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Friday, July 06, 2007

प्रेयसि वर्षा की ऋतु आयी


अंबर के आनन को घेरा, कजरारे मेघों के दल ने
गर्मी से कुछ राहत पाई, ज्वलित-प्राण संसार सकल ने
सूखे थे नदियाँ और नाले, प्रकृति का झुलसा आँचल था
धरती की कुछ तपन मिटाई, वर्षा के मृदु शीतल जल ने
प्रेम-मिलन संदेश सुनाती, बहने लगी हवा पुरवाई
प्रेयसि वर्षा की ऋतु आयी

खेतों को फिर कदम बढ़ाये, मतवाले कृषकों ने मिलकर
वर्षा-मंगल की ध्वनि छेड़ी, मुखरित ग्राम्य-वधू ने सस्वर
मिट्टी की सौंधी खुशबू से, महक उठा घर-आँगन सारा
माँ को बेटी की सुधि आयी, दूर बसी परदेश जो जाकर
झूले डाल लिये सखियों ने, पड़ने लगी मल्हार सुनायी
प्रेयसि वर्षा की ऋतु आयी

पुलकित प्रकृति लगती सारी, निखरें हैं तरु-पत्र धुले से
काले जामुन, पकी निंबौली, पाकर हर्षित पुष्प खिले से
प्रेम-सुधा बरसाता बादल, पास बुलाता है अपनों को
प्रियतम को आमन्त्रित करते, गोरी के फिर केश खुले से
तृप्त हुये सब जीव जगत के, प्यास न चातक की बुझ पायी
प्रेयसि वर्षा की ऋतु आयी

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18 कविताप्रेमियों का कहना है :

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

अजय जी,
प्रेयसि के साथ मिलकर वर्षा का खूब स्वागत किया है आपने। आपके इस काव्य-मल्हार का असर दिल्ली के आसमान पर दिख भी रहा है :)

प्रकृति पर बहुत कम कवि साधिकार लिख पाते हैं। आपनें जिस भाषा और प्रवाह में लिखा है उसे पढने का आनंद पडती हुई फुहारों जैसा ही है..

शब्द चयन नें भी आनंदित किया। जैसे "गर्मी से कुछ राहत पाई" की सरलता और "ज्वलित-प्राण संसार सकल ने" की संस्कृत निष्ठता एक अनुकरणीय युग्म है। एसे बहुत से उदाहरण आपने रचना में प्रस्तुत किये हैं।

आँखों के आगे चित्र खींचती हुई रचना है। बहुत बधाई आपको।

*** राजीव रंजन प्रसाद

Alok Shankar का कहना है कि -

अजय जी, कविता किसी पुरानी कविता की याद दिलाती है… और स्वर भी किसी सधे कवि की तरह है
॥ आप कविता को साधने में सफ़ल रहे हैं ।
बस, ऐसे ही लिखते रहिये ।
आलोक

कंचन सिंह चौहान का कहना है कि -

बहुत सुन्दर अजय जी! रिदम और लयबद्धता के साथ लिखी गई कविता मन को सुन्दर लग रही है।

Gaurav Shukla का कहना है कि -

अजय जी

भिगो दिया आपकी कविता ने
बहुत सुन्दर

कविता का प्रवाह आपनी लय के साथ बहाता ले जाता है,
सुन्दर चित्र खींचा है आपने वर्षा का

अनुपम रचना के लिये बधाई

सस्नेह
गौरव शुक्ल

अनुनाद सिंह का कहना है कि -

प्रेम मगन मोहिं कछु न सोहाई । हारेउ पिता पढ़ाइ पढ़ाई ।।
-- काक भुसुन्डी, रामचरितमानस

Dr. sunita yadav का कहना है कि -

bahut achha....!gaao to jevan youvan he..ga n sako to bus rudan he...es badlee ke din me chupkese kisi ki yad aae..buund jo do char chuu padee nabh se tatkshan ye aankhe bhar aae...ab ras barse ki mein v bhijuun...wakaee do shabd kehdun ...par kya?

