यह जग है एक झूठा छलावा
हर पल प्यार का लगता है भुलावा
भटक रही है प्यास न जाने कहाँ
मिलती कोई राह तो यह दिल मंज़िल पा लेता
नयनों का हर ख्वाब है यहाँ टूटा
रंग है पर , कैनवास लगता है झूठा
मिलते यदि सच्चे प्यार के रंग मुझको
तो यह दिल रंग भरे ख़्वाब सजा लेता
मिलती कोई राह तो यह दिल मंज़िल पा लेता
लफ्ज़ जैसे धरे हैं रूप गंधारी का
अर्थ देते हैं ताप एक चिंगारी सा
मौन है एक गहरा सा समुंदर
कुछ पल तो दिल सुख के गीत रच लेता
मिलती कोई राह तो यह दिल मंज़िल पा लेता
एक होड़ हर तरफ़ मची है बढ़ते शोर में
गुम है संस्कृति अब विचारो की दौड़ में
फिर से पैदा कोई कृष्ण होता यहाँ पर
तो दिल मेरा गीता को आत्मसात् कर लेता
मिलती कोई राह तो यह दिल मंज़िल पा लेता
सजे घरों में अब नाचता नहीं मोर
मौसम बदवहास , ऋतु भी हुई मुँह-ज़ोर
खोए सब वो पनघट के गीत सुहाने
कोई सदा अब यहाँ प्यार की तो देता
मिलती कोई राह तो यह दिल मंज़िल पा लेता
फूल है गुम सुम हवा में है उदासी
हर शय है नक़ली और बनावटी सी
हर ख़ुशी यहाँ लगती अब विरहन सी
कोई तो सुर मिलन की रागनी में डूबोता
मिलती कोई राह तो यह दिल मंज़िल पा लेता !!
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35 कविताप्रेमियों का कहना है :
सुन्दर रचना के लिए बधाई।मनोभावों की सफ़ल अभिव्यक्ति परिलक्षित होति है इस्मे।पर कही कही पर कुछ खटकता है जैसे‘झूठा छलावा‘ क्योन्कि छलावा तो आवश्यकरूप से झूठा ही होता है।ये पंक्तियाँ पसंद आयीं-
एक होड़ हर तरफ़ मची है बढ़ते शोर में
गुम है संस्कृति अब विचारो की दौड में
फिर से पैदा कोई कृष्ण होता यहाँ पर
तो दिल मेरा गीता को आत्मसत् कर लेता
this is mot any more exception to other of u creations
ye b bilkul jabardast hai
jindgi k har phelu ko aap ne bilkul sahi taike se parkat kiyaa hai
aur is achnaa ki har pankti khub hai...... koi jawaab nahi
10x dat
i m lucky 1 to read it
रंजू जी
बहुत सुन्दर कॉंसेप्ट है।
"मिलती कोई राह तो यह दिल मंज़िल पा लेता"
कुछ पद बहुत सुन्दर बन पडे हैं जैसे:
भटक रही है प्यास ना जाने कहाँ
रंग है पर , कैनवास लगता है झूठा
लफ्ज़ जैसे धरे हैं रूप गंधारी का
मौन है एक गहरा सा समुंदर
हर ख़ुशी यहाँ लगती अब विरहन सी
बहुत खूब।
*** राजीव रंजन प्रसाद
Bahot Khub..
फिर से पैदा कोई कृष्ण होता यहाँ पर
तो दिल मेरा गीता को आत्मसत् कर लेता
pata nahin iss jamane mein krishnaji bhi geeta keh pate ya nahin?
esa laga ye mere liye likha ho
bus itna hi kehna tha
kaafi acha laga bhut kuch milti jult hai ye kavita mujse
i love this poem
रंजू जी..इतने सुन्दर भाव और विचारों के लिये बहुत बहुत बधाई..
रचना बहुत कुछ कह गई है...
एक होड़ हर तरफ़ मची है बढ़ते शोर में
गुम है संस्कृति अब विचारो की दौड में
फिर से पैदा कोई कृष्ण होता यहाँ पर
तो दिल मेरा गीता को आत्मसत् कर लेता
सजे घरों में अब नाचता नही मोर
मौसम बदवहास , ऋतु भी हुई मुहँ ज़ोर
खोए सब वो पनघट के गीत सुहाने
कोई सदा अब यहाँ प्यार की तो देता.....
मुझे इन पंक्तियों ने बहुत प्रभावित किया है..
बधाई स्वीकार करें..और ऐसी रचना से परिचय करवाने के लिये मेरा ध्न्यबाद स्वीकार करें...
बहुत बहुत आभार...
बढ़िया रचना रंजू जी!!
