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Wednesday, August 01, 2007

नहीं तो जान चली जाती है


दिल की नादानियों पे मुझको हँसी आती है।
तमाम खामियों पे मुझको हँसी आती है।।

आते-आते ये जो आया भी तो ऐसा आया,
हर एक साँस मेरी दिल में फँसी जाती है।

दिल ने खोजा है ऐसा दिलवर-ए-बेदर्द कि बस,
जुबान खुलती नहीं कुछ ना सुनी जाती है।

जो भी आता है दिल के दिल में वही करता है,
इसकी दादागिरी तो अब ना सही जाती है।

मुझे तो लगता है मुझसे है दुश्मनी दिल की,
तभी न कोई भी फरियाद सुनी जाती है।

रहम भी चीज हुआ करती है दुनिया में कोई,
अब तो ये शै ही मुझे नज़र नहीं आती है।

इतना बेहाल करके रखा है मुझको दिल ने,
बुत भी हँस देते हैं पर मुझको नहीं आती है।

बात इतनी सी मुझे साफ है करनी दिल से,
अब सँभल जा नहीं तो जान चली जाती है।

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17 कविताप्रेमियों का कहना है :

कंचन सिंह चौहान का कहना है कि -

कविता की हर पंक्ति सुंदर है, बधाई!

anuradha srivastav का कहना है कि -

मुझे तो लगता है मुझसे है दुश्मनी दिल की,
तभी न कोई भी फरियाद सुनी जाती है
हम सब है ना आपकी फरियाद सुनने के लिये ।

Anil Arya का कहना है कि -

सुंदर !!!!

aarsee का कहना है कि -

दिल ने खोजा है ऐसा दिलवर-ए-बेदर्द कि बस,
जुबान खुलती नहीं कुछ ना सुनी जाती है।

सच एक शेर भी तो है-

ताबे-इज़हार इश्क़ ने ले ली
गुफ़त्गू को ज़ुबां तरसत्ती है

Anupama का कहना है कि -

aachi hai...keep writing

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

वाह पंकज जी

दमदार उपस्थिति। बहुत ही सुन्दर रचना।

दिल की नादानियों पे मुझको हँसी आती है।
तमाम खामियों पे मुझको हँसी आती है।।

रहम भी चीज हुआ करती है दुनिया में कोई,
अब तो ये शै ही मुझे नज़र नहीं आती है।

वाह!!!!

*** राजीव रंजन प्रसाद

Gaurav Shukla का कहना है कि -

पंकज जी

बहुत अच्छा लिखा है आपने, आनन्द आया

सस्नेह
गौरव शुक्ल

Anonymous का कहना है कि -

आशिकों के दिल कि बात छीन ली आपने............
बोले तो फोड़ डाला...........
ये पंक्ति अदभुत भावों से पूरीट है
जो भी आता है दिल के दिल में वही करता है,
इसकी दादागिरी तो अब ना सही जाती है।
शुभकामनाएँ

SahityaShilpi का कहना है कि -

पंकज जी!
सुंदर प्रस्तुति है. आमतौर पर लोग दिल से खासे परेशान नजर आते हैं. आपने ऐसे लोगों की परेशानी को अच्छी तरह शब्द दिये हैं. वैसे ये ’दिलवर-ए-बेदर्द’ का अर्थ कुछ समझ नहीं आया.

गीता पंडित का कहना है कि -

वाह!!

इतना बेहाल करके रखा है मुझको दिल ने,
बुत भी हँस देते हैं पर मुझको नहीं आती है।

बहुत सुंदर

पंकज जी
बधाई!

Mohinder56 का कहना है कि -

खूब... यानि कि हर फ़िक्र को धूयें में उडाता चला गया
सच में दिल ही आदमी का सबसे अच्छा दोस्त होने के साथ साथ सबसे बडा दुश्मन भी है... अड जाये तो हिलाना मुश्किल है.......जान का दुश्मन बन जाता है कभी कभी....
सुन्दर रचना

पंकज का कहना है कि -

अजय जी,
दिलवर-ए-बेदर्द का मतलब है--ऐसा दिलवर जोकि बेदर्द है।

विश्व दीपक का कहना है कि -

सबल भाव-पक्ष आपकी रचना की खासियत रही है। साधारण शब्दों को भी गज़ल में डालने की आपकी हिमाकत मुझे खूब भाती है।

जो भी आता है दिल के दिल में वही करता है,
इसकी "दादागिरी" तो अब ना सही जाती है।

लेकिन मित्र एक बात कहूँगा भावपक्ष के साथ यदि आप शिल्प-पक्ष पर भी थोड़ी और मेहनत कर दें तो गज़ल अपने चरम पर होगी। "बहर" की कोई दिक्कत नहीं है, बस "रदीफ" और "काफिया" को संभालना है। बस थोड़ा सा फिनिसिंग टच दे दें तो अगली बार मुझे आपकी गज़ल से कोई शिकायत नहीं रहेगी। [:)]

आपकी अगली गज़ल के इंतज़ार में-
विश्व दीपक 'तन्हा'

Alok Shankar का कहना है कि -

इतना बेहाल करके रखा है मुझको दिल ने,
बुत भी हँस देते हैं पर मुझको नहीं आती है।

deri se pratikriya ke liye maafi chahta hoon
bahut hi sundar bayaan kiya hai aapne

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

इसको पॉडकास्ट कीजिए, मज़ा आयेगा।

अभिषेक सागर का कहना है कि -

दिल की नादानियों पे मुझको हँसी आती है।
तमाम खामियों पे मुझको हँसी आती है।।

अच्छी गज़ल है।

-रचना सागर

गरिमा का कहना है कि -

कविता लाज़वाब है... पर अगर गज़ल लिखी गयी है तो... अगर पहले शेर के दोनो पँक्तियो मे आती का प्रयोग ना करके कोई और शब्द चुन लिया गया होता तो गज़ल कुछ हद तक नियमो के दायरे मे रहती।

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