आज हम तेरहवीं कविता लेकर आपके सामने प्रस्तुत हैं। इसके रचयिता हरिहर झा हमारी प्रतियोगिता के लिए नये हैं। अब तो अक्सर ही उनके विचार प्रकाशित कविताओं पर आते रहते हैं। प्रवासी प्रतिभागियों में ये दूसरे हैं। इससे पहले मई महीने की प्रतियोगिता में प्रिया सुदरानिया की कविता 'मैं लौट आऊँगा' पुरस्कृत हुई थी। हरिहर जी की कविता 'तेरे विस्मय पर' को ज़ज़ों ने खूब सराहा। अब आगे का निर्णय आपके हाथ में है।
रचना- तेरे विस्मय पर
रचनाकार- हरिहर झा, मेलबोर्न (ऑस्ट्रेलिया)
विस्मित हो तुम देख रही हो बहते झरने का पानी
झरने से भी ज्यादा मैं विस्मित हूं तेरे विस्मय पर
घटा समाई जूल्फों में फिर बरस पड़ी बालों से
छेड़ रही बूंदे पानी की फिसल पड़ी गालों से
टुकुर-टुकुर सब देख रहे थे भंवरे गुन-गुन करते
डाली झूम रही लिपट मतवाले आहें भरते
हँसते फूलों को देखा हौले से जब तुम मुस्काई
फूल गीरे पर सबने नज़र उठाई तेरे चेहरे पर
सावन आग लगा बैठा जब नजर मिली इन आंखों से
चौंच भिड़ाते पंछी मोहित फड़क उठे पांखों से
शामत आई जिस पर रूठी चितवन से यों वार किया
नाजुक होंठों को काटा बस दो पल में दुत्कार दिया
बिखरे कांटों पर जब फेंकी तीर सी चुभती हुई नजर
दंश न भूला नजरों का कांटे लगते कोमले मखमल
उल्लास भरा आंखों में बहकी रंगमंच की धारा
सही न जाय अनुभूति अब नहीं सूझता चारा
झिड़क दिया खलनायक को शर्मिन्दा करके घाव दिया
यंत्रवत रहा जड़ अभिनय पर तुमने चेतन भाव दिया
हावभाव देखा नाटक में खुशियाँ आईं गम छाये
अभिनय से तो ज्यादा संवेदन देखा इस मुखड़े पर
रिज़ल्ट-कार्ड
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प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ५॰५, ८, ६॰५
औसत अंक- ६॰६६६७
स्थान- तेरहवाँ
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द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक-
६॰५, ५॰५, ८, ८॰६, ३॰६७, ६॰६६६७ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰४८९४४४
स्थान- तेरहवाँ
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5 कविताप्रेमियों का कहना है :
हरिहर जी
श्रृंगार रस से पूर्ण रचना लिखी है आपने । शैली में चित्रात्मकता का गुण भी है ।
भावो की भी सुन्दर अभिव्यक्ति हुई है । एक गाना याद आ रहा है------
आज इन नज़ारों को तुम देखो
और मैं तुम्हे देखते हुए देखूँ ।
हरिहर जी,
मिलन का रसपूर्ण वर्णन के लिए बधाई।
कविता सुन्दर प्रभाव छोड़ती है। आगे और भी अपेक्षाएँ रहेंगी।
कविता अच्छी है। आपनें सुन्दर शब्दों का अच्छा गुलदस्ता बनाया है।
*** राजीव रंजन प्रसाद
आजकल इस तरह से शृंगार रस वाली कविताएँ नहीं लिखी जा रही हैं। ऐसे में अपनी काव्य-परम्परा को जीवित करने के लिए आप बधाई के पात्र हैं, लेकिन इसमें ऐसे कोई खास बिम्ब नहीं है, जिसके लिए इस कविता को याद रखा जाय। आप और कोशिश कीजिए।
अगली बार हेतु शुभकामनाएँ।
हरिहर जी..
बहुत बहुत बधाई..
रचना अच्छी बनी है..
श्रंगार से परिपूर्ण रचना है..
थोडा सा शिल्प और सौंन्दर्य पर यदि काम किया जाये तो आप बहुत आगे तक जा सकते हैं..
भाव की द्रष्टि से रचना ने थोडा सा निराश किया है..
प्रयास बहुत सुन्दर किया है आप ने
बधाई
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