नयनों का हर ख्वाब है यहाँ टूटा
रंग है पर , कैनवास लगता है झूठा
मिलते यदि सच्चे प्यार के रंग मुझको
तो यह दिल रंग भरे ख्वाब सज़ा लेता
बहुत खूब
फूल है गुम सुम हवा में है उदासी
हर शय है नक़ली और बनावटी सी
सही कहा आपने बदलते परिवेश और जिन्दगी की रफ्तार में सब कुछ बदल गया है।
एक खोखलापन और औपचारिकता हर जगह महसूस होती है ।
soory for comment in hinglish because in my system hindi font not downloded so i m written english
i m very eger for reading all those poets kavita , i m not so big samalochak but kuch kavita ke bare main jaror likna chahunga
ranju u r wirtten kavita
kavita jo dil ko jakhjor deti hai
aur es jindagi ke bhagdaur main ek pal ke liye thararaw aa jata hai esi tarah likti raho
in
orkut
searp
i
ask u ur
detail
aur
truth
experence
may me
sad or good
if
u have then jaroor likyega
i m traying to written
a novel
i m searching
a character for that
i think
ur best character for that because
u r written sad kavitayain
jo dil se nikalti hai
if u r agree
then i will
attach ur name if u wanted
otherwise i will searching
other i m also searching a
male character who was searching job sience 10 year
for my nobvel
if anyone have experence
i will cosider it
Hallooooooooooo ranjana ji, Real mein mujhe aapki kavita bahut pasand ayi, Plz aapke pas koi DARD Bhare kavita ho to plz mujhe uska link send kare,
Thanks
अच्छे भाव
कवि कुलवंत
रंजना जी..
आपके प्रेमगीतों का कोई जवाब नहीं, बहुत ही उम्दा हैं।बहुत खूब -
नयनों का हर ख्वाब है यहाँ टूटा
रंग है पर , कैनवास लगता है झूठा
मिलते यदि सच्चे प्यार के रंग मुझको
तो यह दिल रंग भरे ख़्वाब सजा लेता
- रचना सागर
Ranjana ji ,
aapki ye rachna dil tak pahunchne ka hunar rakhti hai.
ye panktiya .........
behtreen hai..........
एक होड़ हर तरफ़ मची है बढ़ते शोर में
गुम है संस्कृति अब विचारो की दौड़ में
फिर से पैदा कोई कृष्ण होता यहाँ पर
तो दिल मेरा गीता को आत्मसात् कर लेता
मिलती कोई राह तो यह दिल मंज़िल पा लेता
aapke kalam ko salam ...........
vijendra
अच्छे विचार हैं आपके, लेकिन रचना में कुछ अधूरापन सा लगा। आपने शायद गीत लिखना चाहा है, लेकिन लय और तुक की कई जगह कमी है।
इसे एक बार फिर गढ़िएगा।
bahut khoub
very good
रंजना जी
इस कविता में आपके दिल के भाव उभर कर आए है ।
आपके दिल की उदासी भी झाँक रही है ।
शुभकामनाओं सहित
लफ्ज़ जैसे धरे हैं रूप गंधारी का
अर्थ देते हैं ताप एक चिंगारी सा
मौन है एक गहरा सा समुंदर
कुछ पल तो दिल सुख के गीत रच लेता
फिर से पैदा कोई कृष्ण होता यहाँ पर
तो दिल मेरा गीता को आत्मसात् कर लेता
हर ख़ुशी यहाँ लगती अब विरहन सी
कोई तो सुर मिलन की रागनी में डूबोता
These lines are excellent...lurking wishes in ur heart are easily visible in these lines....you are master of love poems.....Keep writing....Bst Wishes
Luv
Anu
wakai lekhni ki takat yaha par jhalak rahi hai. Aapke lekhani ke swabhavik gun yaha parilakshit ho rahe hai. aap apne is karya mai lagi rahe aur mai janta hu ki ek din aao shikhar par pahunchengi
bahut hi sunder rachana likhi hai app na is ki har pankti dil ko chuti hai isi parkar hume acchi acchi rachana bejhate rahe jo dil ko chu jaye
हर किसी को तलाश है मंज़िल की,
मुझे तो रास्तों से ही धोखा मिला.
अब हमसफ़र पर भी यकीं नही,
ज़ीने का ऐसा मुझे सिला मिला .
aap ki rachna se prerit meri kuchh lines.
एक अच्छे भावों वाली कवित..........जो अच्छे एवं नवीन बिंबो का प्रयोग है
परंतु शब्द चयन और कला पक्ष और बलीष्ट और पुश्ट हो सकता था............
