सुबह माँ ने जगाया,
”पगला,
नींद में भी मुस्कुराता है”,
कितने मीठे हैं तेरे सपने
और
तेरी याद।
तेरी याद,
जैसे
बरसते पत्थर,
खिलखिलाते बच्चे,
बिलबिलाता पागल।
तेरी याद,
जैसे
अधूरा पता,
अनजान शहर,
भटकता हुआ मुसाफ़िर
और बरसात।
तेरी याद,
काटते मच्छर,
कोई सो न पाए।
तेरी याद,
आधी रात,
पच्चीस मिस्ड कॉल,
फ़ोन करो
तो मिलती ही नहीं बात।
तेरी याद,
काँपते होठ,
बोलती पलकें,
अधूरी बातें,
छूटते हाथ।
तेरी याद,
जैसे
बाल-विवाह,
कुंवारा वैधव्य,
लाश सी ज़िन्दगी,
बेवज़ह,
बेबात।
रूठकर मान जाना,
झगड़कर लिपटना,
जुड़ जाना बिखरकर
एक साथ।
जैसे राम का वनवास
अकेली उर्मिला काटे,
तेरी याद का निर्जन वन,
कोई बाँटना चाहे
तो किससे बाँटे?
तेरी याद,
जैसे हर साल के कलैंडर पर
लिख दिया गया हो,
जा सरफिरे,
इस याद में तेरा हर बरस बर्बाद...
तेरी याद,
जैसे इतवार की शाम
और छूटा हुआ होमवर्क,
कहने को फ़ुर्सत है ज़िन्दगी भर
और आराम हराम।
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24 कविताप्रेमियों का कहना है :
तेरी याद,
जैसे
बरसते पत्थर,
खिलखिलाते बच्चे,
बिलबिलाता पागल।
भटकता हुआ मुसाफ़िर
और बरसात
तेरी याद,
काँपते होठ,
बोलती पलकें,
अधूरी बातें,
छूटते हाथ।
बाल-विवाह,
कुंवारा वैधव्य,
लाश सी ज़िन्दगी,
बेवज़ह,
बेबात
जा सरफिरे,
इस याद में तेरा हर बरस बर्बाद
गौरव,
तुम्हारी याद के ख्यालात लुभाते भी हैं, तड़पाते भी है,कुछ कशिश भी देते हैं तो गुदगुदाते भी हैं। याद का हर एक पहलू तुमने अच्छे से बुना है। लेकिन मित्र , कुछ-कुछ पंक्तियों में तुम कमजोर भी पड़ गए हो, जो चिरपरिचित गौरव को शोभा नहीं देता, मसलन-
जैसे गर्मी की रात में
काटते मच्छर।
तुममें इतना सामर्थ्य है कि तुम इसे अच्छी तरह से सँवार सकते थे। तुम्हारे अगले कुछ क्षणों के इंतज़ार में-
विश्व दीपक 'तन्हा'
तेरी याद,
काँपते होठ,
बोलती पलकें,
अधूरी बातें,
छूटते हाथ
this is the best
ek theme par likhna achha laga
kaafi variations hain
jindagi ke har pehloo se yaadon ko jod daala......lage raho..
गौरव जी,
बिम्ब के लिहाज से कविता बहुत उत्कृष्ट है। नये उपमान हैं और उस पर भी अनूठे। याद और
बरसते पत्थर,
खिलखिलाते बच्चे,
बिलबिलाता पागल।
अधूरा पता,
अनजान शहर
पच्चीस मिस्ड कॉल,
फ़ोन करो
तो मिलती ही नहीं बात।
जैसे राम का वनवास
अकेली उर्मिला काटे,
तेरी याद का निर्जन वन,
(उर्मिला लिखना चाहते हो तो लक्षमण को संबोधित करना अधिक बेहतर होता वैसे विम्ब स्पष्ट है)
जैसे इतवार की शाम
और छूटा हुआ होमवर्क,
कविता को कई बिम्ब लचर भी बना रहे हैं जैसे
बाल-विवाह,
कुंवारा वैधव्य,
लाश सी ज़िन्दगी,
बेवज़ह,
बेबात।
तेरी याद,
रूठकर मान जाना,
झगड़कर लिपटना,
जुड़ जाना बिखरकर
एक साथ।
*** राजीव रंजन प्रसाद
गौरव जी,
तेरी याद,
जैसे
बरसते पत्थर,
खिलखिलाते बच्चे,
बिलबिलाता पागल।
तेरी याद,
जैसे
अधूरा पता,
अनजान शहर,
भटकता हुआ मुसाफ़िर
और बरसात।
एक आसानी से आत्म-सात होने वाली आपकी कविता अच्छी लगी।
हर कविता चर्चा का गहनतम हिस्सा बनकर मनो-मस्तिष्क को हिला गयी ।
चर्चा होना अति-आवश्यक है और हिन्दी-युग्म की प्रगति का भी परिचायक है...कवियों के उत्साह को भी दर्शाती है....किन्तु.....
क्या आप सभी इस बात से भी सहमत हैं....कि चर्चा...केवल कविता तक सीमित रहे और काव्य-रस भंग ना करे..
