लड़का या लड़की बनना
मेरे हाथ में नहीं था
मगर किरण बेदी जैसी
मै जरूर बन सकती हूँ
कल्पना चावला की तरह
मै भी तो एक स्त्री हूँ
ऐसा अटल विश्वास
मैं जरूर रख सकती हूँ
सानिया की सफलता में
भाग्य से प्रयत्न अधिक है
इस बात की सच्चाई
जरूर परख सकती हूँ
सर छुपाकर सिर्फ रोना
या सर उठाकर चलना
इसमें एक का चुनाव
मैं जरूर कर सकती हूँ
विपदाओं का अंधकार
हो भी तो डर कैसा
विवेक ज्योति लेकर
मैं जरूर चल सकती हूँ
तुषार जोशी, नागपुर
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22 कविताप्रेमियों का कहना है :
विपदाओं का अंधकार
हो भी तो डर कैसा
विवेक ज्योति लेकर
मैं जरूर चल सकती हूँ
सही कहा आपने । बस एक बार निर्णय लेने और दृढ प्रतिज्ञ होने की देर है ।
फिर कोई राह मुश्किल नहीं ।
तुषार जी
बहुत ही अच्छी कविता लिखी है ।आपकी कविता से महिलाओं को अवश्य
विश्वास मिलेगा । आपने नारी को बहुत अच्छा संकेत दिया है । यदि नारी ये समझ
जाए तो फिर उसकी सारी समस्याएँ ही समाप्त हो जाएँगी । बहुत- बहुत बधाई ।
तुषार जी,
कविता का भाव अच्छा है, मगर प्रस्तुति थोड़ी कमजोर हो गयी है, शिल्प में और कसाव होता तो मज़ा आ जाता.......शीर्षक "ज़रुर" आशा की मशाल की तरह है, जो आपकी कविता को प्रासंगिक बनाता है....
निखिल
जो तुम मुझे समझो
जिन्दगी जीत आऊँ मै
तु ही नही समझती मुझको
कैसे जंग जीत पाऊँ मै
सपने मैने भी देखे हैं
पूरा करने का हक दे दे
मै हूँ एक नयी कहानी
लेखनी मेरे ही हाथो मे दे दे
तुषार जी आपको पढ़ते वक्त यह भाव उमड़ पड़े, कितने दिने से कुछ लिखा नही मैने, पर आपकी कविता के कारण मेरे अहसासो को शब्द मिल गये.. बहुत सारा अच्छा वाला धन्यवाद... इसी से साबीत होता है कि आपने बहुत अच्छा लिखा है... बधाई।
तुषार जी,
प्रखर रचना के लिए बधाई।
सानिया की सफलता में
भाग्य से प्रयत्न अधिक है
इस बात की सच्चाई
जरूर परख सकती हूँ
आपकी कविता सकारात्मक सोच को जन्म देने मे सक्षम है।
कविता सुंदर है पर भाव अपरिपक्व लगे,गति भी नही है और कविता अधूरी सी लगी......
अंतिम पद पद कर अचंभा हुआ की अरे कविता ख़त्म..........
इस ही कॉन्सेप्ट पर एक बेहतर कविता लिखी जा सकती थी
शुभकामनाएँ
@अनुराधा जी
आपको विचार अच्छा लगा और आपने टिप्पणी में लिख दिया इस बात के लिये शुक्रिया।
@शोभा जी
विचार आपतक जिस तरह पहुँचे है वो समझकर खुशी हुई। आपने सराहा इस बात के लिये शुक्रिया
@निखिल जी
आपने भाव अच्छा कहा इस बात का शुक्रिया। प्रस्तुति की कमजोरी को सशक्त करने और कसाव प्राप्त करने की तरफ मै अग्रेसर रहूँगा। आप का साथ और मार्गदर्शन बना रहे यही उपलब्धी है।
@गरिमा जी
आपको शब्द मिल गये, क्या बात है, आपको बधाई। आपने अच्छा कहा इसलिये धन्यवाद।
@रविकान्त जी
आपको कविता सकारात्मक लगी और आपने बताया इसलिये शुक्रिया।
@पियुष जी
कविता कहाँ खतम होनी चाहिये इस बात की समस्या तो मुझे हमेशा सताती है। आपकी बात मैं याद रखुंगा। आपकी प्रतिक्रिया को समझने की कोशिश करता रहूँगा।
तुषार जोशी, नागपूर
wah tushar ji, aapne to kamaal kar diya, sab kuch hindi mein bana diya, pehli baar aisa blog dekha hai jisme comments bhi hindi mein hai...hum to aapke kayal ho gaye
भारतीय नारी...जब स्त्री के प्रति बढ़ते अपराधों के बारे में सोचता हूँ तो लगता है कितनी असहाय है नारी जाति..फ़िर दूसरी ही तरफ़ कल्पना चावला और किरण बेदी को देखता हूँ तो सीना चौड़ा हो जाता है..कभी कभी लगता है कि सोच की कमी है..पुरूष और स्त्री दोनों में...मुझे लगता है भारत की स्त्री जाति किरण बेदी, कल्पना चावला, अंजुम चोपड़ा भी बन सकती है और मायवती व जयललिता भी..
