जिसे सब इश्क कहते हैं, बड़ा ज़ालिम ये होता है
फँसा जो इसके फंदे में, लहू के अश्क रोता है
अज़ब दौरे-सियासत है, बिलखते भूख से बच्चे
वहीं मज़दूर-नेता का, वज़न सिक्कों से होता है
उन्हें मतलब खबर से है, भले झूठी ही गढ़नी हो
फर्क क्या उनको पड़ता है, जो इज़्ज़त कोई खोता है
ज़मीं को बेचकर उसने, बड़ी गाड़ी खरीदी है
खेलता दाँव सट्टे में, लगाता मय में गोता है
हवस की आग में उसकी, जला बचपन हो मुन्नी का
गलत वो हो नहीं सकता, बड़े साहब का पोता है
एक-एक गम ज़माने का, ’अजय’ की आँख से बहता
बनाता गज़लों की माला, नये मनके पिरोता है
और आखिर में आज हिन्दी-दिवस की शुभकामनाओं के साथ, इसी विषय पर एक शेर:
हिंदी-दिवस पर आज हम, हिंदी ही अपना लें
निज-भाषा बिना किसका कभी कल्याण होता है
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
अजय जी बहुत खूब लिखा -
अज़ब दौरे-सियासत है, बिलखते भूख से बच्चे
वहीं मज़दूर-नेता का, वज़न सिक्कों से होता है
बधाई !!!!!!!
आज तो नये ही अजय जी से मुलाकात हुई। तेवर दुष्यंत कुमार का है किंतु मौलिकता कवि की अपनी है।
अज़ब दौरे-सियासत है, बिलखते भूख से बच्चे
वहीं मज़दूर-नेता का, वज़न सिक्कों से होता है
और इस शेर में जो आपने लिखा है:
उन्हें मतलब खबर से है, भले झूठी ही गढ़नी हो
फर्क क्या उनको पड़ता है, जो इज़्ज़त कोई खोता है
मीडिया पर गहरा और सही प्रहार है।
हाँ, आज कल आपका हर शेर में अलग अलग नाप का फीता लग रहा है :)
*** राजीव रंजन प्रसाद
उन्हें मतलब खबर से है, भले झूठी ही गढ़नी हो
फर्क क्या उनको पड़ता है, जो इज़्ज़त कोई खोता है
अजय जी बहुत सुंदर लिखा है आपने ...
अजय जी
आपकी गज़ल पढ़ी। गज़ल में तो आप धुरंधर हो गये हैं । समाज के प्रति जागरूकता और तीक्ष्ण
व्यंग्य उभर कर आया है । मुझे निम्न शेर पसन्द आए -
जिसे सब इश्क कहते हैं, बड़ा ज़ालिम ये होता है
फँसा जो इसके फंदे में, लहू के अश्क रोता है
हिंदी-दिवस पर आज हम, हिंदी ही अपना लें
निज-भाषा बिना किसका कभी कल्याण होता है
बधाई स्वीकार करें ।
अजय जी इस बार आपने लय के मामले में मेरी सारी शिकायतें दूर कर दी, पूरी ग़ज़ल बहुत ही अच्छी तरह पिरोयी है आपने कहीँ भी जबरदस्ती के शब्द लय को अवरुद्ध नही करते मगर पहले शेर के भाव में नयापन नही है मगर चूँकि यह भी एक शास्वत सत्य है, इसलिए इसका जिक्र करना हर शायर के लिए लाजमी ही है, दूसरा और चौथा शेर बेहद अच्छे हैं, तीसरा शेर बिल्कुल ताज़ा तस्वीर को सामने रखती है मीडिया पर कडा प्रहार किया है आपने, यह आपकी संवेदना का उत्कृष्ट नमूना है ... बधाई
अजय जी ..अत्यंत प्रभावकारी लगी यह प्रस्तुति आपकी
विडंबना ही तो है
अज़ब दौरे-सियासत है, बिलखते भूख से बच्चे
वहीं मज़दूर-नेता का, वज़न सिक्कों से होता है
हिंदी-दिवस पर आज हम, हिंदी ही अपना लें
निज-भाषा बिना किसका कभी कल्याण होता है
अजय जी,
बहुत सही!! क्या बात है!!!
अज़ब दौरे-सियासत है, बिलखते भूख से बच्चे
वहीं मज़दूर-नेता का, वज़न सिक्कों से होता है
सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई।
अजय जी ,
बहुत खूब .......
एक-एक गम ज़माने का, ’अजय’ की आँख से बहता
बनाता गज़लों की माला, नये मनके पिरोता है
बहुत सुंदर ..
बधाई |
अजय जी,
कोशिश किया कीजिए कि सभी शे'र बराबर वज़नी हों।
आपका पहला शे'र बहुत साधारण है। दूसरा भी नया नहीं है। तीसरा ज़रूर तेवरी है।
५वें शे'र में बहुत दम है।
साधारण शेर हैं.
राजीव रंजन प्रसाद जी ने ठीक कहा है हर शेर में अलग अलग नाप का फीता लग रहा है
उन्हें मतलब खबर से है, भले झूठी ही गढ़नी हो
फर्क क्या उनको पड़ता है, जो इज़्ज़त कोई खोता है
इस शेर को अगर ऎसे लिखा जाता तो बेहतर बन पडता
उन्हें मतलब खबर से है, भले झूठी ही गढ़नी हो
फर्क क्या उनको, कोई इज़्ज़त जो खोता है
मैने इस शेर को बतौर उदाहरण पेश किया है. सम्भवतः अजय जी ध्यान देंगे.
हमारे चारों ओर हो रही घटनाओं को बड़ी खूबी से आपने अपने हर इक शेर में ढ़ाला है। बहुत बढ़िया लिखते रहें !
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