क्षणिकाएं लिखने की प्रेरणा राजीव भैया से मिली। ये सब उन्हीं को समर्पित।
पीला दुपट्टा
उस दिन भीड़ भरी बस में
एक लड़की ने
एक मनचले लड़के को तमाचा मारा था
और तुम मेरे हाथ में अपने दुपट्टे का सिरा देखकर,
प्यार से मुस्कुराई थी,
जानती हो,
पीले दुपट्टे और पीले सूट आज भी बहुत रुलाते हैं...
बारात
गली में से गुजरती हुई बारात देखकर
बड़ी हवेली के चौबारे पर खड़ी
बड़ी बहू ने जाने क्यों,
यही सोचा,
आज फ़िर कोई दिल टूटकर रात भर रोएगा।
भगवान
एक दिन हारकर,
कमजोर पड़कर,
मैं तेरे घर की सीढ़ियों तक गया था भगवान,
तू सो रहा था,
मैं लौट आया।
दंगे
एक मुर्गे का धड़,
सिर से अलग होकर छटपटा रहा था
और दुकान के बाहर बंधा बकरा
जीवन की विवशता को देख मौन खड़ा था,
तभी शोर मचा,
हिन्दू का बच्चा!
एक जान और गई।
दर्द का रंग
आँसू भी जब भीतर घुटते रहते हैं
तो घाव से निकलते खून की तरह
अन्दर ही,
थक्का बन जम जाते हैं,
मेरा दर्द भी अक्सर नीला होता है।
सपने
बिन माँ के नन्हें बच्चे को
भूख से बिलखता देखकर
चित्रकार बाप चित्र उठाकर
बाज़ार चला गया,
सपने बेचकर
दूध लेता आया।
हिचकी
उसने कहा था कि तीन हिचकी आएँ
तो समझ लेना
कि मैं याद कर रही हूं,
कई बरस बीत गए,
एक-दो हिचकी आते ही
कोई न कोई पानी पिला देता है,
पानी भी है कि ख़त्म नहीं होता...
बाढ़
सुना है कि
तेरे शहर में बाढ़ आ गई है,
उसके इंसाफ़ पर मुझे पहले ही शक़ था,
तेरी बेवफ़ाई की सज़ा
पूरे शहर को क्यों दी गई है?
बुरे सपने
गले में ताबीज़ पहनने से,
सोने से पहले गायत्री मंत्र जपने से,
सिरहाने रामायण रखने से
और मनोचिकित्सक की बकवास सुनने से भी
बुरे सपने आने बन्द नहीं हुए,
सुनो,
अब मैंने सोना ही छोड़ दिया है।
शाम
हर शाम भी तुम्हारी तरह क्यों
सहमी सी चली आती है,
सामने बैठी रहती है,
बिन सवाल, बिन जवाब,
और फ़िर अंधेरा छोड़कर ऐसे चली जाती है,
जैसे कभी आई ही न थी।
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21 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत बढिया है सोलंकी जी... हर क्षणिका में जान है... अंबूजा सींमेट से भी ज्यादा... मुझे आपका यह प्रयास बहुत सफ़ल व लुभावना लगा
चिरन्तन प्रश्नों की आकुलता है इन क्षणिकाओं में। अच्छी लगीं।
गौरव वैसे तो कुछ भी कहना बेकार है तुम्हारा लेखन बेहद उच्च कोटि का होता है…
आज भी हर क्षणिका मन को छू गई…
बहुत-बहुत बधाई…
शानू
गौरव तुमने मुझे जो श्रेय दिया उससे अभिभूत हूँ,वैसे तुम्हारे स्तर के कवि आत्म-प्रेरित होते हैं। सूई का काम तलवार नहीं कर सकती और यहीं क्षणिका का सामर्थ्य दीख पडता है। तुम्हारी इस क्षणिका को ही लो:
गले में ताबीज़ पहनने से,
सोने से पहले गायत्री मंत्र जपने से,
सिरहाने रामायण रखने से
और मनोचिकित्सक की बकवास सुनने से भी
बुरे सपने आने बन्द नहीं हुए,
सुनो,
अब मैंने सोना ही छोड़ दिया है।
क्षणिका तो चुटकियों में खत्म हो जाती है लेकिन मन को गहरे पकड कर। तुम्हारी प्रत्येक क्षणिका मुझे पसंद आयी।
*** राजीव रंजन प्रसाद
गौरव जी, बेहतरीन अभिव्यक्ति है इन छोटे-छोटे ज़ुगनूओं में.
-Dr. RG
adbhut hai ye nanehe nanehe diye ki tarah lo dete hue
apki rachnayen dil ko chu jati he....
kahin kasak me nit madhurta bharta peela dupatta dikhae padta he to kahin dhuul-dhusarit nagar me juddaee varmala lekar khadee he aur...vivasta ke chitkar se anavigya weh bhagwan so rahe hen...sochte honge---dangeme-mrityu kisi jeevan ka ant nahin.... aur yahan dard ka rang pran bhar nahi pate hen....
गौरव,
आपका गंभीर लेखन से आपकी विशाल सोच स्पष्ट परिलक्षित है
आपको पढना सुखद है, बहुत ही गंभीर क्षणिकायें लिख डाली भाई!!
