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Friday, July 27, 2007

क्षमा और वीरता


यह शीर्षक कविता का सही शीर्षक है या नहीं , यह मैं नहीं कह सकता , आग्रह है कि कोई अच्छा शीर्षक सुझायें । कविता और भी आगे बढ़ाई जा सकती थी , अगली बार बढ़ाने की कोशिश करूँगा ।
(मेरा दिन शनिवार को है पर आज शुक्रवार रात को ही प्रेषित कर रहा हूँ । शनिवार को शायद उपलब्ध न हो सकूँ इस लिये ऐसा किया है , क्षमा चाहता हूँ ।)

इतिहासों के श्वेत पटल पर अंकित स्वर्णिम भाषा
मुखरित करती शूरवीर नर-रत्नों की परिभाषा
करती है जो अद्भुत तुलना वीरोचित कर्मों की
जहर बुझे तीरों से बिंधनेवाले सब धर्मों की ।
किसने विश्वविजय पाई थी, किसने किसे हराया
किसने अध्यायों में सबसे ज्यादा रक्त बहाया
शोणित-दृक्कलिमा लिखित नरता की अद्भुत गाथा
रक्त तिलक से दमक रहा है मनुष्यता का माथा
बहुत कठिन है इन पन्नों में अपना नाम लिखाना
बिना बहाये एक बूँद भी रक्त वीर कहलाना ।
स्वाभाविक व्यवहार छोड़ कुछ भी करना मुश्किल है
हंता हित तो क्षमा ,दया की बड़ी दूर मंजिल है ।
रोज मरुस्थल में गुलाब के फूल नहीं खिलते हैं
माँदों में सिंह की ,जीवित क्या हिरण कभी मिलते हैं ?
विस्मय ही है यदि रण में भी शांति पुष्प खिल जाये
शोणित - सरिता में यदि कोई श्वेत वसन मिल जाये ।
नहीं चाहता मनुज कभी वह गर्व त्याग कातर हो
अंतस्तल में बसी शौर्य की भित्ति कभी जर्जर हो ।
श्रेष्ठ कौन है ? खड्ग उठाकर शीश उड़ानेवाला
या कि क्षमा कर हँसते हँसते प्राण गँवानेवाला ?
बड़ा वीर तो वह है जो अरि को भी स्नेह, क्षमा दे
खड्ग उठाते हाथों को हँसकर निज शीश थमा दे ।
बड़ा वीर वह है जो आग्रह करे, सदैव विनत हो
किसी मूल्य के लिये नहीं पर हिंसा हित उद्धत हो ।
जो भी ज्वाला में जलकर द्युति देता , उसकी जय हो
उसे नमन, जो खड्ग फ़ेंकता, धरा ताकि सुखमय हो ।
उसे पूजती धरा प्रेम हित जो सूली चढ़ता है
तीन गोलियाँ खाकर मुख से 'हे राम' कहता है
रक्तरंजिता अधित्यका को श्वेत बनानेवाला
एक मनुज वसुधा का थोड़ा त्रास घटानेवाला
फ़िर से भू पर मची होड़ है रक्त बहा देने को
कितनी देर लगायेगा वह जन्म नया लेने को ?

-आलोक शंकर

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13 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

वाह आलोक जी, आपकी कविता को पढ़कर मन आनन्दित हो उठा।


प्रत्‍येक पक्तिं को धारा प्रवाह पढ़ता गया मजा आया। बधाई।

anuradha srivastav का कहना है कि -

आलोक जी कविता में रवानगी है। पढ कर अच्छा लगा ।

Anonymous का कहना है कि -

गेय पद मनुष्य को हमेशा से ही आकर्षित करते रहे हैं,
ददय मे रवानगी है...
शब्द चयन भी अदभुत है...
मुर्दे को ज़िला सकते है आप अपनी वाणी से.....
सुभद्रा कुमारी जी और बलकरश्न शर्मा नवीन जी की कविताओं की याद हो आई..........
धन्यवाद एवं बधाइयाँ...

विश्व दीपक का कहना है कि -

आलोक जी मुझे इस बात की खुशी है कि आप अपने रूप में फिर से वापस आ गए हैं। इसे कहते हैं बैक इन फार्म । शीर्षक आपने सही चुना है। इससे बढिया शीर्षक मैं नहीं सुझा पाऊँगा।

शोणित-दृक्कलिमा लिखित नरता की अद्भुत गाथा
रक्त तिलक से दमक रहा है मनुष्यता का माथा
बहुत कठिन है इन पन्नों में अपना नाम लिखाना
बिना बहाये एक बूँद भी रक्त वीर कहलाना ।

श्रेष्ठ कौन है ? खड्ग उठाकर शीश उड़ानेवाला
या कि क्षमा कर हँसते हँसते प्राण गँवानेवाला ?
बड़ा वीर तो वह है जो अरि को भी स्नेह, क्षमा दे
खड्ग उठाते हाथों को हँसकर निज शीश थमा दे ।

उपरोक्त पंक्तियाँ विशेषकर पसंद आई।सच्चे मायने में वीर कौन है, वह जो खड्ग उठाकर हिंसा के पथ पर चलता है या वह जो अपने दुश्मनों को भी क्षमा कर देता है, जान देने वाला बड़ा है या जान हरने वाला- निस्संदेह क्षमा करने वाला लाखों-करोड़ों गुना शूरवीर होता है। अपनी रचना के अंत में आपने ईश्वर को भी कठघरे में ला दिया है।

फ़िर से भू पर मची होड़ है रक्त बहा देने को
कितनी देर लगायेगा वह जन्म नया लेने को ?

