फटाफट (25 नई पोस्ट):

Friday, June 01, 2007

काव्य-पल्लवन- तृतीय अंक


काव्य-पल्लवन का तीसरा अंक लेकर हम आपके समक्ष उपस्थित हैं। हमारी पेंटर स्मिता तिवारी के यहाँ पिछले ५ दिनों से नेट खराब होने की वज़ह से सभी कविताओं पर बनी पेंटिंग हम तक नहीं पहुँच पाई हैं। जैसे ही उनका नेट कनैक्शन ठीक होगा, शेष २ पेंटिंगें भी लगा दी जायेंगी। फिलहाल तो आपलोग इस नवीन काव्य-पल्लवन का मज़ा लीजिए और अपने विचारों से हमें अवगत कराइए।





काव्य-पल्लवन सामूहिक कविता-लेखन






विषय - परिवर्तन का नाम ही जीवन


विषय-चयन - तुषार जोशी


पेंटिंग (चित्र) - स्मिता तिवारी


अंक - तृतीय


माह - मई 2007









यूँ इस तरह न वक़्त को मेरे दिल गवां
यहाँ हर बीतता पल न जाने कब अंतिम हो जाना है
राही सुन ज़ीवन एक परिवर्तन है
जिसने हर पल बदल जाना है

कभी साथ में होंगे तेरे हमसफ़र कितने
तो कभी नितांत अकेलापन भी होगा
कभी थक के चूर होंगे तेरे सपने
कभी साथ नाचता मयूरी सा मन भी होगा
यूँ ही पल पल करके इस जीवन ने बीत जाना है
इसको यूँ ही न व्यर्थ गवां
एक दिन सब यहाँ बदल जाना है


छाया है यहाँ हर आती खुशी
क्यूँ इस पर पागल मनवा इतराता है
सपने तेरे सब पूरे हो यहाँ
ऐसा कब संभव हो पाता है
धूप छाँव सा है यह जीवन
दर्द और खुशी में ढल जाना है
इस जीवन को यूँ न गवां
यहाँ एक दिन सब बदल जाना है

कौन टिक सका है अमर हो कर यहाँ
राजा बन के भी सभी ख़ाली हाथ गये
चाँद से सुंदर लगते चेहरे सब
वक़्त के साए में यहाँ ढल गये
धन दौलत के बही-खातो को
यहीं के यहीं ख़त्म कर जाना है
माया से यूँ तू मोह न लगा
भला इसने कब साथ हमारे जाना है
परिवर्तन है जीवन यह तो
यहाँ एक दिन सब बदल जाना है !!

