प्रियतम की यादों से अलंकृत
उसकी पग-ध्वनि से आंदोलित
मन-वीणा की तारें झंकृत
होकर प्रिय को पास बुलातीं
आँखें तब आँसू भर लातीं
सांसारिक कार्यों से बोझिल
दिन भर हँसते हैं सबसे मिल
हृदय टूटता रहता तिल-तिल
रातें दाह और भड़कातीं
आँखें तब आँसू भर लातीं
खिली चाँदनी है अंबर में
दीप प्रकाशित हैं घर-घर में
लेकिन मेरे कातर उर में
दुख की अंधियारी गहराती
आँखें तब आँसू भर लातीं
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15 कविताप्रेमियों का कहना है :
खिली चाँदनी है अंबर में
दीप प्रकाशित हैं घर-घर में
लेकिन मेरे कातर उर में
दुख की अंधियारी गहराती
आँखें तब आँसू भर लातीं
विरह वेदना का अच्छा चित्रण किया अजय जी ।
अजय जी,
"आँखें तब आँसू भर लातीं" अच्छा गीत है। शब्द संयोजन और भाव दोनों ही सुन्दर।
खिली चाँदनी है अंबर में
दीप प्रकाशित हैं घर-घर में
लेकिन मेरे कातर उर में
दुख की अंधियारी गहराती
आँखें तब आँसू भर लातीं
वाह!!
*** राजीव रंजन प्रसाद
अजयजी,
बहुत ही सुन्दर भाव! आपके इस विरह गीत में शब्द-संयोजन और लय दोनों ही अच्छी है, बधाई!!!
हृदय टूटता रहता तिल-तिल
रातें दाह और भड़कातीं
लेकिन मेरे कातर उर में
दुख की अंधियारी गहराती
आँखें तब आँसू भर लातीं
wah.....
aaAOsu yahaaM thak bhee aa gaye hain....ajay ji..
bhaav pradhaan rachanaa
ke liyen
aabhaar
आपके शब्दों ने आपके भावों का बख़ूबी साथ दिया है |लय और गति भावों को उद्दीप्त कर रही है | एक अच्छे विरह गीत के सारे गुण आपकी इस रचना में विद्य्मान हैं |
सुंदर रचनाके लिए बधाई..
सांसारिक कार्यों से बोझिल
दिन भर हँसते हैं सबसे मिल
हृदय टूटता रहता तिल-तिल
रातें दाह और भड़कातीं
आँखें तब आँसू भर लातीं
खिली चाँदनी है अंबर में
दीप प्रकाशित हैं घर-घर में
लेकिन मेरे कातर उर में
दुख की अंधियारी गहराती
आँखें तब आँसू भर लातीं
bhaut hi achhe se likha hai aapne kuch alag sa khyaal lekar aaye hain aap is baar
aankhen tab aansun bhar laati bhaut hi sachha likha hai
अजय जी...
आप गज़ल लिखें या कविता ..
पता चल जाता है कि अजय जी की रचना है
बहुत बधाई
विरह वेदना को साकार रूप देने के लिये आभार
अजय जी
अच्छी कविता है । भाषा से अधिक भावों ने प्रभावित किया है ।
दिल के भावों को अच्छी अभिव्यक्ति दी है ।
अजय जी,आपका लिखा हमेशा ही सुंदर होता है एक और सुंदर रचना के लिए आपको बहुत बहुत बधाई!!
अजय जी,
गेयता और भाव के मणिकांचन योग से चमत्कार उत्पन्न हो गया है गीत में। एक-एक पंक्ति अद्भुत लगी।
प्रियतम की यादों से अलंकृत
उसकी पग-ध्वनि से आंदोलित
मन-वीणा की तारें झंकृत
होकर प्रिय को पास बुलातीं
आँखें तब आँसू भर लातीं
सुन्दर रचना के लिये धन्यवाद।
Ajay ji
aapane bahut likhaa hai.
आजय यादव जी,
आपकी यह कविता बहुत पसंद आई। कितना सुन्दर लिखा है आपने। मन प्रसन्न हो गया है।
मंगल-कामनायें।
-रिपुदमन
प्रियतम की यादों से अलंकृत
उसकी पग-ध्वनि से आंदोलित
मन-वीणा की तारें झंकृत
होकर प्रिय को पास बुलातीं
आँखें तब आँसू भर लातीं
सांसारिक कार्यों से बोझिल
दिन भर हँसते हैं सबसे मिल
हृदय टूटता रहता तिल-तिल
रातें दाह और भड़कातीं
आँखें तब आँसू भर लातीं
खिली चाँदनी है अंबर में
दीप प्रकाशित हैं घर-घर में
लेकिन मेरे कातर उर में
दुख की अंधियारी गहराती
आँखें तब आँसू भर लातीं
अजय जी,
आपकी कविता की आखिरी 4 पंक्तियाँ कमाल कर जाती हैं.. आँखों में आँसू ले आती हैं..
खिली चाँदनी है अंबर में
दीप प्रकाशित हैं घर-घर में
लेकिन मेरे कातर उर में
दुख की अंधियारी गहराती
आँखें तब आँसू भर लातीं
तपन शर्मा
आपने हर छंद की प्रथम तीन पंक्तियों में लयांतता का ध्यान तो रखा है। मगर मात्राएँ बहुत कम-अधिक हो गई हैं। इसलिए मज़ा नहीं आ पा रहा है।
ऐसे मौकों पर पर्यायवाची शब्द काम आते हैं।
दर्द भरा एक मधुर गीत।
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