झूठ
आँखों से कहो
कि झूठ ना बोला करें,
कुछ भोले लोग
टूटकर जुड़ नहीं पाते।
तमन्ना
मैं एक तमन्ना के लिए
उम्र भर जिया,
और तमन्ना बहुत चालाक थी,
मेरा लहू पीकर
किसी और के लिए जीती रही।
पत्थर
एक हथौड़ा लाओ,
एक छैनी
और एक पत्थर,
इंसान जब पत्थर के ही बनने हैं
तो क्यों न अपने आप बनाए जाएँ?
प्रलय
मैं
प्रलय का संकेत हूँ,
कुछ करो,
ऐसे संकेत झूठे नहीं जाते।
बददुआ
किसी को
बददुआ देनी थी,
मैं तेरा नाम
देर तक बुदबुदाता रहा।
सवाल-जवाब
हम खुश थे,
उसे सवाल आते थे,
मुझे जवाब,
मैं जब सवाल सीखने लगा,
उसने बोलना छोड़ दिया।
भूखा चाँद
भूखे चाँद का मन था,
जलने का,
मैं रोटी ढूंढ़ता रहा,
वो रात भर
कहीं और जला।
धूप
हर तरफ साए हैं,
पर कहीं धूप नहीं,
कहते हैं,
रात बहुत गहरी थी,
कल अन्धा सूरज डूब गया।
मेरा शहर
वो एक पुराना शहर
मुझे नाज़ायज बच्चे सा छोड़कर
कहीं बहुत दूर जा बसा है,
अब ये अनाथालयों से बाकी शहर
बस तरस खाते हैं,
प्यार नहीं करते।
चाँद
अम्मा,
आ लोरी सुना दे,
चन्दा मामा और पुए वाली,
जब से चाँद गया है,
सपने भी बहुत कड़वे आते हैं।
ऊपर?
कह देती
कि मैं नीचे रह गई हूँ,
मैं उतार फेंकता
ऊँचाइयों का सारा लबादा,
अब भी तो कूद ही गया हूँ
दर्द के अंधे कुँए में,
कौन ऊपर है अब?
मैं
मेरी इच्छाएँ,
मेरे सपने,
मेरी ज़िन्दगी,
कितना बोलती थी ना तुम?
उतने वक़्त में कभी आईना देखती
तो जान जाती,
मैं भी तो तुम ही हो गया था।
प्यारी सी लड़की
एक प्यारी सी लड़की,
जिसे मैं दिनभर बेवफ़ा कहकर
कोसता हूँ,
उसे हर रात सोने से पहले
सब दुआओं में समेटकर
छिपा लेता हूँ।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
25 कविताप्रेमियों का कहना है :
गौरव भाई
हमेशा की तरह इस बार भी कुछ समझ नही आया
सत्य को पहीचानिये……।
क्षणिकाएँ तो बिल्कुल भी नही समझ आती…
गौरव जी,
सुन्दर क्षणिकाएँ हैं। लाजवाब!
एक हथौड़ा लाओ,
एक छैनी
और एक पत्थर,
इंसान जब पत्थर के ही बनने हैं
तो क्यों न अपने आप बनाए जाएँ?
वो एक पुराना शहर
मुझे नाज़ायज बच्चे सा छोड़कर
कहीं बहुत दूर जा बसा है,
अब ये अनाथालयों से बाकी शहर
बस तरस खाते हैं,
प्यार नहीं करते।
ये विशेष पसंद आई।
mahendaati sunder charikayain dil ko chu jaati hain parasangik hain ye charikayain
गौरव जी,
आप क्षणिकायें बहुत अच्छी तरह लिखते हैं। जो क्षणिका सबसे अच्छी लगी..वो है..
झूठ
आँखों से कहो
कि झूठ ना बोला करें,
कुछ भोले लोग
टूटकर जुड़ नहीं पाते।
--तपन शर्मा
गौरव जी!
सभी क्षणिकायें बहुत सुंदर और प्रभावी हैं. किसी एक क्षणिका का उल्लेख कर के बाकियों का महत्व कम नहीं कर सकता. इन उत्कृष्ट क्षणिकाओं के लिये बधाई.
Gaurav ji,
Sabhi chanikayain bahut sunder hain,parantu khas taur per.
एक हथौड़ा लाओ,
एक छैनी
और एक पत्थर,
इंसान जब पत्थर के ही बनने हैं
तो क्यों न अपने आप बनाए जाएँ?
iska alawa
भूखे चाँद का मन था,
जलने का,
मैं रोटी ढूंढ़ता रहा,
वो रात भर
कहीं और जला।
kisi ka dil ka dard bahut hi marmik dhang sa darsa raha hai.
intni sunder chanikaon ka liya bahut bahut dhanybad.
