जब भी हम प्रतियोगिता के परिणामों की उद्घोषणा करते हैं पिछली बार से अधिक उत्साहित रहते हैं। प्रतिभागियों की संख्या में बढ़त धीमी ज़रूर है, मगर बढ़ोत्तरी तो बढ़ोत्तरी है। इसका मतलब यह है कि नये-पुराने कवि-पाठक हमें गम्भीरता से ले रहे हैं। ये टीम वर्क के प्रतिफल हैं। जून माह की यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता की यूनिकवि की दौड़ में कुल २६ कवि शामिल थे। यूनिकवि का निर्णय हमेशा की तरह ४ चरणों में ८ कुशल निर्णयकर्ताओं द्वारा कराया गया।
इस बार के यूनिकवि निखिल आनंद गिरि की कविता उनके तीसरे प्रयास में शीर्ष स्थान पर पहुँच पाई है। अप्रैल माह में कवि की 'कह री दिल्ली' कविता अंतिम दस कविताओं में भी स्थान नहीं बना पाई थी, मगर मई माह की प्रतियोगिता में इनकी कविता 'वक़्त लगता है' दूसरे स्थान तक पहुँच गई। और इस बार के ज़ज़ों को इनकी काव्य-प्रतिभा का लोहा मानना पड़ा और इनकी कविता 'तुम सिखा दो' प्रथम रही।
इस बार का ज़ज़मेंट थोड़ा अलग रहा। प्रथम चरण के तीन ज़ज़ों ने इस कविता को क्रमशः ६, ७ और ६॰५ (औसत ६॰५) अंक दिए। और इनकी कविता का स्थान १२वाँ रहा।
दूसरे चरण के तीन निर्णयकर्ताओं ने क्रमशः ८॰२, ९ और ८ अंक दिए और जब इन अंकों के साथ प्रथम दौर के ज़ज़ों द्वारा दिये गये अंकों का औसत जोड़ा गया तो कविता तीसरे पायदान तक पहुँच गई।
अब बारी आई तीसरे चरण के ज़ज़ की, जिन्होंने इसे मात्र ७॰७५ अंक दिए और दूसरे चरण के औसत अंक को मिलाने के बाद यह कविता फ़िर से नीचे की तरफ़ (छठवें पायदान पर) खिसक गई।
आखिरकार यह कविता ज्या वक्रीय गति करती हुई शिर्षस्थ हो गई।
यूनिकवि- निखिल आनंद गिरि
परिचय-
जन्म- ९ अगस्त
जन्मस्थान- छपरा (बिहार)
निवास स्थान- समस्तीपुर
पिता बिहार पुलिस में, फ़िलहाल लखिसराय ज़िले में पदस्थापित, माँ गृहणी, चार भाइयो-बहनों में सबसे छोटे।
पिता के स्थानान्तरण की वजह से बिहार और अभी के झारखण्ड के कई क्षेत्रों में समय गुजरा। स्कूल-स्तरीय शिक्षा डीएवी हेहाल, राँची से, स्नातक करीम सिटी कॉलेज़, जमशेदपुर। मीडिया के क्षेत्र में रुचि थी, सो जन-सम्प्रेषण (मास कम्यूनिकेशन) से परास्नातक की डिग्री हासिल करने के लिए जामिया में दाखिला लिया, फ़िलहाल वहीं (द्वितीय वर्ष)।
स्कूल के ज़माने से कविताओं का शौक लगा, पहले कविताएँ छिपाकर लिखते थे, फ़िर समाचर-पत्र में कविताएँ छपीं, तो घरवालों को पता चला कि बेटा कवि हो गया है। शुरू से ही अच्छे छात्र, पापा का सपना था कि बेटा डॉक्टर-इंज़ीनियर बने। इन्होंने अपने पिता के सपने को पूरा किया और बन गये समाज की नब्ज़ पकड़ने वाला डॉक्टर।
जमशेदपुर में पढ़ाई के साथ-साथ 'प्रभात ख़बर' में नौकरी भी की, प्रभात ख़बर का गहरा प्रभाव। ग्रेजुशन में ही एक डॉक्यूमेंटरी बनाई 'ऑन द एज़॰॰॰(जमशेदपुर की ही एक चूना-भट्टा बस्ती पर)"॰॰॰॰ फ़िलहाल सामुदायिक रेडियो 'रेडियो जामिया ९०॰४ एफ़एम' में उद्घोषक।
शौक- साहित्य, मुकेश के गीत, क्रिकेट और रेडियो।
चिट्ठा (ब्लॉग) - http://swar-samvedna.blogspot.com
http://bura-bhala.blogspot.com
वर्तमान पता-
निखिल आनंद गिरि (मास कम्यूनिकेशन)
वार्डेन ऑफ़िस
पिंक हॉस्टेल
जामिया नगर, जामिया मिलिया इस्लामिया
नई दिल्ली-२५
ईमेल- memoriesalive@rediffmail.com
पुरस्कृत कविता- तुम सिखा दो
दुख हो या कि सुख सदा उत्सव मनाना, तुम सिखा दो..
दूसरों के मर्म पर सब कुछ लुटाना, तुम सिखा दो..
मुस्कुराना तुम सिखा दो..
जानता हूँ, सैकड़ों बादल रखे हैं, हँसती आँखों में छिपाकर
तृप्त हो लेती हो अपना मन, अकेले में भिगाकर
और कह देती हो मुझसे- 'सुख इसी अवसाद में है'!!
आह!! कैसा सुख कि अपना घर जलाकर,
नीड़ औरों का बसा खुद को मिटाना, तुम सिखा दो..
मुस्कुराना तुम सिखा दो..
मैं कहाँ रोया कि जब कोई बात गड़ती है हृदय में
कब बता पाया कि तुम ही मार्गदर्शक हर विजय में
और तुम... आकाश के निर्लिप्त पंछी की तरह ही
मौन के विस्तार को भी, बाँधती हो एक लय में
आँसुओं की लय पिरोकर, गुनगुनाना, तुम सिखा दो..
मुस्कुराना तुम सिखा दो..
रात का अंतिम प्रहर है, तुम निरंतर दिख रही हो
मैं तो केवल शब्द गढ़ता, तुम ही मुझको लिख रही हो
चाहता हूँ, प्रेम-रूपी इस शिला के मिटा डालूँ लेख सारे,
मिलन कैसा?? हम किसी सूखी नदी के दो किनारे!!
तुम न इस सूखी नदी पर रेत का सेतु बनाना
सब भुला दो, है उचित सब कुछ भुलाना
मुस्कुराना तुम सिखा दो...
अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
'तुम सिखा दो' नितांत उत्कृष्ट रचना है। शिल्प इतना कसा हुआ है कि पाठक प्रवाह में बहता जाता है, भाव प्रबल हैं, गहरे हैं। "मुस्कुराना तुम सिखा दो " कह कर कवि केवल शृंगार की रससुधा, अपनी अंतर्तम वेदना ही पाठको को नहीं प्रस्तुत करता अपितु हर पद एक गहरा संदेश भी प्रस्तुत कर रहा है जो कि इस रचना की सार्थकता भी है। कुछ उदाहरण देखें:
" आह!! कैसा सुख कि अपना घर जला कर,
नीड़ औरों का बसा खुद को मिटाना तुम सिखा दो.. "
" मौन के विस्तार को भी, बाँधती हो एक लय में
आँसुओं की लय पिरोकर, गुनगुनाना, तुम सिखा दो "
कला पक्ष: ७॰५/१०
भाव पक्ष: ८॰५/१०
कुल योग: १६/२०
पुरस्कार- रु ६०० (रु ३०० 'तुम सिखा दो' के लिए और रु ३०० आगामी तीन सोमवारों को आनी वाली ती कविताओं के लिए) का नक़द ईनाम, रु १०० की पुस्तकें और एक प्रशस्ति-पत्र।
पुस्तक 'कोई दीवाना कहता है" की एक प्रति (डॉ॰ कुमार विश्वास की ओर से)
निखिल आनंद गिरि तत्व-मीमांसक (मेटाफ़िजिस्ट) डॉ॰ गरिमा तिवारी से ध्यान (मेडिटेशन) पर किसी भी एक पैकेज़ (लक को छोड़कर) की सम्पूर्ण ऑनलाइन शिक्षा पा सकेंगे।
हमारी पेंटर स्मिता तिवारी की सुपुत्री की जबड़ों का ऑपरेशन हो रहा है जिसके कारण वे पिछले ५-६ दिनों से व्यस्त व परेशान है। इसलिए हम फ़िलहाल कविता 'तुम सिखा दो' पर उनकी पेंटिंग नहीं प्रकाशित कर पा रहे हैं। इसके लिए स्मिता तिवारी के साथ-साथ पूरा हिन्द-युग्म परिवार खेद प्रकट करता है, और यह विश्वास दिलाता है कि स्थिति सामान्य होते ही, पेंटिंग को इस पोस्ट से जोड़ दिया जायेगा।
इस बार पाठकों में भी खूब कॉम्पटिशन रहा। ऐसी प्रतिस्पर्धा पिछले ५ अंकों से देखने को नहीं मिली। सुनील डोगरा ज़ालिम ने हमारी जून माह की अधिकाधिक पोस्टों पर टिप्पणियाँ की, मगर इस बार के यूनिपाठक आर्य मनु उनसे संख्या मे १-२ पिछे ज़रूर रहे, मगर उन्होंने हर एक कविता का विश्लेषण भी किया, कवियों और पाठकों दोनों को सतर्क किया।
यूनिपाठक- आर्य मनु
परिचय-
वास्तविक नाम- ओम प्रकाश गायरी
१॰ पारिवारिक पृष्ठभूमि-
४ अगस्त '८४ को जन्म हुआ और ठीक दस वर्ष बाद दिसम्बर '९४ में पिता का साया हमेशा के लिये इनके सर से उठ गया। पिता की मृत्यु के बाद भी इनकी माँ ने कभी उनकी कमी महसूस नहीं होने दी। इनके पिता के ही पद पर इनकी माँ ने राजस्थान परिवहन निगम में कनिष्ठ लिपिक का पद सम्भाला ।
दक्षिणी राजस्थान में (इनके समाज सहित कई और जातियों में) उस समय महिलाओं का नौकरी करना वर्जित था। नतीज़न, लगभग डेढ वर्ष तक हुक्का-पानी बन्द। पिता के देहान्त के वक्त ४ लाख का कर्ज़, मकान बिकने की स्थिति, कोई साथ देने वाला नहीं। पर इनकी मां ने उस वक़्त से भी इन्हें निकाल लिया। बस तभी लेखन की ओर झुकाव हुआ। मन के दर्द कागज़ पर उकरित होने लगे।
काव्य यात्रा-
पहली बार '९९ में संभाग स्तर पर काव्यपाठ-प्रतियोगिता में प्रथम और उसके तुरंत बाद जयपुर में राजमाता गायत्रीदेवी के सम्मुख राज्यस्तर पर काव्यपाठ का न्यौता, वहां भी चयन और राष्ट्र स्तर पर मैसूर में काव्यपाठ। बस यही शुरुआत थी। यहीं से मंच से जुड़ाव हुआ। २००२ आते-आते राष्ट्रीय दशहरा मेला, कोटा के कवि सम्मेलन से न्यौता और वही से "बाल कवि मनु" उपनाम साथ-साथ मिला। बस तब से उदयपुर व आस-पास से सम्मेलनों के न्योते मिलने लगे। अभी भी मंच से जुड़े है। कुछेक कवितायें व कहानियाँ प्रकाशित। जब आर्यसमाज के कार्यक्रम मिले तो नया नाम सामने आया- "आर्यमनु " ।
परिवार में माँ है, बहन की शादी हो चुकी।
शिक्षा- इलेक्ट्रोनिक्स में डिप्लोमा प्रथम श्रेणी से, किन्तु विषय-रुचि न होने पर कम्प्यूटर-साफ्टवेयर क्षेत्र की ओर करियर-निर्माण। फ़िलहाल अध्ययन के साथ-साथ एक कम्प्यूटर शिक्षा केन्द्र पर कार्यरत हैं।
पता- 191/A, "मनुस्मृति", सुन्दरवास (उत्तर),
उदयपुर राजस्थान 313001
चिट्ठा- http://aryamanu.blogspot.com/
पुरस्कार- रु ३०० का नक़द ईनाम, रु २०० तक की पुस्तकें और एक प्रशस्ति-पत्र।
पुस्तक 'कोई दीवाना कहता है"और 'निकुंज' की एक-एक स्वहस्ताक्षरित प्रति।
आर्य मनु तत्व-मीमांसक (मेटाफ़िजिस्ट) डॉ॰ गरिमा तिवारी से ध्यान (मेडिटेशन) पर किसी भी एक पैकेज़ (लक को छोड़कर) की सम्पूर्ण ऑनलाइन शिक्षा पा सकेंगे।
जून माह की प्रतियोगिता से हमने टॉप ४ पाठकों को पुरस्कृत करने की उद्घोषणा की है। दूसरे स्थान के विजेता पाठक रहे 'सुनील डोगरा ज़ालिम' जिन्होंने हमें खूब पढ़ा। छोटे-छोटे मगर सटीक कमेंट लिखे। हम आशा करते हैं कि हमारे अगले यूनिपाठक यही होंगे।
पुरस्कार- पुस्तक 'कोई दीवाना कहता है' और 'निकुंज' की स्वहस्ताक्षरित प्रतियाँ।
