राजनीति की विवशता थी
कि पश्चिम से सूरज उगा
एसा देदीप्यमान
कि संसद की चिमनी से उठता
कसैला धुवां ढक न सका अंबर
गर्व से बच्चा-बूढा, नर-नारी, खास-आम
जो आम रास्ता नहीं था
उसके भीतर के अपने को
अपना कहते न अघाते थे
कि पश्चिम से सूरज उगा
एसा देदीप्यमान
कि संसद की चिमनी से उठता
कसैला धुवां ढक न सका अंबर
गर्व से बच्चा-बूढा, नर-नारी, खास-आम
जो आम रास्ता नहीं था
उसके भीतर के अपने को
अपना कहते न अघाते थे
यह जर्जर-बूढा देश, सांस लेने लगा था
जब पहला नागरिक, वह व्यक्ति हुआ था
जिसमें इतनी उर्जा थी
जो किसी परमाणु अस्त्र में क्या होती?
इतनी नम्रता थी
कि फल के बोझ से लदी डाल भी शरमाये
इतनी सोच कि जैसे
शारदा की वीणा का एक तार वह स्वयं हो
इतना ममत्व
कि किसी की माँ, तो चाचा किसी का
और लगन इतनी
कि सातों आसमान छू कर भी
किताब हाँथों से छूटती ही नहीं...
कलाम एक दर्शन है
कि काजल की कोठरी में
उजला कबूतर...
राजनीति के आँकडे
शकुनी के पासे हो गये
कुर्सी और कीचड
ये बेमौसम की होली थी
लेकिन तुम तो मुस्कुराते रहे
तुम्हारे मस्तक पर रोली थी
विदा कलाम!!!
एक कुर्सी, एक पद, केवल इतना ही
लेकिन कोटि कोटि हृदय में सर्वदा-सर्वदा
आपकी ही प्राथमिकता
अमिट आपकी जिजीविषा, आपका मार्ग
अमिट आपका नाम
कलाम! सलाम!!!
*** राजीव रंजन प्रसाद
23.07.2007
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22 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत सुन्दर, राजीव जी। इस कविता को पढ़ कर तृप्ति मिली।
और लगन इतनी
कि सातों आसमान छू कर भी
किताब हाँथों से छूटती ही नहीं...
आपकी कलम भी खूब चली है। वाह..
आपकी कविता मुझे बहुत अच्छी लगी। भारत का दुर्भाग्य है कि कलाम जैसे व्यक्ति राजनीति के शिकार हो जाते है और विकल्प के तौर पर "रबर की मोहर" खोज ली जाती है।
रचना सागर
बहुत सुन्दर, बहुत सुन्दर।
हमारे पोस्ट के शीर्षक तक मिल गए!
राजीव जी,
कलाम को सलाम के लिये आपको सलाम...
सचमुच कलाम एक तटस्थ, सक्षम व गहरी सोच के व्यक्ति हैं.. परन्तु राजनीति के गलियारे कहां जा कर खुलते है कोई कह नही सकता.
Rajeevji aapki kalam ko salaam....
यह जर्जर-बूढा देश, सांस लेने लगा था
जब पहला नागरिक, वह व्यक्ति हुआ था
जिसमें इतनी उर्जा थी
जो किसी परमाणु अस्त्र में क्या होती?
इतनी नम्रता थी
कि फल के बोझ से लदी डाल भी शरमाये
इतनी सोच कि जैसे
शारदा की वीणा का एक तार वह स्वयं हो
इतना ममत्व
कि किसी की माँ, तो चाचा किसी का
और लगन इतनी
कि सातों आसमान छू कर भी
किताब हाँथों से छूटती ही नहीं...
Bahut aacha laga ki aapne itna hat kar socha...aur itna khoobsoorat socha.....Kavita man le gai...
BIG SALUTE TO YOU AND THIS GREAT MAN!!!
FEW Achievements:-
Born on 15th October 1931 at Rameswaram in Tamil Nadu, Dr. Avul Pakir Jainulabdeen Abdul Kalam, specialized in Aeronautical Engineering from Madras Institute of Technology. Dr. Kalam made significant contribution as Project Director to develop India's first indigenous Satellite Launch Vehicle (SLV-III) which successfully injected the Rohini satellite in the near earth orbit in July 1980 and made India an exclusive member of Space Club.
