मार्च २००७ से हमने सामूहिक कविता-लेखन कार्यशाला 'काव्य-पल्लवन' का आगाज़ किया है। तभी कई पाठकों ने यह सलाह दी थी कि इसे सदस्य कवियों तक सीमित नहीं रखना चाहिए। सभी को इस तरह की कार्यशाला में लिखने का अवसर मिलना चाहिए। जिससे बेहतर से बेहतर कविताएँ आयेंगी और अंतरजालीय हिन्दी-कविता समृद्ध होगी।
यद्यपि हमारी यह शुरूआत इसी उद्देश्य की अभिव्यक्ति थी लेकिन हमारे पास काम ज़्यादा था और हाथ कम। या यूँ कहिए उपलब्ध हाथों के पास समय कम। मगर अब सारी मुश्किलें आसान हो गई हैं। मोहिन्दर कुमार जी ने काव्य-पल्लवन की जिम्मेदारी उठाने का मन बनाया है। अतः काव्य-पल्लवन के आगामी अंकों को सभी रचनाधर्मियों के लिए खोला जा रहा है।
वैसे ज़्यादातर लोग काव्य-पल्लवन से परीचित हैं, मगर फ़िर भी आप इसके बारे में यहाँ पढ़ लें क्योंकि नियम और शर्तों में अब कुछ बदलाव किये गये हैं।
इस बार का विषय कवि गौरव सोलंकी द्वारा चुना गया है। बहुत ही प्यारा-सा, सबकी पसंद का विषय है 'प्यास'।
आपको करना मात्र इतना है कि इस विषय पर स्वरचित कविता को १३ जुलाई, २००७ तक mohinder56@gmail.com पर भेज देना है। रचना को मेल द्वारा भेजते समय मेल के विषय (Subject) में 'मेरी रचना काव्य-पल्लवन के लिए' लिखना न भूलें; जिससे मोहिन्दर जी को उस मेल के महत्व का भान हो सके।
याद रहे आपकी कविता विषय से न भटके। और यूनिकोड में टंकित हो। यूनिकोड-टंकण संबंधित मदद यहाँ हैं।
चूँकि अब रचनाओं की संख्या बढ़ेगी, जिससे हमारी पेंटर का काम बढ़ जायेगा, इसलिए जब तक हमें कोई और पेंटर नहीं मिल जाता, हम प्रत्येक रचना के साथ पेंटिंग प्रकाशित करने की गारन्टी नहीं ले सकते। हम बहुत ज़ोर-शोर से अन्य पेंटरों की तलाश कर रहे हैं। यदि आप में से कोई पेंटिंग बनाने में रुचि रखता हो, अंतरजालीय कविताओं को अपनी चित्राभिव्यक्ति से अलंकृत करना चाहता हो तो कृपया hindyugm@gmail.com पर सम्पर्क करे।
काव्य-पल्लवन का यह अंक २६ जुलाई, २००७ को प्रकाशित कर दिया जायेगा।
हमें आपकी रचनाओं का इंतज़ार रहेगा।
काव्य-पल्लवन के अब तक के अंक-
सड़क, आदमी और आसमान
परिवर्तन नाम है जीवन का
जीवन एक कैनवास
आधुनिक विकास और गाँव
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2 कविताप्रेमियों का कहना है :
शैलेष जी, ये बहुत ही उम्दा कदम है। हिंदी और हिंदी कविता को प्रोत्साहन देने हेतु हिंद युग्म का एक और कदम है।
ज़िंदगी का हर पल पूरी तरह से जीता हूँ..
हमेशा हंसना और दूसरों को हसाना आदत है।
गम मे भी मुस्कुराना चाहता हूँ मैं,
तुम्हें भुलाके नई दुनिया बसाना चाहता हूँ मैं;
मगर न जाने क्यूँ निकल आते हैं आँसू,
जब भी तुम्हें भुलाना चाहता हूँ मैं!
आँसू को बहुत समझाया तनहाई मे आया करो,
महफिल मे हमारा मज़ाक न उड़ाया करो,
इस पर आँसू तड़प कर बोले.
इतने.लोगों मे आपको तनहा पाते हैं ,,
बस इसलिए चले आते हैं!!
यूँ दूर रह कर दूरियों को बढ़ाया नहीं करते,
अपने दीवाने को सताया नहीं करते;
क्यूँ इस तरह से यह दर्द हमें दे रहे हो,
इस तरह से प्यार करने वालों को सताया नहीं करते!
अब आँसुओं को आँखों मे सजाना होगा,
चिराग बुझ गए खुद को जलाना होगा;
न समझना कि तुम से बिछड़ कर खुश हैं,
हमे लोगों की खातिर मुस्कुराना होगा!!
ji ye mari kavita nahi hai mujha mare dost na baji hai main aap sab ko baj raha hon.
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