काव्य-पल्लवन सामूहिक कविता-लेखन
विषय - हिन्दी दिवस
विषय-चयन - शोभा महेन्द्रू
पेंटिंग - सिद्धार्थ सारथी
अंक - सात
माह - सितम्बर 2007
इंटरनेट की दुनिया से जुड़े बहुत से नये-पुराने हिन्दी-कवि हमारे सम्पर्क में है। देश भर में हिन्दी-दिवस के अवसर पर दुनिया भर के जलसे होते हैं। हमने सोचा कि ज़रा हम भी काव्य-पल्लवन को आयोजित करके यह तो देखें कि ये इंटरनेटिया कवि क्या सोचते हैं? उनका मंथन आपके सामने है। हिन्द-युग्म इस अवसर पर आप सभी से यही प्रार्थना करेगा कि हिन्दी का प्रयोग करें, इंटरनेट की दुनिया पर भी इससे राज करवाया जा सकता है, हमारी संख्या बहुत है। बस आप ठान लें कि आप भी हिन्दी में लिखेंगे और १० लोगों को हिन्दी-प्रयोग के लिए प्रेरित करें। किसी भी प्रकार की मदद के लिए हिन्द-युग्म हाज़िर है।
चूँकि इस बार समय कम था। हमें १४ सितम्बर २००७ को इस अंक को प्रकाशित करना था, अतः हरेक कविता के लिए पेंटरों को समय नहीं मिला। एक थीम-पेंटिंग बनाकर भेजा है सिद्धार्थ सारथी ने।
***प्रतिभागी कवि***
। निखिल आनंद गिरि । प्रतिष्ठा शर्मा । शोभा महेन्द्रू । कवि कुलवंत सिंह । श्रीकांत मिश्र 'कांत' । तपन शर्मा । रंजना भाटिया । महेन्द्र मिश्रा । सजीव सारथी । अजय यादव । रितू बंसल । अनुराधा श्रीवास्तव । कुमार आशीष । दिव्या श्रीवास्तव । प्रो॰ नरेन्द्र पुरोहित । राजीव रंजन प्रसाद ।
~~~अपने विचार, अपनी टिप्पणी दीजिए~~~
रुधिर-की बहने दो अब धार,
स्वर गुंजित हों नभ के पार,
किए पदताल भाषा के सिपाही आए,
खोलो, खोलो तोरण द्वार......
बहुत-सा हौसला भी, होश भी, जूनून चाहिए...
हिंदी को ख़ून चाहिए...
गुलामी-की विवशता हम,
समझने अब लगे हैं कम,
तभी तो एक परदेसी ज़बां,
लहरा रही परचम ,
नयी रच दे इबारत, अब वही मजमून चाहिए...
हिंदी को ख़ून चाहिए....
हुई हैं साजिशें घर में,
दिखे हैं मीत लश्कर में,
पड़ी है आस्था घायल,
अपने ही दरो -घर में...
उठो, आगे बढ़ो , हिंद को सुकूं चाहिए....
हिंदी को ख़ून चाहिए....
हिंदी को ख़ून चाहिए.....
निखिल आनंद गिरि
गुजराती, मराठी, तमिल हो या
हो अंग्रेज़ी, सब को अपनाए,
पर हिन्दी को ना भुलाए |
आओ हिन्दी-दिवस मनाए ||
कवियों का कवित्व जगाये,
कहानियो का कलश सजाये,
‘बाल-उद्यान’ की गंगा बहाये,
आओ हिन्दी-दिवस मनाए ||
पर फिर कभी-कभी मैं सोचती हूँ कि
हिन्दी सिर्फ भाषा नहीं भाव हैं,
सभ्यता हैं, संस्कृति हैं, संस्कार हैं,
अपनी सभ्यता को अपनाने के लिये,
क्या हिन्दी-दिवस की जरूरत हैं?
माना हिन्दी को और प्रखर बनाना हैं|
उसे विश्व रूपी मंच पर सजाना है|
पर 'हिन्द-युग्म' चलाने के लिये,
क्या हिन्दी-दिवस की जरूरत हैं?
अब तो जार्ज बुश ने भी जाना है
हमारी भाषा का लोहा माना है|
बिल गेट्स के साफ़्टवेयर में भी आती है,
विश्व भर में हिन्दी और हिन्दुस्तानियों की ख्याती है||
हिन्दी है इस जग के माथे की बिन्दी,
हम सब के मन में बसी है हिन्दी|
हिन्दी-दिवस से हमें एतराज़ नहीं,
पर हिन्दी, हिन्दी-दिवस की मोहताज़ नहीं||
प्रतिष्ठा शर्मा
मैं एक अध्यापिका हूँ
हिन्दी पढ़ाती हूँ ।
मत पूछो दिन भर
कितना सकपकाती हूँ ।
जब भी कहीं किसी से
मिलने जाती हूँ --
बहुत आत्मविश्वास जताती हूँ ।
किन्तु प्रथम परिचय में ही-
पानी-पानी हो जाती हूँ ।
जब कोई पूछता है-
आप क्या करती हैं ?
मैं बड़े गर्व से कहती हूँ -
मैं एक अध्यापिका हूँ ।
अच्छा---?
किस विषय की -?
इस प्रश्न का सामना
कभी नहीं कर पाती हूँ ।
सुनते ही बहुत नीचे
धँस जाती हूँ ।
लगता है ये एक ब्रह्मास्त्र है ।
जो मेरे आत्मविश्वास को
खंड-खंड कर देगा ।
और मैं -चाह कर भी
अपनी रक्षा नहीं कर पाऊँगी ।
प्रश्न फिर गूँजता है--
किस विषय की ---
जी --हिन्दी की
बहुत कोशिश करके कहती हूँ ।
सभी के चेहरों का सम्मान
हवा हो जाता है ।
और आँखों में-
एक हिकारत सी आ जाती है ।
मुझे लगता है--
मैं कोई बड़ा अपराध कर रही हूँ ।
अंग्रेज़ी प्रधान लोगों में
हिन्दी का प्रचार कर रही हूँ ।
मेरे विद्यार्थी हिन्दी से
उकता जाते हैं ।
पर जब कभी--
बहुत प्यार जताते हैं -
तब पूछ बैठते हैं -
मैम आप ने हिन्दी क्यों ली ?
उस वक्त मेरी नसें -
फड़फड़ाने लगती हैं ।
किन्तु प्रत्यक्ष में
खिसियाकर मुसकुराती हूँ ।
पर कोई ठोस कारण
नहीं बता पाती हूँ ।
एक बार प्रयास किया था ।
हिन्दी के महत्व पर
बड़ा-सा भाषण दिया था ।
धारा प्रवाह हिन्दी का
जयगान किया था ।
किन्तु एक विद्यार्थी ने
झटके से पूछ लिया था --
क्या आगे काम आएगी ?
नौकरी दिलवाएगी ?
मेरा उत्साह शून्य में खो गया
मैं बहुत कुछ कहना चाहती थी -
किन्तु मेरी ये बातें कौन सुनेगा?
हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा है--
तो हुआ करे----
वह वैज्ञानिक और सरल है-
किन्तु नौकरी तो नहीं दिला सकती ।
विदेश तो नहीं भिजवा सकती ।
मुझे अपने हिन्दी पढ़ाने पर
शर्म आने लगती है ।
दूर-दूर ढूँढ़ती हूँ -
पर कहीं कोई हिन्दी प्रेमी नहीं मिलता ।
हिन्दी के लिए मान
झीना होने लगता है ।
और मुझे कुछ चेहरे
दिखाई देने लगते हैं ।
अंग्रेजी बोलते-- फ्रैंच सीखते-
और हिन्दी को दुदकारते ।
मैं इन चेहरों को पहचान
नहीं पाती हूँ ।
और तभी मुझे कोने में
डरी-सहमी हिन्दी दिखाई देती है ।
मेरी ओर बहुत कातर दृष्टि से देखती--
उसकी आँखों का सामना
नहीं कर पाती हूँ ।
टूटते शब्दों से
दिलासा पहुँचाती हूँ ।
किन्तु हिन्दी-दिवस पर
अपनी भाषा को
कुछ नहीं दे पाती हूँ ।
हिन्दी दिवस मनाने वालों-
आज एक संकल्प उठाओ-
अंग्रेजी भले ही सीखो-
पर अपनी भाषा को
मत ठुकराओ ।
उसे यूँ अपरिचित ना बनाओ ।
शोभा महेन्द्रू
अभिमान है,
स्वाभिमान है,
हिंदी हमारा मान है ।
जान है,
जहान है,
हिंदी हमारी शान है ।
सुर, ताल है,
लय, भाव है,
हिंदी हमारा गान है ।
दिलों का उद्गार है,
भाषा का संसार है,
हिंदी जन-जन का आधार है ।
बोलियों की झंकार है,
भारत का शिंगार (शृंगार) है,
हिंदी संस्कृति का अवतार है ।
विचारों की खान है,
प्रेम का परिधान है,
हिंदी भाषाओं में महान है ।
बाग की बहार है,
राग में मल्हार है,
हिंदी हमारा प्यार है ।
देश की शान है,
देवों का वरदान है,
हिंदी से हिंदुस्तान है ।
कवि कुलवंत सिंह
हिन्द में हो हिन्द का युग
हिन्द-युग्म हो हर हाथ में
यह सलोनी लाडली
रस भाव लाये साथ में
पाठकों प्रिय प्रेरकों
मम हृदय रचनाकार से
करें सब सहयोग इसका
र्निभाव निर्विकार से
विश्व में संस्कृत-सुता
हिन्दी हमारी भारती
सर्व प्रिय हो राष्ट्रभाषा
हम करें इसकी आरती
' कान्त ' उर अभ्यर्थना
हर शारदा परिजन सुने
हो स्रजित साहित्य अनुपम
विश्व स्वर गुंजन सुने
श्रीकान्त मिश्र 'कान्त'
भाषाओं में एक ये भाषा,
कहते जिसे हम हिंदी हैं।
इतिहास इसका सदियों पुराना,
माथे पर सजती बिंदी है।।
देश के आधे हिस्से में,
आज भी है ये बोली जाती।
पर "बूढ़ा" कह कर हिंदी को,
रह-रह नब्ज़ टटोली जाती।।
भारी जन समूह की प्रतिनिधि को,
न मिला राष्ट्रभाषा का सम्मान।
विदेशी पट्टी आँखों में बाँध,
करते रहे हैं हम अपमान।।
झूठी शान का पहन के हार
अंग्रेज़ी फ़ैशन से सब हैं ग्रस्त।
सब ज़ोर से "ए बी सी" सुनाते हैं,
पर "क ख ग" में होते हैं पस्त।।
अपनी ही भाषा बोलने से जब,
लोग कतराने लगते हैं।
विदेशी को सर बिठाया जाता है,
और हिंदी से शरमाने लगते हैं।।
तब स्वयं को उपेक्षित देखकर,
"हिंदी" कोने में दुबक जाती है।
अश्रु इतने बहते हैं कि,
आँखें सूखी पड़ जाती हैं।।
उन पथराई नज़रों से तब,
एक आवाज़ आती है।
अब शांत नहीं रहना है मैंने,
कहकर फ़ैसला सुनाती है।।
जब विदेशियों ने भी मुझको,
नम्रता से स्वीकारा है ,
तो अपने देशवासियों को मैंने,
स्वयं पर गर्व करना सिखलाना है।
हिंद देश के तुम वासी हो,
हिंदी से करो न परहेज।
ये तुम्हारी ही विरासत है,
विनती है, रखना सहेज।।
तपन शर्मा
हिन्दी-दिवस की सुबह
सबको हिन्दी याद आई
नेता जी ने भी आज देखो
क्या 'स्पीच' है बनायी
लेडीज़ एण्ड जेन्टलमेन!