कवयित्री - रंजना भाटिया






परिवर्तन नाम है जीवन का।
कितनी सही लगती है यह लाइन।
जैसे इसमें सोचने को क्या है; ये तो होता ही है।
सवाल ही नहीं उठता कि कोई निकाले इसमें मीन-मेख।
या कह दे कि नहीं, कोई ज़रूरत नहीं है परिवर्तन की,बिल्कुल आवश्वक नहीं है बदलाव।
मुझे बचपन से ही यह सिखाया गया कि बेटा परिवर्तन प्रकृति का नियम है।
परिवर्तन जीवन का दूसरा नाम है।
जीवन क्या है बहता पानी,जो हर पल चलता रहता है,
अपने को निरन्तर गतिमान रखकर परिवर्तनशील रहता है।
वगैरह-वगैरह।
ये सारी बातें मुझे इतनी बार बताई और सिखायी जा चुकी हैं
कि मुझे इनकी सत्यता में संदेह लेशमात्र भी नहीं होना चाहिये।
लेकिन विद्रोही मन में कभी-२ सवाल आ ही जाता है- क्या इतना ज़रूरी है परिवर्तन।
क्या मैं परिवर्तित नहीं होऊँगा तो मेरा जीवन रुक जायेगा?
लेकिन अगर ऐसा है
तो मेरे सारे करीबी दोस्त फोन पर,
ई-मेल में
और स्क्रैप करके ऐसा क्यों कहते हैं कि यार देखो बदल मत जाना।
क्यूँ मम्मी यह कहते हुए बिल्कुल संतुष्ट दिखती हैं कि
अरे तुम तो बिल्कुल भी नहीं बदले।
पिछली बार जब मैं घर गया था
तो मेरे एक पुराने दोस्त ने भी तारीफी लहज़े में कहा था वाह तुम तो बिल्कुल भी नहीं बदले यार।
हो सकता है कि उन लोगों को पता ही न हो कि परिवर्तन का नाम ही जीवन है।
हाँ, यह भी हो सकता है कि उन्हें इसमें विश्वास न हो।
जो भी हो मैंने कभी पूछा भी नहीं।
खैर।
कभी-२ सोचता हूँ कि कितना अच्छा होता
कि आज भी मम्मी मुझे और नीशू को स्कूल के लिये तैयार करतीं।
कितना मज़ा आता अगर मैं गाँव के लड़कों के साथ "लुका-छिपी" खेलता।
ये सब क्यूँ बदल गया?
कितना अच्छा तो था।
लगातार चार-पाँच घन्टों तक नदी में हम नहाते थे,
मम्मी के आने पर ही निकलते थे।
पेड़ों पर मैं बन्दरों की तरह चढ़ जाता था;
"चिलाँघो" में खूब दौड़ता था लोगों को।
लोग बताते हैं कि पहले मैं बहुत सुन्दर दिखता था,
सेहत भी अच्छी थी।
दुःख कि मेरा काफी कुछ इस परिवर्तन की भेंट चढ़ गया;
जो कुछ बचा है धीरे-२ वह भी इसी की भेंट चढ़ जायेगा।
तब तो मम्मी को भी मानना पड़ेगा और तमाम दोस्तों को भी कि
परिवर्तन का नाम ही जीवन है।
कभी-२ सोचता हूँ कि मैं क्या था, क्या बनना चाहता था और क्या बन गया।
कितना खुश मैं अपने आप से।
काफी हद तक मैं संतुष्ट हुआ करता था, अपने आप से।
इस परिवर्तन ने आज ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया कि लिखना पड़ता है-
"मैं मुझे पसंद नहीं मुझको बदलना होगा"।
तो कभी ये-
"वक्त बदलना मुझको कभी ना रास आया"।
शायद जीवन के इस सिद्धान्त का एक दृष्टान्त यह भी है कि--
"जीवन में परिवर्तन होना अटल है
लेकिन इस बात की कोई गारन्टी नहीं कि वह सुखकारी और सकारात्मक ही होगा।"

कवयिता - पंकज तिवारी






बेदम न हो , दम लेने दे,

क्या गम है,यह गम लेने दे,
रो मत, जख्म धुल जाएँगे,
हैं स्याही , इन्हें थम लेने दे।

तू पत्थर , तू फ़ौलाद है,
इस धरती की औलाद है,
तेरा सीना चाक किया जिसने,
वो तुझसे ही आबाद है।

जिसे रूह का कतरा दे पाला,
लहू जिसकी साँसों में ढाला,
अधिकार है क्या, कहकर उसने,
निज जन्म ही प्रश्नों में डाला।

तेरा मूल्य मूढ़ न जान सका,
कद तेरा न अनुमान सका,
तूने सौंपी थी नींव जिसे,
एक ईंट न सीधा तान सका।

हैं सपने हर पल एक कहाँ,
सब कर्म , सभी के नेक कहाँ,
तू अपनी राह ही चलता चल,
जो भटके उनके लेख कहाँ।

तू जख्म में गर्मजोशी भर ले,
कंठ से खामोशी हर ले,
आँसू पर हँसी का रंग चढा,
बदलाव से बेहोशी हर ले।

तू अपना जग खुद अर्जित कर,
अपने अनुभव को समर्पित कर,
एक मील का पत्थर बन जा तू,
निज जीवन यूँ परिवर्तित कर।

कवयिता - विश्व दीपक






हल बैल फिर खेत निरायी
कहीं बीज कहीं पौध रोपायी
हरी कौपले, कोमल डालियाँ
समय से बने सुनहरी बालियाँ
खलिहानों से दुकानों तक
दुकानों से घर की रसोई
रसोई से फिर थाली तक
किस पर क्या-क्या बीता
किस ने है क्या-क्या झेला
कुछ जग जाहिर है इस दूरी में
और कुछ न कहने की मजबूरी में

कच्ची मिट्टी सांचों में ढल कर
जलती भट्टी की आंच में तप कर
झोंपडी महल और कंगूरे
कुछ सजे हुये कुछ आधे-अधूरे
खड़े हुये हैं जो सिर को उठाये
ईंट से ईंट जोड़ कर गये बनाये

