1.समय
यूँ फिसला जैसे
हाथ धोते वक़्त
साबुन बेसिन में बह जाए !!
2.प्यास
ज़िंदगी की प्यास
जिसका कोई अंत नहीं
एक सिरा ख़ुद के पास
जवाबों को तलाश करती
घुटनों के बल सिसकती
ना मालूम इस प्यास का
आदि कहाँ है?
एक सिरे से जुड़ता
दूसरा सिरा कहाँ है?
3.प्यार
क्यों आज हवा
हर साँस लगती है अपनी
हर फूल ख़ुद का
चेहरा-सा लगता है
मन उड़ रहा है
कुछ यूँ ख़ुश हो के
जैसे इच्छाओं ने
पर लगा लिए हैं
और रूह आज़ाद हो के
तितली हो गई है
४.पगली
यूँ ही कभी-कभी
दिल करता है
कि चुरा लूँ आसमान
का नीला रंग सारा
चाँद को बिंदी बना के
माथे पर सज़ा लूँ
और दिल में जमी गर्मी को
बंद मुट्ठी से खोल के
गरमा दूँ ,.....
तेरे भीतर जमी बर्फ़ को,
सुन के वो बोला मुझ से
कि ""तू इतनी पगली क्यों हैं? ""
4.स्पर्श
कांपती साँसें
लरजते होंठ
आँखों में है
एक दबी सी ख़ामोशी
क्या वो तुम नहीं थे?
जिसने अभी छुआ था
मुझे संग बहती हवा के !!
5.अस्तित्व
रिश्तों से बंधी
पर कई खंडों में खंडित
""हाय ओ रब्बा!""
कहीं तो मुझे मेरे
अस्तित्व के साथ जीने दे!!
6. हरसिंगार
लरजते अमलतास ने
खिलते हरसिंगार से
ना जाने क्या कह दिया
बिखर गया है ज़मीन पर
उसका एक-एक फूल
जैसे किसी गोरी का
मुखड़ा सफ़ेद हो के
गुलाबी-सा हो गया !!
7. उलझन
आँखों में तेरी नमी
और सिमटी है कोई लाली
समेट लूँ क्या इन्हें
अपनी झोली में ?
क्यों कि तेरे लबों के
गुलाबों का मुरझाना
मुझ से सहन नहीं होता !!
8. एक बोल
दुनिया के इस शोर में
बस चुपके कह देना
प्यार का एक बोल
पी लूंगी मैं
बंद आँखों से
जो कहा तेरी आंखों ने !!
9. मेरा वजूद
तेरे अस्तित्व से लिपटा
यूं घुट सा रहा है
कि एक दिन
तुझे ..
मैं तन्हा
छोड़ जाऊंगी !!
10.समझौता
तू सही
मैं ग़लत ,
मैं सही
तू ग़लत ,
कब तक लड़े
यूँ ज़िंदगी से
चलो यूं ही
बेवजह जीने का
एक समझौता कर लेते हैं !!
11.रिश्ता
तेरे मेरे बीच
एक दुआ
एक सदा
मेरी बेखुदी
तेरी बेरूख़ी
चटका हुआ आईना
काँपता पीले पत्ते सा
फिर भी यह रिश्ता
जन्म तक
यूँ ही चलता रहेगा !!
12. वक़्त.
क्यों तुम्हारे साथ बिताई
हर शाम मुझे
आखिरी-सी लगती है
जैसे वक़्त काँच के घर
को पत्थर दिखाता है !!
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
32 कविताप्रेमियों का कहना है :
Bahot Khub Ranjnaji..Sab bahot achhi hai..
"तू सही
में ग़लत ,
मैं सही
तू ग़लत ,
कब तक लड़े
यूँ ज़िंदगी से
चलो यूं ही
बेवजह जीने का
एक समझौता कर लेते हैं !!"
hindi itna nahin janta magar samjauta yahan par theek nahin lagta hai..Khumari honi chahiye..Bebasi nahin [:)]
sharmavishalest"samay" ki dor kheechne ki bekar koshish
"pyar" ki ankahi dastano main
mann ki "pyas" nahi bujhti
fir bhi karti hai "pagli" harbar koshish
tere astitva ka mohak sa "sparsh" mere "sringar" ko pura karta hai
"ulajhan" main jab fasha hun
teri "ek bol" mujhe jinda karta hai
"mera wajood" ek "samjhauta" nahi
ye "waqt" ke sath "riston" ko gahra karta hai
Ranju ji really its a very good poem i liked it.........
wah wah, great ranju jee.
kitane saralsabdon me kitana dard, khas kar "pagali""ek bol""samjauta""rista"
mera wazood aur samjhaota me ek dard hai ek sisaki si uth gayi.
pagali me ek unchhuwa pahalu sa hai jo har kisi ke umang me lagata ek rok sa laga
wah really great
बहुत ही श्रंग लिये, सुन्दर संग्रह, टेबल पर कुहनी टिकाये एवं हाथ से ठुड्डी को सहारा दे पंक्तियाँ पढ़्ने में तो मात्र 5-10 मिनट ही लगे परंतु अपलक करीब आधा घंटा बिता दिया.. बधाई देने में आधा घंटा विलम्ब हुआ माफ कीजियेगा..