आज का 'ब्यूटीफुल' दिन है आया
हमने अपनी हिन्दी 'लैंग्वेज' को
'इंडिया' की 'मदर टंग' बनाया
इंडिया प्यारी 'कंटरी' है हमारी
हमें पूरे 'वर्ल्ड' में लगती है प्यारी
हम इंडिया में रहने वाले सब
हिन्दुस्तानी है .....
इस लिए हिन्दी में बात करना
बहुत 'प्राऊड' की निशानी है ,
पर आज की 'यंग जनरेशन'
इस बात को कब समझ पाती है
हर बात में बस अपनी
'इंग्लिश लैंग्वेज़' ही हमको सुनाती है
हमको अपनी हिन्दी 'लैंग्वेज़' को
'वर्ल्ड' में महान बनाना है
तभी सच होंगे सब 'ड्रीम'
हमारी इंडिया के
हमने इस 'लैंग्वेज़' को
अब 'वर्ल्ड -वाइड' बनाना है
आपने अपना कीमती 'टाइम' दिया
मैं इसका बहुत 'थैंकफुल' हूँ
'इंग्लिश' में हर बात करना
'कम्प्लीटली रॉन्ग' है
हिन्दी 'लैंग्वेज़' को
आगे लाना ही अब 'इंडिया' की शान है !!
रंजना भाटिया
हिंदी है हमारी जननी भाषा , हिन्दी भाषा है सबसे न्यारी
एक अदभुत तकनीकी भाषा, जैसा सुनते वैसा लिखते
वैसा ही अपने भाव पाते, हिंदी की वर्णमाला हमें
पढ़ने-लिखने की सीख देती कर्म करने का पाठ पढ़ाती
क से कर्म करो , ख खाओ खिलाओ का नारा देता
ग ग़लत न करो भाई ,घ घर साफ़ रखो तुम भाई
च चलते रहो नौजवान तुम, छ कहता छल कपट न करो भाई
ज जय जवान का तो ट टालना नहीं स्वदेश धर्म है भाई
त तनकर चलने की सीख देता, ड कहता डरो मत भाई
थ थको मत अच्छे कामों से, द दया धरम का पाठ सिखाता
ध कहता धन कमाओ पर न कहता नमक हलाल न होना
प परोपकार करो तो फ फसल उगाने का संदेश देता भाई
ब बड़ों के आदर को कहता तो र ना रोने की सीख देता
य यही तो ज़िंदगी है तो भ भारत मेरा महान है भाई
व कहता वीर बनो तो ल लालच न करने की सीख देता
स सच कहता है तो ह हम सब एक है भाई
ज्ञ कहता ज्ञान दो और ज्ञानी हो जाओ भाई
हिंदी हमारी जननी भाषा, हिंदी भाषा है न्यारी...भाई
..................
महेंद्र मिश्रा
मैं आज के हिंद का युवा हूँ,
मुझे आज के हिंद पर नाज़ है,
हिन्दी है मेरे हिंद की धड़कन,
सुनो, हिन्दी मेरी आवाज़ है.
संकीर्णतायें समाज की टूट रही है,
अब हिन्दी से परहेज किसे है,
कहने को अपनी बात, सशक्त शब्दों में,
भाषा मेरी अब अंग्रेजी की मोहताज नहीं है.
चाहे गीत लिखूं या कहूँ कोई कविता,
मेरे भाव, मेरी कल्पनाओं की परवाज है,
हिन्दी है मेरे हिंद की धड़कन ,
सुनो, हिन्दी मेरी आवाज़ है.
संस्कृत की गंगोत्री से निकलकर,
हमजुबां उर्दू से मिलकर,
ब्रजभाषा, मैथली, मारवाड़ी कहीं
तो कहीं अवधी, भोजपुरी में ढलकर,
सिन्धी, पंजाबी, हरियाणवी, गुजराती,
बंगला, और तमाम द्रविड़ भाषाओं से जुड़कर,
समस्त राष्ट्र को एक सूत्र मे बाँध रही है हिन्दी आज,
सरल है, समृद्ध है, सम्पूर्ण है मेरी हिन्दी आज,
अंतरजाल पर जब से आयी, छा गई है विश्वपटल पर,
गर्व से कहता हूँ मैं, मेरी हिन्दी भाषाओं में सरताज है
हिन्दी है मेरे हिंद की धड़कन ,
सुनो, हिन्दी मेरी आवाज़ है.
सजीव सारथी
इस बार भी हिंदी-दिवस मनाया जायेगा
ज़ोर-शोर से हिंदी का ढोल बजाया जायेगा
दिल बहलाने को आखिर खयाल अच्छा है
वो हिंदी का पहनते हैं, हिंदी की खाते हैं
इसलिये हर साल हिंदी-दिवस मनाते हैं
आखिर नौकरों को भी पगार दी जाती है
हिंदी-दिवस पर भाषण देकर लौटते ही
हिंदी पढ़ते बच्चे को थप्पड़ मार दिया
बेवकूफ बेकार वक्त खराब कर रहा था
हिंदी-दिवस पर भाषण देते नेता जी से पूछा था
अपने बच्चों को अंग्रेज़ी स्कूल में क्यों पढ़ाते हो?
शाम को उसके घरवाले थाने के चक्कर लगा रहे थे
भारत में हिंदी को, माथे की बिंदी को
अपने जो कहाते हैं, वो ही नोच खाते हैं
हिंदी-दिवस भी तो कमाई का तरीका है
अजय यादव
कल रात स्वप्न में
मेरी मुलाकात हिन्दी
से हो गई ।
डरी,सहमी कातर
हिन्दी को देखकर
मैं हैरान सी हो गई ।
मैंने पूछा -
तुम्हारी यह दशा क्यों ?
तुम तो राष्ट्र भाषा हो ।
देश का स्वाभिमान हो ।
हिन्द की पहचान हो ।
यह सुनते ही--
हिन्दी ने कातर नज़रों से
मेरी ओर देखा ।
उसकी दृष्टि में जाने क्या था
कि मैं पानी-पानी हो गई ।
मेरे अन्तर से जवाब आया
जिस देश में राष्ट्र भाषा
की यह दशा हो--
उसे राष्ट्रीय अस्मिता की बातें
करने का क्या अधिकार है ?
जब विदेशी ही अपनानी है
तो इतना अभिनय क्यों ?
हिन्दी-दिवस जैसी औपचारिकताएँ
कब तक सच्चाई पर पर्दा
डाल पाएँगी ?
शर्म से मेरी आँखें
जमीन में गड़ जाती हैं
और चुपचाप आगे बढ़ जाती हूँ ।
किन्तु एक आवाज़
कानों में गूँजती रहती है ।
और बार-बार कहती है -
हिन्दी -दिवस मनाने वालो
हिन्दी को भी तुम अपनाओ ।
क्योंकि--
अपनी भाषा ही उन्नति दिलाएगी
किन्तु अगर
अपनी माँ ही भिखारिन रही तो--
पराई भी कुछ नहीं दे पाएगी ।
कुछ नहीं दे पाएगी -----
रितू बन्सल
मैं सोच-सोच कर शर्मिन्दा हूँ
हाँ सही में कितनी अजीब बात है
आज घर में ही बेघर हो तुम-
आहत हो ,अपमानित हो
अपनी ही संतति से अवहेलित हो
पर क्यों?
राष्ट्रभाषा का तमगा है
प्रयास दर प्रयास
बढ़ावा देने के नाना यत्न
पर क्यों?
