एक छोटी सी कोशिश है , हिन्द युग्म के भावों का एक पक्ष कविता में रखने की ।
मैं युग्म, तुम्हारी भाषा का,
हिन्दी की धूमिल आशा का ;
मैं युग्म , एकता की संभव
हर ताकत की परिभाषा का
मैं आज फ़लक पर बिछी हुई
काई पिघलाने आया हूँ
भारत की बरसों से सोई
आवाज़ जगाने आया हूँ
तुम देख तिमिर मत घबराओ
हम दीप जलाने वाले हैं
बस साथ हमारे हो लो, हम
सूरज पिघलाने वाले हैं
मैं एक नहीं हूँ , मैं हम हैं
माना , अपनी गिनती कम है
तुम उँगली गिन मत घबराओ
हममें भी मुट्ठी सा दम है
हाँ बहुत कठिन होगा लिखना
पत्थर पर अपने नामों को
होगा थोड़ा मुशकिल करना
अनहोनी लगते कामों को
पर वही सफ़ल होता है जो
चलने की हिम्मत रखता है
गिरता है, घायल होता है
पर फ़िर आगे हो बढ़ता है
हममें है हिम्मत बढ़ने की
तूफ़ान चीरकर चलने की
चट्टानों से टकराने की
गिरने पर फ़िर उठ जाने की
देकर अपनी आवाज़ सखे !
तुम भी अपने संग चलते हो?
तुम भी हो हिन्दी के सपूत
उसका संबल बन सकते हो ।
हिन्दी को उसका हम समुचित
सम्मान दिलाने आये हैं
हम पूत आज अपनी माता का
कर्ज चुकाने आये हैं
हिन्दी की कोमलता को हमने
समझा है, ताकत को भी
उसकी फ़र्राटे सी तेजी को
देखा है , आहट को भी
बतला दें अपनी बाधाओं को
हममें भी है धार बड़ी
होठों पर है मुसकान खिली
हाथों में है तलवार बड़ी
मैं युग्म आज फ़िर परशुराम -सा
यह संकल्प उठाता हूँ
अम्बर ! खाली कर जगह जरा
मैं सूरज नया उगाता हूँ
मैं युग्म , चाहता हूँ धरती पर
नहीं कहीं मतभेद रहे,
ऊँचाई का, गहराई का
धरती पर कोई भेद रहे
मैं युग्म, आदमी की सुन्दर
भावना जगाने आया हूँ
मैं युग्म, हिन्द के मस्तक को
कुछ और सजाने आया हूँ ।
मैं युग्म हिन्द की अभिलाषा का
छोटा सा कोना भर हूँ
तुम एक पुष्प बस दे जाओ
मैं भारत का दोना भर दूँ
- आलोक शंकर
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18 कविताप्रेमियों का कहना है :
बचपन में एक कविता पढी थी उसकी कुछ पंक्तियां इस प्रकार हैं....
वीर तुम बढे चलॊ, धीर तुम बढे चलॊ.
सामने पहाड हॊ, सिंह की दहाड हॊ,
कविता सचमुच हिन्द युग्म के भावॊं कॊ दर्शाने में सफल रही है। युग्म बढता जाएगा दिन्दी का सम्मान लॊटायेगा
अदभुत,
एक भी शब्द व्यर्थ नही लगा...
एक सार्थक कविता.
बहुत सुंदर और युग्म की विशेषताओं को प्रतिबिंबित करती हुईं.
वास्तव मे अधिकतर कविताएँ अच्छी तो होतीं है परंतु भटक जाती है आप की कविता पूरी तरह से लक्ष्य को भेदती है....
साधुवाद
बहुत साधुवाद आलोक जी।
शैलेष जी,
इस कविता को युग्म के परिचय के साथ पेस्ट करें और यथा संभव प्रचारित करें। आलोक जी नें वह कार्य कर दिया है जिसकी मेरे मन में कई दिनों से परिकल्पना चल रही थी। इस रचना का परमानेंट लिंक बनायें..
*** राजीव रंजन प्रसाद
आलोक जी बहुत ही सुंदर रचना है राजीव जी का विचार बहुत ही अच्छा है ...
बधाई!!
साधुवाद आलोकजी,
युग्म के भावों को आपने एक अद्भुद कविता का रूप दिया है, जैसा कि पियूषजी ने कहा है कि "अधिकतर कविताएँ अच्छी तो होतीं है परंतु भटक जाती है आप की कविता पूरी तरह से लक्ष्य को भेदती है", मैं उनसे पूर्णतया सहमत हूँ।
@राजीवजी,
साईड-बार में पर्मालिंक दे दिया है :-)
सुन्दर प्रयास है आलोक जी और आलोचना से ऊपर है कि आपके इरादे बहुत नेक हैं और हिन्द-युग्म के प्रति आपके भाव कविता को सिर्फ कविता न रहने देकर ऊपर उठा देते हैं।
फिर भी कविता की दृष्टि से देखूं तो कुछ पंक्तियाँ बहुत पसन्द आई।
मैं आज फ़लक पर बिछी हुई
काई पिघलाने आया हूँ
बस साथ हमारे हो लो, हम
सूरज पिघलाने वाले हैं
हममें है हिम्मत बढ़ने की
तूफ़ान चीरकर चलने की
चट्टानों से टकराने की
गिरने पर फ़िर उठ जाने की
हिन्दी की कोमलता को हमने
समझा है, ताकत को भी
उसकी फ़र्राटे सी तेजी को
देखा है , आहट को भी
मैं युग्म आज फ़िर परशुराम -सा
यह संकल्प उठाता हूँ
अम्बर ! खाली कर जगह जरा
मैं सूरज नया उगाता हूँ
पता है, दो तरह के कवि होते हैं- एक जन्मजात और दूसरे कोशिश करके बनते हैं। आपको जितना पढ़ा है उससे यही लगता है कि आप बिल्कुल स्वाभाविक कवि हैं।
अतिसुन्दर...