रजंना जी,
दूसरा भाग पहले भाग से बीस ही है उन्नीस नही....बहुत सुन्दर शब्दों में आपने मन की भावनाओं बांधा है.... बधायी
bahot hi khubsurat ....
aapka likhna mujhe hi kya sabko accha lagta hoga kyoinki aap ke lekhen bahut acche hote hai.
pls don't stop that...continue till the end of life.
क्षणिकाओं को अभी और निख़ारने की आवश्यकता है, निश्चय ही आपका प्रयास सुन्दर है परंतु इसे अत्यधिक सुन्दर बनाया जा सकता है।
1.समय
यूँ फिसला जैसे
हाथ धोते वक़्त
साबुन बेसिन में बह जाए !!
यहाँ "बह जाए" अतिरिक्त शब्द है, अंतिम पंक्ति में मात्र "साबुन बेसिन में" होता तो क्षणिका ज्यादा खूबसूरत लगती।
क्षणिकाएँ अल्प शब्दों में विस्तृत अभिव्यक्ति है, शिल्प पर थोड़ा और ध्यान दीजिये।
आपमें आपार क्षमताएँ है, मैं जानता हूँ कि इसका अगला भाग मुझे निरूत्तर कर देगा, मुझे प्रतिक्षा रहेगी, शुभकामनाएँ!!!
तेरे मेरे बीच
एक दुआ
एक सदा
मेरी बेखुदी
तेरी बेरूख़ी
चटका हुआ आईना
काँपता पीले पत्ते सा
फिर भी यह रिश्ता
जन्म तक
यूँ ही चलता रहेगा !!
बहुत सुन्दर है...
शानू
रंजना जी,
एक बार फ़िर आपने बेहद उम्दा लिखा है। सारी अच्छी बन पड़ी हैं। हरसिंगारवाली विशेष पसंद आई।
बढ़ता निखार शब्दों में,
दिन ब दिन वैसे,
बढ़ता जाता हो चांद जैसे।
रंजना जी, आपकी पिछली और इस बार की क्षणिकाओं को पढ़कर तो एक बात समझ में आती है कि आप पिछ्ले कुछ दिनों मे अपने लेखन को लेकर आत्म-मंथन की प्रक्रिया से गुज़री हैं। इसी आत्म-मंथन ने आपके लेखन को और एक नया विस्तार, एक नया आयाम दिया है।
आत्म-मंथन हमेशा कुछ नया दे ही जाता है अत: लेखन को लेकर आत्म-मंथन का दौर बनाए रखें।
शुभकामनाएं
कांपती साँसें
लरजते होंठ
आँखों में है
एक दबी सी ख़ामोशी
क्या वो तुम नहीं थे?
जिसने अभी छुआ था
मुझे संग बहती हवा के !!
yakinan ek behad uchh koti ka prayas hai ........aapki kavitayo ke to hum kayal the hi ab se Shanikayein bhi humein bhaane lagi hai....
रंजना जी!
क्षणिकाओं में अभी सुधार की काफी गुंज़ाइश है. उदाहरणस्वरूप गिरिराज जी एक का ज़िक्र कर ही चुके हैं. किसी पूरी क्षणिका का उल्लेख नहीं कर पाऊँगा पर कई पँक्तियाँ सुंदर बन पड़ी हैं. और बेहतर की आपसे अपेक्षा है.
रंजू जी
बहुत अच्छा लिखा है । बधाई
तू सही
में ग़लत ,
मैं सही
तू ग़लत ,
कब तक लड़े
यूँ ज़िंदगी से
चलो यूं ही
बेवजह जीने का
एक समझौता कर लेते हैं !!"
रंजना जी,
कोमल भावनाओं पर आपकी पकड सराहनीय है। जिन बिम्बों का आपने उपयोग किया है वे इन भावनाओं को उकेर कर पाठक को स्तब्ध करते हैं।
बहुत सुन्दर रचना के लिये बधाई।
*** राजीव रंजन प्रसाद
bahut hi achchhi lagi apki ye rachnaayen.kisi bhi kon se nahin lagta hai ki kshanikaaon ke kshetra mein aap nayi hain.
isi tarah hum sabko apni rachnaaon ka aaswaadan karate rahiye,achchha lagta hai apko baar- baar padhna.
badhaai sweekaren!
सभी एक से बढ़कर एक हैं, बधाई. पगली सबसे अच्छी लगी मुझे. एक बार और बधाई.
