तुम मुस्कुराये, जो ख्वाबों में आये
दिल के नासूर सारे, हरे हो गये..
याद की टीस से, आँख फिर नम हुई
हम जिया के जले, अधमरे हो गये।
तुमको जीते रहे, तुमको पीते रहे
तुम मेरी ज़िन्दगी हो शराबी नदी
मोड़ वो है कि अब रेत ही रेत है
और दरिया के सारे निशाँ खो गये।
एक जहर, दोपहर, पी के हम सो गये
सोच कर तेरे बिन क्या से क्या हो गये
सांस चलती रही, शान से मर गये
हम चले तो गये, तुम चले जो गये।
अपनी ही लाश ढोते हैं तो क्या करें
तनहा रातों में रोते हैं तो क्या करें
चैन से, नींद से, दिल से मजबूर हैं
मन की ही मान कर मनचले हो गये।
मीत कहते हो पर कितने रीते हो तुम
हार कह कर हमेशा ही जीते हो तुम
हम तो कहते हैं "राजीव" वो बात भी
जिससे हम अनकही दास्ताँ हो गये।
*** राजीव रंजन प्रसाद
10.08.2006
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18 कविताप्रेमियों का कहना है :
तुम मुस्कुराये, जो ख्वाबों में आये
दिल के नासूर सारे, हरे हो गये..
एक जहर, दोपहर, पी के हम सो गये
तुमको जीते रहे, तुमको पीते रहे
चैन से, नींद से, दिल से मजबूर हैं
मन की ही मान कर मनचले हो गये।
मीत कहते हो पर कितने रीते हो तुम
राजीव जी,
प्रयोगों में और प्रयोग में अत्यधिक सफ़ल होने में आपका कोई सानी नहीं । बहुत अच्छा गीत है । और ऊपर की पंक्तियाँ विशेष अच्छी लगीं । लेकिन रंग जमा तो इस पंक्ति से
हम तो कहते हैं "राजीव" वो बात भी
जिससे हम अनकही दास्ताँ हो गये।
तुम मुस्कुराये, जो ख्वाबों में आये
दिल के नासूर सारे, हरे हो गये..
याद की टीस से, आँख फिर नम हुई
हम जिया के जले, अधमरे हो गये।
एक जहर, दोपहर, पी के हम सो गये
सोच कर तेरे बिन क्या से क्या हो गये
मन की ही मान कर मनचले हो गये।
मीत कहते हो पर कितने रीते हो तुम
हार कह कर हमेशा ही जीते हो तुम
हम तो कहते हैं "राजीव" वो बात भी
जिससे हम अनकही दास्ताँ हो गये।
Excellent lines....especially last four lines......naye tarike ka geet padhne ko mila....aap to wo daastan hain jo har kisi ki zabaan par hai aajkal :)
Luv
Anu
राजीव ज़ी हमेशा की तरह बहुत प्यारी लगी यह रचना आपकी ...पर कुछ अलग :)
एक जहर, दोपहर, पी के हम सो गये
सोच कर तेरे बिन क्या से क्या हो गये
बहुत अच्छा...
मीत कहते हो पर कितने रीते हो तुम
हार कह कर हमेशा ही जीते हो तुम.....
सुंदर भाव और दिल को छूती है यह पंक्तियाँ आपकी ...
राजीव जी,
आपकी शैली से बिल्कुल अलग, आपकी कविताओं का बिल्कुल नया रूप
काव्य की किसी भी विधा पर आपका सम्पूर्ण अधिकार है, सरल शब्द और गहरे भाव के साथ कविता हृदय में गहरे उतरती जाती है
"तुमको जीते रहे, तुमको पीते रहे
तुम मेरी ज़िन्दगी हो शराबी नदी"
"एक जहर, दोपहर, पी के हम सो गये"
"सांस चलती रही, शान से मर गये"
"मीत कहते हो पर कितने रीते हो तुम
हार कह कर हमेशा ही जीते हो तुम
हम तो कहते हैं "राजीव" वो बात भी
जिससे हम अनकही दास्ताँ हो गये।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है
बधाई
सस्नेह
गौरव शुक्ल
अपनी ही लाश ढोते हैं तो क्या करें
तनहा रातों में रोते हैं तो क्या करें
चैन से, नींद से, दिल से मजबूर हैं
मन की ही मान कर मनचले हो गये।
बहुत खूब
राजीव जी
कविता अच्छी लिखी है किन्तु आपसे अब उम्मीदें बढ़ गई हैं इसलिए
वह आनन्द नहीं आया जो आना चाहिए था । वैसे तो यह विरह गीत
अच्छा है किन्तु इसमें दर्द कहीं दिल को छूता प्रतीत नहीं होता । सस्नेह
राजीव जी,
मैं शोभा जी की बात से सहमत हूँ.. अपेक्षायें बहुत ज्यादा हैं आपसे...पता नहीं क्यों पर दर्द उभर कर नहीं आया..
बीच में धुन बिगड़ गई..
"तुमको जीते रहे, तुमको पीते रहे
तुम मेरी ज़िन्दगी हो शराबी नदी"
जो पंक्ति सबसे ज्यादा पसंद आई..
