फटाफट (25 नई पोस्ट):

Sunday, June 03, 2007

तू मानव है, मानव जैसी बात कर


जीवन अस्त-व्यस्त नहीं, त्रस्त हो रहा
हे मानव! तुझको क्या हो रहा?
अपने ही घर को फूँक-फूँक तू
क्यूँ बाहुबल पर अपने झूम रहा?

दानव-सा न व्यवहार कर
तू मानव है, मानव जैसी बात कर

अब निज स्वार्थ को त्याग दे
मानव है, मानवता का राग दे
लट्ठ, दूनाली, चाकू, फरसा
अब तो हथियारों को त्याग दे

मानवता को न शर्मसार कर
तू मानव है, मानव जैसी बात कर

प्यार-मोहब्बत की फिर से बात कर
मानव है, मानव ही अपनी जात धर
आरक्षण की आग में न जल, न जला
चल उठ, फिर से सबकुछ आबाद कर

प्राणी मात्र से प्यार कर
तू मानव है, मानव जैसी बात कर

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

18 कविताप्रेमियों का कहना है :

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

गिरिराज जी,

आरक्षण के भूखे नरपिचाशों को आपने कम शब्दों में अच्छा संदेश दिया है। अब बात यह है कि इनपर कुछ असर होता है या नहीं।

Anonymous का कहना है कि -

मित्रवर गिरिराज जी,
आरक्षण की धधकती हुई आग में सुलगते हुए राजस्थान के हाल पर शब्दों का अच्छा प्रहार है।
पहली बार आपको पडा और मह्सूस किया कि अब तक आपको क्युं नहीं पडा। इतनी मर्मस्पर्शी रचना के लिये आपको ह्र्दय से साधुवाद

Monika (Manya) का कहना है कि -

बहुत सार्थक संदेश है कविता में.. प्र्वाह भी अच्छा है..

विनोद कुमार ऐलावादी का कहना है कि -

"गृहयुद्ध"
श्री शैलेश भारतवासी, राजीव रंजन प्रसाद, देवेश खबरी, आर्य मनु

आपका संदेश पढा़, आपने लिखा है---" राजस्थान वर्षों पीछे चला गया है।प्रदेश गृहयुद्ध के मुहाने पर खडा है। "

मेरे विचार से इस "गृहयुद्ध" मे ही भारत देश की भलाई है। हमारे संविधान के भूतपूर्व निर्माता, और वर्तमान संशोधन कर्ता, जिन्होने ईस-- "ऍस सी, ऍस टी, ऒ सी बी" , के जिन्न को बोतल से बाहर निकाला है उन सब को इस "गृहयुद्ध" की कबर मे दफन कर के फिर ऍक नये भारत की सरंचना करनी होगी।

इस आग को और फैलने मे ही मेरा भारत इन वर्तमान संशोधन कर्ताऒं के चुंगल से निकल पायेगा।

आज राजस्थान बंद है, कल दिल्ली बंद, फिर भारत बंद, और बहुतों को शहादत भी देनी होगी। हर गली, मुहल्ला जलेगा इस मे। अभी ६ लाशें लावारिस पडी़ है़, मेरे भारत को ६००० ऍसी लाशों का इन्तज़ार है। मगर फिर भी लाचारी है---मेरे यह नेता, भारतवर्ष के नेता इन्ही लाशों पर फिर अपना झडां फैरायेगें, संसद फिर अपना कब्ज़ा जमा कर शपथ लेंगे।

मित्रो, यह सिलसिला चलता रहेगा और हम यहां अपने लेख लिखते रहेंगे।

श्रवण सिंह का कहना है कि -

प्रियवर जोशीजी,

बडी ही मर्मस्पर्शी रचना है.... झंझावात सा उठ आया मन में.....।

"प्यार-मोहब्बत की फिर से बात कर
मानव है, मानव ही अपनी जात धर "
....................
....................