सिफ़र नाम से कमेंट करने वाले अहमदाबाद निवासी टिप्पणीकार'श्रवण सिंह' ने हिन्द-युग्म पर तो काव्य-मंथन कर डाला। कमेंटों की संख्या शीर्ष दो पाठकों से अवश्य कम रही हो मगर इनके कमेंट का अंदाज़ बिलकुल ज़ुदा था।
पुरस्कार- कवि कुलवंत सिंह की ओर से उनकी काव्य-पुस्तक 'निकुंज' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।
हमने पिछले बार के परिणामों के साथ पुणे की पाठिका श्रीमती स्वप्ना शर्मा का ज़िक्र किया था। इन्होंने भी हमें पढ़ा और चूँकि कमेंट करना सीख लिया था अतः समय निकालकर कभी-कभी टिप्पणियाँ भी कीं।
पुरस्कार- कवि कुलवंत सिंह की ओर से उनकी काव्य-पुस्तक 'निकुंज' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।
हम सभी पाठकों से आग्रह करेंगे कि वो हमें इसी प्रकार पढ़ते रहें और हमारा मार्गदर्शन और ज़रूरत होने पर हमारा प्रोत्साहन करते रहें। आशा करते हैं आप हमें इसी द्रतगति से पढ़ते रहेंगे और कमेंट करते रहेंगे।
अब फ़िर से कविताओं का रुख करते हैं। इस बार दो-दो कविताएँ दूसरे स्थान पर रहीं। एक है कवयित्री सिल्की अग्रवाल की कविता 'वो अबोध आँखें' और दूसरी है कवि सुप्रेम त्रिवेदी "बर्बाद" की ग़ज़ल 'कहाँ होगी'।
कविता- वो अबोध आँखें
कवयित्री- सिल्की अग्रवाल, उदयपुर
नाज़ुक सिमटी अधखुली थीं, स्वप्निल आभा से धुली थीं,
भोलेपन से झाँक रही थीं, इस दुनिया को ताक रही थीं,
लोग उन्हें बस सहलाते थे, रो न जाएँ- बहलाते थे
उनके सारे नाज़ उठाते, जो वो चाहे ले आते थे,
इस बचपन को समझ के जीवन उन आँखों मे किलकारी थी
लेकिन ये आरंभ था केवल, शेष अभी यात्रा सारी थी
दुनिया उनको सही गलत के सारे पैमाने समझाती
वो अबोध आँखें मुसकाती, बस एकटक देखती जातीं
इस शिक्षा को मान के पूजा पैमानों की दास बन गई
उन आँखों मे रहने वाली किलकारी विश्वास बन गई
पाप-पुण्य की हर परिभाषा नीति बन कर रह जाती थी
एक ज़रा सी बात गलत हो आँख से नदियाँ बह जाती थीं
उन आँखों को सुविधावाद की भाषा का अहसास नहीं था
जो विश्वास बसा था उनमें, उसमें विष का वास नहीं था
उन आँखों की हर हसरत पर जाने क्यों सब मुस्काते थे
हँसते, हलकी थपकी देकर जाने सब क्या कह जाते थे
समय-धार के संग निरंतर सिमटी पलकें खुलती जातीं
निर्मल स्वप्न से भरी आँख मे दुनियादारी घुलती जाती
नामुमकिन अब तक जो कुछ था लोग उसे अब संभव कहते
आँखों से आँसू झरते तो लोग उसे अब अनुभव कहते
फिर थोड़े से सपने टूटे किसी राह पर अपने छूटे
सत्य-पुजारी बनने वाले उनकी सच्चाई से रूठे
वो ज्ञान-सुधा वो सब पैमानें, अब उन सबका माप अलग था
अब तक जो परिभाषा सीखी उनसे पुण्य और पाप अलग था
सिसक-सिसक के उन आँखों से दर्द अचानक बह जाता था
भौतिकता सपनों पर हँसती सपना सच पर झल्लाता था
किलकारी इतिहास बन गई, विश्वासों मे शामिल भय है
सिमटी पलकें फैल गई अब और आँखों में बस विस्मय है
प्रथम चरण में कविता को मिले अंक- ७, ७, ७॰५
औसत अंक- ७॰१६६६६७
स्थान- तीसरा
द्वितीय चरण में कविता को मिले अंक- ८॰३५, ८॰७५, ८॰५, ७॰१६६६७ (पिछले चरण का औसत)
औसत- ८॰१९१७५
स्थान- दूसरा
तीसरे चरण में कविता को मिले अंक- ८॰२५, ८॰१९१७५ (पिछले चरण का औसत)
औसत- ८॰२२०८७५
स्थान- तीसरा
अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
रचना आरंभ से ही प्रभावित करती है। कवि के कथ्य मे गंभीरता है और शिल्प में कसावट। कुछ उद्धरण देखें:
" इस शिक्षा को मान के पूजा पैमानों की दास बन गयी
उन आँखों में रहने वाली किलकारी विश्वास बन गयी "
" समय धार के संग निरंतर सिमटी पलकें खुलती जातीं
निर्मल स्वप्न से भरी आँख में दुनियादारी घुलती जाती "
" वो ज्ञानसुधा वो सब पैमाने, अब उन सबका माप अलग था
अब तक जो परिभाषा सीखी उनसे पुण्य और पाप अलग था "
कला पक्ष: ८/१०
भाव पक्ष: ७॰५/१०
कुल योग: १५॰५/२०
पुरस्कार- सृजनगाथा की ओर से रु ३०० तक की पुस्तकें। कुमार विश्वास की ओर से उनकी अपनी पुस्तक 'कोई दीवाना कहता है' की एक प्रति।
दूसरे स्थान की दूसरी कविता के लेखक सुप्रेम त्रिवेदी "बर्बाद" ने अपनी कविता को बिना शीर्षक दिए ही प्रतियोगिता में भेज दिया था। चूँकि ज़ज़ों को कविता के साथ कवि का नाम नहीं भेजा जाता इसलिए कविता को शीर्षक देना आवश्यक-सा हो जाता है। हमने उनसे निवेदन किया कि वे कृपया अपनी कविता को एक शीर्षक दे दें, मगर उन्होंने उत्तर नहीं भेजा। अब उसे ग़ज़ल कहने की हिम्मत नहीं हो रही थी, इसलिए कविता की अंतिम पंक्तियों से 'कहाँ होगी' उठाकर शीर्षक दे दिया। अब तो पाठक ही बतायेंगे कि उन्हें शीर्षक पसंद आया या नहीं।
इनकी कविता की ख़ास बात यह रही कि यह पहले, दूसरे और तीसरे सभी चरणों में प्रथम स्थान पर रही, मगर अंतिम ज़ज़ ने इसे ०॰५ अंक कम दिए जिससे इसका स्थान दूसरा हो गया। लेकिन इस बार न सही अगली बार इन्हें यूनिकवि बनने से कौन रोकेगा!