"मन की ही मान कर मनचले हो गये"
धन्यवाद
तुम मुस्कुराये, जो ख्वाबों में आये
दिल के नासूर सारे, हरे हो गये..
पंक्तियां बहुत ही सुन्दर हैं परन्तु वॊ आन्नद नहीं आया जिसकी आपकी कविताऒं में तलाश रहती है। शायद नयेपन के चक्कर में मूल आनंद के साथ समझौता कर लिया गया।
हां अन्त में यह पंक्ति जरूर रंग जमा गई।
हम तो कहते हैं "राजीव" वो बात भी
जिससे हम अनकही दास्ताँ हो गये।
अच्छा लिखा है, राजीव, भाई।
विरह की सशक्त प्रस्तुति है।
तुम मुस्कुराये, जो ख्वाबों में आये
दिल के नासूर सारे, हरे हो गये..
याद की टीस से, आँख फिर नम हुई
हम जिया के जले, अधमरे हो गये।
पन्क्तियाँ सुन्दर बन पड़ी हैं।
वाह! बहुत खूब !
घुघूती बासूती
राजीव जी,
सर्वप्रथम देरी से हाजरी लगाने के लिये क्षमाप्रार्थी हूं. सुन्दर रचनाओं की कडी में एक और सुन्दर रचना है मन के असंख्य भावों को समेटे हुये..
एक गजल याद आ गयी आप की रचना पढ कर..
आप आये तो ख्याले-दिले-नाशाद आया
जाने कितने भूले हुये जख्मों का पता याद आया
दिल में फ़िर जल उठे बुझती हुयी यादों के दिये
कितने बैचेन थे हम, आप को पाने के लिये
यूं तो कुछ कम नही, आप ने जो एहसान किये
पर जो मांगे हैं नफ़ाया... वो सिला याद आया... आप आये
राजीव जी!
टिप्पणी में देरी के लिये क्षमाप्रार्थी हूँ. हर बार की तरह इस बार भी एक बहुत सुंदर रचना!
अपनी ही लाश ढोते हैं तो क्या करें
तनहा रातों में रोते हैं तो क्या करें
चैन से, नींद से, दिल से मजबूर हैं
मन की ही मान कर मनचले हो गये।
इस खूबसूरत प्रस्तुति के लिये बधाई स्वीकार करें.
काबिल-ए-तारीफ़ ग़ज़ल है...........
आप अपना दर्द मेरे दिल मे उतर पा रहे है आपकी मंज़िल को दिखता है...........
तुमको जीते रहे, तुमको पीते रहे
तुम मेरी ज़िन्दगी हो शराबी नदी
मोड़ वो है कि अब रेत ही रेत है
और दरिया के सारे निशाँ खो गये।
मुबारकन.........
ऐसी ही रचनाओ की उम्मीद है
बहुत सुन्दर गीत है राजीव जी, और पहली चार पंक्तियाँ तो बहुत अद्भुत हैं।
तुम मुस्कुराये, जो ख्वाबों में आये
दिल के नासूर सारे, हरे हो गये..
याद की टीस से, आँख फिर नम हुई
हम जिया के जले, अधमरे हो गये।
आपमें वो बात है कि पीतल को छुओ तो वो भी सोना हो जाए। किसी भी तरह का, किसी भी विधा में आप लिखें, अद्वितीय ही होता है।
तुमको जीते रहे, तुमको पीते रहे
तुम मेरी ज़िन्दगी हो शराबी नदी
ये शराबी नदी का बिम्ब पहली बार देखा और बहुत अच्छा भी लगा।
बहुत बधाई।
"हम जिया के जले, अधमरे हो गये।"
"तुम मेरी ज़िन्दगी हो शराबी नदी
मोड़ वो है कि अब रेत ही रेत है
"और दरिया के सारे निशाँ खो गये।"
"हम चले तो गये, तुम चले जो गये।"
"मन की ही मान कर मनचले हो गये।"
"मीत कहते हो पर कितने रीते हो तुम
हार कह कर हमेशा ही जीते हो तुम
हम तो कहते हैं "राजीव" वो बात भी
जिससे हम अनकही दास्ताँ हो गये।"
हृदय हरा हो गया आपकी हरी-भरी रचना पढकर। मित्रों ने सच हीं कहा है कि आप हर विधा में पारंगत हैं। दिल की बात को जबाँ देना कोई आपसे सीखे।
बधाई स्वीकारें।
खूबसूरत प्रस्तुति है। बहुत नये प्रकार के उपमान हैं।
-रचना सागर
मैंने इस गीत को बहुत ग़ौर से पढ़ा तो पाया कि यदि इसे मंच से एक-एक शब्द के लिए मंचीय कवियों की तरह भूमिका गढ़कर पढ़े जाय तो श्रोता वाह-वाह कर उठेंगे। स्टेज़ तक आकर आपको गले से लगा लेंगे। सभी उपमाएँ अनूठी हैं। आप अनंत काव्य-क्षमताओं वाले कवि हैं। हिन्द-युग्म का सौभाग्य है कि आप इसके वाहक हैं।
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