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Friday, September 14, 2007

फूलों की बात पर




फूलों की बात पर
तुम याद आ गए,

वो फूल जो चुराए थे,
तुम्हारे गजरों से,
बे-इरादा यूँ ही,
आज मुरझा गए,
मगर अपनी खुश्बू घोल गए,
मेरी सांसों में,
हर वक़्त है एक तस्सव्वुर, जो समा रहता है,
मेरी आँखों में,
कभी यादों में , कभी ख्वाबों में,
उतरते नहीं तुम, जेहन से कभी,
कितनी ही बातें, हमने की ख्यालों में,
कितनी ही मुलाकातें,
कभी शाखों की छाँव में,
कभी फूलों के गांव में,
देखो फिर, फूलों की बात पर,
तुम याद आ गए,

कभी ख़त लिखूँ ,
कभी फाड़ डालूँ,
कुछ कहना भी चाहूँ ,
कुछ कह भी ना पाऊं,
हर लम्हा गुजरता, आता है नज़र,
फिर भी ना दिन का पता, ना रात की खबर,
क्या मेरे हाल से तुम भी हो बेखबर,
या तुम्हें भी याद आता हूँ मैं,
हाथों में मेहंदी महकती हो जब,
जुल्फों में फूल सँवरते हो जब,
देखो फिर, फूलों की बात पर,
तुम याद आ गए .....

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

9 कविताप्रेमियों का कहना है :

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

देखो फिर, फूलों की बात पर,
तुम याद आ गए,

बडा नाजुक सा खयाल है और अच्छी तरह प्रस्तुत भी हुआ है।

या तुम्हें भी याद आता हूँ मैं,
हाथों में मेहंदी महकती हो जब,
जुल्फों में फूल सँवरते हो जब,
देखो फिर, फूलों की बात पर,
तुम याद आ गए .....

एक मुस्कुराहट उभरती है आपकी रचना पढ कर और कोई भी अतीत में खो सकता है

बहुत बधाई।

*** राजीव रंजन प्रसाद

रंजू भाटिया का कहना है कि -

कभी ख़त लिखूँ ,
कभी फाड़ डालूँ,
कुछ कहना भी चाहूँ ,
कुछ कह भी ना पाऊं,
हर लम्हा गुजरता, आता है नज़र,
फिर भी ना दिन का पता, ना रात की खबर,
क्या मेरे हाल से तुम भी हो बेखबर,


सजीव जी मुझे आपकी यह रचना अपने दिल के बहुत क़रीब लगी
बहुत ही सुंदर भावों से सजी यह पंक्तियां दिल को छू गई ..
बहुत बहुत बधाई आपको इस रचना के लिए

शोभा का कहना है कि -

सजीव जी
बढ़िया - बहुत ही बढ़िया । आपने तो कमाल ही कर दिया
फिर छिड़ी रात बात फूलों की---------
मधुर-मधुर कविता । कोमल भावों का इतना अच्छा संयोजन -- कहीं -कहीं
कुछ प्रयोग अखरा है पर भावों की प्रधानता में दब गया है ।
एक सुन्दर रचना के लिए बधाई ।

Shastri JC Philip का कहना है कि -

कवि ने कोई पृष्टभूमि नही दी है, लेकिन मेरा अनुमान यह कि यह एक बालक के पहले प्रेम की कहानी है. वह एक बालिका के प्रति हठात आकर्षितहो जाता है. यदि यह अनुमान सही है तो बाकी सब कुछ बहुत स्पष्ट हो जाता है.

बहुत ही "सजीव" वर्णन है -- शास्त्री जे सी फिलिप



आज का विचार: चाहे अंग्रेजी की पुस्तकें माँगकर या किसी पुस्तकालय से लो , किन्तु यथासंभव हिन्दी की पुस्तकें खरीद कर पढ़ो । यह बात उन लोगों पर विशेष रूप से लागू होनी चाहिये जो कमाते हैं व विद्यार्थी नहीं हैं । क्योंकि लेखक लेखन तभी करेगा जब उसकी पुस्तकें बिकेंगी । और जो भी पुस्तक विक्रेता हिन्दी पुस्तकें नहीं रखते उनसे भी पूछो कि हिन्दी की पुस्तकें हैं क्या । यह नुस्खा मैंने बहुत कारगार होते देखा है । अपने छोटे से कस्बे में जब हम बार बार एक ही चीज की माँग करते रहते हैं तो वह थक हारकर वह चीज रखने लगता है । (घुघूती बासूती)

RAVI KANT का कहना है कि -

सजीव जी,
कोमल भावनाओं की मधुर अभिव्यक्ति के लिए आप बधाई के पात्र हैं।

क्या मेरे हाल से तुम भी हो बेखबर,
या तुम्हें भी याद आता हूँ मैं,
हाथों में मेहंदी महकती हो जब,
जुल्फों में फूल सँवरते हो जब,
देखो फिर, फूलों की बात पर,
तुम याद आ गए .....

बेहद सशक्त प्रस्तुति!!

Anita kumar का कहना है कि -

सजीव जी आपने बहुत ही सुन्दर काव्यात्मक वर्णन किया है, जीवन के पहले प्यार का। सच वो एहसास जिन्दगी में कभी दुबारा नहीं आते और जिन्दगी भर भुलाए भी नहीं जाते।
वो फूल जो चुराए थे,
तुम्हारे गजरों से,
बे-इरादा यूँ ही,
आज मुरझा गए,
मगर अपनी खुश्बू घोल गए,
मेरी सांसों में,
कोमार्य का नट्खटपन खूब उभर कर आया है…बधाई॥आपकी कविता मन को गुदगुदा जाती है

गीता पंडित का कहना है कि -

सजीव जी,

फूलों की बात पर
तुम याद आ गए,


हर लम्हा गुजरता, आता है नज़र,
फिर भी ना दिन का पता, ना रात की खबर,

एक भाव - प्रधान

सुन्दर रचना के लिए

बहुत बहुत बधाई।

गौरव सोलंकी का कहना है कि -

कभी शाखों की छाँव में,
कभी फूलों के गांव में,
देखो फिर, फूलों की बात पर,
तुम याद आ गए,

प्यारी कविता है सजीव जी

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

अत्यंत साधारण रचना

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