सब कुछ सिमट आया है इन पंक्तियों में - मानवता का पाठ कहें या गीता के स्वधर्म का दर्शन ; एक पैनी शैली जो आपके कलम से निकलती है , बहुत दूर तलक जाने का माद्दा रखती है।

श्रवण

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

प्यार-मोहब्बत की फिर से बात कर
मानव है, मानव ही अपनी जात धर
आरक्षण की आग में न जल, न जला
चल उठ, फिर से सबकुछ आबाद कर

प्राणी मात्र से प्यार कर
तू मानव है, मानव जैसी बात कर

सीधे सीधे खरी-खोटी सुनाने और नहीहत का अच्छा उदाहरण है आपकी कविता।

*** राजीव रंजन प्रसाद

संजय बेंगाणी का कहना है कि -

अच्छी कविता है, समयानुकुल.

SahityaShilpi का कहना है कि -

अपनी इंसानियत को भुला चुके लोगों को सही राह दिखाने का प्रयास सराहनीय है।

रंजू भाटिया का कहना है कि -

सीधे सादे लफ़्ज़ो में आज के हालत पर लिख हुई आपकी यह रचना बहुत पसंद आई ....

प्यार-मोहब्बत की फिर से बात कर
मानव है, मानव ही अपनी जात धर
आरक्षण की आग में न जल, न जला
चल उठ, फिर से सबकुछ आबाद कर

जाने कब लोग प्यार की भाषा को दिल से समझेंगे ...आपका यह प्रयास बहुत ही सुंदर लगा

Medha P का कहना है कि -

प्राणी मात्र से प्यार कर
तू मानव है, मानव जैसी बात कर

बहुत अच्छा संदेश दिया है। अच्छी कविता है ।

विश्व दीपक का कहना है कि -

तात्कालिन घटना पर आपके ये शब्द, सच का संदेश देते हैं । मनुष्य आज खुद को भूल गया है। उसे उसका अस्तित्व याद दिलाने के लिए आप जैसे हीं रचनाकारों की आवश्यकता है।

Anupama का कहना है कि -

kavita aachi hai,,,,,baat aachi hai....tarikaa accha hai

Upasthit का कहना है कि -

मैं नहीं जानता कि आप घटना के कितने पास हैं, राजस्थान मे हैं इतना पता था, आपसे एक मर्मश्पर्शीकविता की आशा थी ।
जानता नहीं कि ऐसा क्यों है, पर ऐसी कविता यदि मैं लिखता तो क्षम्य था, आपके जैसे कवि से और अधिक तेज की मांग है । जवानी मे जवानों सी कविता लिखो गिरिराज...ये क्या बुढापे की बातें कर रहे हो । तुम तो वहीं थे..तुमसे ऐसा नहीं चाहिये था...फ़िर भी समयानुकूल कचिता लेखन पर बधाई...(इसे इस प्रकार से पढें,दंगा हुआ तो लगे हाथ एक कविता भी हो गयी) ।

Mohinder56 का कहना है कि -

गिरिराज जी
आपने कविता के माध्यम से बहुत अच्छा संदेश दिया है.. जो लोग दंगा कर रहे है.. वह बहादुर नहीं कायर हैं साथ ही संवेदनहीन भी हैं, उन्हें आम आदमी के दुख दर्द या राष्ट्रीय समंपति के नुकसान का कोई क्षोभ नहीं है.
नेताओं के हथकंडे जनता समझ नहीं पाती है यही इस सब का मूल कारण है..

कविता में सार्थक संदेश के लिय बधायी और टिप्प्णी में विलम्ब के लिये क्षमाप्रार्थी हूं

Anonymous का कहना है कि -

SABSE MUSHKIL HAI MANUSHYA BANANA

ARAKSHAN KE LIYE DTC BUSES KO JALA DENE VALON KO SHAT SHAT PRANAM AUR APKO BHI JO MANAVTA KA SUJHAV DE RAHE HAIN

ghughutibasuti का कहना है कि -

बहुत सुन्दर, भावपूर्ण व सामयिक कविता लिखी है आपने । काश यह कविता सारे आरक्षण के भूखे भी पढ़ सकते और इस पर विचार भी कर सकते ।
घुघूती बासूती

Unknown का कहना है कि -

संवेदनशील कविता ।

Unknown का कहना है कि -

zzzzz2018.6.2
nike air huarache
pandora
pandora outlet
ralph lauren outlet
dolphins jerseys
houston texans jerseys
jordans
longchamp bags
seahawks jersey
asics shoes

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)