कविता- कहाँ होगी
कवयिता- सुप्रेम त्रिवेदी "बर्बाद", लखनऊ
इस समंदर में तो सूखी नदियाँ ही मिलेंगी,
बर्फ उन पहाड़ों पर पिघली कहाँ होगी।
कल फूल मुरझाये थे, आज काँटे भी झड़ गये,
खुदा जाने वो आख़िरी तितली कहाँ होगी।
पेट की आग ने हर चिंगारी को बुझा देना था,
फिर चीख इंकलाब की निकली कहाँ होगी।
अब बटेर चुक गये हैं, पर इंसान बहुत हैं,
फिर शिकारियों ने अपनी आदत बदली कहाँ होगी।
हमेशा से इसने घर, दुकाँ और खेत ही जलाए हैं,
गिरे जो ज़ालिमों पर वो बिजली कहाँ होगी।
कलम को ताक़तवर बताना, हर खूँखार की साज़िश थी,
वो अमनपसंद थी, म्याँ से निकली कहाँ होगी।
आज रात भी भूखे आमिर की अप्पी घर नहीं लौटी,
मुझे मालूम है वो मासूम फिसली कहाँ होगी।
प्रथम चरण में कविता को मिले अंक- ७, ८, ८
औसत अंक- ७॰६६६६६७
स्थान- पहला
द्वितीय चरण में कविता को मिले अंक- ८॰५, ८॰२५, ८॰५, ७॰६६६६७ (पिछले चरण का औसत)
औसत- ८॰२२९२५
स्थान- पहला
तीसरे चरण में कविता को मिले अंक- ९॰५, ८॰२२९२५ (पिछले चरण का औसत)
औसत- ८॰८६४६२५
स्थान- पहला
अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
इस रचना को पढ कर अहसास होता है कि रचनाकार के तेवर क्रांतिकारी हैं। प्रत्येक पद सराहनीय है।
" इस समंदर में तो सूखी नदियाँ ही मिलेंगी,
बर्फ उन पहाड़ों पर पिघली कहाँ होगी "
" आज भी भूखे आमिर की अप्पी घर नहीं लौटी
मुझे मालूम है वो मासूम फिसली कहाँ होगी "
यद्यपि अभी भावों को और भी सशक्त बिम्बों की धार का इंतज़ार है, कवि कुन्दन लिखेगा यह अपेक्षा है।
कला पक्ष: ७/१०
भाव पक्ष: ८॰५/१०
कुल योग: १५॰५/२०
पुरस्कार- सृजनगाथा की ओर से रु ३०० तक की पुस्तकें। कुमार विश्वास की ओर से उनकी अपनी पुस्तक 'कोई दीवाना कहता है' की एक प्रति।
हमें बड़ी खुशी है कि छत्तीसगढ़ के सक्रिय ब्लॉगर संजीव तिवारी ने भी हमारी प्रतियोगिता में भाग लेकर हमारा प्रोत्साहन किया जिनकी कविता 'किनारा' तीसरे स्थान (एक तरह से चौथे) पर रही।
कविता- किनारा
कवयिता- संजीव तिवारी, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
कैसी विडंबना है प्रकृति की
दो किनारे चाह कर भी
मिल नहीं पाते एक दूसरे से ।
मैं ज़िन्दगी के तेज़ धार को
सीमित करने की आकांक्षा लिए अड़ा हूं
मेरे सीने पर कटाव के जख़्म उभरते हैं
कट-फट जाते हैं मेरे गीत
और मैं होंठों को सीकर शून्य आसमान में
धार के उस पार कुछ खोजता हूं ।
मैं ही नहीं, कोई और भी है
जो इस संग्राम को, जख़्म को
दिल में छायाचित्र की तरह उतार रहा है
मेरे कटाव का जमाव उसके सीने पर है
अपने अस्तित्व को कायम रखने के लिए
निरंतर तूलिका में जुटे हाथ
सृजन की जीवन रेखा बनने का स्वप्न
सचमुच तुम और तुम्हारा
सब कुछ, आदर्श है ।
मैं सब कुछ सह सकता हूं
सीने का जख़्म, तेरे न मिलने का दुख
क्योंकि मैं ये जानता हूं कि ये मेरे साथी,
जटिल परंपराओं के शाश्वत धार समूह
तुम्हें मेरे पास रह कर भी मिलने नहीं देंगे ।
न किनारों से धार अलग हो सकते न धार से किनारे
सब मिलकर हमें नदी कहलाना है
इसलिए सब कुछ सहना पडता है गुमसुम
होंठों को सिये हुए ।
हमने बसाये हैं संस्कृतियां अपनी थाती पर
अपने नाम को सार्थक किया है
किनारों को किनारे ही रहना चाहिए
किनारे से मिलने का स्वप्न
तो, बस एक स्वप्न है ।
प्रथम चरण में कविता को मिले अंक- ६, ८, ७॰५
औसत अंक- ७॰१६६६६७
स्थान- तीसरा
द्वितीय चरण में कविता को मिले अंक- ८॰३, ७॰२५, ८॰५, ७॰१६६६७ (पिछले चरण का औसत)
औसत- ७॰८०४२५
स्थान- चौथा
तीसरे चरण में कविता को मिले अंक- ९॰२५, ७॰८०४२५ (पिछले चरण का औसत)
औसत- ८॰५२७१२५
स्थान- दूसरा
अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
कविता स्तरीय है किंतु शिल्प को अभी कसे जाने की आवश्यकता है । दूसरा पैरा कवि ने अनावश्यक जटिल बना दिया है। अपनी संपूर्णता में यह एक आदर्श नयी कविता है, विशेषकर इसका अंत प्रभावी है।
कला पक्ष: ६/१०
भाव पक्ष: ७॰५/१०
कुल योग: १३॰५/२०
पुरस्कार- सृजनगाथा की ओर से रु ३०० तक की पुस्तकें।
नोट- मेरिट क्रम बनाने की कई विधियाँ हैं, जिनमें से एक यह भी है कि यदि एक ही स्थान पर कई कविताएँ (या कुछ भी) हों तो अगली कविता को उनकी संख्या के योग के बाद का स्थान मिलेगा, इस प्रकार 'किनारा' का स्थान चौथा हुआ। लेकिन फ़िर भी हम मध्यम मार्ग अपनाते हुए इस बार १० की जगह ११ कवियों को पुरस्कृत कर रहे हैं,
अन्य ७ कवियों जिनकी कविताएँ अंतिम १० या ११ में रहीं, के नाम निम्नवत हैं-
अनुराधा जगधारी (अनुराधा श्रीवास्तव)
कुमार आशीष (आशीष दुबे)
विपिन चौहान 'मन'
सीमा कुमार
सजीव सारथी
श्रीकांत मिश्र 'कांत'
दिव्या श्रीवास्तव
इन ७ कवियों को पुरस्कार के रूप में कवि कुलवंत सिंह की ओर से उन्हीं की काव्य-पुस्तक 'निकुंज' की एक-एक स्वहस्ताक्षरित प्रति भेंट की जायेगी तथा इनकी कविताओं को आनेवाले शुक्रवारों या रिक्तवारों को हिन्द-युग्म पर प्रकाशित किया जायेगा।
जिन अन्य कवियों ने हिस्सा लेकर हमारा प्रोत्साहन किया, हम उनके आभारी हैं। हम उनसे प्रार्थना करेंगे कि परिणामों को सकारात्मकता से ग्रहण करें, जिस तरह से हमारे इस बार के यूनिकवि ने पहली बार अंतिम १० में जगह न पाते हुए भी अपनी काव्य-प्रतिभा को सिद्ध किया, उसी प्रकार आप भी अपनी क्षमताओं पर पूरा विश्वास करते हुए पुनः भाग लें और हमारे इस प्रयास को सफल बनायें। हम उन रचनाकारों के नाम प्रकाशित कर रहे हैं-
योगेश कुमार
अमिता मिश्र 'नीर'
कवि कुलवंत सिंह
अमन महाजन
प्रभात शारदा
अमरदीप
आर्य मनु
राजीव सक्सेना
दर्पण साह
सुधीर कुमार मेशराम
अनीता कुमार
तपन शर्मा
कीर्ति वैद्य
नवीन कुमार तिवारी
सुनील डोगरा ज़ालिम
आप सभी ने इस प्रतियोगिता में भाग लेकर हमारा उत्साहवर्धन किया, इसके लिए हम आपको हृदय से नमन करते हैं। इस बार की प्रतियोगिता के आयोजन की उद्घोषणा कल ही की गई है, कृपया यहाँ देखें और ज़रूर भाग लें।
सभी को बधाइयाँ व शुभकामनाएँ।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
33 कविताप्रेमियों का कहना है :
सभी विजेताओं को मेरी और से हार्दिक बधाई।
निखिल जी, आपने वाकई बहुत उम्दा लिखा है। हिन्द युग्म आपको पाकर गौरवान्वित है। पूरी कविता दिल को छू जाती है।
लेकिन बाकी कविताएं भी कहीं से कम नहीं थी।
सुप्रेम जी को तो मैं पहले से ही पढ़ता रहा हूं और उनके क्रांतिकारी तेवरों ने हमेशा ही मुझे अन्दर तक प्रभावित किया है। सिल्की जी का नाम मेरे लिये नया रहा।लेकिन यह नयापन भी बहुत सुखद था। बहुत सच्ची और कसी हुई कविता थी'वो अबोध आँखें'। संजीव जी की कविता भी बिल्कुल नया दर्शन सा समेटे हुए थी। मुझे पूरी उम्मीद है कि अगली बार सिल्की जी, सुप्रेम जी और संजीव जी प्रतियोगिता को और रोमांचक बनाएंगे।
पाठक किसी भी लेखक की सबसे बड़ी प्रेरणा होते हैं और इसलिए मैं जालिम जी, मनु जी और स्वप्ना जी का हृदय से बहुत आभारी हूं।
हिन्द युग्म नई ऊंचाइयाँ छू रहा है। हमारा प्रयास सफल होते देख दिल को बहुत खुशी हो रही है।
सभी विजेताओं को बधाई व शुभकामनाएं !!