क्या गम्भीर चर्चा के लियें युग्म पर एक अलग मंच की आवश्यकता है..??
राजीव जी ने वो सब कह दिया जो मैं कहना चाहता हूँ, बहुत अच्छे और नए बिम्ब सजाये हैं तुमने, बस एक कमी खली शुरुवात मीठे सपनो से हुई थी और फ़िर याद से याद पर ही अटके रह गए, कहीँ सपनो से कड़ी को जोड़ते तो कविता और मुक्काम्मल सी लगती
यादें.....
बरसते पत्थर
बोलती पलकें,
अधूरी बातें,
छूटते हाथ।
लाश सी ज़िन्दगी
जैसे हर साल के कलैंडर पर
लिख दिया गया हो,
जा सरफिरे,
इस याद में तेरा हर बरस बर्बाद...तेरी याद,
जैसे
अधूरा पता,
अनजान शहर,
भटकता हुआ मुसाफ़िर
और बरसात।
..................
यादों के उमड़ते शिकन को बख़ूबी नापा है
बस लिखते रहिए.... बहुत ख़ूब!
सुनीता यादव
गौरव
बहुत प्यारी कविता लिखी है । याद के लिए बहुत ही सुन्दर बिम्ब और प्रतीक लिए हैं । तुम्हारी कलम की
सहजता मुझे बहुत पसन्द आती है । याद तो तुम्हारी थी पर अब इस वेदना का सामान्यीकरण हो गया है ।
बहुत ही मधुर कविता है । विशेष रूप से--
तेरी याद,
आधी रात,
पच्चीस मिस्ड कॉल,
फ़ोन करो
तो मिलती ही नहीं बात।
तेरी याद,
काँपते होठ,
बोलती पलकें,
अधूरी बातें,
छूटते हाथ।
हार्दिक बधाई ।
अरे गौरव जी,
अगर कविता भर है तब तो कोई खास परेशानी वाली बात नहीं है मगर ये कोई सचमुच की याद है तो अभी बहुत समय है.....बिसरा दें और लक्ष्य साधें..वर्ना
तेरे जाने का गम भुलाता हूं
तेरे आने की याद आती है
ऐसे बेखुदी के आलम मे
न जाने किस जमाने की याद आती है..
सुन्दर लिखा है....
आपकी कविता की पहली लाईन पढ कर एक शेर और भी याद आया
कुछ लुत्फ़े शबिश्तां न उठाया था अभी
होठों पर तब्ब्सुम सा ही आया था अभी
नागाह सहर ने आह भर कर पूछा
किस बात पर ऐ जोक मुसकराया था अभी
हयुमर का अच्छा इस्तेमाल. बढिया रचना.
आपकी प्रतिक्रियाएँ देखकर मुझे लगा कि आप इसे एक पूरी कविता की तरह देख रहे हैं।
ये सब तो स्वतंत्र क्षणिकाएँ हैं।
नाम भी इसीलिए 'कुछ क्षण' दिया गया है, क्योंकि ये बिल्कुल अलग अलग समयों पर 'तेरी याद' के रूप अथवा वेदनाएँ या प्रतिक्रियाएं हैं।
गौरव जी !! धन्यवाद. आपकी हर रचना एक नये आयाम को स्पर्श करती है. "याद" शृंखलायुक्त क्षणिका-समूह में भी रससिक्तता अनुभूत हुई. विशेषकर अधोलिखित पंक्तियों ने अत्यधिक आकृष्ट किया......
जैसे राम का वनवास
अकेली उर्मिला काटे,
तेरी याद का निर्जन वन,
कोई बाँटना चाहे
तो किससे बाँटे?
--
सधन्यवाद,
मणिदिवाकर
जी हाँ अलग अलग क्षणिकाएं हैं पर कुल मिला कर एक ही विषय पर केन्द्रित है इस लिये एक रचना कही जा सकती हैं. कला में इसे इस्टाँलेशन कहते हैं.
इन क्षणिकाओं में हयुमर पाया जाता है
तेरी याद,
जैसे गर्मी की रात में
काटते मच्छर,
कोई सो न पाए। (यह पक्ति शायद ज्यादा है)
तेरी याद,
आधी रात,
पच्चीस मिस्ड कॉल,
फ़ोन करो
तो मिलती ही नहीं बात।
तेरी याद,
जैसे हर साल के कलैंडर पर
लिख दिया गया हो,
जा सरफिरे,
इस याद में तेरा हर बरस बर्बाद...
..................................
इस में कोमलता और अपनेपन का स्पर्श है
सुबह माँ ने जगाया,
”पगला,
नींद में भी मुस्कुराता है”,
कितने मीठे हैं तेरे सपने
और
तेरी याद।
..................................
इन दोनों मे अच्छे बिम्ब बन पडे है.
तेरी याद,
जैसे
बरसते पत्थर,
खिलखिलाते बच्चे,
बिलबिलाता पागल।
तेरी याद,
जैसे
अधूरा पता,
अनजान शहर,
भटकता हुआ मुसाफ़िर
और बरसात।
..................................
