आज अगर दिल मुझसे पूछे मेरी बीवी कैसी हो।
मैं इक झटके में कह दूँगा मेरी मम्मी जैसी हो।।
मैं ही मैं उसकी नज़रों में, मेरी आँखों में बस वो,
उसकी नज़रों में सच्चाई मेरी मम्मी जैसी हो।
मेरी अच्छाई वो देखे जम करके तारीफ करे,
मगर बुराई पर समझाए, मानो मम्मी जैसी हो।
हुनर तमाम उसे आते हों अक्ल से काम वो लेती हो,
लेकिन मन की गहराई तो बिल्कुल मम्मी जैसी हो।
बातें करे वो प्यारी-प्यारी, काम करे दिलवालों सा,
ठान ले जो फिर उसमें ढिठाई एकदम मम्मी जैसी हो।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
17 कविताप्रेमियों का कहना है :
आपका सपना स्वर्णिम है,
किन्तु साकार करना...?
याद आया... एक कुँवारे रह गए एक बुजुर्ग से पूछा गया... "आपने शादी क्यों नहीं की?"
उत्तर मिला... "मैं सीता जैसी पत्नी चाहता था.."
प्रश्न ... "तो क्या वैसी लड़की आपकी नहीं मिल पाई?"
उत्तर ... "मिली तो... किन्तु वह किसी राम जैसे पति को खोज रही थी..."
क्या आप उसके वैसे ही... पति बनने को प्रस्तु है?
भाव अच्छे है, कविता नें निराश किया है।
*** राजीव रंजन प्रसाद
पकंज जी बिल्कुल सीधी-साधी कविता है,...जो हर बच्चे की ख्वाहिश होती है कि उसकी बीवी माँ जैसी हो,..क्यूँकि उसके इर्द-गिर्द उसकी माँ ही होती है जिसे वह सबसे जियादा प्यार करता है
अच्छे विचार है,..हो सकता है आपका सपना जरूर साकार हो,...
सुनीता(शानू)
aisi apni wife ho
5.5 jiski hight ho
jeans jiski tight ho
chehra jiska bright ho
waight main thori light ho
umer main diffrence slight ho
thori se woh quite ho
too mamorable her ek night ho
aisi apni wife ho
sarak per sub kaheen
kia cute hey
bheer main sub kaheen
pakistan ki paidaish ho
beauty multyply by twice ho
favorite color white ho
make up thora light ho
zulfain dynamite hoon
aankheen us ki jaisey sunny twilight ho
hoonton ko dekh ker lagey
jaisey coke diet ho
jub sari pehan ker nikley
to kia sight ho
aisa lagey jaisey swtizerland ki flight ho
aisi apni wife ho
agar aisi apni wife ho
tu kia haseen life ho
पंकजजी अच्छे भाव मगर प्रस्तुती अच्छी नहीं कही जा सकती, आपसे उम्मीदें ज्यादा है।
युग्म ने आपके लिये जो वार निश्चित किया है उस दिन कविता प्रकाशित हो ही इसे ले कर आपकी गंभीरता स्वतःस्पष्ट है|
प्रिय पंकज जी, आपसे हमारी अपेक्षायें अधिक हैं|
सस्नेह
गौरव शुक्ल
बेनाम जी,
"हिन्द-युग्म" जैसे अति प्रतिष्ठित मंच पर टिप्पणी और मोबाईल के एस.एम.एस. में फर्क है|
इस मंच से हमारे मित्रों की भावनायें और अथक प्रयास जुडे हुये हैं
कृपया कविताओं का आनन्द लें , मौज मस्ती की जगह न बनायें इसे|
धन्यवाद
सस्नेह
गौरव
आपने कहा बिलकुल सही है पंकज जी..हर कोई चाहता है कि उसकी पत्नी उसकी माँ जैसी ही हो..शायद ही कोई होगा जो इस बात से इंकार कर सके..
वैस, यदि आप 'मम्मी' की जगह 'माँ' शब्द का प्रयोग करते तो आपकी कविता की तस्वीर ही कुछ और होती है..
bachpan rahe toh achchha ho...bachpanaa ho toh kavita ke liye achchha nahi hai.
कहीं कुछ कमी सी लगी... भाव अच्छे हैं।
बेनाम जी, आप की मंशा तो दुरुस्त है, लेकिन तरीका कुछ खास पसंद नहीं आया।
मेरा आप से निवेदन है कि भविष्य में इह प्रकार की "कट-पेस्ट" वाली टिप्पणी करने से बचें।
अगर आप कविताओं को पढ़ने के शौकीन हैं तो ज़रूर ही आप एक अच्छी टिप्पणी भी लिख सकते हैं।
मैं उम्मीद करता हूँ कि आप की अगली टिप्पणी गौरतलब होगी।
आज यह बात चरितार्थ हो रही है कि सभी की दृष्टि एक नहीं होती। मेरे अनुसार कविता भावों से परिपूर्ण है। हो सकता है कि तमाम आलोचकों ने कविता में इस तरह के तत्वों के आने की उम्मीद न की हो।
@ तपन जी
माँ और मम्मी, बाप और डैडी में कोई फ़र्क है क्या? शायद नहीं, अलग-अलग भाषाओं समान रिश्तों के सम्बोधन।
अगर आप अपनी माँ को बचपन से ममा कहते आये हों और आपसे कोई कहे कि माँ कहो, मुश्किल होगा और बुरा लगेगा। जैसे मैं अपनी माँ को 'माई' कहके सम्बंधित करता हूँ और मुझसे माँ, मम्मी, ममा इत्यादि नहीं कहा जा सकेगा। शायद कवि 'मम्मी' को अपनी जननी के अधिक करीब समझता हो। वैसे भी मम्मी शब्द के प्रयोग से कविता का प्रवाह कहीं कम नहीं होता।
हुनर तमाम उसे आते हों अक्ल से काम वो लेती हो,
लेकिन मन की गहराई तो बिल्कुल मम्मी जैसी हो।
aache baav
bhai nirash hue ..
aur kya kahe..
har bachha sab mein apni maa ki chavi talash karta hai ...waise bhi ek achhi wife mein yah gun hona chahiye....:)kyunki sabke dil ek bachha chipa rahta hai ...:)bhaav achhe hain
बहुत ईमानदारी के साथ लिखी गयी कविता है और इसीलिए सुन्दर है। थोड़ी सतर्कता की अपेक्षा है।
पंकज जी, रचना बुरी नहीं है और भाव भी बहुत अच्छे हैं, पर आपकी प्रतिभा को देखते हुये, इस के बारे में कुछ न कहना ही बेहतर होगा।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)