हिमखंड पिघले तो जलधारा
जलधारा मिल बने महानदी
संगम महानदियों का सागर है
वाष्प जल सागर तल से उठ
घनघोर घटायें बन छाते हैं
कहीं बर्फ़ की बिछती है चादर
कहीं हों ओलों की बौछारें
पर्वतों के तन से धुलती है माटी
कहीं शिला-खंड रेत बन जाते हैं

काल-चक्र से बन्ध कर जीवन
शैशव, यौवन की देहरी को लांघ
अपने अन्तिम चरण को पाता है
एक बूंद बारिश की
सीप का सौपान बन
अनमोल रत्न बन जाती है
एक पल सौभाग्य का
जीवन को खुशियोँ से भर देता है


इतिहासों के खड़े यह खण्डहर
कालचक्र से उठे यह बबण्डर
परिवर्तन के मूक साक्षी
हमको यह दर्शाते हैं
बन बन कर मिट जाने का
उठ कर फिर गिर जाने का
दूसरा नाम परिवर्तन है
और परिवर्तन का नाम ही जीवन है

कवयिता - मोहिन्दर कुमार






जंगल बदल गया था पहले प्यारे-प्यारे गाँवों में
फिर गाँव खो गये कहीं सभ्य बनकर शहरों में
अब शहर बदल रहा है, दिन-ब-दिन शमशानों में
शैतान बन कौन घूम रहा है, इंसानी पौशाकों में

लगता धर्म लील रहा जीवन है
परिवर्तन का नाम ही जीवन है!

लैला-मजनूं, हीर-रांझा, खो गये कहीं किताबों में
मोहब्बत रूप बदल रही है अब शहरी मयख़ानों में
माँ-बाप क्यों सोचें, क्या दिया उन्होंने संस्कारों में?
दो-चार सेवक पटक रखें है हमनें उनके चरणों में

अब तो पैसों से पलता जीवन है
परिवर्तन का नाम ही जीवन है!

माँ के हाथों बनती थी रोटी, तब दहक-दहक अंगारों में
साग-सब्जी सब कुछ मिल रहा है, शीशे बंद दूकानों में
ममता भी अब तो बिक रही है, होकर बंद लिफाफों में
पेट भरता है अब लेकिन, स्वाद नहीं आता चटकारों में

पल-पल बदलता अब जीवन है
परिवर्तन का नाम ही जीवन है!

कवयिता - गिरिराज जोशी 'कविराज'






परिवर्तन के नाम पर
कई बार मुझे छला गया
किसी ने घर छुड़ाया
कोई अस्मत लूट चला गया।
अब वो वैदिक युग कहाँ
यह तो घोर कलयुग है
ऐसा कहकर, बाप-भाइयों
के पैरों तले मला गया।

नहीं मिल पाया मेरे
बच्चों को नाम मेरा
पिता की, कभी पति की
हमेशा बदला धाम मेरा।

कॉल सेंटरों की हक़ीकत को
युग-परिवर्तन का नाम देकर
पोस्ट में तरक्की की ख़ातिर
देह-सौंपने का काम देकर
मेरे अस्तित्व को घोला गया।

अब ये संसार के नियम को
जीवन का नियम बतलाते हैं
गर्दन इनके पाँवों तले है दबी
इसलिए हम हारकर, सहलाते हैं।

बदलाव को धर्मानुगत तो बनाओ
अपने मन में सम्मान-भाव लाओ
अच्छा पुत्र नहीं बन सकते तो
कम से कम अच्छा पति बन जाओ।

कवयिता-शैलेश भारतवासी






मेरे हाँथ की रेखाएँ बदल गयीं
तुमने पलट कर भी न देखा कभी
ठीक ही कहा था कि पाषाण हूँ मैं।

ठहरा रहा, बहता रहा वक़्त मुझ पर से
मैं मौन था, मैं कौन था
यह प्रश्न मुझसे मैं भला करता कहाँ
शोर दरिया का यहाँ...