बहुत पसंद आई मुझे आपकी यह रचना। बधाई स्वीकारें।

Anonymous का कहना है कि -

कविता तो आपने वाकई बहुत सुन्दर लिखी हॆ।
पर क्या आपको ये नहिं लगता हॆ कि

"सच पुछो तो शर में ही
बसती हॆ दीप्ति विनय की
संधि-वचन समपूज्य उसी का
जिसमे शक्ति विजय की
सहनशीलता,छ्मा,दया को
तभी पूजता जग हॆ
बल का दर्प चमकता उसके
पीछे जब जगमग हॆ" (रामधारी सिंह दिनकर)


खॆर फिर से बहुत बहुत बधाई इतनी शानदार कविता के लिये

Anonymous का कहना है कि -

sorry i dont have hindi fonts available here! :(
the flow of the poem is great..word selection perfect..overall excellent work.
sir,i cant give an expert comment but i am ur fan already n this has given my belief,new dimensions...:)
i'll try to comment in hindi from next time...

SahityaShilpi का कहना है कि -

आलोक जी!
देरी से टिप्पणी के लिये क्षमाप्रार्थी हूँ. काव्य की दृष्टि से रचना उच्च कोटि की है. लयबद्धता और सुंदर शब्द-चयन आपकी विशेषता है ही. परंतु वैचारिक स्तर पर हिंसा को गलत मानने के बावज़ूद में पूरी तरह आपसे सहमत नहीं हूँ. विशेषतौर पर इस पँक्ति को:
’खड्ग उठाते हाथों को हँसकर निज शीश थमा दे ।’
क्योंकि अन्याय सहन करना भी उसका साथ देने के समान ही है.

Kamlesh Nahata का कहना है कि -

badhiya lagi.

likhte rahiye.

Admin का कहना है कि -

कविता के प्रवाह कॊ देखकर मन बहुत प्रसन्न हुआ। कवितामें भारतीयता की पूरी झलक है। हां शीर्षक सुझा पाना हमारे बस का नहीं। कविता बहुत सुन्दर है। शेष भाग की प्रतीक्षा है।

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

आलोक जी,

आपका ही आग्रह था कि कविता की केवल तारीफ़ न की जाय। लेकिन यहाँ परेशानी यह है कि हम समीक्षक जैसी गहरी दृष्टि नहीं रखते। मैं तो इसमें हिन्दी कविता की परम्परा को जीवित रखने का प्रयास देख रहा हूँ। कैसे आलोचना करूँ?

जहाँ तक शीर्षक की बात है तो मेरे हिसाब से आपने कविता का शीर्षक सटीक चुना है।

गौरव सोलंकी का कहना है कि -

अच्छी कविता है। आपके स्टाइल की है। हर पंक्ति बहुत सा गहरा अर्थ भी लिए है, लेकिन जैसा कि आपने कहा कि और भी बढ़ाई जा सकती थी, ऐसा मुझे भी लगा।
लगा कि अभी पूरी नहीं हुई है कविता। कुछ और समय चाहिए था इसे। आशा करता हूँ कि जल्दी ही इसका पूरा रूप भी मिलेगा आपसे।

Gaurav Shukla का कहना है कि -

आलोक जी

मन प्रफुल्लित हो गया,
शिल्प की बात करें तो वह अद्भुत है
सुन्दर शब्द-चयन पूरी कविता को मोहक बना देता है, जिसे संतुलित शब्द-विन्यास ने और आकर्षक बना दिया है!
कविता में प्रवाह के साथ पूर न्याय किया है आपने, गेयता बनी हुई है, बहुत ही सुन्दर काव्य

अच्छे भाव निहित हैं कविता में किन्तु "भय बिनु होई न प्रीत" भी आज उतना ही सत्य है
जिन आदर्श परिस्थितियों की संकल्पना आपने की है वह स्वागतयोग्य है

पुनः हार्दिक बधाई

सस्नेह
गौरव शुक्ल

Shishir Mittal (शिशिर मित्तल) का कहना है कि -

Bahut sundar kavitaa hai!

Kavitaa mein chjchand aur pravah ho, padhane kaa mazaa to tabhee aataa hai! bhai waah! aapane Dinkar kee yaad dilaa dee.

Sheershak sarvathaa uchit hai. Vichaaron se main sahamat naheen hoon, par isase kavitaa kee khoobsooratee mein koee antar nahee aataa.

रोज मरुस्थल में गुलाब के फूल नहीं खिलते हैं
माँदों में सिंह की ,जीवित क्या हिरण कभी मिलते हैं ?
विस्मय ही है यदि रण में भी शांति पुष्प खिल जाये
शोणित - सरिता में यदि कोई श्वेत वसन मिल जाये ।
"arthaantarnyaas" alankaar ke yaha bade achche udahran hain.

ek-do jagah shaayad corrections hain (typing ke) :
(1) शोणित-दृक्कलिमा लिखित नरता की अद्भुत गाथा
"दृक्कालिमा" hogaa shaayad, ek aa kee maatraa choot gayee hai.

(2)किसी मूल्य के लिये नहीं पर हिंसा हित उद्धत हो ।

किसी मूल्य के लिये नहीं पर-हिंसा-हित उद्धत हो ।

* समासित पदों में '-' लगा दें
* 'उद्धत' की बजाय 'उद्यत' पाठ में ज्यादा सुंदर लगेगा. अर्थ तो दोनों का ही ठीक है.

कृपया अनधिकार चेष्टा न मानें.

कविता बहुत सुंदर थी.

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