हाँ -कसमसा रही हूँ "मैं"
देख कर औपचारिक रीति-रिवाज
"हिन्दी -दिवस"
क्या खूब अब मैं अपने ही घर में हूँ-
फटे हाल, बेबस,लाचार
लज्जित होते हैं
जहाँ बोलने में मुझे
मेरे अपने नौनिहाल
भरा-पूरा घर होते जैसे -मैं
वृद्धाश्रम के किसी कोने में
सिसकती, बिलखती सी
बेसहारा, झूझती सी
और दूसरी तरफ
समाजसेवी चिल्ला-चिल्लाकर
कर रहे हैं हल्ला-
"मातृभाषा को अपनाना होगा
राष्ट्रभाषा को फैलाना होगा
प्रान्तीयता की सीमाओं को काट
हिन्दी को अपनाना होगा"
आह इतना अपमान
जैसे माँ को माँ होने का
देना होगा इम्तिहान
जब करती हूँ आत्मनिरीक्षण
तो लगता है जैसे मेरे अपनों ने
किया है-व्याभिचार
मेरी हालात के जिम्मेदार -
कोई एक नहीं -हैं तमाम
वो सरकारी नीतियाँ-
जहाँ राष्ट्रभाषा के नाम पर हैं
अभी भी क्लिष्ट
उर्दू-फारसी युक्त सरकारी फरमान
कारपोरेट जगत की झूठी शान
जहाँ हिन्दी बोलने से होता है अपमान
आधुनिकता की जहाँ
पीढी विशेष ने चस्पा किया है अदृश्य सा साइनबोर्ड
"हिन्दी का प्रयोग है पूर्णतः वर्जित "
इतनी अवहेलना, इतना अपमान
फिर भी कहते हो-
"मेरा भारत महान
मेरी भाषा महान"
हिन्दी नहीं थी कभी
"हिन्दी दिवस ", भाषणों ,आयोजनों की मोहताज
जो बसती थी दिलों में
करती थी राज
वो आज हुई अजनबी समान
सोचो ऐसा क्यों?
थोड़ी सी बस थोड़ी सी
जरुरत है आत्ममंथन की
पाओगे कमी है -
आत्माभिमान की
खुद पर संस्कृति पर
भाषा पर देश पर
जब करोगे गर्व
तब ही निज भाषा
करेगी उन्नति
पायेगी समृद्धि ।
अनुराधा श्रीवास्तव
भारत की पहचान हो हिन्दी
जनमनगण का गान हो हिन्दी
रची बसी हो जनजीवन में
अधरों की मुसकान हो हिन्दी
कुमार आशीष
हिन्दी दिवस तुझे नमन
तेरे आने से सम्रत हुआ
अंग्रेजी सागर में डूबे हुये लोगों को
कि तेरा भी अस्तित्व है
आज उदघोषित होंगे... तेरे उठान हेतु कई उपाय
होंगी कितनी ही सभायें
तू मौन रह देखना इस मनोरंजक नाटक को
कल तू फ़िर से अकेली.. कुछ पिछड़े हुये
लोगों के होंठो पर खेलेगी
उनके कलम से निकलेगी
वही लोग... बैठ कर फिर से इन्तजार करेंगे
अगले हिन्दी दिवस का
हिन्दी दिवस तुझे नमन
दिव्या श्रीवास्तव
आओ-आओ सुनो कहानी हिन्दी के उत्थान की
हिन्दी की जय बोलो हिन्दी बिन्दी हिन्दुस्तान की ।
हिन्दी को नमन--हिन्दी को नमन ।
सबकी भाषा अलग-अलग है, अलग अलग विस्तार है
भावों की सीमा के भीतर, अलग-अलग संसार है ।
सब भाषाओं के फूलों का, इक सालोना हार है ।
अलग-अलग वीणा है, लेकिन एक मधुर झंकार है ।
भाषाओं में ज्योति जली है, कवियों के बलिदान की ।
हिन्दी की जय बोलो हिन्दी भाषा हिन्दुस्तान की ।
हिन्दी की गौरव गाथा का नया निराला ढंग है ।
कहीं वीरता, कहीं भक्ति है, कहीं प्रेम का रंग है ।
कभी खनकती हैं तलवारें, बजता कहीं मृदंग है ।
कभी प्रेम की रस धारा में, डूबा सारा अंग है ।
वीर भक्ति रस की ये गंगा, यमुना है कायान की
हिन्दी की जय बोलो, हिन्दी भाषा हिन्दुस्तान की ---
सुनो चंद की हुँकारों को, जगनिक की ललकार को
सूरदास की गुँजारों को, तुलसी की मनुहार को
आडम्बर पर सन्त कबीरा की चुभती फटकार को
गिरिधर की दासी मीरा की, भावभरी रसधार को
हिन्दी की जय बोलो हिन्दी-बिन्दी हिन्दुस्तान की
हिन्दी को नमन--हिन्दी को नमन।
भारतेन्दु ने पौधा सींचा महावीर ने खड़ा किया
अगर गुप्त ने विकसाया तो जयशंकर ने बड़ा किया
पन्त निराला ने झंडे को मजबूती से खड़ा किया ।
और महादेवी ने झंडा दिशा-दिशा मे उड़ा दिया
गिरिधर की दासी मीरा के सुनी सरस उद्गारों को
देव बिहारी केशव की कविता है प्रेमाख्यान की
हिन्दी की ये काव्य कथा है हिन्दी के गुनगान की
हिन्दी की जय बोलो हिन्दी बिन्दी हिन्दुस्तान की
आओ-आओ सुनो कहानी हिन्दी के उत्थान की।
प्रो॰ नरेन्द्र पुरोहित
प्रलयंकर तूफानों के बाद शेष तबाहियाँ
यह हिन्दुस्तान की कहानी है
यह सौ करोड़ मुर्दों का देश है
जिनमें लहू का उबाल नहीं, सिर्फ पानी है
शायित है भारत का भाग्य
कफन ओढ़ मानवता है
सर्वत्र, घुटन अश्क और दर्द ही की सत्ता है
हमारी संस्कृति की उदात वृत्तियों का गुल्म मुर्झा गया है
सदियों की गुलामी सहते
भारत!! क्या इतना जरजर, इतना लड़खड़ा गया है
कि प्रतीत हो सर्वत्र अंधेरा ही अंधेरा छा गया है
वस्तुत: हमारी मानसिकता आज भी गुलाम है
इसीलिये हमारा अपनत्व, हमारी संस्कृति
सबसे अहं हमारी भाषायी सत्ता
हो रही क्षत विक्षत
और भाषा के प्रश्न पर लाखों व्यूह-प्रत्यूह...
मातृ भाषा के बिना
राष्ट्र की दुर्दशा है वही
जैसी कि पर्जन्य विरहित मरुस्थल की
आवश्यकता है मातृभाषा के
मातृ शब्द के वात्सल्य को पहचानने की
यह मानने की कि हम नि:सत्व नहीं हैं
दौड़ती दुनियाँ की भीड़ में हम भी कहीं हैं
माना कि वह शृंगार देश का है
मस्तक की है बिन्दी
किंतु अपने अधिकारों की याचक
भिखारिणी है हिन्दी
जन-जन की समानता के अधिकारों का
हनन हो रहा है
क्योंकि दो प्रतिशत लोगों के हाथों
अनठानबे प्रतिशत के अरमानों का पतन हो रहा है
अपने अपने गिरेबान में झांको
झूठी सामाजिक श्रेष्ठता की बू आयेगी
आँख मिला सको अंतरात्मा से
तडपती, सिसकती, अधमरी हिन्दी नज़र आयेगी
जिसकी इस दशा का दायित्व तुम्हारा होगा
गहरायी में सोचो, तुम्हारा अहं भी हारा होगा
अरे झूठी शान की भुलभुलैया में भटके राही
अपनी सोच को आयाम दो
हिन्दी में अपनी रागात्मकता को अपानाओ
छिन्न-भिन्न तो न करो
अंधे हैं आज देश के कर्णधार
इनमें सामर्थय नहीं
विरासत है इनकी पराधीन मानसिकता
और यही बोझ हम पर थोपा जा रहा है
छीना जा रहा है हमारा हक
अपनी मंजिल खुद तलाश करने का
हम देश के भावी कर्णधार, देश का भविष्य हैं
हमें रास्तों में फूल नहीं, मंजिल पर उजाला चाहिये
और हमें अपने भविष्य के लिये अंग्रेजी नहीं हिन्दी चाहिये
चूंकि भविष्य का निर्माण तो हम करेंगे
अपनी मेहनत के बल पर निष्प्राण भारत में प्राण भरेंगे
दूर रखना है हमें नंगी नाचती संस्कृति
और दूसरों का हक छीनती भाषा
हिन्दी ही भारत की प्रगति की है परिभाषा
आइये हम नया जहान बनायें
मीठे झूठ के परबत से टकरायें
रंगहीन भारत में आकर्षण भरना है
केवल हिन्दी ही से पूरा हो सकता सपना है
आइये एक दीप बन कर
ज्योत से ज्योत जलायें
फैलायें यह भाव
हमारे देश की आशा
हिन्दी हो कार्य भाषा
हिन्दी है राष्ट्र भाषा..
राजीव रंजन प्रसाद
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
29 कविताप्रेमियों का कहना है :
माफी चाहता हूँ लेकिन कहना पड रहा है कि हिन्दी दिवस पर लिखा बहुत गया...बस कविता ही नहीं लिखी गई
हिन्दी दिवस की सभी "हिन्दी-प्रेमी -हिन्दोस्तानियों" को शुभकामनायें।
काव्य-पल्लवन का विषय तो सामयिक था किंतु अधिक प्रविष्टियाँ नही हैं।
निखिल आनंद गिरि
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कवि की ओजस्विता सराहनीय है और एसे कलम से सिपाही आज की आवश्यकता भी हैं:
हुई हैं साजिशें घर में,
दिखे हैं मीत लश्कर में,
पड़ी है आस्था घायल,
अपने ही दरो -घर में...