Vivek
गौरव जी,
आप क्षणिकायें बहुत अच्छी तरह लिखते हैं। जो क्षणिका सबसे अच्छी लगी..वो है..
आँखों से कहो
कि झूठ ना बोला करें,
कुछ भोले लोग
टूटकर जुड़ नहीं पाते।
गौरव जी,
महसूस करने वाली क्षणिकायें हैं, बहुत ही उत्कृष्ट। क्षणिकायें अपने भीतर समाविष्ट चमत्कार से बहुत प्रभावी हो जाती हैं जैसे:-
"भूखे चाँद का मन था,
जलने का,
मैं रोटी ढूंढ़ता रहा,
वो रात भर
कहीं और जला।"
यह बात यद्यपि तुम्हारी कुछ क्षणिकाओं में दृश्टिगिचर नहीं हुई जैसे झूठ, बद्दुआ प्यारी सी लडकी किंतु इसका अर्थ यह नहीं कि ये क्षणिकायें किसी तरह कमतर हैं। प्रत्येक क्षणिका अपने आप में आपके भीतर की साहित्यिक प्रतिभा को उजागर करती है।
*** राजीव रंजन प्रसाद
गौरव जी,क्षणिकाएँ सुन्दर हैं।
किसी को
बददुआ देनी थी,
मैं तेरा नाम
देर तक बुदबुदाता रहा।
विशेष पसंद आई...बधाई.
अद्भुत, वैसे तो १३ की १३ रचना अच्छी है, लेकिन उनमे से एक जो मन को छू गया
मैं
मेरी इच्छाएँ,
मेरे सपने,
मेरी ज़िन्दगी,
कितना बोलती थी ना तुम?
उतने वक़्त में कभी आईना देखती
तो जान जाती,
मैं भी तो तुम ही हो गया था।
गौरव जी, आप काफी गहरी क्षणिकायें लिखने लगें हैं। ये खास तौर पर अच्छी लगीं,
झूठ
आँखों से कहो
कि झूठ ना बोला करें,
कुछ भोले लोग
टूटकर जुड़ नहीं पाते।
पत्थर
एक हथौड़ा लाओ,
एक छैनी
और एक पत्थर,
इंसान जब पत्थर के ही बनने हैं
तो क्यों न अपने आप बनाए जाएँ?
सवाल-जवाब
हम खुश थे,
उसे सवाल आते थे,
मुझे जवाब,
मैं जब सवाल सीखने लगा,
उसने बोलना छोड़ दिया।
गौरव सभी क्षणिकायें बहुत ही अच्छी है। किसी एक का जिक्र नहीं किया जा सकता ।
मज़ा आ गया ग़ौरवजी |
यह नही कहूँगा किसी एक का ज़िक्र नही किया जा सकता |
भूखे चाँद का मन था,
जलने का,
मैं रोटी ढूंढ़ता रहा,
वो रात भर
कहीं और जला।
सबसे अच्छी लगी |बहुत कुछ कह गयी !बाक़ी सारी क्षणिकाओं से अलग है यह |मुझे नही पता की आप क्या सोच रहे थे जब इसे आपने लिखा पर इससे 2-3 अर्थ निकले जा सकते हैं |
आप मिलेंगे तब इस पर विशेष चर्चा करना चाहूँगा !
गौरवजी,
अपनी बात को कहने के लिये जैसे-जैसे शब्दों को कम करना पड़ता है, मुश्किलें बढ़ती हैं और स्तर भी। शायद इसी हिसाब से हाइकु को सबसे मुश्किल कविता माना जाता है। जब मुश्किल और आसान का पैमाना शब्दों की संख्या ही है तो निश्चय ही क्षणिकाएँ लिखना कविता लिखने से काफि मुश्किल कार्य है। आप इसमें पारंगत होते जा रहें है, देखकर अच्छा महसूस होता है।
एक हथौड़ा लाओ,
एक छैनी
और एक पत्थर,
इंसान जब पत्थर के ही बनने हैं
तो क्यों न अपने आप बनाए जाएँ?
हम खुश थे,
उसे सवाल आते थे,
मुझे जवाब,
मैं जब सवाल सीखने लगा,
उसने बोलना छोड़ दिया।
इंसानी फितरत पर आपकी उपरोक्त दोनों क्षणिकाएँ सटीक है, मुझे बेहद पसंद आयी।
बधाई!!!
