हिन्द-युग्म का एक उद्देश्य यह भी है कि हर तरह की कला को हिन्दी-साहित्य से जोड़ा जा सके ताकि यह कालजयी हो जाय। यद्यपि कविताओं को संगीतबद्ध करना, उनको गाना, उनपर डाक्यूमेन्ट्री आदि बनाना कोई नई बात नहीं है, लेकिन हम इस पर ज़ोर देना चाहते हैं। खुद साहित्यकारों द्वारा इस तरह के प्रयास नहीं होते, लेकिन हम युवा हिन्दीकर्मी इसपर अत्यधिक ध्यान देना चाहते हैं।
नागपुर के नवोदित गायक सुबोध साठे ने तुषार जी की हिन्द-युग्म पर १५ अगस्त २००६ को प्रकाशित कविता 'भूल गए जी' को गाया भी है और इसे संगीतबद्ध भी किया है। आप भी सुनिए-
हिन्द-युग्म की कविताओं की पॉडकास्टिंग कई आवाज़ों में आप यहाँ सुन सकते हैं।
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पहली बार ही हिन्द-युग्म के निखिल आनंद गिरि की एक कविता 'काश' पर जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के चार विद्यार्थियों ( राधिका राठौर, सचिन कुमार लड़िया, सोहैल आज़म और निखिल आनंद गिरि) ने डाक्यूमेंट्री बनाने की कोशिश की है। हिन्दी-चिट्ठाकारी के लिए यह बहुत शुभ लक्षण हैं, हम ज्यादा क्या कहें आप खुद नीचे विडियो देखिए।
यह विडियो यूट्यूब में यहाँ संग्रहित है।
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आशा है आपको हमारे ये प्रयास पसंद आयेंगे।
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4 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत अच्छा प्रयास।
युग्म बदल रहा है अच्छे के लिए, अब यहाँ मात्र कवितायेँ नही, कविताओं से प्रेरणा लेती युवा सोच भी प्रकट हो रही है, निखिल जी और उनकी टीम को बहुत बहुत बधाई, यह एक बहुत बड़ा कदम है,
सुबोध की आवाज़ मन को छू जाती है, बहुत ही अच्छा गीत बन पड़ा है मज़ा आ गया, अब इंतज़ार और भी ऐसी छुपी हुई प्रतिभाओं का जो युग्म से जुड़कर नए हिंद की नयी तकदीर लिखेंगे
अत्यंत हर्ष की बात है कि युग्म दिन-प्रतिदिन समृद्ध होते जा रहा है। उम्मीद है भविष्य में रचनात्मकता के और भी आयाम जुडेंगे।
निखिल जी,
आपने वो कर दीखाया जिसे हम बहुत पहले से चाह रहे थे। हम चाहेंगे कि यह क्रम बना रहे।
सुबोध जी आपका आभार तो मैं पॉडकास्ट पर भी व्यक्त कर चुका हूँ। हिन्द-युग्म परिवार की ओर से आपको पुनः शुभकामनाएँ
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