फटाफट (25 नई पोस्ट):

Thursday, August 30, 2007

मिटटी


मेरे भीतर की मिटटी सूखी थी,
बरसों की सूखी ,
अब्र का कोई भी टुकड़ा,
उस पर नहीं बरसा था,
बिवाइयाँ फट गयी थी,
एक दिन - यूँ ही कुरेदा तो,
कुछ ख़्वाब मिले,
अश्कों से उन्हें गीला किया,
लोई बना कर उनकी,
वक़्त के चाक पर धर दी,
उँगलियों से तजुर्बों की,
आड़े-तिरछे रूप दे डाले,
ख्वाबों को शक्लें दे दी,
नाम दे डाले।
सूखी मिट्टी कुरेदता रहा मैं,
जाने क्या-क्या जोड़ता रहा मैं ।

------सजीव सारथी ---------

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

21 कविताप्रेमियों का कहना है :

RAVI KANT का कहना है कि -

सजीव जी,
बहुत अच्छा लिखा है।

मेरे भीतर की मिटटी सूखी थी,
बरसों की सूखी ,
अब्र का कोई भी टुकडा,
उस पर नही बरसा था,

बहुत खूब!

बिवाइयां फट गयी थी,
एक दिन - यूं ही कुरेदा तो,
कुछ ख़्वाब मिले,

सुन्दर रचना के लिए बधाई।

Yatish Jain का कहना है कि -

"सुखी मिटटी कुरेदता रहा मैं,
जाने क्या क्या जोड़ता रहा मैं । "
Bahut badiya

Manish Kumar का कहना है कि -

जिंदगी के अरमानों को सूखी फटी मिट्टी में तब्दील होते देखने के भाव को अच्छी तरह उकेरा है तुमने सजीव.
बिवाइयां फट गयी थी,
एक दिन - यूं ही कुरेदा तो,
कुछ ख़्वाब मिले,

बहुत खूब!

पर कविता का अंत प्रभावशाली नहीं बन पड़ा है। लिखते रहें।

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

सजीव जी,
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने।

एक दिन - यूं ही कुरेदा तो,
कुछ ख़्वाब मिले,
अश्कों से उन्हें गीला किया,
लोई बना कर उनकी,
वक़्त के चाक पर धर दी,
उँगलियों से तजुर्बों की,
आड़े-तिरछे रुप दे डाले,
ख्वाबों को शक्लें दे दी,
नाम दे डाले।

सुखी मिटटी कुरेदता रहा मैं,
जाने क्या क्या जोड़ता रहा मैं।

बिम्ब इतना सजीव है कि हर व्यक्ति अपने जीवन से इसे जोड सकता है।

*** राजीव रंजन प्रसाद

अभिषेक सागर का कहना है कि -

सूखी मिट्टी कुरेदता रहा मैं,
जाने क्या-क्या जोड़ता रहा मैं ।

शून्य में कविता को छोड कर सोचने के बहुत से आयाम आपने पाठको को दिये हैं। कविता प्रसंशा की पात्र है।

SahityaShilpi का कहना है कि -

सजीव जी!
बहुत ही सुंदर कविता है. मिट्टी का बिम्ब बहुत सुंदर और प्रभावी बन पड़ा है. बधाई!

शोभा का कहना है कि -

सजीव जी
बहुत ही भावपूर्ण रचना है । आपके अन्दर की मिट्टी कभी भी सूखने ना पाए यही
कामना है । सस्नेह

गौरव सोलंकी का कहना है कि -

सजीव जी,
ह्र्दय को स्पर्श करने वाली इस कविता की रचना के लिए बधाई स्वीकारें।
एक दिन - यूँ ही कुरेदा तो,
कुछ ख़्वाब मिले,
अश्कों से उन्हें गीला किया,
लोई बना कर उनकी,
वक़्त के चाक पर धर दी,
उँगलियों से तजुर्बों की,
आड़े-तिरछे रूप दे डाले,
ख्वाबों को शक्लें दे दी,
नाम दे डाले।
सूखी मिट्टी कुरेदता रहा मैं,
जाने क्या-क्या जोड़ता रहा मैं ।

वाह! एक सम्पूर्ण कविता की सब बातें हैं इसमें।

रजनी भार्गव का कहना है कि -

अब्र का कोई भी टुकड़ा,
उस पर नहीं बरसा था,
बिवाइयाँ फट गयी थी,
एक दिन - यूँ ही कुरेदा तो,
कुछ ख़्वाब मिले,
बहुत अच्छा चित्रण है.

