पता है चन्दू?
ये जो चरित्तर है ना,
जिसके खो जाने के डर से
तेरी मुनिया
पिछले बरस जमना में डूब मरी थी,
इस चरित्तर को
आजकल सब माँ की गोद से उतरते हुए
वहीं छोड़ आते हैं,
रोज चरित्रहीन होते हैं,
उसका रोज ज़श्न मनाते हैं;
और तू,
जो सुबह से शाम तक कुदाल चलाते हुए
ईमान-धर्म की बातें करता रहता है,
बहुत अभागा है,
इस ईमान को लाखों बाबू, दफ़्तरों में
और धर्म को लाखों बाबा, टेलीविज़न पर
सुबह से शाम तक,
बेहिचक बेचते हैं;
और स्कूल के मास्टरजी,
जो दिन भर पढ़ने-पढ़ाने को भूलकर,
तेरे बच्चे से चाय बनवाते हैं
और पान मंगवाते हैं,
उनके बच्चे
बड़े स्कूलों में पढ़कर
पटापट अंग्रेज़ी बोलते हैं;
तेरे रामजी,
जो साल में तुझको
एक बोरी अनाज देते हुए
बहुत सकुचाते हैं,
उन्होंने अवध में कहीं
अपना एक मन्दिर बनवाकर,
कुछ दलाल रख छोड़े हैं,
और वे दलाल
देश को बहुत बार
उंगलियों पर नचाते हैं,
खून के फव्वारों में वे
बहुत शौक से नहाते हैं;
और ताज़महल,
जिसको बनवाने वाले ने
तेरे पुरखों के हाथ काट दिए थे,
उसके लिए हिन्दुस्तानी
खुशी से एस.एम.एस. कर रहे हैं,
'क्रांतिकारी' अख़बार भी रोज उस पर
कई पन्ने काले कर रहे हैं;
पता है चन्दू,
जुगाड़ के बिना ज़िन्दगियाँ
पहाड़ सी पथरीली होने लगी हैं,
किसानों की आत्महत्या की ख़बरें
किसी 'राखी सावंत' के शोर में खोने लगी हैं;
पता है चन्दू,
हिन्दुस्तान तुझसे और तुझ जैसों से
ऊब चुका है,
उम्मीद का झूठा सूरज,
शायद कई बरस पहले ही
डूब चुका है;
हिन्दुस्तानी अब धीरूभाई के बेटों की
मुट्ठी में दुनिया करने के लिए जी रहे हैं,
एस.ई.ज़ैड. के बीज कीड़े बनकर
तेरी माँ का खून पी रहे हैं;
पता है चन्दू,
अब अगर और जीना है ना
तो क्रांति नहीं,
क़यामत लानी होगी,
ये दर्द की कहानी
रो-रोकर नहीं,
चिल्लाकर सुनानी होगी,
इस बार का रावण
बिना विभीषण उतर आया है,
बादल जमीन का पानी चूस रहे हैं,
हर ज्वालामुखी आकाश तक चढ़ आया है,
न कलम चैन लेती है,
न कुदाल साँस ले पा रही है,
पता है चन्दू,
निर्णयों की घड़ी नज़दीक आ रही है।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
33 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत सुंदर कविता है। पढ़कर स्तंभित हूं।
achchi hai....
samajh bhi aa gayi iss baar to... congrats...
achha prayas hai.........
sath hi Janmdin ki hardik badhayi.
hello sir bahut achchi hai kafi achchi hai is mein start se le kar aaj ke life ka pata chal raha hai ..............i like it ............keep going....
behatareeen....!!!
aapne to is ek kavita me poora Hindustan samet diya.. :)
Janmdin ki bahut-bahut badhai sahab...
aise hi Hindi-Matribhasha ki sewa karte rahiye aur hamare dilon me ujagar rakhiye apne sarahniya prayason se..
