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Wednesday, September 19, 2007

भारी भूल हुई


दूर तलक मैं सोच ना पाया, मुझसे भारी भूल हुई।
बेदर्दी को गले लगाया, मुझसे भारी भूल हुई।।

छोड़ के दुनिया की रंगीनी, उसके पीछे मैं भागा;
सादापन को गले लगाया, मुझसे भारी भूल हुई।

छोड़ के सीधा रस्ता मैं भटका उसकी नज़रों में;
दिल को उलझन में उलझाया, मुझसे भारी भूल हुई।

जिस शै ने दे दी चिंगारी ख्वाबों को अरमानों को;
रात उसे सपने में लाया मुझसे भारी भूल हुई।

अनजानों सा जो मिलता है मुझसे रंगीं महफिल में;
उसको ही मैं भूल ना पाया, मुझसे भारी भूल हुई।

दूर तलक मैं सोच ना पाया, मुझसे भारी भूल हुई।
बेदर्दी को गले लगाया, मुझसे भारी भूल हुई।।

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6 कविताप्रेमियों का कहना है :

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

पंकज जी,

आनंद आ गया आपकी इस गज़ल को पढ कर। एक एक शब्द जैसे त्याजे फूलों को गूंथ गूंथ कर इस गज़ल को सजाया है आपने। कहीं कोई शब्द खरोंच उत्पन्न नहीं करता...

अनजानों सा जो मिलता है मुझसे रंगीं महफिल में;
उसको ही मैं भूल ना पाया, मुझसे भारी भूल हुई।

बहुत उत्कृष्ट।

*** राजीव रंजन प्रसाद

Unknown का कहना है कि -

जिस शै ने दे दी चिंगारी ख्वाबों को अरमानों को;
रात उसे सपने में लाया मुझसे भारी भूल हुई।
अनजानों सा जो मिलता है मुझसे रंगीं महफिल में;
उसको ही मैं भूल ना पाया, मुझसे भारी भूल हुई।

वाह..! पंकज जी !
अति सुन्दर ..!!

बहुत खूब
आपकी ग़जल को मर्मस्थल तक पहुंचने में कोई भूल नहीं हुयी। शुभकामनायें

RAVI KANT का कहना है कि -

पंकज जी,
शानदार लिखा है।

जिस शै ने दे दी चिंगारी ख्वाबों को अरमानों को;
रात उसे सपने में लाया मुझसे भारी भूल हुई।

हाँ एक चीज मै पूरी तरह से समझ नही पाया-

छोड़ के दुनिया की रंगीनी, उसके पीछे मैं भागा;
सादापन को गले लगाया, मुझसे भारी भूल हुई।

इसमे सादापन को गले लगाने को आप भूल क्यों समझते हैं?? और रंगीनीयों को छोड़ने का इतना मलाल क्यों है?? ये मेरी निजी राय है उम्मीद है अन्यथा नही लेंगे।

गीता पंडित का कहना है कि -

पंकज जी ,

वाह.......

छोड़ के दुनिया की रंगीनी, उसके पीछे मैं भागा;
सादापन को गले लगाया, मुझसे भारी भूल हुई।

वाह.......

अनजानों सा जो मिलता है मुझसे रंगीं महफिल में;
उसको ही मैं भूल ना पाया, मुझसे भारी भूल हुई।

दूर तलक मैं सोच ना पाया, मुझसे भारी भूल हुई।
बेदर्दी को गले लगाया, मुझसे भारी भूल हुई।।

अति सुन्दर ..

गज़ल पढ कर...... आनंद आया..|

शुभकामनायें

शोभा का कहना है कि -

पंकज
अच्छी गज़ल लिखी है । यह भूल तो हर कोई करता है और बार-बार करता है । इतना पछताने की
कोई आवश्यकता नहीं । सहज़ स्वीकारोक्ति के लिए बधाई ।

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

पंकज जी,
आपके जैसा ज़िंदादिल आदमी यह लिखेगा! थोड़ा हमलोगों में जोश भरिए।

वैसे यह ग़ज़ल मस्त है। समय निकालकर आवाज़ भी दे डालिए।

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