अंधेरी गहरी रात सी ,
स्याह है ,
यह श्यामली..
नाम को सत्य करती काया ,
प्रभु की माया !
श्यामल शरीर, ग़रीब परिवार,
करेला ऊपर से नीम चढ़ा ..
तभी तो तीस का होकर भी
अपन ही घर पर पड़ा !
अपना घर..
कहाँ ?
वह तो यहाँ की मेहमान है,
जिसकी विदाई को लेकर
घर ही नही
सारा मोहल्ला परेशान है !
असमय बूढ़ा पिता
जैसे अंतहीन बोझ को ढोता
हाय दुर्भाग्य !
दुहाज़ू वर से भी अस्वीकार्य !
संपूर्ण वज़ूद की हार |
पिता क्लर्क लोगों के सवालों से परेशान ,
मुँह छुपाने को विवश
इसलिए वह पिता
अब है केवल पीता !
माँ के लिए तो वह है..
जैसे पुराने जनम के पापों को नतीज़ा ,
जिसके पास हैं केवल बेबस ताने
जो मुँह से निकलते हैं
आँसूओं के समानांतर !
और यह है "श्यामली"
यौवन के सपनों की शमशान
जहाँ रोज़ अरमान जलते हैं !
वह है अपरिभाषित..
पता नहीं कौन सा दुख बड़ा है
नारी जीवन में
वैधव्य या अविवाहित !
उसके नज़र में वैधव्य का दुख
कम है !
क्योंकि यह सिर्फ़ उसका ग़म है..
जिससे हट जाता है
माता पिता के कांधों से कर्तव्य का भार,
और उससे भी ज़्यादा
ख़त्म हो चुका होता है
लोगों के शूलों का पिटारा !
इसके विवाह का नहीं है कोई वर
सच..
पृथ्वी की सबसे ख़तरनाक प्रजाती नर !
कांक्रीट के इन जंगलो के कामान्ध भेडिये,
हैवानो से भी बदतर
शिकार की गंध से व्याकुल,
काटने लगे हैं
उसके घर के चक्कर !
मान के उसे
सुलभ, आसान-सा शिकार,
जिसका एक ही है रखवाला
ऊपरवाला !
अंत में एक प्रश्न ...
क्या श्यामल काया
इतना बड़ा अपराध है ,
कि सूखी रोटी वो प्याज़ से नही
तानों के साथ खाती है!
ज़िंदगी का आधार,
बस आँसुओं के मोतियो का
व्यापार है !
क्या श्यामल काया बदतर है ?
उन काले दिलों से भी ..
जो ढकें हैं गोरी चमडियों से !
क्या सारे सपने सच्च प्यार और विश्वास ,
सब कुछ ख़रीदा जा सकता है
महज़ चन्द दमडियों से ?
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
15 कविताप्रेमियों का कहना है :
राहुल जी,
हिन्द युग्म के मंच पर स्थायी कवि के रूप में आपका हार्दिक अभिनंदन।
जमीन से जुड कर लिखना, कालजयी कृतिया लिखने के तुल्य है। स्याह श्यामली की पीडा को आपकी स्याही नें जिस तरह मूर्त किया है, आपसे अपेक्षायें बढ गयी हैं।
और यह है "श्यामली"
यौवन के सपनों की शमशान
जहाँ रोज़ अरमान जलते हैं !
वह है अपरिभाषित..
पता नहीं कौन सा दुख बड़ा है
नारी जीवन में
वैधव्य या अविवाहित !
सुलभ, आसान-सा शिकार,
जिसका एक ही है रखवाला
ऊपरवाला !
और अंत के आपके प्रश्न भी गंभीर हैं। बहुत बधाई आपको।
*** राजीव रंजन प्रसाद
bahut bahut dhanyavad....aap mere hindiyugm ke sabse priy kavio me hai...yadyapi maine aapki kavitono me samyabhav ke karan cooment n kar saka...parntu aapke dwara prashansa pa ka mai bahut harshit hoon.
राहुल जी
गज़ब की कविता लिखी है । आपने नारी जीवन की बहुत ही मार्मिक तसवीर खींच दी है , इसमें बहुत सच्चाई है ।
एक ऐसी सच्चाई जिसे पढ़कर दिल दुखी हो जाता है । आपकी कविता पढ़कर आपके भीतर की संवेदन शीलता
दिखाई दे रही है । विशेष रूप से निम्न पंक्तियों ने प्रभावित किया -
यह श्यामली..
नाम को सत्य करती काया ,
प्रभु की माया !
श्यामल शरीर, ग़रीब परिवार,
करेला ऊपर से नीम चढ़ा ..
तभी तो तीस का होकर भी
अपन ही घर पर पड़ा !
अपना घर..
कहाँ ?
वह तो यहाँ की मेहमान है,
जिसकी विदाई को लेकर
घर ही नही
सारा मोहल्ला परेशान है !
