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Thursday, July 05, 2007

अनुराधा दे रही हैं नवसंदेश


सोमवार, २ जुलाई २००७ को आपने प्रतियोगिता के परिणाम पढ़े, जहाँ शीर्ष चार कविताएँ प्रकाशित की गई थीं। चूँकि दूसरे स्थान पर कुल २ कविताएँ थीं, अतः अब जो हम कविता प्रकाशित करने जा रहे हैं उसे आप एक दृष्टि से चौथे स्थान पर भी रख सकते हैं और एक दृष्टि से पाँचवे पर भी।

कविता- नवसंदेश

उषे! तुम्हारी स्वर्णिम आभा गुदगुदाती है मन को
उजली छटा धो डालती है अन्तःतम को
किरणों की मेखला घेर लेती है तन को
उषे! प्रभात के नवसंदेश के रथ पर आरूढ़
देती हो जन जन को नवस्फूर्ति,
क्लान्त उदास मनों को देती हो नवसंदेश-
"हरा है जैसे तम को मैंने,
हरो वैसे ही अन्तःतम को तुम भी।
बना लो प्रेरणा मुझे तुम,
चलो मेरे पथ पर बन कर अनुगामी।
बनेंगी मेरी किरणें तुम्हारी पथप्रदर्शक
कभी न होने देंगीं ये विचलित;
फिर भी कभी ले यदि अवसाद घेर
बनना दृढ़प्रतिज्ञ्य तुम करना प्रतीक्षा;
नवप्रभात करेगा तुम्हारी रक्षा।
चल पड़ना लक्ष्य की डगर पर
चढ़ता सूरज रहेगा साक्षी
तुम्हारी सफलता मनोबल के पथ पर मिलूँगी मैं बाहें पसारे
स्वागत है, स्वागत है, स्वागत है।
लक्ष्य पथ में स्वागत है।"
उषे! तुम्हारी प्रेरणा बदल देती है राहें
पथच्युत को करती है अग्रसर।
उषे! बनो तुम सभी की प्रेरणादायिनी
युगों युगों से चल रहा है अनवरत जो क्रम
सृष्टि के आदि से अंत तक रहो
तुम जन जन की चेतना शक्ति; पथप्रदर्शक।

कवयित्री- अनुराधा जगधारी (अनुराधा श्रीवास्तव), भीलवाड़ा (राजस्थान)

प्रथम चरण में कविता को मिले अंक- ६, ७, ७॰५
औसत अंक- ६॰८३३३
स्थान-
द्वितीय चरण में कविता को मिले अंक- ८॰१, ७॰५, ७, ६॰८३३३ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰३५८२५
स्थान-
तृतीय चरण में कविता को मिले अंक- ८, ७॰३५८२५ (पिछले चरण का औसत)
औसत- ७॰६७९१२५
स्थान-

अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
कविता में कथ्य की नवीनता नहीं है, प्रस्तुतिकरण भी साधारण है। कविता का अंत प्रभावी है।

कला पक्ष: ६/१०
भाव पक्ष: ५॰५/१०
कुल योग: ११॰५/२०

पुरस्कार- कवि कुलवंत सिंह की ओर से उनकी काव्य-पुस्तक 'निकुंज' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।

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12 कविताप्रेमियों का कहना है :

आशीष "अंशुमाली" का कहना है कि -

चल पड़ना लक्ष्य की डगर पर
चढ़ता सूरज रहेगा साक्षी
तुम्हारी सफलता मनोबल के पथ पर मिलूँगी मैं बाहें पसारे
स्वागत है, स्वागत है, स्वागत है।
अहा.. बधाई हो अनुराधा जी। सुन्‍दर कविता।

उषे! बनो तुम सभी की प्रेरणादायिनी
युगों युगों से चल रहा है अनवरत जो क्रम
सृष्टि के आदि से अंत तक रहो
तुम जन जन की चेतना शक्ति; पथप्रदर्शक।
इस रचना से अभिभूत हूं।

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

कविता बताती है कि कवि में अपार संभावनायें हैं। बहुत स्वागत है आपका युग्म पर।

*** राजीव रंजन प्रसाद

आर्य मनु का कहना है कि -

अहा इतना सुन्दर अभिनन्दन ।

आपका भी अभिनन्दन-अभिवन्दन ।
आर्यमनु

Nikhil का कहना है कि -

अनुराधा जी,
बड़ी प्यारी रचना है...
तुम्हारी सफलता मनोबल के पथ पर मिलूँगी मैं बाहें पसारेस्वागत है, स्वागत है, स्वागत है

कविता बहुत सक्षम है मन के भावों को उकेरने में....
अगली बार कि प्रतियोगिता में आपकी प्रबल संभावना है........