गौरव जी,
बहुत सुन्दर प्रभावी क्षणिकाएँ हैं | कुछ तो मन को एकदम छू जाती है | कम शब्दो मे प्रभाव छोडना एक दुश्कर कार्य है जिसे आपने निभाया है |
प्रिय गौरव
क्षणिकाएँ पढ़ना शुरू करते ही समझ आ गया था कि इतना सुन्दर तुम ही लिख सकते हो ।
मुझे (ऊपर, मैं और एक प्यारी सी लड़की ) ज्यादा अच्छी लगी । तुम बहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति
करते हो । पढ़ने के बाद सच में आनन्द आजाता है । बहु-बहुत आशीर्वाद तथा बधाई ।
acche qoutes the per ek suggetsion tha sth should be written in the direction to inspire sb .i always appriciate ur talent but if it can be used for benefit of others wat the other best thing can be
प्यारी सी लड़की
एक प्यारी सी लड़की,
जिसे मैं दिनभर बेवफ़ा कहकर
कोसता हूँ,
उसे हर रात सोने से पहले
सब दुआओं में समेटकर
छिपा लेता हूँ।
गौरव मेरे भाई मैं क्यों कविता करू ,जब मेरा हर पल,हर ख्वाब,हर जख्म,हर टीस,हर आह, मेरी आशाएं,और मेरे एहसास तुम लिख देते हो.
तुम और मैं शायद इसी क्षणिका को जी रहे है. हर क्षण हर पल.
हमराह होने का, या , हमसफ़र बनाने का?
गौरव जी,
बहुत उत्कृष्ट....
सुन्दर क्षणिकाएँ .....
मन को छू जाती है |
बधाई.
गौरव जी..
क्या बात है भाई..
आनन्द आ गया आप को पढ कर..
आप की दक्षता का परिचय मिलता है आप की हर रचना में..
पाठक जो हर बार नयापन चाहते हैं उनकी तलाश आप पर आ कर खत्म हो जाती है..
बहुत बढिया लिखा है आप ने
बधाई स्वीकार करें
आभार
सभी क्षणिकायें अच्छी हैं। बधाई।
gaurav ji
gehree sham ke godme andhe suraj ko dard ke kuen,me duubjana wo kadwe sapne dekhna ki bhukha chand paraae cuulhe par paki hue rotee me sawal dhuundh raha he.....jawab n mil pane par uske andar ka sailab use jalakar hathodaa ,chainee se adhure astitwako mita dena chahta he phir v uskee tammana ankhon me jhuut liye aankh michouni khelte hue kisi aur ke liye jiyee ja rahi thee.....bad dua nikalte nikalte shabd tuut jate hen aur weh duuaonko sametkar khamosh ho jata he...wah sundar abhivyakti he...
एक हथौड़ा लाओ,
एक छैनी
और एक पत्थर,
इंसान जब पत्थर के ही बनने हैं
तो क्यों न अपने आप बनाए जाएँ?
bahut pasand aayi
vaise sari bahut achchi hai
these are just next to perfect
maja aa gata hai aay tuhhari koi bhi cheej padhkar
बेहतरीन क्षणिकायें!
कुछेक तो बहुत अच्छी हैं!! जैसे -
(i)
पत्थर
एक हथौड़ा लाओ,
एक छैनी
और एक पत्थर,
इंसान जब पत्थर के ही बनने हैं
तो क्यों न अपने आप बनाए जाएँ?
(ii)
बददुआ
किसी को
बददुआ देनी थी,
मैं तेरा नाम
देर तक बुदबुदाता रहा।
(iv)
सवाल-जवाब
हम खुश थे,
उसे सवाल आते थे,
मुझे जवाब,
मैं जब सवाल सीखने लगा,
उसने बोलना छोड़ दिया।
आपने इस विधा बहुत ठीक से तरह से पकड़ा है। इतनी सुंदर-सुंदर और विचार प्रधान क्षणिकाएँ पढ़वा रहे हैं कि कृत-कृत हो रहे हैं पाठक।
मुझे निम्न क्षणिकाओं में बिलकुल अनूठी सोच रखने वाला कवि नज़र आया-
धूप
हर तरफ साए हैं,
पर कहीं धूप नहीं,
कहते हैं,
रात बहुत गहरी थी,
कल अन्धा सूरज डूब गया।
मेरा शहर
वो एक पुराना शहर
मुझे नाज़ायज बच्चे सा छोड़कर
कहीं बहुत दूर जा बसा है,
अब ये अनाथालयों से बाकी शहर
बस तरस खाते हैं,
प्यार नहीं करते।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)