उठो, आगे बढ़ो , हिंद को सुकूं चाहिए....
हिंदी को ख़ून चाहिए....
हिंदी को ख़ून चाहिए.....
प्रतिष्ठा शर्मा
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हिन्दी सिर्फ भाषा नहीं भाव हैं,
सभ्यता हैं, संस्कृति हैं, संस्कार हैं,
अपनी सभ्यता को अपनाने के लिये,
क्या हिन्दी-दिवस की जरूरत हैं?
पर हिन्दी, हिन्दी-दिवस की मोहताज़ नहीं||
बहुत सुन्दर विचार। अच्छी रचना।
शोभा महेन्द्रू
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मैं एक अध्यापिका हूँ
हिन्दी पढ़ाती हूँ ।
किन्तु प्रथम परिचय में ही-
पानी-पानी हो जाती हूँ ।
जब कोई पूछता है-
आप क्या करती हैं ?
मैं बड़े गर्व से कहती हूँ -
मैं एक अध्यापिका हूँ ।
अच्छा---?
किस विषय की -?
इस प्रश्न का सामना
कभी नहीं कर पाती हूँ ।
शोभा जी, आपके इस दर्द का नाम राष्ट्रीय शर्म है। उस राष्ट्र का कुछ नहीं हो सकता जिसे अपनी संप्रेषणीयता के लिये विदेशी भाषा चाहिये। आप जैसे अध्यापक नहीं...वो अभिभावक शर्म से गडें जिनका बीज तो हिन्दोस्तानी है लेकिन जडें...हैं ही नहीं।
कवि कुलवंत सिंह
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हिन्दी पर अभिमान करते हुए आपने बखूबी कहा है:
देश की शान है,
देवों का वरदान है,
हिंदी से हिंदुस्तान है ।
श्रीकान्त मिश्र 'कान्त'
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हिन्द में हो हिन्द का युग
हिन्द-युग्म हो हर हाथ में
यह सलोनी लाडली
रस भाव लाये साथ में
कांत जी नें हिन्दी और हिन्द युग्म को सुन्दर शब्द दिये हैं।
तपन शर्मा
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हिंद देश के तुम वासी हो,
हिंदी से करो न परहेज।
ये तुम्हारी ही विरासत है,
विनती है, रखना सहेज।।
हिन्दी की वकालत करती हुई तपन जी नें सुन्दर रचना प्रस्तुत की है।
महेन्द्र मिश्र
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पूरी वर्णमाला का सुन्दर काव्य प्रयोग। आप बधाई के पात्र हैं।
सजीव सारथी
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संस्कृत की गंगोत्री से निकलकर,
हमजुबां उर्दू से मिलकर,
ब्रजभाषा, मैथली, मारवाड़ी कहीं
तो कहीं अवधी, भोजपुरी में ढलकर,
सिन्धी, पंजाबी, हरियाणवी, गुजराती,
बंगला, और तमाम द्रविड़ भाषाओं से जुड़कर,
समस्त राष्ट्र को एक सूत्र मे बाँध रही है हिन्दी आज,
सरल है, समृद्ध है, सम्पूर्ण है मेरी हिन्दी आज,
अपनी भाषा पर गर्व करने के आपके तर्क बहुत अच्छे हैं।
अजय यादव
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भारत में हिंदी को, माथे की बिंदी को
अपने जो कहाते हैं, वो ही नोच खाते हैं
हिंदी-दिवस भी तो कमाई का तरीका है
आपके व्यंग्यों में धार अच्छी है। अच्छा प्रयास है आपकी यह रचना।
रितु बंसल
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अपनी भाषा ही उन्नति दिलाएगी
किन्तु अगर
अपनी माँ ही भिखारिन रही तो--
पराई भी कुछ नहीं दे पाएगी ।
कुछ नहीं दे पाएगी -----
पता नहीं, इतनी सी बात यह देश कभी समझ भी पायेगा?
अनुराधा श्रीवास्तव
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जरुरत है आत्ममंथन की
पाओगे कमी है -
आत्माभिमान की
खुद पर संस्कृति पर
भाषा पर देश पर
जब करोगे गर्व
तब ही निज भाषा
करेगी उन्नति
पायेगी समृद्धि ।
इस सात्य को नकारा नहीं जा सकता। एक अच्छी रचना।
कुमार आशीष
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भारत की पहचान हो हिन्दी
जनमनगण का गान हो हिन्दी
रची बसी हो जनजीवन में
अधरों की मुसकान हो हिन्दी
छोटा और मधुर।
दिव्या श्रीवास्तव
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कल तू फ़िर से अकेली.. कुछ पिछड़े हुये
लोगों के होंठो पर खेलेगी
उनके कलम से निकलेगी
वही लोग... बैठ कर फिर से इन्तजार करेंगे
अगले हिन्दी दिवस का
हिन्दी दिवस तुझे नमन
कविता में भाषा की दुर्दशा पर आपकी पीडा खलकती है। एक अच्छी प्रस्तुति।
प्रो. नरेंद्र पुरोहित
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हिन्दी की जय बोलो हिन्दी बिन्दी हिन्दुस्तान की
आओ-आओ सुनो कहानी हिन्दी के उत्थान की।
जबरदस्त प्रस्तुति। "आओ बच्चों तुम्हें दिखाये झांकी हिदुस्तान की" कविता पढ्ते हुए इस गीत की झलक अवश्य मिलती है किंतु कथ्य की मौलिकता निस्संदेह प्रश्ने के परे हैं। शिल्प कसा हुआ है और यह एक उत्कृष्ट रचना है।
पुनश्च
हिन्दी-दिवस की शुभकामनाओं के साथ।
*** राजीव रंजन प्रसाद
हिन्दी दिवस की सभी भारतीयों को बहुत-बहुत बधाई । काव्य पल्लवन का अंक देखकर थोड़ी निराशा तो
अवश्य हुई कि हिन्दी पर लिखने वाले कितने कम हैं किन्तु खुशी इस बात की हुई कि जिसने लिखा
मन से लिखा ।
निखिल आनन्द गिरि की कलम तो अब गज़ब ढ़ाने लगी है । इतनी सशक्त रचना पढ़कर बड़ा सन्तोष
हुआ । उनकी ओजस्विता प्रशंसनीय है । कवि को बधाई एवं बहुत- बहुत आशीर्वाद।
प्रतिष्ठा जी ने हिन्दी को हिन्द युग्म के साथ अच्छा जोड़ा है । हाँ मैं भी मानती हूँ कि केवल हिन्दी-दिवस
मनाने से कुछ नहीं होगा । हिन्दी को अपनाना होगा । एक प्रभावशाली ओजस्वी रचना के लिए बधाई ।
कवि कुलवन्त ने हिन्दी का जयगान किया । पढ़कर दिल खुश हो गया । ध्वन्यात्मक शब्दों का
बहुत सुन्दर प्रयोग किया है आपने । बधाई ।
आज इतना ही।
Hindi Divas ke is paavan avsar per Hindi Yugm ke sabhi sadasya aur vachak ganon ko badhayi. Sabhi ki rachnayen kafi sarahniya hai.
Shobhaji, aap ko kabhi jo mahsoos karna padta hai Hindi ki Pradhyapika hone ke liye, is mein aap ka koi dosh nahi hai, aap ko kyon sharminda hona pade, aap to wah kaam kar rahi hai jise sabhi Bharat wasiyon ko karna hai. Yah kaam aap kar rahi hai is ke liye aapko to apna sir uper uthana chahiye aur aap ki aur aisi nigahon se dekhne walon ko sharma aani chahiye.
Ritu Bansal ji, aap ki char panktiyan bahut hi chot pahunchane wali hai - हिन्दी -दिवस मनाने वालो
हिन्दी को भी तुम अपनाओ ।
क्योंकि--
अपनी भाषा ही उन्नति दिलाएगी
किन्तु अगर
अपनी माँ ही भिखारिन रही तो--
पराई भी कुछ नहीं दे पाएगी ।
कुछ नहीं दे पाएगी -----
Sabhi maante hai ki aaj ke is competition ke jamane mein english bahot hi jaroori ho gaya hai international level per apne aap ko banaye rakhne ke liye, parantu hum Hindustaniyon ko yah bhi nahi bhoolna chahiye ki hamari Rashtrabhasha ka bhi utna hi samman karna hai hamein.
Sabhi ko ek baar phir badhayi
Ranjana Bhatiya ji,
Bahot hi vyang dekhne ko mile aap ki hindi divas ke "NETAJI" ke bhashan ki rachna mein. sachmuch, agar aise hi NETA Hindustan ko milte rahe, to sochiye ki Hindustan mein Hindi ki dasha kya hogi? aap ki is rachna per badhayi
मिश्र जी
आपकी भाषा को नमन । किन्तु आप भी बहुत कुछ चाहकर कुछ खास नहीं कह पाए ।
किन्तु आपकी संस्कृत निष्ठ हिन्दी ने बहुत कुछ कह दिया । बधाई
तपन जी
आपने हिन्दी की वेदना को बहुत अच्छा पहचाना है । हिन्दी का सन्देश भी आपने पहुँचाया ।
अति सुन्दर । बधाई ।
रंजना जी
आपने तो हिन्दी दिवस को नया रंग ही दे डाला । आज की तसवीर उतार कर रख दी ।
अच्छा लगा पढ़कर । बहुत-बहुत बधाई ।
हिन्दी -दिवस पर आप सब को बधाई।
'जहाँ चाह वहाँ राह'--निश्चित रूप से यदि हम सभी हिन्दी के विकास में लग जाएँ तो हो कर रहेगा।
शोभा जी की कुछ पंक्तियाँ बेहद महत्वपूर्ण है।
"किन्तु एक विद्यार्थी ने
झटके से पूछ लिया था --
क्या आगे काम आएगी ?
