हो अगर ऐसा,
ना हो कोई धर्म ,
समझें सब इस दुनिया में,
मानवता का मर्म |
बंधन ना हो जाति का,
सब हों एक समान ,
चल पाएगा तब दुनिया मे,
शांति से सब काम |
बलिदान नहीं तब देना होगा,
दंगों की बलिवेदी पर ,
मंदिर-मस्ज़िद की संपत्ति,
होगी न्योछावर उन्नति पर |
जाति, धर्म ना होंगे फिर
निर्णय चुनाव का करने वाले,
नेताओं के झाँसे में ना,
होंगे हम फिर पड़ने वाले |
यह समाज आरक्षण की तब,
चक्की में ना कभी पिसेगा ,
होगा जो भी प्रतिभाशाली ,
अन्याय नहीं वो कभी सहेगा|
पैसों के चक्कर में कोई
धर्मांतरण ना कभी करेगा,
अपनी मर्यादाओं से तब,
हर इक मानव बँधा रहेगा |
हिंदू कौन हैं मुस्लिम कैसे ?
कुछ विवाद ना हुआ करेगा ,
जगह पर मंदिर-मस्ज़िद की तब,
विद्यालय ही बना करेगा |
होंगे जब सब इक ही जैसे,
कहो कौन ज़ेहाद करेगा !
आतंकी आतंकी होंगे ,
ज़ेहादी ना कोई कहेगा|
यह छूत-अछूत का भेद सभी,
सच में उस दिन मिट जाएगा,
कोई शिया ना कोई सुन्नी ,
इस दुनिया में रह जाएगा |
जब सारे होंगे इक ही जैसे ,
दंगा-फ़साद ना हुआ करेगा,
धर्म के नाम पर कभी किसी का ,
निर्दोष रक्त ना बहा करेगा |
इतिहास के पन्ने सारे तब,
स्वर्णिम अक्षर से लिखे जाएँगे,
ज्वालामुखियों के कंठों से,
गीत सुहाने सुने जाएँगे |
सौहार्द भरे बादल होंगे,
प्रेम की बारिश हुआ करेगी,
धरती सारी अपनेपन की,
ख़ुशबू से तब महक उठेगी |
अमन चैन बस केवल तब ,
धरती पर विसरित हुआ करेंगे ,
कोई धर्म ना होगा जब ,
मानव तब मानव हुआ करेंगे|
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
कल्पना जॊ आपने देखी है महॊदय उसका विचार सराहनीय है। परन्तु यह वह सपना है सच नहीं हॊ सकता। कविता अच्छी बन पढी है।
अच्छी कोशिश है विपुल्॥ आप बहुत सुधार कर रहे हैं अपनी कविताओं में । बहुत सुन्दर ।
जगह पर मंदिर-मस्ज़िद की तब,
विद्यालय ही बना करेगा |
आतंकी आतंकी होंगे ,
ज़ेहादी ना कोई कहेगा|
अमन चैन बस केवल तब ,
धरती पर विसरित हुआ करेंगे ,
कोई धर्म ना होगा जब ,
मानव तब मानव हुआ करेंगे|
सुन्दर विवेचना विपुल जी, कवि से एसी ही सोच की अपेक्षा की जाती है।
*** राजीव रंजन प्रसाद
सौहार्द भरे बादल होंगे,
प्रेम की बारिश हुआ करेगी,
धरती सारी अपनेपन की,
ख़ुशबू से तब महक उठेगी |
बहुत सुन्दर कोशिश है विपुलजी...
विपुलजी,
इस कविता में आपकी सकारात्मक सोच काबिलेतारीफ़ है। आपने जो परिकल्पना की है, वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए आश्चर्यचकित करती है। शायद इसी कारण कहा जाता है कि "जहाँ न पहूँचे रवि वहाँ पहूँचे कवि"
एक सुन्दर रचना के लिये हार्दिक बधाई!!!
मिल दुवा करते हैं कि ऐसा हो जाए-
सौहार्द भरे बादल होंगे,
प्रेम की बारिश हुआ करेगी,
धरती सारी अपनेपन की,
ख़ुशबू से तब महक उठेगी |
अब आपका लेखन पहले से बेहतर होता जा रहा है।
सौहार्द भरे बादल होंगे,
प्रेम की बारिश हुआ करेगी,
धरती सारी अपनेपन की,
ख़ुशबू से तब महक उठेगी |
बिल्कुल सही।
विपुल जी, आपके भावों की मैं कद्र करता हूँ, पर धर्म की पहचान नष्ट होने से ही अशांति फैल रही है. धर्म को मंदिर या मस्ज़िद में स्थित मान कर हम बहुत बड़ी गलती करते हैं. वैसे भी धर्म के अतिरिक्त और भी कई कारण हैं इस परिस्थिति के.
कविता की दृष्टि से प्रयास सराहनीय है.
विपुल जी
बहुत ही उपयोगी बातें आपने सुझाई है
निश्चित रूप से कवि/लेखक की जिम्मेदारी है कि वह अपनी लेखनी से समाज को जागरूक करे
आपके भाव सम्माननीय हैं
साधुवाद, शुभकामनाये
सस्नेह
गौरव शुक्ल
चलिये कल्पना तो कर ही सकते है सबको एक सूत्र में बाँधने की...कल क्या हो कौन कह सकता है हम अपना आज तो सँवार ही सकते है...
बहुत-बहुत बधाई सुन्दर रचना के लिये...
सुनीता(शानू)
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