हर दर्द मन को तोड़ता है
मैं मगर फिर भी तना था
मैं बदल जाता तो जीवन में भला क्या था
मैं अहं में था कि मैं पत्थर बना था

मुझसे आँधी नें कहा एक रोज़
क्या तुमको पता था
एक टुकड़ा तुम, तुम्हारा शेष तो पिघला हुआ है
आज तुम जड़ से उखड़ कर
रेत का कण हो रहोगे

ए मेरे नादान पत्थर
बाँह फैला कर खड़ा सागर तुम्हारा
बीन कर खुद में समाता रेत का हर एक टुकडा
जो तुम्हारा अंश था
राह तकता है कि तुम संपूर्ण उसके
हो के उसको मोक्ष दोगे...

मुझको झरता देख,
हँस के, रो पड़ा सावन
मेरी आँखें खुली थीं
मैं मिटने जा रहा था
फ़कीरा गा रहा था

"नया फिर आवरण,

परिवर्तन ही जीवन "

कवयिता - राजीव रंजन प्रसाद






आज जब जाओगे घर तो फूल कुछ लेकर जाइए
प्यार से दीजिए उनको नयी मुसकान पाइए
कहिये फिर हम तुम्हारे संग कहीं टहलने जाते हैं
और फिर आज का खाना कहीं बाहर ही खाते हैं

बॉस की डाँट खाई थी आज घर में बताना मत
रोज़ की किट-किट का अपने वही चरखा चलाना मत
पहले जिस तरहा मिलते थे आज वैसे बन जाइए
परिवर्तन की खुशबू का सही आनंद उठाइए

ज़रा अपने बदलने से बहारें आ सकती हैं तो
क्यों बाटते फिरते है हम अकसर पतझड़ को?
अपने घर के तुम राजा आज बनकर दिखाइए
आज खुश हो कर जाइए और खुशियाँ खिलाइए

कवयिता - तुषार जोशी





बचपन में मौज़ किया करते थे,
युवा हुऐ तो कर्म की ओर हुऐ अग्रसर,
आई जवानी तो प्रेम चढ़ा परवान पर
प्रेम ही तो जीवन का अधार बना
करने को जीवन स्वप्न सकार।
यह सब ही परिवर्तन का नाम ही जीवन है।

हर क्षण में सब कुछ बदल जाता है,
जहॉं खड़े हैं हम
वहॉं से समय आगे बढ़ जाता है।
बीते समय की सिर्फ यादें रह जाती हैं,
कुछ धुधली सी कुछ उजली-उजली सी।
बीता समय बड़ा अच्छा लगता है,
वह प्यारी सी दोस्ती यारी।
समय गया वह यारी छूटी,
समय ने उन अनमोल पलों को लूटा।
प्रकृति नियम के आगे हम बेवश है
क्‍योंकि परिवर्तन का नाम ही जीवन है।

कवयिता - प्रमेन्द्र प्रताप सिंह




आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

12 कविताप्रेमियों का कहना है :

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

मैं स्मिता जी को सर्वप्रथम धन्यवाद देना चाहूँगा किनके योगदान के बिना काव्य-पल्लवन का यह प्रयास सजीव न होता। स्मिता जी मानो कविता को अपनी रेखाओं और रंगों से जीवित कर रहीं है।

"परिवर्तन का नाम ही जीवन" तुषार जी का चयनित एसा विषय था जो देखने में तो साधारण प्रतीत हो रहा था किंतु इस पर काव्य रचना उतना ही कठिन था।

रंजना जी नें विषय के साथ अपना दर्शन भी प्रस्तुत किया है:
"कौन टिक सका है अमर हो कर यहाँ
राजा बन के भी सभी ख़ाली हाथ गये
चाँद से सुंदर लगते चेहरे सब
वक़्त के साए में यहाँ ढल गये"

पंकज जी तार्किक हो गये हैं और अपने कथ्य को समेटते हुए कहते हैं:
"जीवन में परिवर्तन होना अटल है
लेकिन इस बात की कोई गारन्टी नहीं कि वह सुखकारी और सकारात्मक ही होगा।"

विश्वदीपक जी अपनी बेहद स्तरीय कविता में कहते हैं कि जब परिवर्तित होना ही है तो यह सकारात्मक हो:
"तू अपना जग खुद अर्जित कर,
अपने अनुभव को समर्पित कर,
एक मील का पत्थर बन जा तू,
निज जीवन यूँ परिवर्तित कर।"

