जीवन खुली किताब,
पर पढ़ना नहीं है आसान।
ऊँचे-नीचे पल आते है,
कभी-कभी ये खल जाते है।।
बहुत समझना चाहा इसको,
किन्तु समझ न पाया।
यह किताब कितनी कठिन है,
यह क्यूँ न समझ पाया।।
रटना चाहा इस किताब को,
पर याद नहीं हो पाती है।
लिख ‘’पाती’’ उस लेखक को,
इसका अर्थ समझना बाकी।।
कठिन घड़ी है जीवन की,
करता हूँ मैं इससे ‘’आशा’’
चाहा की सब कुछ मिल जाये
इस जीवन में ऐसा न हो पाया।।
पर पढ़ना नहीं है आसान।
ऊँचे-नीचे पल आते है,
कभी-कभी ये खल जाते है।।
बहुत समझना चाहा इसको,
किन्तु समझ न पाया।
यह किताब कितनी कठिन है,
यह क्यूँ न समझ पाया।।
रटना चाहा इस किताब को,
पर याद नहीं हो पाती है।
लिख ‘’पाती’’ उस लेखक को,
इसका अर्थ समझना बाकी।।
कठिन घड़ी है जीवन की,
करता हूँ मैं इससे ‘’आशा’’
चाहा की सब कुछ मिल जाये
इस जीवन में ऐसा न हो पाया।।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
18 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत समझना चाहा इसकों,
किन्तु समझ न पाया।
यह किताब कितनी कठिन है,
यह क्यूँ न समझ पाया।।
सचमुच इस ज़िंदगी की किताब को समझना मुश्किल है ..अच्छे भाव लगे इस रचना के..शुभकामनाएँ
महाशक्ति जी..
भाव बहुत अच्छे है। सचमुच जीवन् की खुली किताब जाने किस प्रागैतिहासिक भाषा में लिखी होती है।
शिल्प की दृश्टि से रचना कमजोर है।
*** राजीव रंजन प्रसाद
"लिख ‘’पाती’’ उस लेखक को,
इसका अर्थ समझना बाकी।। "
सच में जीवन की किताब का अर्थ शायद उसका लेखक ही बता सकता है ।
राजीव जी की बात से सहमत हूँ ।
बहुत दिनों बाद हिन्द-युग्म पर कविता डाली है आपने, ऎसा मुझे भान हो रहा है। भाव सच में अच्छे हैं। लेकिन शिल्प पर आपको और मेहनत करनी होगी।शुरू के दो छंदों में कसावट है, लेकिन आगे इसकी नितांत कमी महसूस हो रही है। बस थोड़ा-सा जोर लगा दें तो बेजोड हो जाएगी रचना।
कठिन घड़ी है जीवन की,
करता हूँ मै इससे ‘’आशा’’
चाहा की सब कुछ मिल जाये
इस जीवन में ऐसा न हो पाया।।
उम्मीपर दुनिया कायम है । अच्छी कविता है ।
महाशक्ति जी,
अच्छी कविता के लिए बधाई।
जीवन खुली किताब,
पर पढ़ना नहीं है आसान।
ऊँचे-नीचे पल आते है,
कभी-कभी ये खल जाते है।।
अच्छा द्वंद्व उपस्थित किया है आपने।
अच्छी कविता है। और सच्चाई बयां की है आपने।
-रचना सागर
आपके पास भाव हैं। शिल्प पर और मेहनत कीजिए।
जीवन एक खुली किताब- कविता अच्छी लगी ।
जीवन सच में एक किताब है पर इसे समझना और इसके
एक-एक शब्द की व्याख्या करना बहुत कठिन ।
बिल्कुल ठीक कहा है । बधाई
jeevan ek khuli kitaab hai jiske palte hue panne dhundla jaate hain aur naye panne bilkul kore nazar aate hain....pata nahi kab kaise bas kuch likhta chala jaata hai...
Acchi theme hai kavita ki...
एक अच्छे भावों वाली कविता......................
परंतु शब्द चयन और कला पक्ष और बलीष्ट और पुश्ट हो सकता था............
तब भी एक हल्की फुलकी रचना जिसने दिल ख़ुश कर दिया............
अभी के लिए बधाइयाँ और आगे के लिए शुभकामनाएँ
आप सभी का धन्यवाद,
आगें यथा सम्भव सुधार करने का प्रयास करूँगा।
जीवन का व्याकरण
जीवन का व्याकरण समझना हुआ कठिन
तो जीवन को संज्ञाओं की उपमायें देते रहे,
उपमाओं को अलंकारों से सजाते रहे।
कभी स्वप्न के नीड़ अनल पर बनाते रहे!
कि नृत हो कर मृत ना हो जायें कहीं,
कविता को छंदों में ढ़ालते रहे।
और छंद ...
छंद अपनी अभिव्यक्तियों पर शर्माते रहे।
अनुभूतियाँ ..
अनुभूतियाँ .. भाव ढूँढती रह गयीं....,
भावों को ..शब्द कभी मिले नहीं......,
कहीं शब्द .. को अर्थं की तलाश रही....,
तो अर्थ कभी संदर्भों में खो गये...,.
जीवन का व्याकरण समझना हुआ कठिन
तो कविता को छंदों में ढ़ालते रहे।
भाव अच्छे और गंभीर हैं
प्रमेन्द्र जी!
सबसे पहले आपके पोस्ट करते ही बता देने के बावज़ूद अपनी व्यस्तता के चलते इतनी देर से टिप्पणी करने के लिये माफ़ी चाहूँगा. कविता जीवन की जिस किताब का वर्णन करती है, उसे समझना सचमुच बहुत कठिन या लगभग असंभव है. यदि हम इस किताब की लिपि को समझ पाते तो शायद जीवन बहुत आसान हो जाता. पर क्या ऐसा नहीं लगता कि इससे हम जीवन के अद्भुत रोमांच और वैचित्र्य से वंचित रह जाते?
लगता है आपने यह कविता बाल्यकाल में लिखी थी, क्योंकि प्रश्न बहुत ही निर्दोष हैं। शिल्प पर ध्यान दें। तुक में लिखें तो तुक प्रधान हो, अतुक लिखें तो भी प्रवाह पर ध्यान हो।
उम्दा भाव हैं, प्रमेन्द्र. बधाई.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)