आलोक जी,
आप पास होते तो आपके हाथ चूम लेता और आपको साष्टांग करता। आपने हममें से सभी की मनोभावों को लिख दिया है। इसे जब भी गुनगुनायेगा कोई, उसका उत्साह बढ़ेगा। बस इसे कोई जोश भरी आवाज़ दे दे। सच में यह हिन्द-युग्म की आवाज़ है।
बहुत खूब।
मैं युग्म हिन्द की अभिलाषा का
छोटा सा कोना भर हूँ
तुम एक पुष्प बस दे जाओ
मैं भारत का दोना भर दूँ
अतीव सुन्दर।
आलोक जी, पहले ही साथियों ने शायद हम सभी के उद्गार व्यक्त कर दिये हैं. आज हिन्द-युग्म का परिचय भी काव्य-मय हो गया.
आलोक जी
मंत्रमुग्ध कर दिया आपने,
हिन्द-युग्म का इससे सटीक परिचय नहीं हो सकता था
"मैं युग्म, तुम्हारी भाषा का,
हिन्दी की धूमिल आशा का ;
मैं युग्म , एकता की संभव
हर ताकत की परिभाषा का"
बहुत सुन्दर कविता,मोहक शिल्प, दिव्य काव्य सौन्दर्य
अभिनन्दन
सस्नेह
गौरव शुक्ल
वाह आलोक जी जो बात मै कहना चाह रही थी आपने कविता में पिरो दी कल ही मैने अपने ब्लोग पर किसी को इन्ही बातो का जवाब दिया था...
"मेरा मकसद सभी को एक सूत्र में जोड़ना है ना कि एक दूसरे के लिये मन में बैर भाव पैदा करना...हिन्द-युग्म यानी की सारे हिन्दुस्तान को एक समूह में बाँधने के लिये ही मै भी हिन्द -युग्म से जुड़ी थी..."
आपने मेरे दिल की बात लिख डाली..बहुत बहुत बधाई!
सुनीता(शानू)
आलोक की कविता बहुत अच्छी है.. किंतु डोगरा का यह कहना कि
’युग्म बढता जाएगा दिन्दी का सम्मान लॊटायेगा.’
युग्म बढ़ेगा, अवश्य बढ़ेगा, हिंदी के प्रति जो भी समर्पित हैं..सभी बढ़ेंगे, किंतु यह कहना कि हिंदी का सम्मान लौटाएगा.. गलत है.. अरे हिंदी का सम्मान खोया ही कब था कि वह लौटेगा। हिंदी हम सभी के दिलों में बसती है..
कवि कुलवंत
अतिसुंदर आलोक जी। आपने युग्म कि प्रतिज्ञा को बखूबी लेखनी दी है। हर एक भाव सधे से हैं। आपसे गुजारिश करूँगा कि आप इसी तरह हमें अपनी रचनाओं से ओत-प्रोत करते रहें।
डा. रमा द्विवेदी said...
आज हिन्दयुग्म का काव्यमय परिचय पढ़ा... बहुत ही गरिमामय अभिव्यक्ति है...आलोक जी बधाई के पात्र हैं..वे सदैव अपनी रचनाओं से लोगों का दिल जीतते रहें,इन्हीं शुभकामनाओं के साथ...
माफ़ कीजियेगा , बहुत दिन लगा दिए मैंने हिंद युग्म का काव्यात्मक परिचय पढ़ने में, आज पता चला कि इसे इतने सुंदर भावों से सजाया गया है ,बहुत ही सार्थक और जोशीले शब्दों में लिखा है आलोक जी
बहुत - बहुत बधाई और हिंद युग्म को ढेरों शुभकामनाएँ
पूजा अनिल
sankarji
itni achchhi kabita................
BAP RE BAP!!!!!!
KYA TARIF KRUN
100% EXCellent
SUNIL KUMAR SONU
SUNILKUMARSONUS@YAHOO.COM
much ke udessy ko sabd dene ke liye badhayee.
kaah koi ise awaz deta.sailesh ji sangeet badh ker ke link daal dejiye.
saader
सहज-सरल गंगा सा प्रवाहित, लगा आपका गीत.
आलोकित करता मानस को, बङा सुहाना गीत.
बङा सुहाना गीत, युग्म का परिचय देता.
हिन्दी के प्रति पाठक को जागृत कर देता.
यह साधक कृतज्ञ, पा गया अनायास ही यह पल.
गंगा सा पावन लगा आपका गीत सहज औ’ सरल.
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