँ मिलें निशाँ,वहीं जन्नतें शुरुआत हो =
aur akhir me use pata hai ki uski zindagi ki shaam kabhi bhi ho sakti hai,aise me bhi maadhoshi chaai hui hai,aur is halat me jahaan bhi mehboob ke nishaan mile wahi bas uski jannat ki shuruaat ho(jannat insaan ko marne ke baad naseeb hoti hai...)
agar ab bhi yeh samajh ke bahar hai to mujhe kshama kijiye....isse zyada aur specifacially nahi samjha paungi.main bhi seek hi rahi hu...
मोहतरमा, उम्दा गज़ल से रूबरू करवाया आपने :)
अनुपमा जी, गज़ल अच्छी है,
हमेशा की तरह गहरे भाव डाले हैं आपने,ापकी कविताओं मे यह विशेषता रही है हमेशा
कुछ सुधी मित्रों ने व्याकरण और भाषागत त्रुटियों की ओर ध्यान दिलाया है, इस पर ध्यान दीजियेगा, मुझे भी सीखने का अवसर मिला
बधाई
सस्नेह
गौरव शुक्ल
अनुपमा जी, आपकी ग़ज़ल बहुत ही प्यारी लगी,
बहुत बहुत शुभकामनाएं
आलोक सिंह "साहिल"
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)