Dr. Kalam is one of the most distinguished scientists of India with the unique honour of receiving honorary doctorates from 30 universities and institutions. He has been awarded the coveted civilian awards - Padma Bhushan (1981) and Padma Vibhushan (1990) and the highest civilian award Bharat Ratna (1997). He is a recipient of several other awards and Fellow of many professional institutions.
Dr. Kalam became the 11th President of India on 25th July 2002. His focus is on transforming India into a developed nation by 2020.
बहुत अच्छा राजीव जी,
भारत को विकसित राष्ट्र का सपना दिखाने वाले कलाम को सलाम!!!
बहुत सही राजीव जी!!
नमन राजीव जी,
परम आदरणीय कलाम जी जैसे विराट व्यक्तित्व को संभवतः उनके कार्यकाल के अन्तिम दिवस पर आपने सच्चे अर्थों में निस्पृह विदाई दी है
आपने सही लिखा है
"राजनीति की विवशता थी
कि पश्चिम से सूरज उगा
एसा देदीप्यमान
कि संसद की चिमनी से उठता
कसैला धुवां ढक न सका अंबर"
"जब पहला नागरिक, वह व्यक्ति हुआ था
जिसमें इतनी उर्जा थी,इतनी नम्रता थी, इतनी सोच कि जैसे
शारदा की वीणा का एक तार वह स्वयं हो, इतना ममत्व और इतनी लगन"
"कलाम एक दर्शन है"
"लेकिन तुम तो मुस्कुराते रहे
तुम्हारे मस्तक पर रोली थी"
"अमिट आपका नाम
कलाम! सलाम!!!"
अमिट आपका नाम
कलाम! सलाम!!!
सब कह दिया है आपने अपनी कविता में, बस अब हमारा ही दुर्भाग्य है कि राजनीति का चरित्र इतना गिर चुका है कि अब कोई आशा शेष नहीं. इस कोयले की कोठरी में भी अपना व्यक्तित्व, अपना चरित्र बनाये रखना ही नहीं बल्कि उसे और प्रभावशाली रूप में देश की उन्नति की निस्वार्थ इच्छा को पूर्ण करने लिये सकारात्मक दिशा देना प्रिय महामहिम जैसे विरले का ही सामर्थ्य है
श्रद्धेय कलाम जी को सादर नमन
राजीव जी आपका हार्दिक अभिनंदन, आज आपने सिद्ध कर दिया है कि आप सच्चे अर्थों में कवि हैं जिसे कवि के रूप में अपनी सामाजिक, नैतिक जिम्मेदारी का पूरा अह्सास है
बहुत बहुत बधाई
सस्नेह
गौरव शुक्ल
कलाम एक दर्शन है
कि काजल की कोठरी में
उजला कबूतर...
सच है राजीव जी, देश का हर बुद्धिमान नागरिक कलाम साहब को अपना आदर्श मानता है, राजनिती के दाव पेच चाहे कुछ भी कहें
चुभता है आँखों में जिनकी सपना जगती आँखों का
वो क्या जानें सोकर उठने पर सपने बेमानी हैं
ये जो जाते हैं कलाम, सपनों को भी पथ दिखलाते,
उनका मोल कहें क्या वो जिनकी आँखें बे- पानी हैं
लूट देश की इज्जत को ये तथाकथित सब कर्णधार
अब भी सीना ठोंक कहेंगे, हम भी हिन्दुस्तानी हैं
दूर रहने के कारण भारत की राजनीति के बारे में अधिक जानकारी नहीं हो पाती। पर कलामजी के व्यक्तित्व से पहले से ही प्रभावित थी। जो कसर रह गयी थी आपकी कविता ने पूरी कर दी। बधाई।
वाह वाह, बहुत ही सुन्दर कविता। कलाम चाचा को नमन्।
राजीव जी, आपने जो भी लिखा है बहूत ही अच्छे विचार है किन्तु मेरा कहना यह है कि हर विचार को कविता का रूप देना आवश्यक है ?
जोशी5 जी
जी, जरूरी नहीं कि हर विचार को कविता का रूप दिया जाये किंतु जो विचार मन को स्पर्श करें वह कविता बन जाये तो कवि की विवशता मानिये इसे। वैसे कलाम को मैं "व्यक्ति" नहीं "दर्शन" मानता हूँ।
*** राजीव रंजन प्रसाद
आपने कलाम साहब को वो विदाई दी है, जिसके वे सच्चे अर्थों में हक़दार हैं।
साथ ही यह सामान्य प्रशस्ति-पत्र नहीं है, आपने इसे एक खूबसूरत कविता भी बनाया है। अब यह निश्चय करना मुश्किल है कि कविता की खूबसूरती कलाम साहब के कारण है या आपकी कलम के कारण...