(मेरी इस टिप्पणी से किसी को व्यक्तिगत ठेस पहुँचती हो तो मैं माफ़ी चाहता हूँ लेकिन माया और जया के खिलाफ़ इतने भ्रष्टाचार के मुकदमे हैं कि मुझे शर्म आ जाती है..)
चुनाव आपका है..समाज को समझदार होना पड़ेगा..इसी में सब का भला है..पर सबसे पहले नारी जाति को अपने अंदर विश्वास पैदा करना होगा..
कविता अधूरी सी लगी मानता हूँ पर बहुत अच्छी लगी..
धन्यवाद
तुषारजी, आप की रचना प्रेरणादायी है। वह बताती है कि कोई भी फल पाने के लिये प्रयास करना और उन प्रयासों में विश्वास रखना महत्त्वपूर्ण है। इस विचार के माध्यम से यह रचना ना ही बस नारी बल्कि समाज के अन्य घटकों तक भी पहूँच जाती है।
तुषार,
आपके विनम्र उत्तर के लिए धन्यवाद........
निखिल
सुंदर भाव सुंदर विचार ...अच्छा लगा पढ़ना
विपदाओं का अंधकार
हो भी तो डर कैसा
विवेक ज्योति लेकर
मैं जरूर चल सकती हूँ
तुषार जी साकारत्मक भाव की कविता है.. हर जीव चाहे लडका हो या लडकी बहुत ऊंचाई तक जा सकता है.. शुरू में भाव भी रहते है और जोश भी होता है परन्तु जीवन के कोहलू में फ़ंसने के बाद जाने सब क्यों उदासीन से हो जाते हैं, सब संवेदनायें खो जाती है.. सिर्फ़ गिने चुने लोग ही अपने लक्षय पर कायम रह पाते है...उसके बारे में भी कुछ पंक्तियां जोडते तो कविता और सार्थक हो जाती
तुषार जी,
आपके सादगी पूर्ण लेखन का मैं बडा प्रसंशक हूँ। साधारण शब्दों में बेहद असाधारण लिखा है आपनें:-
विपदाओं का अंधकार
हो भी तो डर कैसा
विवेक ज्योति लेकर
मैं जरूर चल सकती हूँ
आपके तस्वीरों के खजानें से एक चित्र इस रचना के लिये भी "शब्द-चित्र" बनता, जैसा कि आपके निजी ब्लॉग पर है तो आनंद द्वगुणित हो जाता।
*** राजीव रंजन प्रसाद
तुषार जी,
रचना पसन्द आयी, भाव अच्छे हैं प्रस्तुतीकरण सहज सुग्राह्य है
सुन्दर
बधाई
सस्नेह
गौरव शुक्ल
नारी मनोभावों को पुरुष इतने अच्छी तरह अभिव्यक्त कर सके यह स्वयं में प्रसंशा का विशय है। आपकी कविता मुझे बहुत अच्छी लगी।
aapne naari ke bhaavo ko khoob prastut kiya hai....kavita padhne me bahut aachi lagi....magar jab aapka naam padha neeche to laga ki aap to isse bhi aacha likh sakte hain aur likhte hain.....
सुंदर और सकारात्मक रचना के लिये बधाई.
तुषार जी,
आपकी खास बात यह रही है कि आपकी कविताएँ बहुत ही सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ पाठकों के समक्ष आती हैं। यह कविता भी उसी की एक कड़ी है। लेकिन हाँ, विस्तार की कमी है। आपको इस ओर ध्यान देना चाहिए।
तुषार जी , कविता बहुत अच्छी है । बधाई ।
विपदाओं का अंधकार
हो भी तो डर कैसा
विवेक ज्योति लेकर
मैं जरूर चल सकती हूँ
संदेशप्रद कविता है। सच हीं कहा है आपने कि नारी अगर अपने विवेक का उपयोग करे तो वो क्या नहीं कर सकती है। हाथ पर हाथ धरे बैठे रहना या फिर भाग्य पर रोना , खुद को कमजोर मानने का हीं दुष्फल है। विश्वास और प्रयत्न से वो कहीं भी पहुँच सकती है। एक मशाल जलाने के लिए बधाई स्वीकारें।
hi tushar,
har ek aurat , ek shalaka hai,
har ek aurat ek jyoti hai
kisi ka sath ho na ho,
wo apneap me ek poorna vyakti hai........
u understand wemen very well. its amazing
manju
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