हर दर्द को सह लेता, सहने तो दिया होता,
नज़दीक तेरे दिलबर रहने तो दिया होता।
एक बूँद पसीने को सौ बूँद लहू देता
मैं रंग दिखा देता देने तो दिया होता।
इस दिल में सिवा तेरे कोई और नहीं मूरत
दिल चीर के दिखलाता देने तो दिया होता।
बस मेरी ही है तू, है मेरे लिए तू बनी
तेरे रब से पुछा देता देने तो दिया होता।
ये प्यार तो होता है तेरी ज़न्नत से बढ़कर
इक झलक दिखा देता देने तो दिया होता।
अरमान सभी दिल के पूरे होते तेरे
नये ख़्याब भी दिखलाता देने तो दिया होता।
नहीं फ़िक्र ज़रा सी भी मुझे रस्म-रिवाज़ों की
हर रस्म उठा देता देने तो दिया होता।
हर दर्द को सह लेता, सहने तो दिया होता,
नज़दीक तेरे दिलबर रहने तो दिया होता।
कवि- पंकज तिवारी
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत सुंदर रचना है पकंज जी,विशेष कर ये पक्तिंयाँ पसंद आई...
हर दर्द को सह लेता, सहने तो दिया होता,
नज़दीक तेरे दिलबर रहने तो दिया होता।
एक बूँद पसीने को सौ बूँद लहू देता
मैं रंग दिखा देता देने तो दिया होता।
इस दिल में सिवा तेरे कोई और नहीं मूरत
दिल चीर के दिखलाता देने तो दिया होता।
शुभ-कामनायें...
सुनीता(शानू)
पंकज जी,
पहली दो शेर बहुत पसन्द आये.
व्याकरण की काफ़ी गलतियां दिख रही हैं साथ ही
हर शेर के अन्त में "देने तो दिया होता" फ़िट होता मालूम नहीं पडता ऐसा मुझे लगा...
बाकी अन्य पाठक क्या कहते हैं देखना होगा
apke dard sahane ki shakti ka fan ban gaya hun...beha marmik rachna ..aapse aisi hi aur bhi rachnaon ki asha hai....
पंकजजी,
सभी शेर एक से बढ़कर एक है।
हर दर्द को सह लेता, सहने तो दिया होता,
नज़दीक तेरे दिलबर रहने तो दिया होता।
बधाई स्वीकार करें।
पंकज जी
आपकी गज़ल आते ही दिन सुधर जाता है। जिस धुन में उसे पढता हूँ सारे दिन जबान पर चढी रहती है। आप इस विधा में साधना जारी रखें, आप निश्चित ही कल के जावेद अखतर होंगे।
एक बूँद पसीने को सौ बूँद लहू देता
मैं रंग दिखा देता देने तो दिया होता।
नहीं फ़िक्र ज़रा सी भी मुझे रस्म-रिवाज़ों की
हर रस्म उठा देता देने तो दिया होता।
*** राजीव रंजन प्रसाद
पंकज जी, एक और खूबसूरत रचना के लिये बधाई. हालाँकि मोहिन्दर भाई की बात से भी मैं सहमत हूँ. थोड़ी और मेहनत से रचना और भी सुंदर हो सकती थी.
ACTUALLY ...3 SHER AISE HAIN JIS MEIN AAP KAA YAH "DETAA" SHABD FIT NAHIN HO RAHAA. MATALAB.. SENETENCE GEE GALAT HAI...
DHYAAN DEY KER LEKIN.
VAISEY TUMHARI 1 GAZAL... TUMHARI AWAAZ MEIN PODCAST PAR SUNI THI AUR VO ACCHII BHI LAGI THI.
मैं गिरिराज जी और राजीव जी से सहमत होते हुए भी आपसे थोड़ा नाराज हूँ।
अगर आप तीन छंदों में , जिनमें आपने "देने तो दिया होता" को कुछ अच्छी एवं अलग तरह से लिखा होता , तो बात हीं कुछ और होती। वैसे भावगत दृष्टि से बहुत हीं सुंदर है आपकी रचना।
वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह....
ये प्यार तो होता है तेरी ज़न्नत से बढ़कर
इक झलक दिखा देता देने तो दिया होता।
सुंदर ....
नहीं फ़िक्र ज़रा सी भी मुझे रस्म-रिवाज़ों की
हर रस्म उठा देता देने तो दिया होता।...
बधाई ...
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