कि संसद की चिमनी से उठता
कसैला धुवां ढक न सका अंबर
कि सातों आसमान छू कर भी
किताब हाँथों से छूटती ही नहीं...
कि काजल की कोठरी में
उजला कबूतर...
अद्भुत बिम्ब।
आपको भी सलाम।
विदा कलाम!!!
एक कुर्सी, एक पद, केवल इतना ही
लेकिन कोटि कोटि हृदय में सर्वदा-सर्वदा
आपकी ही प्राथमिकता
अमिट आपकी जिजीविषा, आपका मार्ग
अमिट आपका नाम
कलाम! सलाम!!!
निस्संदेह राजनीति के खेल में हमने कलाम जी जैसा एक व्यक्तित्व खोया है। राष्ट्रपति का पद एक ऎसा पद होता है , जिसके लिए हम-आप जैसे आम इंसान अपना मत नहीं दे सकते। हमारा पास हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने के अलावा कोई चारा नहीं होता। अब बस उम्मीद हीं कर सकते हैं कि भारत की प्रथम महिला रबर स्टांप होने के अलावा कुछ और भी हो पाएँगी।
इस खूबसूरत रचना के लिए राजीव जी बधाई के पात्र हैं। तात्कालिक विषयों पर लिखने में राजीव जी का कोई सानी नहीं है। आपकी इस रचना के माध्यम से हम भी कलाम साहब को विदाई देते हैं।
कलाम! सलाम!
कलाम तुझे सलाम। आज के समय में इतनी निष्पक्षता एवं राष्ट्रभक्ति के साथ जॊ आपने कार्य किया उसी के कारण आप पुनः नही चुने जा सके।
इस कविता को पढ़ कर तृप्ति मिली।
राजीव जी,
यह स्पष्ट नही हो पा रहा है कि कलाम चाचा की विदाई कर रहे हैं या इक पूर्व राष्ट्रपति (महामहिम) की।
मुझे लग रहा है सिर्फ कलाम चाचा की.
कुछ लाइने तो संसद व संविधान को भी कटघरे मे खींच रही है..........
"कलाम एक दर्शन है
कि काजल की कोठरी में
उजला कबूतर"
अनिल जी,
सच है कि कोई "महामहिम" हो और जन मानस का इतना अपना हो जाये...आपकी बात सत्य है पद और व्यक्तित्व का अपनत्व इतने घुल गये थे कि विदायी किसे दी है रचना में स्पष्ट नहीं है।
संसद और संविधान को नहीं व्यवस्था को कटघरे मे खडा किया है इस रचना मे।
*** राजीव रंजन प्रसाद
कलाम साहब के लिए आदर...कवित मे से ताप ताप कर के टपकता है....
हर शब्द सटीक....
व्यर्थ की पंक्तियाँ नही है
ख़ुशी हुई पद कर
बधाइयाँ
भारतीय संविधानानुसार राष्ट्रपति सपने तो दिखा सकता है लेकिन उसके लिए कुछ कर नहीं सकता। मतलब अधिकार कुछ ख़ास नहीं होता। फ़िर भी कलाम ने कम से कम बच्चों-बच्चों से मिलकर उन्हें देश के लिए कुछ कर गुजरने की सीख दी है, यह अपने-आप में उत्कृष्ट काम है उनका।
मगर राजनीति का अपना नीतिशास्त्र है, वो भावनाओं से नहीं चलता। आपकी कविता आपके उद्गार बयाँ करती है।
कविता से यह नहीं झलकना चाहिए की संविधान से आपकी आस्था जा रही है।
भावों से सरावोर आपकी कविता में केवल सत्य बह रहा है-
राजनीति के आँकडे
शकुनी के पासे हो गये
कुर्सी और कीचड
ये बेमौसम की होली थी
लेकिन तुम तो मुस्कुराते रहे
तुम्हारे मस्तक पर रोली थी
ऐसा व्यक्तित्व, सच में असंभव है।
rajiv ji aapne bahut acchi kavita hi. vastav me aisi rchna ki jarort hi
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)