सभी विजेताओं को हार्दिक शुभकामनाएँ।
यूनिकवि निखिल आनंद गिरि और य़ूनिपाठक आर्य मनु सहित सभी विजेताओं को हार्दिक शुभकामनायें. प्रथम चारों कविताएं बहुत सुंदर और प्रभावी रहीं, परंतु निखिल जी की कविता ’तुम सिखा दो’ निश्चय ही पहले पायदान की सही हकदार थी. बाकी तीनों कवियों से आशा है कि अगली बार वे कुछ और भी बेहतर लिख कर न केवल साहित्य को समृद्ध करेंगे अपितु यूनिकवि का पुरुष्कार भी प्राप्त करेंगे.
पाठकों में आर्य मनु जी के अलावा सुनील और स्वप्ना जी और अन्य पाठकों का भी मैं आभार व्यक्त करता हूँ कि उन्होंने पूरे महीने हमारा उत्साहवर्धन किया. आशा है कि आप आगे भी इसी तरह हमारा पथप्रदर्शन करते रहेंगे.
प्रथमतया आप सभी का आभार जो मेरी टिप्पणियों को "लायक" समझा गया ।
यूनिकवि श्री निखिल आनंद जी की रचना " तुम सिखा दो" जैसी भावप्रवण रचना कम ही पढने को मिलती है ।आपको बहुत बहुत बधाई । साथ ही द्वितीय स्थान पर रहे दोनों कवियों को भी बधाई , उनकी रचनायें भी कमतर नही थी ।
आप सभी का आभार ।
आर्यमनु ।
दुख हो या कि सुख सदा उत्सव मनाना, तुम सिखा दो..
दूसरों के मर्म पर सब कुछ लुटाना, तुम सिखा दो..
मुस्कुराना तुम सिखा दो..
निखिल जी के इन पंक्तियों की जितनी तारीफ की जायेगा कम है..आगे..
और तुम... आकाश के निर्लिप्त पंछी की तरह ही
मौन के विस्तार को भी, बाँधती हो एक लय में
आँसुओं की लय पिरोकर, गुनगुनाना, तुम सिखा दो..
इन पंक्तियों में कविता को पूरा फैलाव मिलता है.. मगर..
आखिर में जाकर कविता भंग क्यों हो रही है.. समझ में नहीं आया।
चाहता हूँ, प्रेम-रूपी इस शिला के मिटा डालूँ लेख सारे,
मिलन कैसा?? हम किसी सूखी नदी के दो किनारे!!
तुम न इस सूखी नदी पर रेत का सेतु बनाना
सब भुला दो, है उचित सब कुछ भुलाना
मुस्कुराना तुम सिखा दो...
इन पंक्तियों में कवि का ध्यान किधर है।
सिल्की जी की कविता मन के भीतरी सतह पर दस्तक देती है और आंख खोलने की क्षमता रखती है।
किलकारी इतिहास बन गई, विश्वासों मे शामिल भय है
सिमटी पलकें फैल गई अब और आँखों में बस विस्मय है
इस कविता के साथ की गयी यात्रा सार्थक रही।
अन्त में, सुप्रेम जी और संजीव जी को मेरी ओर से बधाई।
निखिल और आर्य मनु दोनों को ही मेरी तरफ से बधाइयाँ।
और साथ ही साथ सभी प्रतियोगियों को मेरी तरफ से शुभकामनायें।
यह कहना ही होगा कि अब प्रतियोगिता में आने वाली रचनाओं का स्तर बढ़ता जा रहा है।
कई सारी रचनाएँ बहुत ही ऊँचे स्तर की होती हैं।
हिन्द-युग्म समेत हिन्दी के सभी साधकों को मेरी तरफ से साधुवाद।
अभिनंदन निखिल जी,
बहुत बहुत बधाई आपको
कविता निश्चित ही हर दृष्टि से सर्वोत्तम है,शिल्प, भाव और अभिव्यक्ति उत्कृष्ट है\
हिन्द युग्म बधाई का पात्र है कि आप जैसे अच्छे कवि को उसने ढूँढ निकाला है
"दुख हो या कि सुख सदा उत्सव मनाना, तुम सिखा दो..
दूसरों के मर्म पर सब कुछ लुटाना, तुम सिखा दो.."
"आँसुओं की लय पिरोकर, गुनगुनाना, तुम सिखा दो.."
आपकी कविता सकारत्मक संदेश भी देती है
आपका स्वागत करते हुये हर्ष हो रहा है, पुनः हार्दिक बधाई
आर्य मनु, आपको यूनिपाठक चयनित होने पर बहुत बधाई
आपकी टिप्पणियाँ मैनें पढी हैं जो स्वयं ही स्पष्ट कर देती हैं कि आप पूरे मनोयोग से कविताये पढते रहे हैं, मुझे पूरा विश्वास है कि आपकी समालोचना से हमारे कविमित्र अवश्य लाभान्वित हुये हैं, बहुत बहुत बधाई
सिल्की जी, आपकी ऐसी अद्भुत कविता पढने पर लगा कि हमारे अन्तिम निर्णयकर्ता कैसी भीषण दुविधा से गुजरे होंगे
त्रुटिहीन,गंभीर लेखन, बहुत सुन्दर
शुभ कामनायें
सुप्रेम जी,
आपने भी बहुत अच्छा लिखा है,आपको भी हार्दिक शुभ कामनायें
समस्त प्रतियोगियों को मेरी हार्दिक शुभकामनायें
ईश्वर से मेरी प्रार्थना है की स्मिता जी की बिटिया बहुत जल्दी ठीक हो जायें
हिन्द-युग्म के संयोजकों और संचालक मण्डल को भी मेरी तरफ से हार्दिक बधाई
सस्नेह
गौरव शुक्ल
सभी विजेताओं की मेरी बधाइयाँ एवम् जो लोग अंतिम दस में नहीं पहुँच पाये हैं, उनसे निवेदन करूँगी कि प्रतियोगिता में पुनः भाग लें, एक दिन अवश्य विजयी होंगे।
आर्यमनु जी को बधाई देना भूल गया था। इस बार के यूनिपाठक के रूप में अपनी हार्दिक बधाई देना चाहूंगा। कितना सुन्दर नाम है आपका.. मैं तो आपके नाम पर ही मोहित हूं।
sabhi paathakon ko mera pranaam,
aap sab ka aabhaari hun ki meri kavita ko aapne bharpur sneh diyaa..hindyugm ko ek accha kavi mila, ye to mai nahi jaanta magar hindyugm ke marrfat hindi aur hindipremiyon ko ek umdaa manch mila, isme koi sanshay nahi.....
gaurav ji, acchi kavita wahi hai, jo har paathak ko apni lage..aapke dil ko meri kavita choo paayi, meraa prayas safal raha....
arya manuji, hum jaise kavi agar padhe jaate hain to aap jaise sache paathakon ki badaulat.meri haardik badhai swikaar karein......
aap bhi kavitaayein bhejein to mazaa aaye.......