कुछ पंक्तियाँ अच्छी लगी
लफ्ज़ जैसे धरे हैं रूप गंधारी का
अर्थ देते हैं ताप एक चिंगारी सा
और
रंग है पर , कैनवास लगता है झूठा
एवं
सजे घरों में अब नाचता नहीं मोर
मौसम बदवहास , ऋतु भी हुई मुँह-ज़ोर
अभी के लिए बधाइयाँ और आगे के लिए शुभकामनाएँ
रंजू जी
रचना
सुन्दर है
मनोभाव
सुन्दर है
शुभकामनाएँ
बहुत ही सुंदर मनोभाव से प्रेम की तलाश को दिखाया है आपने…।
हमेशा की तरह काफी अच्छा…।
रंजना जी,
अच्छी कविता है,सुन्दर भाव प्रस्तुत किया है । बधाई
Hi Ranju
Bahaut hi sunder rachna hai ye aur khaas karke ye badhiya lines,
mujhe sabse jyda acchi lagi
एक होड़ हर तरफ़ मची है बढ़ते शोर में
गुम है संस्कृति अब विचारो की दौड़ में
फिर से पैदा कोई कृष्ण होता यहाँ पर
तो दिल मेरा गीता को आत्मसात् कर लेता
Apna khayal rakhhe, reply kare
Prakash Solanki.
सजे घरों में अब नाचता नहीं मोर
मौसम बदवहास , ऋतु भी हुई मुँह-ज़ोर
खोए सब वो पनघट के गीत सुहाने
कोई सदा अब यहाँ प्यार की तो देता
bahut khoob likha hai..ranju ji. bahut hi badiyaa.
रंजना जी,
अच्छे भाव हैं, नयी शैली में लिखने का प्रयास किया है आपने
बिम्ब अच्छे हैं, जैसे -
"लफ्ज़ जैसे धरे हैं रूप गंधारी का
अर्थ देते हैं ताप एक चिंगारी सा"
"फिर से पैदा कोई कृष्ण होता यहाँ पर
तो दिल मेरा गीता को आत्मसात् कर लेता"
"हर ख़ुशी यहाँ लगती अब विरहन सी"
बहुत सुन्दर
हार्दिक बधाई
सस्नेह
गौरव शुक्ल
रंजू जी,
रचना के भाव बहुत सुन्दर हैं इससे कतई इन्कार नही. थोडी से छेनी और चलाईये ना.. शिल्प की खातिर.
सिर्फ़ वाह से काम चलाना है तो ठीक है
वाह, वाह, वाह के लिये विवश कीजिये
रंजना जी!
एक और सुंदर भावपूर्ण रचना के लिये बधाई. कुछ नये बिम्बों का बहुत सुंदर प्रयोग किया है आपने. मगर फिर भी कुछ कमी है. लयावरोध कहीं कहीं खटकता है. शिल्प पर कुछ और मेहनत इसे बेहतरीन बना सकती थी.
वाह रंजना जी ! यह पंक्तियाँ विशेष रूप से पसंद आईं ....
"लफ्ज़ जैसे धरे हैं रूप गंधारी का
अर्थ देते हैं ताप एक चिंगारी सा
मौन है एक गहरा सा समुंदर
कुछ पल तो दिल सुख के गीत रच लेता"
एक सार्थक रचना है आपकी |
वैसे मोहिंदर जी से मैं भी सहमत हूँ कहीं कुछ ख़ालीपन सा महसूस हो रहा है| शायद इस विषय पर इससे भी अच्छा शिल्प रच कर कविता को और परिशकृत किया जा सकता था ..
ख़ैर अभी भी आपकी कविता मोहक है और पढ़ने मैं आन्नद भी आता है
नयनों का हर ख्वाब है यहाँ टूटा
रंग है पर , कैनवास लगता है झूठा
लफ्ज़ जैसे धरे हैं रूप गंधारी का
अर्थ देते हैं ताप एक चिंगारी सा
मौन है एक गहरा सा समुंदर
फिर से पैदा कोई कृष्ण होता यहाँ पर
तो दिल मेरा गीता को आत्मसात् कर लेता
सजे घरों में अब नाचता नहीं मोर
मौसम बदवहास , ऋतु भी हुई मुँह-ज़ोर
कोई तो सुर मिलन की रागनी में डूबोता
बहुत खूब रंजू जी। दिल की बात दिल से निकली है। प्रेम की कविता में इतनी रम जाती हैं आप कि लगता हीं नहीं कि दूसरे किसी की बात हो रही है, सब अपना-सा लगता है।
बस रंजू जी औरों की तरह मैं भी आपसे कहना चाहता हूँ कि शिल्प थोड़ा और कसिए।
उदाहरणार्थ
मिलती कोई राह तो यह दिल मंज़िल पा लेता
यह पंक्ति ज्यादा लंबी हो गई है। बाकी तो आप समझ हीं रही हैं।
bahut khub ranju ji.....
aap like aur pasand na aye...
aisa ho sakta hai...
again thankx..
सजे घरों में अब नाचता नहीं मोर
मौसम बदवहास , ऋतु भी हुई मुँह-ज़ोर
खोए सब वो पनघट के गीत सुहाने
कोई सदा अब यहाँ प्यार की तो देता
bahut achee hai kavita tumhere ekalam main sada bhavuk prem ke drashan hote hain
Anil
रंजना जी,
बहुत संदर कविता है। बधाई
ranju ji bahut sundar rachna.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)