आह्लादित हूँ, गर्वित हूँ
बेटी तुमको पाकर अभिमानित हूँ-
तुमको पाकर पाया मैंने एक अनूठा विश्वास
हर रिश्ते के मूल में तुम्हीं तो थी खड़ी
कभी दादी बन दुलराया तुमने
कभी माँ बन समझाया तुमने
कभी करी सखी समान ठिठोली
अगले ही पल थी तुम बिंदास पहेली
कभी तन खड़ी होती तुम बन सुदृढ़ दीवार
कभी बन जाती तुम बरगद की शीतल छाँह
कभी तुम लगती सावन की पहली फुहार
कभी शीत की सलोनी धूप सी,
कभी फागुन की मीठी बयार,
कभी तुम एहसास दिलाती-
'हाँ मैं भी हूँ कुछ खास '
कभी बन रौनक त्यौहार की
कर देती घर गुलज़ार
कभी बन टीस उतर जाती तुम दिल में
न जाने कितने दिन का साथ
बन सपना पलती आँखों में
सराबोर कर जाती मन
हर पल कुछ होता खास
तुम में पाया बचपन अपना
तुम में पाया अल्हड़पन
हर पल तुममें जिया खुद को
हर पल तुममे पाया खुद को
तुम हो मेरी प्रतिकृति
तुम हो मेरी अनुकृति
आह्लादित हूँ, गर्वित हूँ,
बेटी तुमको पाकर मै अभिमानित हूँ ।
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15 कविताप्रेमियों का कहना है :
अनुराधा जी,
सुन्दर विषय और सुन्दर शब्द चुने हैं आपने इस रचना को सजाने के लिये...
निश्च्य ही आज की बेटी.. कल बहुत से रिश्तों में बन्ध कर इस संसार को सुन्दर और रहने लायक बनाती है.. आप बधायी की पात्र हैं..
अनुराधा जी,
सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई। आद्योपांत सहज प्रवाह है।
हर रिश्ते के मूल में तुम्हीं तो थी खड़ी
विचारणीय है।
अनुराधा जी,
इस कविता नें मुझमें भी एक बेटी के पिता होने के गर्व को उकेर दिया। आपकी कविता हृदय स्पर्शी और सार्थक है। बधाई आपको..।
*** राजीव रंजन प्रसाद
अनुराधा जी,
वाह ....! बहुत सुन्दर!!
बेटी के पिता की सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई।
बधाई एक सशक्त रचना के लिए!!
अनुराधा जी
बहुत ही भाव-विभोर करने वाली कविता है । बेटी को पाकर ठीक ऐसी ही अनुभूति
होती है । एक सुन्दर रचना के लिए बधाई ।
अनुराधा जी!
भावगत दृष्टि से रचना बहुत सुंदर और सशक्त है. मगर शिल्प के हिसाब से अभी काफी गुंज़ाइश है.
तीन दिन के अवकाश (विवाह की वर्षगांठ के उपलक्ष्य में) एवं कम्प्यूटर पर वायरस के अटैक के कारण टिप्पणी नहीं कर पाने का क्षमापार्थी हूँ. मगर आपको पढ़ रहा हूँ. अच्छा लग रहा है.
anuradha ji mujhe bhi apni beti pakar aisa hi mahsoos hua tha mere bhavao ko sundar shabd dene ke liye aabhar
तुम में पाया बचपन अपना
तुम में पाया अल्हड़पन
हर पल तुममें जिया खुद को
हर पल तुममे पाया खुद को
तुम हो मेरी प्रतिकृति
तुम हो मेरी अनुकृति
आह्लादित हूँ, गर्वित हूँ,
बेटी तुमको पाकर मै अभिमानित हूँ ।
आपने तो जैसे मेरे दिल की अपने लफ्जों में ढाल दी ...बहुत ही सुंदर और दिल को छू लेने वाली कविता हैं यह अनुराधा जी,
बेटियाँ हमेशा ही प्यारी होती हैं ..और दिल के बहुत क़रीब एक सुंदर और भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत बधाई अनुराधा जी...
एक असहमति है अनुराधा जी..या एक छोटा सा प्रश्न।
क्या बेटे को पाकर वह गर्व, अभिमान, आह्लाद नहीं होता? यदि हाँ, तो इस कविता की आवश्यकता नहीं थी और यदि नहीं, तो वह एक माँ का पक्षपात है।
उत्तर चाहूँगा...
बेटियों पर आज भी कम ही गर्व किया जाता है। आप अपकी इस सोच पर गर्व कर सकती हैं। बहुत सुन्दर कविता।
यह बहुत ही साधारण रचना है। अपने बच्चों में अपना जीवन (बचपन, जवानी आदि) देखना नया नहीं है। हाँ यहाँ यह अलग बात है कि बेटी पर ज़ोर दिया गया है।
behatarin.......beti ma ki anukriti hai........
संसार की सुन्दरतम रचना है बेटी,
तन से शीतल,अन्तस मे दर्द समेटी!
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