Silky ji hind-yugm ke liye nayi ho sakti hain,meri purani ORKUT-MITRA hain.....bahut hi behtarin kaavya hai unka....shilp aur bhaav dono umdaa.....haardik badhai........
barbaad sahab aur sanjeev tiwari ji ko bhi meri badhaai......
aashish sahab, meri kavita ki vivechana ke liye dhanyawaad...aakhir mein kavi ka dhyan bhatka hai, kyon iska jawaab vyaktigat taur par hi de paaungaa.....aapko koti-koti dhanyawaad.......
pankajji aur gaurav shuklaa ji, aise hi hind-yugm ka ikbaal buland rakhein......
HINDI ZINDAABAD........
nikhil anand giri
919868062333
सभी विजेताओं को मेरी और से हार्दिक बधाई।
हिन्द-युग्म को भी मेरी तरफ से हार्दिक बधाई:)
ईश्वर से प्रार्थना है स्मिता जी की बिटिया बहुत जल्दी ठीक हो जायें!!!
प्रतियोगिता का स्तर निरंतर बढता जा रहा है और इस बात से प्रसन्नता द्वगुणित हो जाती है पाठको की समालोचनाओं में भी अब पैनापन दृश्टिगत होता है। निखिल जी को बधाई देने के साथ ही सिल्की जी, सुप्रेम त्रिवेदी जी और संजीव जी को भी मैं समान बधाई का पात्र मानता हूँ जिनकी कविताओं नें हिन्द युग्म पर प्रकाशित हो कर इस मंच का स्तर बढाया है।आर्य मनु को विषेश धन्यवाद, चूंकि पाठक ही हिन्द युग्म की रीढ हैं। स्मिता जी आपकी कमी खल रही है।
*** राजीव रंजन प्रसाद
dekhne me aa rha hai ki unikavi ke liye kavitaon aur kavion me kaante ki takkar hone lagi hai.. hind yugm ke liye ye achchi baat hai..par jo vijeta nikla vo sahi mayne me vijeta hai
meri ttaraf se unikavi aur uni pathak ko badhai aur shubhakaamanayen..
hind yugm se maafi maangata hoon ki bahut dino se alag hoon is manch se par jaldi hi waapas aa rha hoon..
सर्वप्रथम विजेता कवि मित्रों को बधाई..
एक से बढ़कर एक उम्दा कविता.. मैं एक बात जो मेरे मन में परिणाम देखकर उभरी थी, आप लोगों के साथ बाँटना चाहूँगा। पिछली बार प्रथम 10 में आने के बाद मैंने फ़िर से अपनी एक कविता भेजी जो इस बार अपना स्थान न बना पाई.. मेरे मन में बड़ी उत्सुकता थी कविताएं पढ़ने की.. उन्हें पढ़ने के बाद मुझे पता चल गया कि मैं क्यों और कैसे पिछड़ गया.. :-)
प्रतियोगिता का स्तर बढ़ने से एक बात तो पक्की है। हम सभी की व्याकरण, शब्दावली, कल्पना, हर किसी में इजाफ़ा ही इजाफ़ा!!!..
सच कहूँ तो मुझे हर एक कविता टक्कर की लगी हर बात बहुत बहुत ही गहरी व जीवन की सच्चाई बखान कर रही थी...
हिन्द युग्म में शामिल हर एक शख्स को बधाई..हमारे देश में अनेकों कवि छिपे हुए हैं... आने वाले समय में हिन्द युग्म हर कवि और कविता प्रेमी को एक ही मंच पर लायेगा..यही उम्मीद है...
मै सहित्यकार नही हूँ मगर कविताएँ और कहानियाँ पढने का शौक है.हिन्दी-युग्म यूनिकवियोँ की रचनाएँ अच्छी लगीँ.आपकी टिप्प्णी ठीक ही लगी कि-प्रतिभाएँ अनन्त हैँ. निखिल जी तो काबिले-तारीफ हैँ ही मगर बाकी कविताएँ भी मन को छू लेने वाली हैँ.
डा.मान्धाता सिह
aapne vijetaon..ki kavita par to nirnayakon..ke comments batayen..par hamaari kavita mein kya kami thi , ye bhi to bataya hota................
........sudhir k. meshram
b.tech.first year
IIT ROORKEE
निखिल आनंद गिरि जी एवं कवि आर्य मनु जी को क्रमश: युनिकवि एवं युनिपाठक बनने पर हार्दिक बधाई!
मेरे लिये खुशी की बात यह भी है कि अब राजस्थान से भी सृजनकारों का हिन्दी चिट्ठाकारिता की ओर आगमन होने लगा है, युनिकोड हिन्दी का अंतरजालिय प्रचार-प्रसार भी "हिन्द-युग्म" का प्रमुख उद्देश्य है, ऐसे में अपने आस पास से लोगों को इस ओर रूख़ करता देख उत्साह बढ़ रहा है।
सिल्कीजी की "वो अबोध आँखे" भले ही दूसरे पायदन पर रही हो, मगर उत्कृष्ट सृजन है।
सुप्रेमजी की कविता दिल को छूती है, ख़ासकर यह पंक्तियाँ गहरा असर करती है -
आज रात भी भूखे आमिर की अप्पी घर नहीं लौटी,
मुझे मालूम है वो मासूम फिसली कहाँ होगी।
संजीवजी की कविता का अंत बहुत खूबसूरत लगा।
पुनश्च: सभी विजेताओं को हार्दिक बधाई!
सस्नेह,
गिरिराज जोशी "कविराज"
सभी विजेताओं को मेरी तरफ से बधाई। आने वाला समय जजों के लिये मेरे समझ से काफी कठिन होने जा रहा है, क्योंकि प्रथम, द्वितीय और तीसरे स्थानों की कविताओं में बडा अन्तर नही दिखता।
Sabhi vijetaayon ko meri taraf se haardik shubh kaamnaayen
naskaar banduo...
sabhi vijetaao ko meri taraf se bahut bahut badhaai
aur jinhone bhi iss pratiogita main hissa liya hai un sabhi ka prayaas saraahneeya hai..
kisi ko bhi apna dil chota karne ki koi jaroorat nahi hai...agar iss baar vijeta aap nahi bane hain to agli baar jaroor banenge
bas apna karm aur prayaas karne ki pravarti ko mat chodiyega..
bahut bahut badhaai aur aabhaar....
hai jaroorat waqt ki tabiyat badalni chaahiye..
ab niraasha ek bhi "mann" main na palni chaahiye..
jis raah pe ummeed ka suraj udit hota mile..
jindgi us raah pe hum sab ki chalni chaahiye...
ho tera ahsaas logo ke liye itna aham..
chode jab sansaar tu ..to kami teri khalni chaahiye....
aap ka vipin chauhan "mann"
निखिल आनंद गिरि एवं आर्यमनु के साथ साथ सभी विजेताओं को मेरी हार्दिक बधाईयां एवं शुभकामनाएं...