मोहिन्दर जी नें अपनी सशक्त प्रस्तुति में सुन्दरता से परिवर्तन का दर्शन समझाया है:
"इतिहासों के खड़े यह खण्डहर
कालचक्र से उठे यह बबण्डर
परिवर्तन के मूक साक्षी
हमको यह दर्शाते हैं
बन बन कर मिट जाने का
उठ कर फिर गिर जाने का
दूसरा नाम परिवर्तन है
और परिवर्तन का नाम ही जीवन है"

गिरिराज जी नें परिवर्तन की पूरी समीक्षा ही कर दी है:
"जंगल बदल गया था पहले प्यारे-प्यारे गाँवों में
फिर गाँव खो गये कहीं सभ्य बनकर शहरों में
अब शहर बदल रहा है, दिन-ब-दिन शमशानों में
शैतान बन कौन घूम रहा है, इंसानी पौशाकों में"

शैलेष जी नें विषय को दूसरा आयाम दिया है। नारी, पुरुष और युग के बदलते हुए रूपों पर चोट का आपका तरीका प्रसंशनीय है:
"बदलाव को धर्मानुगत तो बनाओ
अपने मन में सम्मान-भाव लाओ
अच्छा पुत्र नहीं बन सकते तो
कम से कम अच्छा पति बन जाओ।"

तुषार जी नें जिस सहजता से अपना दर्शन प्रस्तुत किया है वह जीवन परिवर्तित कर दे यदि कोई आत्मसात करे:
"ज़रा अपने बदलने से बहारें आ सकती हैं तो
क्यों बाटते फिरते है हम अकसर पतझड़ को?
अपने घर के तुम राजा आज बनकर दिखाइए
आज खुश हो कर जाइए और खुशियाँ खिलाइए"

प्रमेंद्र जी ने तो अपनी कविता में सारे विषय का जैसे उपसंहार प्रस्तुत किया है:
"समय ने उन अनमोल पलों को लूटा।
प्रकृति नियम के आगे हम बेवश है
क्‍योंकि परिवर्तन का नाम ही जीवन है।"

सभी मित्रों को तथा युग्म के पाठकों को काव्य पल्लवन के इस नवीन अंक की बधाई। इस बार भी कवियों की संख्या कम है, सदस्य कवियों से आग्रह है कि इस प्रयास में सक्रिय हों

*** राजीव रंजन प्रसाद

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

काव्य-पल्लवन का यह विषय देखने-सुनने में चलता फिरता मगर कविता गढ़ने में बहुत मुश्किल था। हमारे पेंटर के अनुसार उन्हें भी पेंटिंग बनाने में दिमाग का दही बनाना पड़ा, मगर कहना ही पड़ेगा कि यह अंक भी एक बेहतरीन अंक बन पड़ा है। कल परसो तक तुषार और प्रमेन्द्र जी कविता पर बनी पेंटिंगें भी हम तक पहुँच जायेंगी, तब यह अंक भी सम्पूर्ण हो जायेगा।

सर्वप्रथम मैं स्मिता जी को धन्यवाद देना चाहूँगा जिनके सहयोग के बिना हमारा काव्य-पल्लवन कभी पूरा नहीं हो सकता।

रंजना भाटिया जी की कविता भी अपने पूरे शबाब पर है।

लेकिन तुषार जी की कविता सबसे अधिक प्रभावित करती है। जीवन को वे हमेशा सकारात्मकता के साथ देखते हैं, इसलिए उनकी कविता भी उन्हें जीती है।

हमारे पास कुल १५ से अधिक सक्रिय सदस्य हैं। मगर कविता मात्र नौ, मैं गुजारिश करूँगा कि सभी सदस्य कवि काव्य-पल्लवन में भाग लें, इससे आपकी रचनात्मकता का ही विकास होगा।

रंजू भाटिया का कहना है कि -

स्मिता जी को सर्वप्रथम धन्यवाद

उनके रंगो से सब कविता जैसे अपने सही अर्थो में ढल गयी है ...सबने बहुत ही सुंदर लिखा है ..विषय भी बहुत सुंदर लगा मुझे इस बार का .