रंजू भाटिया का कहना है कि -

सूखी मिट्टी कुरेदता रहा मैं,
जाने क्या-क्या जोड़ता रहा मैं ।

सजीव जी बहुत खूब बधाई।

Anita kumar का कहना है कि -

सजीव जी
बहुत सुन्दर लिखा है॥थोड़े ही शब्दों में बहुत कुछ कहा है। वो ख्वाब जिन्हें आपने नाम दे डाले, भगवान से प्राथना है कि जल्दी पूरे हों ।

गिरिराज जोशी का कहना है कि -

बहुत खूब!

संजीवजी,

एक बहुत ही खूबसूरत अतुकांत! लय, भाव, शब्द... सभी उत्तम!

बहुत-बहुत बधाई!!!

Avanish Gautam का कहना है कि -

अच्छी कविता...लेकिन पढ्ते वक़्त गुलज़ार याद आते है...हो सके तो दूसरे कवियो के प्रभावो से बचिये..
.


शुभकामनाओ सहित

अवनीश गौतम

विश्व दीपक का कहना है कि -

बहुत सुंदर रचना है सजीव जी। मिट्टी का बिंब लेकर आपने अपनी मन:स्थिति का जो रेखांकन किया है , काबिले-तारीफ है। हर एक शब्द कसे हुए हैं।

अश्कों से उन्हें गीला किया,
लोई बना कर उनकी,
वक़्त के चाक पर धर दी,
उँगलियों से तजुर्बों की,
आड़े-तिरछे रूप दे डाले,
ख्वाबों को शक्लें दे दी,
नाम दे डाले।

कविता का सही उदाहरण है यह।
बधाई स्वीकारें।

विपिन चौहान "मन" का कहना है कि -

सजीव जी..
शब्द.. लय..भाव.. बिम्ब
सभी ने प्रभावित किया है..
शुरु से लेकर अन्त तक कविता पाठक को बाँधे रखने में सक्षम है..
बधाई स्वीकार कीजिये..
आभार

"राज" का कहना है कि -

मेरे भीतर की मिटटी सूखी थी,
बरसों की सूखी ,
अब्र का कोई भी टुकड़ा,
उस पर नहीं बरसा था,


कुछ ख़्वाब मिले,
अश्कों से उन्हें गीला किया,

सूखी मिट्टी कुरेदता रहा मैं,
जाने क्या-क्या जोड़ता रहा मैं ।
**********************
सजीव जी!!!!
आपने बहुत सही लिखा है....मनोदशा को जिस तरह से आपने मिट्टी से तुलना की है.....काबिले तारीफ़ है.......मुझे कोइ खामी नज़र नही आ रही है......बहुत ही उम्दा लगी आपकी यह रचना....

Alpana Verma का कहना है कि -

अच्छी कविता है।
बधाई।
Alpana Verma

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

यह कविता प्रभावित नहीं करती क्योंकि इसमें जीवन के क्रम को, अनुभव को, सपनों को मिट्टी की गति दी गई है और कुछ नहीं। फ़िर भी शिल्प की खासियत तो है ही।

Dr. Zakir Ali Rajnish का कहना है कि -

आदमी क्या है खिलौना ही तो है।
कब मिले मिटटी में है किसको खबर।
मिटटी की याद दिलाने के लिए बधाई।

Unknown का कहना है कि -

cheap oakley sunglasses
saics running shoes
air jordan uk
versace
pandora charms
chicago bears jerseys
cheap jordan shoes
arizona cardinals jerseys
ed hardy
broncos jerseys

Unknown का कहना है कि -

zzzzz2018.6.2
christian louboutin sale
moncler outlet
kate spade outlet
nike tn pas cher
polo ralph lauren
ralph lauren outlet
ralph lauren outlet
moncler outlet
nike trainers
skechers shoes

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)