विश्व दीपक का कहना है कि -

हिंदी का बहुत हीं खूबसूरत प्रयोग किया है आपने। वर्षा और प्रेयसी का सदियों से एक अनूठा संबंध रहा है। आपने फिर से उसे हमारे सामने जीवित किया, इसके लिए आपका धन्यवाद।

प्रेम-मिलन संदेश सुनाती, बहने लगी हवा पुरवाई
प्रेयसि वर्षा की ऋतु आयी

झूले डाल लिये सखियों ने, पड़ने लगी मल्हार सुनायी
प्रेयसि वर्षा की ऋतु आयी

तृप्त हुये सब जीव जगत के, प्यास न चातक की बुझ पायी
प्रेयसि वर्षा की ऋतु आयी

रस टपक रहा है, इन शब्दों से। बधाई स्वीकारें।

डाॅ रामजी गिरि का कहना है कि -

Elegant romance with rain and cloud.Reminds me of the days i spent in my childhood days.But the metro culture has ruined it all.See the case of Mumbai and Kolkatta, people's life there really becomes pathetic in rain.
Dr.R GIRI

Nikhil का कहना है कि -

अजय भाई ,
कविता बहुत ही सारगर्भित है...एक-एक शब्द चुन कर पिरोया गया मालूम होता है....आपको अब तक कम पढा था लेकिन लगता है, ये मेरी भूल थी........
बहुत ही सुन्दर रचना है.........
तृप्त हुये सब जीव जगत के, प्यास न चातक की बुझ पायी प्रेयसि वर्षा की ऋतु आयी
क्या कहने......
बधाई स्वीकार हो..........

निखिल आनंद गिरि

सुनीता शानू का कहना है कि -

अजय भाई लगता है बारिश का सारा मज़ा आप ने ही लूट लिया...बहुत सुन्दर गीत लिखा है
अंबर के आनन को घेरा, कजरारे मेघों के दल ने
गर्मी से कुछ राहत पाई, ज्वलित-प्राण संसार सकल ने
सूखे थे नदियाँ और नाले, प्रकृति का झुलसा आँचल था
धरती की कुछ तपन मिटाई, वर्षा के मृदु शीतल जल ने
प्रेम-मिलन संदेश सुनाती, बहने लगी हवा पुरवाई
प्रेयसि वर्षा की ऋतु आयी
बहुत गहरे भाव छुपे है इन पक्तियों में...
सुनीता(शानू)

रंजू भाटिया का कहना है कि -

बहुत सुन्दर अजय जी...इस उमस भरे मौसम में आपकी लिखी रचना ने कुछ राहत दी ...सुंदर रचना के लिए बधाई...

गौरव सोलंकी का कहना है कि -

प्रियतम को आमन्त्रित करते, गोरी के फिर केश खुले से
तृप्त हुये सब जीव जगत के, प्यास न चातक की बुझ पायी

बहुत गहरी बात कह दी अजय जी..बधाई..

Anonymous का कहना है कि -

bahut sundar !!!

Anonymous का कहना है कि -

अजयजी,

वर्षा ऋतु का स्वागत इस प्रकार की सुन्दर रचना से कर आपने आनंदित कर दिया है -

खेतों को फिर कदम बढ़ाये, मतवाले कृषकों ने मिलकर
वर्षा-मंगल की ध्वनि छेड़ी, मुखरित ग्राम्य-वधू ने सस्वर
मिट्टी की सौंधी खुशबू से, महक उठा घर-आँगन सारा
माँ को बेटी की सुधि आयी, दूर बसी परदेश जो जाकर
झूले डाल लिये सखियों ने, पड़ने लगी मल्हार सुनायी


सुन्दर चित्र उकेरा है आपने!

बधाई स्वीकारें।

आर्य मनु का कहना है कि -

"तृप्त हुये सब जीव जगत के, प्यास न चातक की बुझ पायी प्रेयसि वर्षा की ऋतु आयी"
वाह बन्ना, मज़ा आ गया ।
रोम रोम पुलकित हो उठा ॰॰॰॰ ।
आपकी इस कविता ने तो, लगा जैसे प्रेम और प्रेयसी के बीच के सम्बन्ध को रेखांकित करते हुऐ बहुत
कुछ कह दिया । आनन्द आ गया और इस आनन्द के लिये आपका आभार ।
आर्यमनु

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

इसे मनभावन कविता का दर्ज़ा दिया जा सकता है, जिस प्रकार मौसमों में सावन एक मनभावन महीना है।

शोभा का कहना है कि -

अच्छी कविता
वर्षा का अति सुन्दर भावपूर्ण चित्र खींचा है ।
वर्षा में भी प्यास ना बुझी तो कब बुझेगी ?
ये चातक मन को समझाओ ।

Unknown का कहना है कि -

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