कवि कुलवंत सिंह
mitron,
lagaataar aapki itni pratikriyaayein paakar accha lag raha hai....
gauravji aur kavi kulwant ji ko bhi koti-koti dhanyawad......
aaj meri shailesh bharatvaasi se baat huyi thi, unhone ek badi acchi baat kahi jo sabke saath baantna chahunga....
mai jab bhi hindyugm par aata tha to unkaa naam dhundhta tha...magar unka naam nahi mila....aaj unse pooch baitha...unhone kaha, mai koi kavi thode hi hun(jabki maine unke orkut ke scraps mein unki kaavya-pratibhe ke baare mein kaafi kuch padha hai....) jo mera naam hindyugm par aaye........
to maine mazaak mein hi kah diya...bhaiya ye paramaarth kab tak chalega???
unhone kaha...ki bhai, hindi ki sewa mein apna swaarth hi hai, parmaarth kaha se aata hai...... itni saadgi se badi baat kah gaye......
kaash!! hind-yugm se judne waala har shaksh shailesh ji jaisa YODHA ho....(ye saari batein angrezi mein type kar raha hun, khsama chahta hun..)
hindi zindaabaad....
nikhil anand giri
vipin, anupama, giriraj joshiji ko bhi dhanyawaad.....un sabko bhi jo hindyugm par lagaataar aa rahe hain.......
nikhil
इस प्रतियोगिता के परिणाम को पढ़कर यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि अंतिम निर्णयकर्ता को कितनी मेहनत करनी पड़ी होगी। अब किसी न किसी पर उनका दिल आना ही था तो 'तुम सिखा दो' पर आ गया।
'तुम सिखा दो' अपने आप में संपूर्ण कविता है। मगर उसके लिए अंतिम छंद की व्याख्या को कुमार आशीष की तरह न करके मेरी तरह करना होगा (हा,हा,हा)
मिलन कैसा? हम सूखी नदी के दो किनारे।
मतलब किनारों का पृथक अस्तित्व तो तभी है जब उनके बीच नदी नाम की दूरी हो, ऐसी दूरी जो कम से कम नदी के जीवित रहते मिटाना सम्भव नहीं है। इसलिए कवि कह रहा है कि यदि हम किनारे भी हैं तो सूखी नदी के, मतलब अब तो हम एक ही है। अब तुम इस पर रेत का पुल भी न बनाना नहीम तो वह भी हमारी ज़ुदाई का प्रतीक होगा। यह जो ज़ुदाई का पोंगा-पंथ है, सब भुला उो। बस इतना याद रखो कि हम पृथक नहीं हैं।
सुनील डोगरा ज़ालिम से हम निवेदन करेंगे कि वो हमें पढ़कर इस मंच की शोभा बढ़ायें, वो भी यूनिपाठक के बराबर के हकदार थे, मगर हम असमंजस में थे कि किसे चुनें? आप उतनी ही आत्मीयता के साथ पढ़िए और अपने विचार व्यक्त कीजिए।
आर्य मनु, वास्तव में आपके पास बहुत उर्जा है। मुझे वह सब याद है, जब हमारे नियमित कवियों द्वारा सुबह-सुबह उनकी कविता प्रकाशित न पाकर आपको काफ़ी निराशा होती थी। मैं तो यही चाहूँगा कि आप अपना यह प्यार बनाये रखें, हिन्दी-कविता को आप जैसे धैर्यवान पाठक की ज़रूरत है।
सिल्की जी आपकी कविता रोम-रोम संवेदित कर देती है। जिस तरह से आपने लिखा है 'लेकिन ये आरंभ था केवल, शेष अभी यात्रा सारी थी', उसी प्रकार आपकी काव्य-यात्रा तो अभी शुरू हुई है, हमें पूरा विश्वास है कि यदि आपने इसी प्रकार कलम को साधे रखा तो आप आधुनिक युगीन सर्वश्रेष्ठ कवयित्री कहलायेंगी।
कितना भारी व्यंग्य है-
वो ज्ञान-सुधा वो सब पैमानें, अब उन सबका माप अलग था
अब तक जो परिभाषा सीखी उनसे पुण्य और पाप अलग था
सिसक-सिसक के उन आँखों से दर्द अचानक बह जाता था
भौतिकता सपनों पर हँसती सपना सच पर झल्लाता था
बर्बाद जी, आप बिलकुल अनूठा लिखते हैं, यह आपका सौभाग्य ही था कि आप यूनिकवि नहीं बन पायें क्योंकि अभी आप बहुत कुछ लिख सकते हैं, आप और धमाकेदार तरीके से एंट्री मारिए।
वेदना से भरा शे'र-
कल फूल मुरझाये थे, आज काँटे भी झड़ गये,
खुदा जाने वो आख़िरी तितली कहाँ होगी।
कुछ लोग कहते हैं कि बात जब भूख की होगी तभी इंकलाब होगा, मगर आपके विद्रोही तेवर कुछ और ही सुना रहे हैं-
पेट की आग ने हर चिंगारी को बुझा देना था,
फिर चीख इंकलाब की निकली कहाँ होगी।
आपने इस बिजली को भी नहीं बख़्सा-
हमेशा से इसने घर, दुकाँ और खेत ही जलाए हैं,
गिरे जो ज़ालिमों पर वो बिजली कहाँ होगी।
और आपका सबसे बेहतरीन शे'र-
आज रात भी भूखे आमिर की अप्पी घर नहीं लौटी,
मुझे मालूम है वो मासूम फिसली कहाँ होगी।
संजीव जी, हिन्द-युग्म का सौभाग्य कि आपका आशीष मिला। इनमें कितनी धार है, मैं तो अंदर से कट गया-
कट-फट जाते हैं मेरे गीत
और मैं होंठों को सीकर शून्य आसमान में
धार के उस पार कुछ खोजता हूं ।
जिस नदी के ख़िलाफ़ यूनिकवि ने गुहार लगाई है, आपकी यह पंक्तियाँ उसकी अनश्वरता पर प्रकाश डालती हैं-
सब मिलकर हमें नदी कहलाना है
इसलिए सब कुछ सहना पडता है गुमसुम
होंठों को सिये हुए ।
अगर यह स्वपन है तो निखिल का सपना कैसे पूरा होगा, ज़रा अपने विचार दीजिएगा, इंतज़ार रहेगा-
किनारे से मिलने का स्वप्न
तो, बस एक स्वप्न है ।
अन्य सभी प्रतियोगियों से निवेदन है कि सभी पुनः भाग लें, हो सकता है अपने यूनिकवि या यूनिकवयित्री आप ही हों।
धन्यवाद।
शैलेश जी.. युग्मित प्रश्नचिन्हों की पिच पर अच्छी गुगली खेली आपने। मगर..