बहुत ही गहरी सोच और उतना ही अच्छा प्रस्तुतिकरण ! अति सुन्दर गौरव जी । और आपको जन्म्दिन की हार्दिक शुभकामनायें ।
आलोक
सुंदर कविता है गौरव ..जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ:):)
न कलम चैन लेती है,
न कुदाल साँस ले पा रही है,
पता नहीं क्यों ये पंक्तियां एक सुखद अहसास दे गयी। गौरव जी, जन्मदिन की बधाई स्वीकारें।
अपने के दोस्त सहनशील की आज से लगभग तीस साल पहले लिखी गयी दो पंक्तियां आपको सुनाता हूं-
हमको नक्शे से अलग कर क्या बचेगा देश में
हम तो हिन्दुस्तान की पहचान हैं फुटपाथ पर
चन्दू के माध्यम से जो आप कहना चाहते थे, बखूबी कह गये ,कहीं कहीं लगा जैसे लयता खोने लगी, तो वहीं आपने कुछ एसा कह दिया कि फिर से रचना मे खो गये ।
बधाई स्वीकार करें ।
आर्यमनु ।
गौरव जी,
कविता सुंदर बन पड़ी है, विशेषकर भाव-पक्ष बहुत सशक्त है. जन्म-दिन की हार्दिक शुभकामनायें.
behad khubsurti ke saath desh ki hakikat samne laye ho.haan sayad hum soto ko tab tak nahi jaga sakte jab tak ki vo khud kuchh na karna chahe.
sahrid samajik siskiyon ko har chandu sun sake aur n uski kudal kabhi thake n apki kalam kabhi ruke....ashesh badhaee...aur han janm din ke liye hardik subhkamnayen...
सबसे पहले तो गौरव तुम्हे जन्म-दिन की ढेर सारी शुभ-कामनाएं साथ ही उस माँ को भी जिसने तुम्हारे जैसे सुपुत्र को जन्म दिया है...भई पास होते तो मिठाई खिलाते अब शुभ-कामनाएं ही दे सकते है बस...
और कविता क्या लिखते हो गअब ही करते हो...पढ़ कर लगता है तुम्हारी उम्र हमसे बहुत ही जियादा है तनिक आभास भी नही होता कि तुम इतनी छोटी सी उम्र में जिन्दगी को इतना नजदीक से जानते हों...:)
मेरा आशीर्वाद है कि तुम और तरक्की करो खूब नाम कमाओ...
सुनीता(शानू)
जन्मदिवस पर हार्दिक बधाईयाँ मित्र!
कविता का भाव-पक्ष बहुत ही ग़ज़ब का है, दिल को छू लेने वाली रोज़मर्रा के जीवन की कड़वी सच्चाई को खूबसूरती से शब्दों का जामा पहनाया है।
बधाई!!!
सुंदर सशक्त भाव-पक्ष कविता है गौरव ..जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ
गौरव मैं रंजन जी की इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ कि 'गौरव सोलंकी' हिल्द युग्म का बेजोड़ हीरा है। बहुत प्यारा और गहरा सोचते हो मित्र।
sach kahun to tune mujhe rula diya.aur koi shabd nahin hai mere paas....
Bade BHaiya ko Saadar Pranaam, aapki kavita padhi, sach kaha jaaye to ye sirf aap ki Kavita nahi ye to Vartmaan Samaaj ki Kavita hai, hum sabki Kavita hai, aage bhi aapse yahi aasha ki samaaj ko jaagrit karne ke liye aap likhte rahenge....
Shubdin
अच्छी कविता लगी। आपमें असीम संभावनाएं हैं।
निखिल
क्या कामाल की बात केह दी आपने गौरव जी... बहुत खूब.. एक सच यह भी है कि बहुत कम लोग इस सच को मह्सूस करना जानते हैं..
wah......
bhaav paksha
bahut sundar hai..
badhaaee
s-snah
gita pandit
ये जो चरित्तर है ना,
जिसके खो जाने के डर से
तेरी मुनिया
पिछले बरस जमना में डूब मरी थी,
इस चरित्तर को
आजकल सब माँ की गोद से उतरते हुए
वहीं छोड़ आते हैं,
गौरव जी, इस बात की प्रसन्नता हुई कि आप नयी कविता पर भी समान दखल रखते हैं। आपकी कवितायें यह दर्शाती हैं कि सोच उम्र और अनुभव की राह नहीं तकती। आपकी पंक्तियों नें मन छील कर रख दिया...
