आँगन में बैठी माँ,
बच्ची के बाल संवार रही थी,
बच्ची अपनी उंगलियों से,
मिटटी पर अपना नाम लिख रही थी,
माँ ने उसकी चुटिया बना दी,
बच्ची ने दर्पण में मुख देखा,
और हंस पड़ी,
माँ ने उसकी पीठ पर थपकी दी,
बच्ची उठी
और चौखट की तरफ़ भागी,
राह में रखी थाली
पाँव से टकरायी,
उलट गयी ।
थाली में रखे मटर के दाने बिखर गए,
"हे मरी "
माँ ने एक मीठी सी गाली दी,
अपनी किस्मत को कोसा,
फ़िर उठकर बिखरे दाने बीनने लगी ।
आज उसकी बच्ची का जन्मदिन है,
आज वह पूरे नौ साल की हो जायेगी,
---- नौ साल , नौ महीने की !
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16 कविताप्रेमियों का कहना है :
kavita sunder hae
aur maa gaali bachho ko buri nazar sae bachanae kae liyae daetee hae !! keep writing
rachna
सजीव जी,
परिपक्व लेखन, नाजुक मनोभावनायें..कविता मन को गुदगुदा कर गुजरती है..
"हे मरी "
माँ ने एक मीठी सी गाली दी,
अपनी किस्मत को कोसा,
फ़िर उठकर बिखरे दाने बीनने लगी ।
आज उसकी बच्ची का जन्मदिन है,
आज वह पूरे नौ साल की हो जायेगी,
---- नौ साल , नौ महीने की !
कुछ न कह कर बहुत कुछ कहने की आपकी कला स्तुत्य है। पिछले दिनों आपकी शैली की जो समालोचना हुई थी उसपर आज अवश्य असहमति जताते हुए कहना चाहूँगा कि बहुत बार पढा-सुना लगने वाले शब्दों के पीछे बहुत कुछ एसा होता है जो सदियों से अनकहा है - सजीव जी आपकी इस कविता में भी वैसे ही प्राण हैं।
*** राजीव रंजन प्रसाद
सजीव जी सुन्दर रचना.
मैं राजीव जी की टिप्पणी से सहमत हूं.. आप न कहते हुये भी उस चीज का बोध करा देते हैं जो आप कहना चाहते हैं... सार्थक रचना के लिये बधाई
सजीव जी बहुत ही प्यारी रचना है। रोजमर्रा की जिन्दगी में दिखता एक रुटीन काम, आपकी कविता में कितना प्यारा लग रहा है,और मां बेटी के रिश्ते को बिन शब्दों के भी उजागर कर रहा है। बधाई
सजीव जी
आप बहुत ही परिपक्व कविता लिखते हैं । आपने एक सहज घटना को सुन्दर रूप में प्रस्तुत किया है ।
माँ और बेटी में बिल्कुल ऐसा ही रिश्ता होता है पर आपने कैसे जाना ? एक सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए
हार्दिक बधाई ।
बहुत ही सुंदर और भावप्रवण कविता है. और जैसा कि राजीव जी ने कहा, बिना कुछ कहे भी आपने बहुत कुछ कह दिया है इस छोटी सी रचना में. बहुत बहुत बधाई इस खूबसूरत कविता के लिये!
संजीव जी,
बढिया लेखन, एक प्यारे से रिश्ते को प्यारे से शब्दों में बांधा, कुशल संयोजन..
ममत्व लिये कविता के लिये बधाई
बहुत ही सुंदर लगी आपकी यह रचना सजीव जी
माँ बेटी के सुंदर रिश्ते को आपकी इस रचना ने जीवंत कर दिया
आपका यह नया प्रयोग मुझे बहुत पसंद आया
बहुत बहुत बधाई आपको इस सुंदर रचना के लिए
आपकी कविता पढ़कर मेरा तो दिन सफल हो गया सजीव जी।
बहुत सुन्दर, बहुत सादी, बहुत प्यारी कविता।
सच कम शब्दों में बहुत कुछ कह गयी आपकी कविता |कम शब्दों मे कैसी बात को कहा जाता है आपसे सीखना होगा मुझे |कविता की अंत की एक पंक्ति सचमुच सब कुछ कह जाती है-
दिल को छू लेने वाली रचना .. बधाई ..
आज उसकी बच्ची का जन्मदिन है,
आज वह पूरे नौ साल की हो जायेगी,
सजीव जी,
नौ साल और नौ महीना का इतना सुंदर और भावविभोर सामंजस्य मैने पहले कभी नहीं देखा था। आपकी लेखनी सच में स्तुत्य है।
बधाई स्वीकारें।
कविता बहुत "सादी " है.....यही इसकी जीवन्तता भी है....वैसे, माँ-बेटी को और भी अनुभवों से गुजारा जा सकता था...मतलब कविता से पूरी तृप्ति नहीं मिली......आपसे और भी मर्म कि उम्मीद है॥
निखिल
सजीव जी,
बहुत सुन्दर चित्र खिंचा है आपने इस कविता में।
बहुत पसंद आई।
वाह आपने बहुत बारिकी से नौ महीने के जीवनकाल को पकड़ा है। बस इतना ही पढ़कर मज़ा आ गया।
सजीव जी,
मैं राजीव जी,
मोहिन्दर जी की टिप्पणी से सहमत हूं..
सार्थक रचना के लिये
सजीव जी...
बधाई
bahut hi pyari kavita.....
padkar aisa lagta hai jaise disya ankho ke smaksh chal raha hai....
sajiv rachna badhai
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