नौकरी दिलवाएगी ?"
कहावत है ---भूखे भजन न होय गोपाला।
मैंने किसी स्थान पर पढ़ा था कि जितनी यूरोप की कुल पढ़ी-लिखी आबादी है उससे कहीं अधिक संख्या है स्नातकों की भारत में।
लेकिन मजे की बात है कि मुट्ठी भर यूरोपियनों की भाषाएँ पूरी दुनिया में आगे हैं, उनका ही ज्यादा सम्मान है।
कारण समझ में आता है, वो है उनका आर्थिक विकास।
देखिये ना, भारत के हिन्दी-भाषी राज्यों की क्या हालत है।
जब तक इस तरफ ध्यान नहीं दिया जायेगा समस्या ज्यों की त्यों बनी रहेगी।
आह...!!!
काव्य-पल्लवन को पढ़कर यही शब्द निकला दिल से। मैं बहुत हद तक अवनीश जी से सहमत हूं कि लिखा बहुत गया, बस कविता ही नहीं लिखी गई।
मेरा निवेदन है कि यदि यहाँ-वहाँ भटकते पृथक-पृथक विचारों को ही प्रकाशित करना है तो इस स्तम्भ को काव्य-पल्लवन का नाम न दिया जाए, विचार-पल्लवन ही कहा जाए।
ऐसा नहीं है कि सबने बुरा लिखा। कुछ कविता के बहुत पास तक भी पहुँचे। विशेषकर सभी कवयित्रियों ने औरों से बेहतर लिखा है। इसके लिए शोभा जी, रितु जी, दिव्या जी, रंजना जी और अनुराधा जी हल्के से धन्यवाद की पात्र हैं। निखिल जी ने भी ठीक लिखा, बस एक पंक्ति का औचित्य मेरी समझ में नहीं आया, मैं उनसे अर्थ जानना चाहूंगा।
दिखे हैं मीत लश्कर में,
इसका अर्थ तो यही हुआ ना कि मित्र किसी सेना या दल में दिखे हैं, यह यहाँ क्यों, कृपया शंका का समाधान करें।
अजय यादव जी ने भी औसत लिखा।
कवि कुलवंत सिंह जी- अतिसाधारण तुकबन्दी, जो कविता कदापि नहीं लगती।
महेन्द्र मिश्रा जी- कविता के बारे में क्या कहा जाए? वैसे एक निवेदन है कि कुछ लिखते, तो एक बार पहले खुद तो पढ़ लेते।
आप लिखते हैं- पर न कहता नमक हलाल न होना
क्या आप को पता है कि नमक हलाल का अर्थ क्या है?
सजीव जी, आपकी कविता एक बार कविता होने लगी थी, लेकिन फिर कहीं दूर चली गई।
....राजीव जी, पूरे काव्य-पल्लवन में सबसे अधिक निराशा आपको पढ़कर हुई। जिस दर से सबसे अधिक आशा होती है, वहीं से खाली हाथ मुँह लटकाकर लौटना पड़े तो ऐसा ही होता है।
फिर से निवेदन है कि इससे बहुत बेहतर होता कि हिन्दी पर विचार-पल्लवन ही प्रकाशित किया जाता।
आदरणीय शोभा जी !
आपकी प्रतिक्रिया के आगे सदैव सिर नमन को झुकता है. मैं स्वयं क्षमा पार्थी हूं सभी मित्रों से. मैं इस बात से पूर्ण सहमत हूं कि इस बार मेरा ध्यान मात्र हिन्द युग्म के विषय पर ही अधिक रहा है. शेष मैंने जो भी लिखा है पूरी इमानदारी से स्वीकार करता हूं कि यह मेरा पत्र हो सकता है मित्रों के बीच का निवेदन हो सकता है किन्तु कविता तो नहीं ही है. अब और स्पष्टीकरण न देकर बस शैलेष जी सहित मैं आप सब मित्रों से निवेदन करना चाहता हूं कि मैं अपने हिन्द युग्मीय मित्रों के लिये अपनी कवितायें कहां भेजूं. नियमतः प्रतियोगिता के नाम पर मेरा कविता भेजने का मार्ग अवरूदध हो चुका है. शेष हिन्दी दिवस पर क्षमायचना एवं खेद के साथ मेरी यह कविता यहां टिप्प्णी में प्रस्तुत है. अब यह माननीय नियंत्रकों पर आधारित है कि वह इसे इसका यथोचित स्थान दे सकें
प्रणमामि शारदे् प्रणमामि
प्रणमामि शारदे्! प्रणमामि
प्रणमामि शारदे्! प्रणमामि
हे! आर्यावृत हे! भरत् पुत्र
हे! बल्मीकि हे! कालिदास
प्रणमामि मनीषं प्रणमामि
प्रणमामि ताण्डव सिंहनाद
प्रणमामि महाकाली निनाद
प्रणमामि शारदे् सप्तनाद
प्रणमामि काव्यरस सिन्धुनाद
प्रणमामि भरत् भू परम्परा
ॠषियों की पावन महाधरा
षट्ॠतुओं ने पाँखें खोलीं
मेघों ने अद्भुत रूप धरा
प्रणमामि प्रेरणे! प्रकृतिदेव्
तन्त्री के तार छेडते हो
'सम्मोहित' सिन्धु मनीषा से
हे! शारदेय शत् शत् प्रणाम
प्रणमामि मनीषं प्रणमामि
पुनश्च स्नेहादर सहित
आपका
श्रीकान्त मिश्र 'कान्त'
मुझे इस अंक का बेसब्री से इंतज़ार था। जब पता चला था कि इस बार का विषय "हिंदी" है तो मैंने सोचा कि काफ़ी अधिक कवितायें प्रकाशित होंगी। पर इस बार केवल १४ कवितायें ही शामिल हो पायीं। इससे मुझे बहुत झटका लगा।
अवनीश जी और गौरव जी की बात से मैं बिलकुल इत्तफ़ाक नहीं रखता। मुझे लगता है कि शब्द अथवा काविता से आप अपने विचार ही दूसरों तक पहुँचाते हैं। जहाँ तक मैं समझता हूँ हिंद युग्म का प्रथम उद्देश्य लोगों में हिंदी के प्रति फ़िर से रुचि पैदा करवाना है। और उस में सफल भी हो रहे हैं।अब यहाँ पर यदि यह देखने लगेंगे कि कविता का स्तर का क्या है तब तो काव्य पल्लवन के लिये अलग से प्रतियोगिता होनी चाहिये। मुझे तो इस बात से भी निराशा है कि हिंद युग्म के स्थायी सदस्य जिनकी कविता हम पढ़ते हैं, महसूस करते हैं उनकी वही कलम इस बार शांत रही। यदि वे सब लिखते तो शायद आप कविताओं से निराश नहीं होते।
खैर.. मैं अभी काव्य की श्रेणी में नया नया आया हूँ, ज़्यादा नहीं जानता पर मुझे सभी के विचार अच्छे लगे, कविता का स्तर चाहें जैसा भी हो। आगे स्तर ऊँचा होगा ये यकीन है मुझे। यदि हिंदी के प्रति हम अपने विचारों से लोगों को जागरुक कर सके तो इससे अच्छी बात और क्या होगी?
निखिल जी,
आपके पास शब्दों का भंडार है।
चार शब्द..."हिंदी को ख़ून चाहिए...."..पढ़कर खून खौलता है, रौंगटे खड़े हो जाते हैं।
प्रतिष्ठा जी,
आप ठीक कहती हैं : हिंदी, हिंदी दिवस की मोहताज नहीं है। पूरे साल अपमानित करें और एक दिन पूजे।ये कोरा दिखावा होगा।
शोभा जी,
आप सही कहती हैं, हिंदी में तो बात करना भी गुनाह होता जा रहा है, पढ़ाना तो दूर की बात है। लोग ऐसे घूरते हैं जैसे हमसे गलती हो गई हो या हम गँवार हों। आपकी आखरी पंक्ति अपील करती हैः "उसे यूँ अपरिचित ना बनाओ"
और जैसा पंकज जी ने कहा, आपकी ये पंक्तियाँ महत्तवपूर्ण हैं:
"किन्तु एक विद्यार्थी ने
झटके से पूछ लिया था --
क्या आगे काम आएगी ?
नौकरी दिलवाएगी ?"