सब रंग परिवर्तन के यहाँ पढ़ने को मिले ..और हर एक लिखे ने मन मोह लिया ...सब कुछ ना कुछ संदेश देती लगती है ....काव्य पल्लवन के इस नवीन अंक की बधाई।
स्मिता जी को पुन:धन्यवाद

Medha P का कहना है कि -

युग्म के कवियोंको और स्मिता जी को सर्वप्रथम धन्यवाद.. .काव्य पल्लवन के इस नवीन अंक की बधाई.

SahityaShilpi का कहना है कि -

काव्य-पल्लवन के नवीन अंक के लिये हिन्द-युग्म तथा कवि-मित्रों को हार्दिक शुभकामनाएं। कुछ कविताएं वास्तव में बहुत सुंदर बन पड़ी हैं और विषय को बेहतरीन ढंग से प्रस्तुत करतीं हैं।

संजीव कुमार सिन्‍हा का कहना है कि -

तुषार, रंजना, पंकज, विश्वदीपक, मोहिन्दर, गिरिराज, शैलेष एवं प्रमेंद्र को बधाई। इस बार रचनाकारों ने अच्छी कविताएं प्रस्तुत की हैं। स्मिता के चित्र रचनाओं को समझने में मदद करता है।

सुनीता शानू का कहना है कि -

काव्य-पल्लवन का ये अंक बड़ा ही मन-भावन बन गया है इसमें स्मिता तिवारी जैसे योग्य चित्रकार का तो कहना ही क्या उनकी सभी पेंटिग्स बहुत ही सही और सुन्दर लगी है...

किसी एक कवि की रचना को श्रेष्ठ कहना अनुचित होगा मुझे सभी की कविता बहुत अच्छी लगी है स्मिता जी,तुषारजी, रंजना जी, पंकज जी, विश्वदीपक जी, मोहिन्दर कुमार जी, गिरिराज जी, शैलेष जी एवं प्रमेंद्र जी को बहुत-बहुत बधाई।

सुनीता(शानू)

Pramendra Pratap Singh का कहना है कि -

sabhi ko badhai

कुमार आशीष का कहना है कि -

काव्‍य-पल्‍लवन का तृतीय अंक बहुत लगा।
माँ के हाथों बनती थी रोटी, तब दहक-दहक अंगारों में... में छुपी एक सोंधी सी गंध..

ए मेरे नादान पत्थर
बाँह फैला कर खड़ा सागर तुम्हारा
बीन कर खुद में समाता रेत का हर एक टुकडा
जो तुम्हारा अंश था
राह तकता है कि तुम संपूर्ण उसके
हो के उसको मोक्ष दोगे... पंक्तियों का आकुल क्षरण और..

बदलाव को धर्मानुगत तो बनाओ
अपने मन में सम्मान-भाव लाओ
अच्छा पुत्र नहीं बन सकते तो
कम से कम अच्छा पति बन जाओ।... मे छुपी टीस को इस काव्‍य-गुलदस्‍ते ने एकसाथ संजो कर रखा है। स्मिता जी की तूलिका बधाई की पात्र

विश्व दीपक का कहना है कि -

सर्वप्रथम इतने सारे सुंदर चित्रों के लिए स्मिता जी को बधाई।
सभी लोगों ने बहुत हीं खुबसूरत लिखा है। मुझे राजीव जी की रचना ने विशेषकर प्रभावित किया। कुछ लोगों की कमी जरूर खली है।
एक सामूहिक प्रयास के लिए हिन्द-युग्म को बधाई।

raybanoutlet001 का कहना है कि -

nike zoom kobe
michael kors outlet store
yeezy shoes
yeezy
nike huarache
oakley store online
jordans for cheap
basketball shoes
nike huarache sale
michael kors outlet online
cheap oakley sunglasses
tiffany online
adidas nmd for sale
fitflops outlet
michael kors outlet online
links of london
jordan shoes on sale
ugg outlet
yeezy boost
cheap jordans online
michael kors outlet
michael kors outlet store
ralph lauren uk
roshe run
ralph lauren online
michael kors handbags
chrome hearts online store
adidas nmd
air jordan shoes
adidas tubular
air jordan shoes

raybanoutlet001 का कहना है कि -

longchamp outlet
adidas yeezy uk
true religion jeans wholesale
ralph lauren uk
true religion jeans
nike roshe run
chrome hearts
kobe bryant shoes
skechers shoes
michael kors factory outlet
yeezy boost 350
longchamp bags
adidas neo

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)