बेखुदी बेसबब नहीं गालिब़
कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है।
निखिल आनन्द किस गिरि पर हैं
भाई आशीष ,
यह तुच्छ कवि किसी 'गिरि' पर नहीं है। मेरी अंतिम पंक्तियों के भटकाव का चित्रण शैलेश ने खूब किया है। बाकी कसर मेरी सोमवार को आनेवाली कविता कर देगी कि मैं किस शिखर पर हूँ। अपना नेह बनाये रखें। मेरा ब्लॉग भी घूम आवें।
निखिल
जून अंक की प्रतियोगिता के परिणाम देखकर बहुत खुशी हुई, हमें निखिल आनंद गिरी जैसे कवि की कविता पढने को मिली । वेदना जब शब्द बन के बह निकलती है तब “तुम सिखा दो” जैसी कविता रूप लेती है । निखिल की इस कविता में भाव, शव्दों के द्वारा दिल में अंदर तक उतरती है, कवि नें हर शव्द को इस ढंग से पिरोया है कि कविता जीवंत हो उठी है । मन बार बार कहता है कि यह भाव मेरे हैं, लय व शिल्प को अंगीकार कराती इस कविता के लिए यूनिकवि निखिल जी को मेरी शुभकामनायें ।
सिल्की अग्रवाल जी की कविता “वो अबोध आंखें” सिद्ध करती है कि कवित्री नें अपने भावों को शब्द शब्द में जीवंत किया है, कडुए सच का शिल्प सराहनीय है सिल्की जी को भी मेरी शुभकामनायें ।
सुप्रेम त्रिवेदी बर्बाद जी की कविता “कहां होगी” नें मन के किसी कोने में सोई अलसाई सी बैठी क्रांतिकारी विचारधारा को फिर से जगा दिया है । इस क्रांतिकारी कविता के हर पद लाजवाब है, विद्रूपों पर चोट पे चोट करती कविता में शब्द व अर्थों का चयन अनोखा है । बर्बाद जी को हमारी शुभकामनायें ।
मेरी कविता “किनारा” के लिए अंतिम जज की टिप्पणी को मैं आत्मसाध करता हूं । कवि हो या लेखक जब तक उसकी रचना पारखियों के नजर में नहीं आ जाती तब तक उसमें निहित कमियां उजागर नहीं हो पाती । मैं भविष्य में अपनी गलतियों को सुधारने का भरसक प्रयत्न करूगा, आभार ।
अंत में मेरे अंतरमन की अभिव्यक्ति यह है कि मेरी कविता आप सभी प्रतियोगियों की कविता के सामने कुछ भी नहीं है फिर भी हिन्द युग्म टीम के द्वारा मेरी कविता को इस योग्य समझा गया इस बात के लिए मैं हिन्द युग्म टीम का बहुत बहुत आभारी हूं । धन्यवाद । टिप्पणी देर से देने के लिए क्षमा प्रार्थी हूं - संजीव तिवारी
भाई संजीव,
मेरी कविता को समझकर अपना कहना के लिए आभारी हूँ...मुझे ख़ुशी है कि इस तुच्छ कवि के शब्द आपके मन के तारों को झंकृत कर पाए....आगे भी मेरी यही कोशिश रहेगी.......रही बात आपकी कविता के स्तर की तो ये तय करने वाले आप कौन होते हैं साहब...आपके अनुभव आपकी निधि हो सकते हैं, मगर एक बार जब कविता रच ली गयी और प्रस्तुत हो गयी तो फिर इसका निर्णय काव्यप्रेमियों पर छोड़िए........दिल छोटा करने की ज़रूरत नहीं है....कवि जिस प्रसव-पीड़ा से गुज़रता है, मूल्यांकन उसका होता है, ना कि चद शब्दों का...समझे जनाब........
निखिल आनंद गिरि
९८६८०६२३३३
www.bura-bhala.blogspot.com
दोस्तों,
अब क्या करूँ इससे अच्छा सम्बोधन तो मैं ढूँढने में हमेशा से असमर्थ रहा हूँ!
रही बात देरी की, तो इस मुए जेट लैग का गला कहीं मिले तो मुझे भी बताना, दबा दूँगा बेहिचक-बेमुरव्वत।
अब तारीफों की बात है तो दोस्तों, बुरा न लगे तो इक बात कहूंगा सच तो ये है के 'गिरि' साहब 'तुम सिखा दो' एक अद्वितीय रचना है, एक ऐसी कालजयी रचना जो कलम कभी-कभार ही लिख पाती है और बना देती है इतिहास===
"आँसुओं की लय पिरोकर, गुनगुनाना, तुम सिखा दो.."
गुरुदेव बेबिजली केर पन्खा बन गइल हम तुहार॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
और सिल्की जी जहाँ तक आपकी कविता का सवाल है भले ही आप मुझे 'फीमेल-प्रेजुडिस' से ग्रसित कहें, पर मैं ये ही कहूँगा कि कवि और कवियत्री में शायद यही एक फर्क है- कितनी सपाट फिर भी कितनी नाज़ुक, कितनी चोटिल फिर भी कितनी प्रभावी और जिनती सच उननी ही सुन्दर ऐसी कविता एक कवियत्री ही लिख सकती है कोई कवि नहीं।
और गिरि साहब मैं आप से इत्तिफाक नहीं रखता शायद मैं आपसे ज़्यादा हठधर्मी हूँ-- एक जन्म में एक ही प्रसव और एकमात्र पीड़ा पर एक कवि अनगिन प्रसव-पीड़ाओं से गुज़रता है तब कहीं जन्म लेती है एक कविता॰॰॰॰॰
इसीलिये मैं कहता हूँ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ कि कविता कभी प्रथम या द्वितीय नहीं होती वो तो सिर्फ अद्वितीय होती है॰॰॰॰॰॰॰॰॰
ठी क वैसे ही जैसे जन्म के समय हर मां की सन्तान संसार में सबसे सुन्दर होती है॰॰॰॰॰॰॰
सभी कवियों को मेरी और से हार्दिक बधाई...
सबसे पहले निखिल आनन्द...आपकी कविता बहुत पसंद आई...प्यार का अहसास जगाती कविता वाकई खूबसूरत है...
दुसरे युनिकवी मनु तुम्हारे बारे मै कुछ भी कहना कम ही होगा तुम भविष्य हो हमारा...एक योग्य होनहार कलाकार बनो यही मनोकामना है...
सिल्की अग्रवाल की कविता 'वो अबोध आँखें' कविता मनमोहक जैसे बचपन का सजीव चित्रण किया है इन्होने...
सुप्रेम त्रिवेदी "बर्बाद आपने भी काफ़ी मेहनत की है...शुभकामनाएं...
कविता किनारा बहुत अच्छी लगी कितनी सादगी है कविता में संजीव जी आपकी कविता दुर्लभ भावनाओं का सयोंजन है बहुत अच्छा लगा आप गद्य के साथ-साथ कविता भी अतिसुंदर लिखते है...
मै हिन्द-युग्म कि तरफ़ से आप सभी कि आभारी
हूँ आप सभी ने प्रतियोगिता में हिस्सा लेकर हमारे हिन्द-युग्म का गौरव बढ़ाया ...
सुनीता(शानू)
सुप्रेम व सुनीता जी,
कविता पर टिप्पणी के लिये शुक्रिया। आप मेरे 'पंखा' बन गये सुप्रेम, मुझे ठंडक मिली।।
ऐसे ही प्रोत्साहन करते रहें।
निखिल
wo abodha aankhe: silky agarwaal.
tremendous and spontaneous overflow of emotions recollected in tranquility. excellent craftsmanship too. Enviable job!
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