कुलवंत जी,
आपकी पहली तीन पंक्तियाँ मुझे बहुत अच्छी लगी, और शायद हर हिंदी प्रेमी को लगेगी।
अभिमान है,
स्वाभिमान है,
हिंदी हमारा मान है ।
कांत जी,
हिंदी और हिंदयुग्म के लिये आपके विचार काफ़ी प्रिय लगे।
"हिन्द में हो हिन्द का युग
हिन्द-युग्म हो हर हाथ में
यह सलोनी लाडली
रस भाव लाये साथ में"
रंजना जी,
आजकल रोजमर्रा की बातों से हिंदी के शब्द बहुत तेज़ी से लुप्त हो रहें हैं। आपने बहुत तीखा कटाक्ष किया है अंग्रेज़ी के बढ़ते इस्तमाल पर।
महेंद्र जी,
आपने वर्णमाला का प्रयोग करके कविता लिखी, सराहनीय है। हाँ "नमक हलाल" शब्द गलत जगह तो नहीं लगा दिया आपने? :-) विचार कीजियेगा.. :-)
सजीव जी,
विभिन्न भाषाओं से प्रभावित हुई हिंदी पर बहुत अच्छा लिखा है आपने।
"संस्कृत की गंगोत्री से निकलकर,
हमजुबां उर्दू से मिलकर,
ब्रजभाषा, मैथली, मारवाड़ी कहीं
तो कहीं अवधी, भोजपुरी में ढलकर,
सिन्धी, पंजाबी, हरियाणवी, गुजराती,
बंगला, और तमाम द्रविड़ भाषाओं से जुड़कर"
अभी के लिये इतना ही।
धन्यवाद,
तपन शर्मा
हिंदी दिवस पर हिंदी युग्म द्वारा (सितंबर के अंक) हिंदी भाषा के प्रसार प्रचार
हेतु "काव्य पल्ल वन" मे हिंदी कविताए प्रकाशित कर सराहनीय कार्य किया
गया है. आज के समय मे हिंदी भाषा को बदावा देने के लिए नेट पर बहुत कम
संस्थाए काम कर रही है. सभी कविओ ने अच्छी रचनाए प्रस्तुत की है और मै
इस ख़ास दिवस पर बधाई प्रेशित कर रहा हू. रही बात मेरी कविता कि तो
मै कविता लिखता नही हू .लेख लिखता हू.मात्र हिंदी युग्म से प्रेरणा पाकर
मेने हिंदी भाषा को नेट पर बदावा देने के ध्येय से कविता लेखन का प्रथम प्रयास
किया है.नमक हलाल शब्द भूल और त्रति के कारण टंकित हो गया है.जिस हेतु खेद
है. कविता के संदर्भ मे आप पाठको के विचारो से मुझे लेखन मे नई उर्जा
मिलती है और आलोचनाओ से मुझे नई दिशा मिलती है और आपके
विचारो को आत्मसात करता हू.
जै हिंदी
महेंद्र मिश्रा
मित्रों,
सब की प्रतिक्रियाएं पढने को मिलीं....अवनीश जीं, मैं इस बात से बिल्कुल सहमत नही हूँ कि इस बार कोई कविता ही आपको पढने को नहीं मिली...ये तो आपकी आलोचना कि अति है .....भाई, बाक़ी मित्रों का तो नहीं पता मगर मैंने ये कविता बस कोरम पूरा करने के लिए नहीं लिखी...जिस दिन हिंदी दिवस इस माह का विषय चुना गया था, मैंने सोचना शुरू कर दिया था....हिंदी को ख़ून चाहिए एक कविता से कहीँ बढकर है मेरे लिए...आपको फिर भी उसमे कविता नज़र आयी, तो अब मुझे अपनी कमियाँ फिर से ढूँढनी होंगी...
गौरव जीं, आपकी शिक़ायत पर कुछ कहूं इससे पहले ये बतायें कि आपकी कविता कहाँ रह गयी इस विषय पर....खैर, आपको कवि कवितायें स्तरीय नहीं लगी, संभव है...."दिखें हैं मीत लश्कर में" में समझाने को क्या है....क्या ये अछ्चा लगेगा कि मैं अपनी कविता किसी अध्याय की तरह समझाऊं तो पाठक समझें...जब कविता एक बार पाठकों के पास चली गयी फिर कवि का नजरिया गौण हो जान चाहिए...बस इतना ही कहूंगा की लश्कर में मीत से तात्पर्य परदेसी भाषाओं के पिट्ठू बनते अपने लोगों के आस-पास कुछ है....
बाक़ी टिपण्णी फिर कभी....
निखिल
मैं तपन जी की बात से पूरी तरह सहमत हूँ कि जिनको हम रोज पढ़ते हैं वे ही हिन्दी दिवस पर
नहीं लिख पाए । काफी निराशा हुई यह देख कर ।
दूसरा कविता ही ना मानना किसी का भी व्यक्ति गत विचार हो सकता है । यह आवश्यक नहीं कि
हर कोई किसी सीमा में बँध कर लिखे । अतुकान्त कविता भी कविता ही होती है । विचारों की
प्रधानता होने से वह गद्य नहीं हो जाती ।
कविता कवि के ह्रदय का सहज प्रवाह होती है । अच्छा होगा कि उसमें कोई बन्धन ना हो । कवि
निराला ने एक स्थान पर कहा था-
तुम वहन कर सको जन-जन में मेरे विचार
वाणी मेरी चाहिए क्या तुम्हे अलंकार ?
अस्तु--
आज कुछ और कविताओं पर प्रतिक्रिया---
महेन्द्र मिश्रा जी की कविता में उपदेशात्मकता अधिक है ।
सजीव जी की पंक्तियाँ --
मैं आज के हिंद का युवा हूँ,
मुझे आज के हिंद पर नाज़ है,
हिन्दी है मेरे हिंद की धड़कन,
सुनो, हिन्दी मेरी आवाज़ है.
बहुत प्रभावशाली रहीं ।
अजय जी की निम्न पंक्तियों ने प्रभावित किया-
हिंदी-दिवस पर भाषण देकर लौटते ही
हिंदी पढ़ते बच्चे को थप्पड़ मार दिया
बेवकूफ बेकार वक्त खराब कर रहा था
यह सच्चाई है अजय जी । आपने ठीक पहचाना ।
अनुराधा जी का स्वर काफी प्रभावपूर्ण रहा ।
रितु जी के और आपके विचार काफी मिलते जुलते लगे । आपकी कुछ पंक्तियाँ
तो बहुत ही सुन्दर रहीं -
हाँ -कसमसा रही हूँ "मैं"
देख कर औपचारिक रीति-रिवाज
"हिन्दी -दिवस"
क्या खूब अब मैं अपने ही घर में हूँ-
फटे हाल, बेबस,लाचार
लज्जित होते हैं
जहाँ बोलने में मुझे
मेरे अपने नौनिहाल
कुमार आशीष जी ने बहुत कम शब्दों में हिन्दी के लिए अपना प्रेम व्यक्त किया । किन्तु
कम शब्दों मे बढ़िया बात कही । कुछ तो लिखा कम से कम ।
दिव्या जी की पंक्तियाँ -
आज उदघोषित होंगे... तेरे उठान हेतु कई उपाय
होंगी कितनी ही सभायें
तू मौन रह देखना इस मनोरंजक नाटक को
प्रो नरेन्द्र जी की रचना हिन्दी का विकास बाता गई । एक गीत की तरह ।
राजीव जी ने कहीं-कहीं विषय का अत्याधिक विस्तार किया है किन्तु सत्य को वाणी दी है ।
भाषा प्रभावशाली ही रही है । कहीं-कहीं गद्यात्मकता आ गई है ।
मैं एक बार पुनः सभी कवियों का धन्याद करती हूँ कि उनके पास अपनी भाषा पर कहने को
कुछ तो है । शुभकामनाओं सहित
श्रीकान्त जी
आपकी भाषा और भाव दोनो ही मेरे लिए प्रेरणा के स्रोत रहे हैं । आपकी कविता पर मैने साधिकार
कुछ कह दिया । आफ इसे मेरी धृष्टता समझकर क्षमा करें । आपकी अभिव्यक्ति को मैं नमन
करती हूँ । शुभकामनाओं सहित
सर्वप्रथम तो सभी प्रतिभागियों का आभार।
बहुत-सा हौसला भी, होश भी, जूनून चाहिए...
हिंदी को ख़ून चाहिए...
बहुत अच्छा लिखा है निखिल जी ने।
मैं आज के हिंद का युवा हूँ,
मुझे आज के हिंद पर नाज़ है,
हिन्दी है मेरे हिंद की धड़कन,
सुनो, हिन्दी मेरी आवाज़ है.
सजीव जी को पढ़कर सुखद अनुभव हुआ।
अजय जी ने कठोर सच को सामने रखा है-
हिंदी-दिवस पर भाषण देकर लौटते ही
हिंदी पढ़ते बच्चे को थप्पड़ मार दिया
बेवकूफ बेकार वक्त खराब कर रहा था
नरेन्द्र जी की कविता भी पसंद आई।
इस बार का काव्य पल्लवन शायद सब की उम्मीदों पर खरा नही उतरा तो इसके लिए जिम्मेदार कौन हैं, वो जिन्हे हम युग्म का गौरव समझते हैं पर जिनके नाम प्रतिभागियों मे नही हैं कहाँ हो गौरव , शैलेश, गिरिराज, सुनीता, सीमा, और और भी लगभग ५० प्रतिशत सदस्य जो इस चर्चा से दूर ही रहे, और उस पर लांचन ये की मौजूदा प्रतिभागियों ने बस कोरम पूरा किया है, जो की ग़लत है, मेरे ख़्याल से सब ने यहाँ जो भी लिखा है दिल से लिखा है, मगर हाँ अधिकतर रचनायें dark शेड की हैं, पर गौर से देखेंगे तो कुछ हल भी सुझाई देंगे, निखिल जी और मैंने लगभग एक है बात कही है बस अंदाज़ अलग है, जहाँ निखिल जी किसी क्रांतिकारी की तरह हिन्दी के उथान के लिए खून मांग रहे हैं, वहीँ मैंने सभी हिन्दी प्रेमी हिंदुस्तानियों को एक थीम गीत देने की कोशिश की है जब मैं लिखता hun, " सुनो हिन्दी मेरी आवाज़ है' तो मेरी कल्पना मे युग्म के युवा रुधिर का उदगोश झलकता है, हमारी कोशिश भी तो एक क्रांति लाने की है, यहाँ खून भी चाहिए और समर्पण भी,
प्रतिष्टा जी का कहना है -पर हिन्दी, हिन्दी-दिवस की मोहताज़ नहीं|| ठीक है मगर इस देश के हालत ऐसे हैं, की अगर ये एक दिन या एक पख्वादा न हो तो कोई हिन्दी को याद भी नही करेगा
शोभा जी ने जो भी लिखा है, काबिले तारीफ है, ख़ुद को उन्होंने कटघरे मे खड़ा किया पर हम सब को आइना भी दिखा दिया, बहुत ही सच्ची और कड़वी अभ्व्यक्ति, जहाँ भीतर की पीडा साफ झलकती है - बधाई
तपन जी अब विनती मत कीजिये आवाज को और बुलंद कीजिये चिल्ला कर कहिये तभी नींद टूटेगी
रंजन जी की जितनी तारीफ़ की जाए कम है, हर बार वह एक नए सिरे से विषय को उठती हैं, और उतनी ही प्रभाव शाली रहती हैं हमेशा
भाषा पर देश पर
जब करोगे गर्व
तब ही निज भाषा
करेगी उन्नति
पायेगी समृद्धि ।
मैं अनुराधा जी पूरी तरह सहमत हूँ, बहुत अच्छी प्रस्तुति.