किसी क्षणिका विशेष को उद्धृत करने का साहस मुझमें नहीं है
अनुपम रचनाकार हैं आप
मिलेंगे तो पूछूँगा बहुत सी बातें आपसे :-)
शुभ कामनायें आपको
सस्नेह
गौरव शुक्ल
पहले मैच में शतक और नॉटआऊट। वाह गौरव दिल खुश कर दिया। बहुत सुंदर-सुंदर क्षणिकाएँ हैं।
क्या बात है-
एक दिन हारकर,
कमजोर पड़कर,
मैं तेरे घर की सीढ़ियों तक गया था भगवान,
तू सो रहा था,
मैं लौट आया।
हमेशा याद रहेंगी आपकी क्षणिकाओं में छिपी बातें।
बहुत खूब ...अच्छा लगा पढ़कर...बधाई
गौरव!
प्रथम प्रयास में इतनी सुंदर क्षणिकायें लिखने के लिये बधाई. पर ये सिर्फ शुरुआत है, अभी भी गुन्ज़ाइश है सुधार की.
गौरव भाई,
आपकी रचनायें इतनी सच्ची हैं कि "आह-वाह" ही निकलती है....
ज़रा इन पंक्तियों में कवि कि महानता देखें........
" बिन माँ के नन्हें बच्चे को भूख से बिलखता देखकर चित्रकार बाप चित्र उठाकर बाज़ार चला गया, सपने बेचकर दूध लेता आया।"
क्या बात है.....मैं तो आपका कायल हो गया ......
बाक़ी पंक्तियां देखें...........
" उसने कहा था कि तीन हिचकी आएँतो समझ लेना कि मैं याद कर रही हूं, कई बरस बीत गए, एक-दो हिचकी आते ही कोई न कोई पानी पिला देता है, पानी भी है कि ख़त्म नहीं होता... "
" सुना है कि तेरे शहर में बाढ़ आ गई है, उसके इंसाफ़ पर मुझे पहले ही शक़ था, तेरी बेवफ़ाई की सज़ा पूरे शहर को क्यों दी गई है? "
आप बहुत ही गम्भीर कवि है..............आपको पढना मेरा सौभाग्य........
निखिल आनंद गिरि
ग़ौरव बहुत ही सुंदर क्षणिकाएं लिखी है.. हर क्षणिका कुछ नया एहसास करवा गयी... मुझे
सपने,हिचकी,शाम.... बहुत अपने दिल के क़रीब लगी ...तुम्हारे लिखे ने मुझे हमेशा ही प्रभावित किया है ..बहुत-बहुत बधाई!!
गौरव जी, आप इस विधा में भी काफी गौरवशाली साबित होंगे ऐसा लगता है।
कुछ एक तो दिल के पास से निकल गईं।
जैसेः
भगवान
एक दिन हारकर,
कमजोर पड़कर,
मैं तेरे घर की सीढ़ियों तक गया था भगवान,
तू सो रहा था,
मैं लौट आया।
और,
सपने
बिन माँ के नन्हें बच्चे को
भूख से बिलखता देखकर
चित्रकार बाप चित्र उठाकर
बाज़ार चला गया,
सपने बेचकर
दूध लेता आया।
हिचकी
उसने कहा था कि तीन हिचकी आएँ
तो समझ लेना
कि मैं याद कर रही हूं,
कई बरस बीत गए,
एक-दो हिचकी आते ही
कोई न कोई पानी पिला देता है,
पानी भी है कि ख़त्म नहीं होता... ।
आगे और भी पढ़ना चाहूँगा।
hi..gaurav..very good...
Gauravji mujhe saari kshanikaayen bahut pasand aai....aap ki khamtaaon par to mujhe kabhi bhi koi shak nahi raha hai...bas aap har bar aur nikhar aate hain :)
गौरवजी,
लगातार दूसरी बार आपकी अनुपम कृतियों का आनंद मे देरी से ले पाया हूँ :-(
बहुत ही खूबसूरत क्षणिकाएँ है, सभी एक से बढ़कर एक, लाजवाब!
क्षणिकाओं की सबसे बड़ी बात यह लगी की सभी की सभी जमीं से जुड़ी है। एक आम आदमीं के जीवन में होने वाली छोटी-छोटी मगर गहरी असरकारक घटनाएँ हो या फिर मन की उठापटक, आपने बहुत ही खूबसूरत शब्द दिये है।
बधाई!!!
Namaste Gaurav ji,
Yeh mera saubhagya hai ki aapki waicharik abhiwayaktiyon ko mahsoos karne ka umda awsar mila.
Bade karine se sajaya hai aapne har ahsas ko
in rachnaon ne udwelit kar diya achi rachnaen padne ke pyas ko.
very nice...specially the "hichki" and "baadh".....keep it up
गौरव जी
कुछ बातें टीका टिप्पाडियों से परे होती हैं
जैसे की आपकी क्षणिकाऍ
किस किस का ज़िक्र करु
सब लाजवाब हैं
आपकी तरह
क्षणिकाएँ लिखने के लिए मैं भी राजीव जी से हीं प्रेरित हुआ था। जब मैंने अपनी क्षणिकाएँ पूरी की थी तो मुझे अपने पर बहुत हीं गर्व हुआ था, एक अलग हीं खुशी हुई थी मुझे। पर आज जब मैने आपको पढा तो लगा कि क्षणिकाओं के क्षेत्र में आप उस्ताद हो गए हैं वो भी पहले हीं प्रयास में। अब मुझे आपसे ईर्ष्या होने लगी है। [:)]( आपने इस शब्द का प्रयोग मेरी पिछ्ली दो रचनाओं के लिए किया था)
आप जिस बारीकी से अपनी बातें कह जाते हैं , इससे मैं आपका फैन बनकर रह गया हूँ। आपकी हर एक क्षणिका मुझे अपने करीब लगी।
बधाई स्वीकारें।
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