रंजन जी आपको पढने का एक अलग ही अनंद है, यूं तो सभी लघु कवितायें ( क्षनिकाएं तो नही हैं शायाद ) बेहद उलझी-सुलझी हैं पर मुझे विशेष रूप से पगली और वक्त बहुत भाये , एक बार फ़िर ढेरों बधाई
ranjana ji ...kuch yun hii mein to aap bahut kuch keh gayi..ya yun kahiye ki sau sunar ki aur ek luhar ki.itne kam shabdon mein itna zyada jeevan ka nichor...bahut khub...aap badhai ki patr hein...
bahut hi sunder hai
aap ki poem ranjana ji
wah wah bahut hi sunder hai aap ki poem
रंजना जी,
क्षणिकायें लिखना अपेक्षाकृत थोडा सा कठिन है, निःसन्देह आपने क्षणिकाओं पर मेहनत की है | सुन्दर बन पडी हैं, अपनी रचनाओं मे आप भावों का विशेष ध्यान रखती हैं | बस कभी-कभी छोटी-छोटी गलतियों पर ध्यान नहीं जाता, जैसे गिरिराज जी ने सच में स्तब्ध कर दिया है :-)
प्रभावित करने वाली कृति है
सुन्दर रचना के लिये बधाई
सस्नेह
गौरव शुक्ल
एक सिरे से जुड़ता
दूसरा सिरा कहाँ है?
यूँ फिसला जैसे
हाथ धोते वक़्त
साबुन बेसिन में
सुन के वो बोला मुझ से
कि ""तू इतनी पगली क्यों हैं? ""
तू सही
मैं ग़लत ,
मैं सही
तू ग़लत ,
कब तक लड़े
यूँ ज़िंदगी से
चलो यूं ही
बेवजह जीने का
एक समझौता कर लेते हैं
जैसे वक़्त काँच के घर
को पत्थर दिखाता है !!
बहुत हीं सुंदर क्षणिकाएँ हैं रंजू जी। अब हमें (मुझे और गौरव को) आपसे जलन सी होने लगी है :)
कारण तो आप समझ हीं रही होंगी। ऎसे हीं कुछ नया करती रहें।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
This one is the best....
"तू सही
में ग़लत ,
मैं सही
तू ग़लत ,
कब तक लड़े
यूँ ज़िंदगी से
चलो यूं ही
बेवजह जीने का
एक समझौता कर लेते हैं !!"
you are reservior of soft feelings
रंजना जी,
आपने बेहद सुन्दर लिखा है।
तेरे मेरे बीच
एक दुआ
एक सदा
मेरी बेखुदी
तेरी बेरूख़ी
चटका हुआ आईना
काँपता पीले पत्ते सा
फिर भी यह रिश्ता
जन्म तक
यूँ ही चलता रहेगा !!
सारी ही अच्छी हैं।
शुभकामनाएँ
hi ranjana ji
aapki kavitai bahut kuch kah jaati hai....
ek jagah pada tha ki " kavitayen dil ki bhawnaon ko avivyakt karti hai "
kya yah sach hai.........
देरी के लिए माफ़ कीजिएगा रंजना जी।
इस बार की आपकी क्षणिकाएँ बहुत अच्छी हैं। हाँ, कहीं कहीं कुछ बड़ी हो गई हैं। आशा है कि अगली बार यह छोटी सी कमी भी देखने को नहीं मिलेगी।
रिश्तों से बंधी
पर कई खंडों में खंडित
""हाय ओ रब्बा!""
कहीं तो मुझे मेरे
अस्तित्व के साथ जीने दे!!
क्या बात है!
आपने क्षणिकाओं की नब्ज़ पकड़ ली है।
क्यों तुम्हारे साथ बिताई
हर शाम मुझे
आखिरी-सी लगती है
जैसे वक़्त काँच के घर
को पत्थर दिखाता है !!
अद्भुत बिम्ब, छोटी सी क्षणिका में।
आपकी क्षणिकाओं की प्रतीक्षा रहेगी।
यह होता है सकारात्मक प्रयास। इस बार की क्षणिकाएँ पिछली बार से बहुत बढ़िया हैं। विशेष रूप से-
क्यों तुम्हारे साथ बिताई
हर शाम मुझे
आखिरी-सी लगती है
जैसे वक़्त काँच के घर
को पत्थर दिखाता है !!
साधुवाद।
bahut kohb
Ranjana ji aap sachmuch bahut achha likhati hain.
Aapaki panktiyan ek baar padhni shuru karo to khatm hone se pahale utha nahin jata.
Main sachmuch aapaka fan ho gaya hoon.
Is baar ki panktiyon mein dard ka ehsaas bahut kam hai achha laga.
Apne mere sughav par dhyan diya.
Ranjana ji aap sachmuch bahut achha likhati hain.
Aapaki panktiyan ek baar padhni shuru karo to khatm hone se pahale utha nahin jata.
Main sachmuch aapaka fan ho gaya hoon.
Is baar ki panktiyon mein dard ka ehsaas bahut kam hai achha laga.
Apne mere sughav par dhyan diya.
mughe bhi pagali hi bahut achhi lagi.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)