अजय जी बिल्कुल आज के कवि हैं, आज अभी इस वक्त जो महसूस करते हैं उन्हें शब्दों मे ढाल कर खूबसूरती से पेश कर देते हैं, सच है की हिन्दी दिवस भी कमाई का जरिया मात्र है सरकारी उपक्रमों के लिए, बस यही सब तो है जो हमे बदलना है
रितु जी का स्वप्न भी मन से निकले उदगार हैं, बहुत ही सुंदर शब्द संयोजन
नरेंदर जी सरल शब्दों मे बहुत अच्छा गीत लिखा है मेरे ख़्याल से इसे बाल उधान मे भी स्थान देकर बच्चों का जो नया साहित्य हम बना रहे हैं उसमे शामिल करना चाहिए, सरल धुन पर होने के कारन बच्चे इसे आसानी से गुनगुना पाएंगे.
और अन्त में राजीव जी ने जो उपसंहार दिया है, वो यही है की हमे सचईओं से मुह नही मोड़ना है बल्कि दत कर उनका सामना करना है, सरल बात है, मगर यही है जो हमे करना है -
आइये एक दीप बन कर
ज्योत से ज्योत जलायें
फैलायें यह भाव
हमारे देश की आशा
हिन्दी हो कार्य भाषा
हिन्दी है राष्ट्र भाषा..
कोई कुछ भी कहे पर मैं भी निखिल जी की ही तरह अपनी इन पक्तियों पर हमेशा गर्व महसूस करूंगा -
मैं आज के हिंद का युवा हूँ,
मुझे आज के हिंद पर नाज़ है,
हिन्दी है मेरे हिंद की धड़कन,
सुनो, हिन्दी मेरी आवाज़ है
हिन्दी दिवस हर बार की तरह आया और चला गया ...मैं जो कहना चाहती थी वह सजीव सारथी जी ने बहुत ही सुंदर लफ्जों में कह दिया है ....हिन्दी दिवस पर उम्मीद थी ढेर सारी रचनाओं के आने की ...पर सच में कई हमारे साथी जिनसे मुझे भी कुछ नया पढने की उम्मीद थी ..उनका लिखा यहाँ नही दिखा ...और ""कविता यहाँ कोई नही है "'यह कहना कुछ जमा नही सबने सच में बहुत दिल से लिखा है और मेरे ख्याल से कविता हमेशा वही है जो आपके दिल को झंझोर दे मुझे सबका लिखा बहुत पसन्द आया
सबने अपनी बात बहुत ही सुंदर ढंग से कही है ....शोभा जी का लिखा कुछ कुछ मेरे अपने अनुभव से मिलता है ,,एक बहुत नामी
स्कूल में जब मैं हिन्दी अध्यापिका के पद के लिए गई तो मेरा हर जवाब हिन्दी में सुन कर वहाँ मुझे नौकरी के अयोग्य माना गया और उसके बाद भी कई नामी स्कूल की यही शर्त देखी की हिन्दी अध्यापिका पढाए तो हिन्दी ...पर बात इंग्लिश में करे ...बहुत अजीब लगता है कि अपनी भाषा में बात करना शर्म कि बात मानी जाती है .इसी उम्मीद के साथ हिंदुस्तान सच में हिन्दी भाषा का ही देश कहलायेगा अपनी बात खत्म करती हूँ ..और सब लिखने वालो को अच्छा लिखने कि बधाई देती हूँ ....
रंजना [रंजू ]
हिन्दी का गुणगान करने से
हिन्दी की आरती उतारने से
हिन्दी की महानता मात्र बघारने से
हिन्दी का सुधार व विकास नहीं होगा।
यह एक कटुसत्य है कि
यह सभी को एक चुनौती है कि
यह संसार का आठवाँ आश्चर्य है कि
हम हिन्दी भाषियों में कोई भी
शायद सही रीति अपना नाम तक
हिन्दी में नहीं लिख पाते हैं।
हिन्दी की तकनीकी समस्याओं को
सुधारने से ही इसका विकास होगा।
गौरव जी,
काव्य-पल्लवन उत्कृष्टता का संकलन नहीं है। आप 'काव्य-पल्लवन' की परिभाषा जाकर पढ़ें, वहाँ साफ लिखा हुआ है कि काव्य-पल्लवन में हम विचारों का ही पल्लवन करते हैं, बस शर्त यह होती है कि माध्यम कविता हो। जहाँ तक महेन्द्र जी की कविता की बात है, उन्होंने उत्तर लिखा है कि 'वो कविता नहीं लिखते, गद्य ही लिखते हैं' ऐसे में हिन्द-युग्म उन्हें इतनी प्रेरणा दे जाता है कि वो कविता लिखने लगें तो यह आपकी सफलता है। वैसे भी कई लोग यहाँ तक कहते हैं कि हमने दरवाजे बंद कर रखे हैं, वैसे में काव्य-पल्लवन को खुला रखना ज़रूरी है।
हाँ इसे भी उत्कृष्ट कविताओं का संकलन बनाया जा सकता है, जब आप जैसे लोग इस में सक्रियता से भाग लें। यदि आप लोग इतनी बढ़िया कविता लिखते हैं कि कम अच्छा लिखने वाला आपसे प्रेरणा पा जाय, तो अपने-आप आगे चलकर काव्य-पल्लवन केवल उत्कृष्ट कविताओं का संकलन हो जायेगा।
निखिल जी,
सच में हिन्दी को अब रक्त की ही आवश्यकता है। अब कहना ही पड़ेगा 'तुम मुझे खून दो, मैं तु्म्हें तुम्हारी हिन्दी, और तुम्हारा हिन्दुस्तान दूँगा'
प्रतिष्ठा जी,
सच बात है निज भाषा का अभिमान तो होना ही चाहिए। मैं आपसे इत्तेफाक रखता हूँ कि हिन्दी को बचाने के लिए हिन्द-युग्म को इस आयोजन की आवश्यकता नहीं है, वरन काम करने की ज़रूरत है। बस आप यह मान लीजिए कि इस माध्यम से मात्र अहसास कराना चाहता था युग्म।
शोभा जी,
हिन्दी के नाम पर शिक्षक की नज़रें गड़ने लगी हैं मगर यह संकेत निराशाजनक है। तब तो कोई क्रांति ही करनी होगी। आपने अपने भीतर के भय को बताकर अच्छा किया। जल्द ही हम उसे भगायेंगे।
कुलवंत जी , आपके विचारों का मैं भी सम्मान करता हूँ।
श्रीकांत जी इस बार आप चूके ज़रूर। मगर प्रतिक्रिया वाली कविता सराहनीय है।
तपन जी का हिन्दी-प्रेम तो वंदनीय है।
रंजना जी, जब हिंग्लिश कविता आप लिख रही हों, तो एक बात का ध्यान रखिएगा कि वो बहुत अधिक न हों। इससे अधिक प्रभाव बना रहता है। वैसे आपका यह अंदाज़ मुझे बहुत पसंद आया।
महेन्द्र जी, आप हर बार काव्य-पल्लवन में ज़रूर भाग लें।
सजीव जी ने युवाओं में जोश भरने की कोशिश की है। थोड़ा और अभ्यास ज़रूरी लगता है।
सबसे अधिक अजय जी ने निराश किया, बिलकुल मज़ा नहीं आया
रितू बंसल की कविता में काव्य-सौंदर्य के तत्व हैं।
हिन्दी-दिवस जैसी औपचारिकताएँ
कब तक सच्चाई पर पर्दा
डाल पाएँगी ?
पर्दा तो कबका खुल चुका है।
अनुराधा जी आप बहुत प्रभावित करती हैं मुझे। मुझे इस पल्लवन में आपकी कविता अत्यंत पसंद आई।
आशीष जी ने औपचारिकता पूरी की है।
दिव्या जी ने अधिक प्रभावित नहीं किया।
नरेन्द्र पुरोहित जी की कविता के बारे में राजीव जी कह ही चुके हैं।
राजीव जी की कविता राजीव जी वाली नहीं है ।
अंत में 'जय हिन्दी'।
गौरव जी,
मेरी यह कविता अच्छी नहीं है बल्कि बहुत कच्ची है। इसे मैंने 13.08.1989 मे लिखा था और तब के अनुरूप ठीक ही थी, किंतु यह युग्म के स्तर के अनुरूप नहीं है फिर भी मैनें इसे प्रकाशित किया यह भूल है। आगे कोशिश अवश्य करूंगा कि पाठको को निराशा न हो।
*** राजीव रंजन प्रसाद
786hindi divas ke uplaksha mein
yeh prayas kafi prashashniya laga
hindi yugma ke sabhi sampadak
yevam sahyogiyoko shubhkamnaye.
rashtrbhasha ka sanman badhaneme
tatha prasar hetu yeh ek stutya upkram hai.
काव्य पल्लवन का अंक देखकर निराशा हुई ...
हिन्दी दिवस पर कविता नहीं लिखी गई....