इन में दु:ख वैसे ही अभिव्क्त हुआ है जैसा अक्सर कविताओं में होता है
तेरी याद,
जैसे
बाल-विवाह,
कुंवारा वैधव्य,
लाश सी ज़िन्दगी,
बेवज़ह,
बेबात।
तेरी याद,
रूठकर मान जाना,
झगड़कर लिपटना,
जुड़ जाना बिखरकर
एक साथ।
जैसे राम का वनवास
अकेली उर्मिला काटे,
तेरी याद का निर्जन वन,
कोई बाँटना चाहे
तो किससे बाँटे?
इतनी बेदर्द और बेकल यादें..... हमारी सहानुभूती आपसे है गौरव जी. अच्छी उपमाएं दी है आपने.
इतनी बेदर्द और बेकल यादें..... हमारी सहानुभूती आपसे है गौरव जी. अच्छी उपमाएं दी है आपने.
बहुत सुंदर लगी यह आपकी रचना गौरव जी
जो मुझे विशेष रूप से पसंद आई ...
तेरी याद,
आधी रात,
पच्चीस मिस्ड कॉल,
फ़ोन करो
तो मिलती ही नहीं बात।
तेरी याद,
काँपते होठ,
बोलती पलकें,
अधूरी बातें,
छूटते हाथ।
सच में याद बहुत बेदर्दी याद :)
तेरी याद,
काँपते होठ,
बोलती पलकें,
अधूरी बातें,
छूटते हाथ
bahut khub likha hai gauravji
आपने इतनी सारी ख़ूबसूरत बातें लिख दी हैं की इनमें से एक-आध भी किसी कविता को अच्छी कहलाने के लिए काफ़ी होती
आपने तो यहाँ अंबार ही लगा दिया | कविता पढ़ते वक़्त मैं ज़्यादा सोचता नही अगर रचना अपने प्रवाह में बहा ले जाने में सफल हो तो वह सफल हो जाती है ऐसा मैं मानता हूँ
सो शिल्प या किसी अन्य छूटी हुई कड़ी के विषय में कहना व्यर्थ है |
हर एक पंक्ति शानदार है ..
तेरी याद,
जैसे
बरसते पत्थर,
बिलबिलाता पागल।
जैसे राम का वनवास
अकेली उर्मिला काटे,
जा सरफिरे,
इस याद में तेरा हर बरस बर्बाद...
और हाँ एक बात और "जैसे गर्मी की रात में
काटते मच्छर" इस बिंब ने भी प्रभावित किया| गर्मी की रात में जब मच्छर काटे और गर्मी के कारण जब कुछ ओढ़ भी ना पाए तो अज़ीब सी विवशता होती है बैचैनी और झुंझलाहट भी| यह बैचैने "तेरी याद" से बिल्कुल मिलती है |
सुंदर रचना के लिए बधाई...
गौरव जी,
बहुत सुन्दर बिम्ब चुना है आपने।
सुबह माँ ने जगाया,
”पगला,
नींद में भी मुस्कुराता है”,
कितने मीठे हैं तेरे सपने
और
तेरी याद।
तेरी याद,
रूठकर मान जाना,
झगड़कर लिपटना,
जुड़ जाना बिखरकर
एक साथ।
बहुत खूब!
आपने याद को अलग अलग नजरिए से कसौटी पर रख कर लघु कविता के रूप में जो प्रस्तुति है, वह सार्थक और दिल को छू लेने वाली है। बधाई।
gaurav me sirf itna hi kahna chaunga ki bahut khoob,
kyonki aapki kavita prayogdharmi hai
यहाँ 'तेरी याद' हर जगह डरावनी लग रही है। मगर सभी अच्छी हैं। वैसे क्षणिकाओं के आप उस्ताद होते जा रहे हैं। आपके अलावा यह और कौन लिख सकता था!
तेरी याद,
जैसे
बाल-विवाह,
कुंवारा वैधव्य,
लाश सी ज़िन्दगी,
बेवज़ह,
बेबात।
गौरव जी
बहुत ही अच्छी रचना लगी
विशेषकर बिम्ब ..... पढ़कर बहुत ही प्रसन्नता हुयी
किसी भी एक पंक्ति को उदृत करना सभी अन्य का
निम्नाकल्न ही होगा
शुभकामनायें
तेरी याद,
काँपते होठ,
बोलती पलकें,
अधूरी बातें,
छूटते हाथ।
------------
इन दस शब्दों में तो आपने पुरी जिंदगी के यादों का आइना दिखा दिया है.
बस ऐसे ही लिखते रहिए.बहुत अच्छी कविता है.एक अच्छी कविता के लिए धन्यबाद.
तेरी याद,
काँपते होठ,
बोलती पलकें,
अधूरी बातें,
छूटते हाथ।
------------
इन दस शब्दों में तो आपने पुरी जिंदगी के यादों का आइना दिखा दिया है.
बस ऐसे ही लिखते रहिए.बहुत अच्छी कविता है.एक अच्छी कविता के लिए धन्यबाद.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)