"जो सुबह से शाम तक कुदाल चलाते हुए
ईमान-धर्म की बातें करता रहता है,
बहुत अभागा है"
"हिन्दुस्तान तुझसे और तुझ जैसों से
ऊब चुका है"
मुझे इस रचना के अंत ने भी उद्वेलित किया:
"न कलम चैन लेती है,
न कुदाल साँस ले पा रही है,
पता है चन्दू,
निर्णयों की घड़ी नज़दीक आ रही है।"
*** राजीव रंजन प्रसाद
पता है चन्दू,
अब अगर और जीना है ना
तो क्रांति नहीं,
क़यामत लानी होगी,
ये दर्द की कहानी
रो-रोकर नहीं,
चिल्लाकर सुनानी होगी,
आपकी ये पंक्तियाँ भगत सिंह की उस पंक्ति से मिलति हैं
जिसमे उन्होने कहा था बहरों को सुनाने के लिए धमाके की
जरूरत होती है
सुन्दर कविता है
सर्वप्रथम जन्मदिवस की कोटिशः शुभकामनाएँ.........
आपकी कविता पर क्या टिप्पणी की जाये, समझ में नहीं आ रहा है? आपकी पंक्तियाँ अनुपमेय होती हैं, जीवन की सत्यता प्रतिबिम्बित होती है इनमें ।
बहु धन्यवाद: भो !! सफलतायाः शिखरं प्राप्नोतु...मम शुभकामनेति ।
Atyant sundar kavita hai ji.........
आहा!!
कविता के ऐसे गंभीर और अति प्रबल भाव??
आपकी विराट सोच को कोटिशः नमन है गौरव जी
सिहरा दिया है आपकी कविता ने
"न कलम चैन लेती है,
न कुदाल साँस ले पा रही है,
पता है चन्दू,
निर्णयों की घड़ी नज़दीक आ रही है।"
आप लिखते रहें ऐसा ही और खूब लिखें
जन्मदिवस की हार्दिक शुभ कामनायें
सस्नेह
गौरव शुक्ल
बहुत सरलता से हमें गाली दिया है आपने। कविता में कथ्य कहने के आपके स्टाइल से मैं हमेशा प्रभावित रहा हूँ। केवल कुछ पंक्तियों को क़ोट करने से कविता के साथ अन्याय करूँगा।
realy its amazing keep it up.
क्षमा चाहता हूँ मित्र जो मैं इसे वक्त पर नहीं पढ पाया।कविता उद्वेलित करती है। कुछ नया एवं अच्छा करने की सीख देती है। आपसे इसी तरह कुछ सीखने को मिलता रहे तो अपने तो भाग्यशाली समझूँगा। बस आप नज़र बनाए रखें हमपर।
maafi chahta hu gaurav ji..........
parntu ye aapki pahli rachna hai jo samjh main aayi hai...
isake liye aapko dhero badhaiya....
isi prakar ki rachanayelikhte rahe jo hum jaise aam insano ko bhi samjh aa jaye.....
"जो सुबह से शाम तक कुदाल चलाते हुए
ईमान-धर्म की बातें करता रहता है,
बहुत अभागा है"
"हिन्दुस्तान तुझसे और तुझ जैसों से
ऊब चुका है"
पता है चन्दू,
अब अगर और जीना है ना
तो क्रांति नहीं,
क़यामत लानी होगी,
ये दर्द की कहानी
रो-रोकर नहीं,
चिल्लाकर सुनानी होगी,
dear shri Gaurav ji, aaj ke samajik aur political samay ka bahot hi achha chitrankan kar diya hai aapne. sahi hai aap ki baat - ab ye dard ki kahani ro ro kar nahi, chilla kar sunani hogi. its really great. n MANY MANY HAPPY RETURNS OF THE DAY
simply awesome................keep doing it.........
itni achhi kavita likhane ke liye apne jo addyayan kiya aur itni badi baat ko in shabdo me sargarbhit kiya ya vichar karte hi achambhit hoon
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)