खुशी इस बात की है
कि जिसने लिखा .....
मन से लिखा ।
हिंदी दिवस पर हिंदी युग्म द्वारा हिंदी भाषा के प्रसार हेतु "काव्य पल्लवन" मे हिंदी कविताए प्रकाशित कर सराहनीय कार्य किया
है |
बधाई ।
हिन्दी और हिन्दी दिवस
प्रो.सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
सी.६ , विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
कहते सब हिन्दी है बिन्दी भारत के भाल की
सरल राष्ट्र भाषा है अपने भारत देश विशाल की
किन्तु खेद है अब तक दिखती नासमझी सरकार की
हिन्दी है आकांक्षी अब भी संवैधानिक अधिकार की !!
सिंहासन पर पदारूढ़ है पर फिर भी वनवास है
महारानी के राजमहल में दासी का वास है
हिन्दी रानी पर प्रशासनिक अंग्रेजी का राज है
हिन्दी के सिर जो चाहिये वह अंग्रेजी के ताज है
इससे नई पीढ़ी में दिखता अंग्रेजी का शोर है
शिक्षण का माध्यम बन बैठी अंग्रेजी सब ओर है
अंग्रेजी का अपने ढ़ंग का ऐसा हुआ पसारा है
बिन सोचे समझे लोगो ने सहज उसे स्वीकारा है
सरल नियम है शासन करता जिसका भी सम्मान है
हर समाज में स्वतः उसी का होने लगता मान है
ग्रामीणों की बोली तक में अब उसकी घुसपैठ है
बाजारों , व्यवहारों में, हर घर में, उसकी ऐठ है
हिन्दी वाक्यों में भी हावी अंग्रेजी के शब्द हैं
जबकि समानार्थी उन सबके हिन्दी में उपलब्ध हैं
गलत सलत बोली जाती अंग्रेजी झूठी शान से
जो बिगाड़ती है संस्कृति को भाषा के सम्मान को
साठ साल की आयु अपनी हिन्दी ने यूँ ही काटी है
हिन्दी दिवस मुझे तो लगता अब केवल परिपाटी है
कल स्वरूप होगा हिन्दी का प्रखर समझ में आता है
अंग्रेजी का भारत के बस दो ही प्रतिशत से नाता है
हिन्दी का विस्तार हो रहा भारी आज विदेशों में
जो बोली औ॔ समझी जाती सभी सही परिवेशों में
बढ़ती जाती रुचि दुनियाँ की हिन्दी के सम्मान में
किन्तु उचित व्यवहार न देखा जाता हिन्दुस्तान में
अच्छा हो शासन समाज समझे अपने व्यवहार को
ना समझी से नष्ट करे न भारतीय संस्कार को
हिन्दी निश्चित अपने ही बल आगे बढ़ती जायेगी
भारत भर की नहीं विश्व की शुभ बिन्दी बन जायेगी
Prof. C. B. Shrivastava "vidagdha"
हिन्दी है नाम इसका , भारत की भाषा है
by vibhuti khare
vibhutikhare@ymail.com
हिन्दी है नाम इसका , भारत की भाषा है
इसको बढ़ाने की मेरी अभिलाषा है
हर भारत वासी के दिल में समाई है
पर इंग्लिश के बोझ तले फलक नही पाई है
इसको फलकाने की मेरी अभिलाषा है
हिन्दी है नाम इसका , भारत की भाषा है ..
संस्कृत की बेटी है , और राष्ट्र भाषा है
सीधी है सरल है हम सबकी आशा है
शीघ्र ग्राह्य भाषा है इसमें गहराई है
धूमिल सी हो रही , चमक नहीं पाई है
इसको चमकाने की मेरी अभिलाषा है
हिन्दी है नाम इसका , भारत की भाषा है
अपने भारत वर्ष में उचित मिले जब इसको मान
तब विदेश में मानेंगे सब और इसे देंगे सम्मान
सुन्दरता ,सहजता और सच्चाई है
खुश्बू है इसमें पर महक नहीं पाई है
इसको मकाने की मेरी अभिलाषा है
हिन्दी है नाम इसका , भारत की भाषा है
बहुत समय बीत गया दबे और सहमें से
आगे तो आना है अब किसी को हममें से
आइये अब साथ मेरे कैसी निराशा है
जोर होगा हिन्दी का अब पलटा पाँसा है
इस पर इठलाने की मेरी अभिलाषा है
हिन्दी है नाम इसका , भारत की भाषा है
आज हिन्दी दिवस में हम ये शपथ उठायें
हिन्दी में काम करें सब इसका नाम बढ़ायें
फलकेगी , चमकेगी और इठलायेगी
फैलेगी महकेगी और लहलहायेगी
इस पर इतराने की मेरी अभिलाषा है
हिन्दी है नाम इसका , भारत की भाषा है
हिन्दी को बढ़ाने की मेरी अभिलाषा है
हिन्दी है नाम इसका , भारत की भाषा है
विभूति खरे
M.Sc.
पत्नी डा.प्रकाश खरे
मौसम वैज्ञानिक
पुणे , महाराष्ट्र
हिन्दी
विवेक रंजन श्रीवास्तव
c/6 , mpseb colony
Rampur , Jabalpur
संस्कृत की बेटी जो
भारत की भाषा है
अद्भुत जो बिरली जो
सचमुच जो संस्कृति है
हिन्दी वो अपनी है
लिपि जिसकी सुन्दर है
सरल और सीधी है
अक्षर जो वाक्य जो
शब्द जो दे संदेश
हिन्दी वो अपनी है
वाणी जो मीठी है
मधुर और स्मित है
ऐसी जो मनभावन
वो सचमुच अपनी है
हिन्दी जो सबकी है
हिन्दी जो तेरी है
हिन्दी जो मेरी है
इसकी है उसकी है
सचमुच जो सबकी है
हिन्दी वो अपनी है
एकता का सूत्र है जो
सरस्वती वरदान है
संपदा हैं शब्द जिसके
व्याकरण सम्मान्य है
हिन्दी वो महान है ...
vivek ranjan shrivastava
09425484452
i want some good information as i am the host of hindi day program in my school
१४-सितम्बर-२००९
सर्वप्रथम हिन्दी दिवस पर आप सभी को बधाई.
आजकल अन्य कामों में अति व्यस्तता के कारण हिन्दयुग्म पर कम समय दे पाती हूँ. इसी वजह से मुझे पता भी नही चला कि इस बार काव्यपल्लवन पर विषय ’हिन्दी दिवस’ है.मैं इतना कहना चाहती हूँ कि सिर्फ हिन्दी दिवस पर कविता लिखने से ही आपका हिन्दी प्रेम प्रकट नही होता.सबकी अपनी-अपनी व्यस्ततायें हैं. जो लोग हिन्दयुग्म से जुडे़ हैं ,जाहिर है उन्हें हिन्दी से लगाव है तभी शायद वे लोग बीच-बीच में समय निकाल कर हिन्दयुग्म पढ़ते हैं, सुनते हैं और यदा-कदा अपने विचार भी व्यक्त करते हैं. जहाँ तक कुछ लोगों की दूसरों के प्रति प्रतिक्रिया का सवाल है तो यही कहूँगी कि चलो हिन्दी दिवस पर कविताओं के बदले उन्होंने कम से कम हिन्दी में टिप्पणी ही कर दी यही बहुत है. सबके अपने विचार हैं व्यक्त करने का तरीका भी अलग-अलग है. चलिये अब टीका-टिप्पणी बहुत हो गयी, मैं भी अपनी कविता को लिख देती हूँ ताकि मुझे भी आलोचकों का आशीर्वाद मिल जाए. कहते हैं आलोचना से सुधार आता है. मैं भी सुधार की उम्मीद रखती हूँ. एक बार फिर सभी को बधाई
हिन्दी दिवस
दो नावों पर पैर रखे हम
मार्डनिटी पै सवार हैं
न तो हिन्दी ठीक से जाने
इंग्लिश में भी अग्यान हैं
क ख ग घ कबके भूले
बारहखड़ी भी याद नहीं
अंग्रेजी के चक्कर में
हिन्दी भी बर्बाद हुई
राष्ट्रभाषा है हिन्दी अपनी
उसमें जीरो लाते हो
ह्रास हुआ है जब इसका
तो अब क्यों तुम चिल्लाते हो
हिन्दी-हिन्दी चिल्लाने से
होगा कुछ भी ग्यान नहीं
गलत-सलत पढ़ने-लिखने से
बढ़ता कोइ मान नही
पहले शुद्ध करो उच्चारण
शुद्ध-अशुद्ध का ग्यान करो
शंकाओं का करो निवारण
फिर हिन्दी पर मान करो
एक दिवस से क्या होगा
नित इसका अभ्यास करो
सुन्दर रचनाओं से पूर्ण
हिन्दी का इतिहास पढो़
भाषा कोइ भी हो पहले
सही ग्यान जरूरी है
विचारों के आदान-प्रदान की
भाषा ही तो धूरी है
प्रण करो अभी से सब मिलकर
भाषा का सही ग्यान करेंगे
शुद्ध लिखेंगे, शुद्ध पढेंगे
फिर खुद पर अभिमान करेंगे
हिन्द में हो हिन्द का युग
हिन्द-युग्म हो हर हाथ में
यह सलोनी लाडली
रस भाव लाये साथ में
कान्त जी बहुत बहुत धन्यवाद ....हिंदी को आप जैसे पहरुओं कि जरुरत है
कविताएँ अति सुन्दर हैं।
इतना ही कह सकता हूँ कि -----
मात्र इक भाषा नहीं है,
राष्ट्र की पहचान हिन्दी,
सभ्यता की नींव है,
साहित्य की धनवान हिन्दी -------
अजय शर्मा"अज्ञात"
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