बहुत खूब लिखा है । बहुत-बहुत बधाई ।
shobha ji bahut dhnyavad aapki kavita per twarit aur utsah badane vali tippadiya kaviyon me utsah bhar detei hai
वाह राहुल जी आपका स्वागत है
बहुत ही सुंदर रचना लिखी है आपने बहुत बधाई आपको।
अंत में एक प्रश्न ...
क्या श्यामल काया
इतना बड़ा अपराध है ...
बहुत कुछ है इन पंक्तियों में ....
बहुत बहुत स्वागत आपका राहुल जी, आपकी कविता एक नंगे सच को उतनी ही संवेदना के साथ उकेरती है, आपसे उम्मीदें बढ़ गयी है,
राहुल जी,
बहुत बढ़िया लिखते हैं आप, आगे और भी अच्छी रचनाओं की उम्मीद रहेगी।
अंधेरी गहरी रात सी ,
स्याह है ,
यह श्यामली..
नाम को सत्य करती काया ,
प्रभु की माया !
बहुत खूब! क्या बात है!
पता नहीं कौन सा दुख बड़ा है
नारी जीवन में
वैधव्य या अविवाहित !
एक विचारणीय तथ्य है।
श्यामल शरीर, ग़रीब परिवार,
करेला ऊपर से नीम चढ़ा ..
राहुलजी,
हिन्द-युग्म के मंच पर यूनिकवि के रूप में आपका हार्दिक स्वागत है।
और यह है "श्यामली"
यौवन के सपनों की शमशान
जहाँ रोज़ अरमान जलते हैं !
वह है अपरिभाषित..
पता नहीं कौन सा दुख बड़ा है
नारी जीवन में
वैधव्य या अविवाहित !
नारी जीवन की व्यथा को बहुत ही खूबसूरती से आपने अपनी इस रचना में प्रस्तुत किया है। वैधव्य या अविवाहित में से कौनसा दु:ख बड़ा है, यह कह पाना तो बेहद मुश्किल है मित्र, मगर पुरूष प्रधान समाज में नारी हमेशा ही अबला ही रही है, हालांकि अब हालात में सुधार हो रहे हैं।
इस खूबसूरत कृति के लिये बहुत-बहुत बधाई!!!
राहुल नारी मन की पीडा को जितनी सहजता से व्यक्त किया उसके लिये बधाई । बेहद मार्मिक और सजीव कविता ।
उम्मीद है भविष्य में भी इसी तरह कुछ अच्छा सा पढने को मिलेगा ।
राहुल जी
बहुत बहुत सुन्दर कृति है आपकी,
श्यामली की पीडा के माध्यम से आपने गंभीर विचारणीय प्रश्न उठाये हैं
मर्मस्पर्शी और इतनी संवेदनशील रचना के लिये बधाई
आपकी अगली रचना की प्रतीक्षा में
सस्नेह
गौरव शुक्ल
सर्वप्रथम हिन्द-युग्म परिवार में आपका स्वागत है। पिछले २ सोमवारों से आप अनुपस्थित थे, इस सोमवार आप आये लेकिन यूनिकवि की छवि को बरकरार रखते हुए। बहुत अनूठे-अनूठे बिम्बों का प्रयोग किया है आपने। कविता कहीं भी बनावटी नहीं लगती। -'पिता' है केवल 'पीता'- कुछ ख़ास या नया नहीं लगी, या यूँ कहिए पूरी कविता की कमज़ोर कड़ी लगी मुझे, फ़िर भी यह कविता आपको युवा कवि, उभरते हुए कवि के रूप में स्थापित करती है। ढेरों बधाइयाँ
राहुल जी,
एक संवेदनशील कविता के लिए बहुत सारी बधाई।
आपसे सबकी अपेक्षाएँ बहुत बढ़ गई हैं।
राहुल जी,
श्यामली .....
और यह है "श्यामली"
यौवन के सपनों की शमशान
जहाँ रोज़ अरमान जलते हैं !
वह है अपरिभाषित..
पता नहीं कौन सा दुख बड़ा है
नारी जीवन में
वैधव्य या अविवाहित !
उसके नज़र में वैधव्य का दुख
कम है !
क्योंकि यह सिर्फ़ उसका ग़म है..
जिससे हट जाता है
माता पिता के कांधों से कर्तव्य का भार,
बहुत खूब ....
बधाई ।
राहुल जी hindyugm के पाठको तक एक बहुत ही अच्छी कविता पहुचाने के लिए के लिए बहुत बहुत बधाई ....... घर मे एक श्यामली लड़की के होने पर उसपर और उसके घरवालों पर क्या गुज़रती है इसका बहुत ही मार्मिक चित्रण किया है आपने ...........आगे भी आपसे अच्छी अच्छी कविताओ की उम्मीद मे ........................
वह तो यहाँ की मेहमान है,
जिसकी विदाई को लेकर
घर ही नही
सारा मोहल्ला परेशान है !
बहुत खूब
अतुल
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)