दिल की नादानियों पे मुझको हँसी आती है।
तमाम खामियों पे मुझको हँसी आती है।।
आते-आते ये जो आया भी तो ऐसा आया,
हर एक साँस मेरी दिल में फँसी जाती है।
दिल ने खोजा है ऐसा दिलवर-ए-बेदर्द कि बस,
जुबान खुलती नहीं कुछ ना सुनी जाती है।
जो भी आता है दिल के दिल में वही करता है,
इसकी दादागिरी तो अब ना सही जाती है।
मुझे तो लगता है मुझसे है दुश्मनी दिल की,
तभी न कोई भी फरियाद सुनी जाती है।
रहम भी चीज हुआ करती है दुनिया में कोई,
अब तो ये शै ही मुझे नज़र नहीं आती है।
इतना बेहाल करके रखा है मुझको दिल ने,
बुत भी हँस देते हैं पर मुझको नहीं आती है।
बात इतनी सी मुझे साफ है करनी दिल से,
अब सँभल जा नहीं तो जान चली जाती है।
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17 कविताप्रेमियों का कहना है :
कविता की हर पंक्ति सुंदर है, बधाई!
मुझे तो लगता है मुझसे है दुश्मनी दिल की,
तभी न कोई भी फरियाद सुनी जाती है
हम सब है ना आपकी फरियाद सुनने के लिये ।
सुंदर !!!!
दिल ने खोजा है ऐसा दिलवर-ए-बेदर्द कि बस,
जुबान खुलती नहीं कुछ ना सुनी जाती है।
सच एक शेर भी तो है-
ताबे-इज़हार इश्क़ ने ले ली
गुफ़त्गू को ज़ुबां तरसत्ती है
aachi hai...keep writing
वाह पंकज जी
दमदार उपस्थिति। बहुत ही सुन्दर रचना।
दिल की नादानियों पे मुझको हँसी आती है।
तमाम खामियों पे मुझको हँसी आती है।।
रहम भी चीज हुआ करती है दुनिया में कोई,
अब तो ये शै ही मुझे नज़र नहीं आती है।
वाह!!!!
*** राजीव रंजन प्रसाद
पंकज जी
बहुत अच्छा लिखा है आपने, आनन्द आया
सस्नेह
गौरव शुक्ल
आशिकों के दिल कि बात छीन ली आपने............
बोले तो फोड़ डाला...........
ये पंक्ति अदभुत भावों से पूरीट है
जो भी आता है दिल के दिल में वही करता है,
इसकी दादागिरी तो अब ना सही जाती है।
शुभकामनाएँ
पंकज जी!
सुंदर प्रस्तुति है. आमतौर पर लोग दिल से खासे परेशान नजर आते हैं. आपने ऐसे लोगों की परेशानी को अच्छी तरह शब्द दिये हैं. वैसे ये ’दिलवर-ए-बेदर्द’ का अर्थ कुछ समझ नहीं आया.
वाह!!
इतना बेहाल करके रखा है मुझको दिल ने,
बुत भी हँस देते हैं पर मुझको नहीं आती है।
बहुत सुंदर
पंकज जी
बधाई!
खूब... यानि कि हर फ़िक्र को धूयें में उडाता चला गया
सच में दिल ही आदमी का सबसे अच्छा दोस्त होने के साथ साथ सबसे बडा दुश्मन भी है... अड जाये तो हिलाना मुश्किल है.......जान का दुश्मन बन जाता है कभी कभी....
सुन्दर रचना
अजय जी,
दिलवर-ए-बेदर्द का मतलब है--ऐसा दिलवर जोकि बेदर्द है।
सबल भाव-पक्ष आपकी रचना की खासियत रही है। साधारण शब्दों को भी गज़ल में डालने की आपकी हिमाकत मुझे खूब भाती है।
जो भी आता है दिल के दिल में वही करता है,
इसकी "दादागिरी" तो अब ना सही जाती है।
लेकिन मित्र एक बात कहूँगा भावपक्ष के साथ यदि आप शिल्प-पक्ष पर भी थोड़ी और मेहनत कर दें तो गज़ल अपने चरम पर होगी। "बहर" की कोई दिक्कत नहीं है, बस "रदीफ" और "काफिया" को संभालना है। बस थोड़ा सा फिनिसिंग टच दे दें तो अगली बार मुझे आपकी गज़ल से कोई शिकायत नहीं रहेगी। [:)]
आपकी अगली गज़ल के इंतज़ार में-
विश्व दीपक 'तन्हा'
इतना बेहाल करके रखा है मुझको दिल ने,
बुत भी हँस देते हैं पर मुझको नहीं आती है।
deri se pratikriya ke liye maafi chahta hoon
bahut hi sundar bayaan kiya hai aapne
इसको पॉडकास्ट कीजिए, मज़ा आयेगा।
दिल की नादानियों पे मुझको हँसी आती है।
तमाम खामियों पे मुझको हँसी आती है।।
अच्छी गज़ल है।
-रचना सागर
कविता लाज़वाब है... पर अगर गज़ल लिखी गयी है तो... अगर पहले शेर के दोनो पँक्तियो मे आती का प्रयोग ना करके कोई और शब्द चुन लिया गया होता तो गज़ल कुछ हद तक नियमो के दायरे मे रहती।
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