निखिल आनंद गिरि

Sanjeet Tripathi का कहना है कि -

यह जानकारी पहली बार हुई कि अनुराधा जी इतना बढ़िया लिखती हैं!!

शुभकामनाएं उन्हें!!

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

कथ्य पुराना है, लेकिन कविता में काव्यात्मक लक्षण हैं। साधा जाये तो आप ज़रूर सफल होयेंगी।

Alok Shankar का कहना है कि -

प्रयास अच्छा है, पर कविता में अपरिपक्वता साफ़ झलकती है। तत्सम शब्दों का प्रयोग किया है पर सही शब्द सही जगह नहीं प्रयोग किये । एक पंक्ति में एक भारी शब्द का प्रयोग साफ़ दिखता है पर प्रवाह को संतुलित न कर पाईं हैं । समय के साथ काफ़ी सुधार आयेगा। आपमें काफ़ी प्रतिभा है , जरूरत है तो सिर्फ़ सही तरीके से सवाँरने की । लिखते रहिये ।

Anonymous का कहना है कि -

अनुराधा जी,

आपका नवसंदेश बेहद पसंद आया, आपमें आपार क्षमताएँ है, लेख़न कार्य जारी रखें, सुधार स्वत: होता जायेगा...

एक सुन्‍दर कविता के लिये बधाई स्वीकार करें।

सस्नेह,

गिरिराज जोशी "कविराज"

SahityaShilpi का कहना है कि -

अनुराधा जी,
युग्म पर आपकी इस पहली रचना को देखकर बहुत खुशी हुई, हालाँकि मैं इसे पहले ही पढ़ चुका हूँ. जैसा कि हमारे कई कवि और पाठक मित्रों ने कहा, आपकी क्षमताओं में किसी को भी संदेह नहीं हो सकता. निश्चय ही थोड़ा और प्रयास करने पर आप इससे भी अच्छा लिख सकतीं हैं. आशा है कि अगली बार कुछ और भी बेहतर पढ़ने को मिलेगा.

रंजू भाटिया का कहना है कि -

सुंदर रचना है सुंदर भाव के साथ ... स्वागत है आपका युग्म पर :)

anuradha srivastav का कहना है कि -

'नवसंदेश" पर टिप्पणी करने के लिये मैं आप सभी की आभारी हूं। खास कर के अजय जी की जिनके प्रोत्साहन के बिना ये सम्भव नहीं था। समय-समय पर उनका पूरा-पूरा सहयोग ऒर मार्गदर्शन मिला उसके लिये साधुवाद। कविता स्वानन्द हेतु लिखी गई थी, प्रकाशनर्थ भेजने का इरादा दूर-दूर तक नहीं था ।
भविष्य के लिये आलोक शंकर जी से विस्तृत मार्गदर्शन की कामना है। आशा है इसी प्रकार भविष्य में भी आप सभी का सहयोग ऒर मार्गदर्शन मिलेगा ।
धन्यवाद.

anuradha srivastav का कहना है कि -

'नवसंदेश" पर टिप्पणी करने के लिये मैं आप सभी की आभारी हूं। खास कर के अजय जी की जिनके प्रोत्साहन के बिना ये सम्भव नहीं था। समय-समय पर उनका पूरा-पूरा सहयोग ऒर मार्गदर्शन मिला उसके लिये साधुवाद। कविता स्वानन्द हेतु लिखी गई थी, प्रकाशनर्थ भेजने का इरादा दूर-दूर तक नहीं था ।
भविष्य के लिये आलोक शंकर जी से विस्तृत मार्गदर्शन की कामना है। आशा है इसी प्रकार भविष्य में भी आप सभी का सहयोग ऒर मार्गदर्शन मिलेगा ।
धन्यवाद.

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