कभी शबनम तो कभी शोला
कभी बरसात, कभी तृष्णा
कभी बन्धन तो कभी मुक्ति
कभी आँसू कभी अंगार
तुम्हारा प्यार...
फलक पर टिमटिमाते तारे सा प्यार
रोम-रोम में घुलता मोम सा प्यार
तुम्हारा प्यार...
पुरातन में प्यार, मेरे वर्तमान में प्यार
सृष्टि में प्यार, सागर में प्यार
अनादि में प्यार, अनंत में प्यार
तुम आये तो भरा जीवन में प्यार
तुम्हारा प्यार...
कण-कण में रमता प्यार
क्षण-क्षण में रमता प्यार
चारो ओर क्षितिज तक फैला प्यार
रंग गया आँचल जब हुआ मैला प्यार
टूटे कोई अगन तो हौसला प्यार
अँधेरे में दीपक सा जला प्यार
तुम्हारा प्यार
मेरे अंग-अंग मे महकता प्यार
हर रंग-रंग मे बहकता प्यार
तुम्हारा प्यार...
बूँद से सरिता तक मचलता प्यार
सूक्ष्म से मोक्ष सा विषैला प्यार
पहली बरसात की मिट्टी सा गीला प्यार
चातक हुई तृप्त जब मुझे मिला प्यार
तुम्हारा प्यार....
अनुपमा चौहान
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
कभी शबनम तो कभी शोला
कभी बरसात, कभी तृष्णा
कभी बन्धन तो कभी मुक्ति
कभी आँसू कभी अंगार
तुम्हारा प्यार...
अनुपमा आपकी कविता का आगाज़ ही बहुत ख़ूबसूरत है ....
सचमुच सिर्फ़ प्यार ही प्यार है हर अल्फ़ाज़...
अनुपमा जी बहुत ही सुनदर भाव थे। बिना रूके पढें जा रहा था।
अनुपमा जी बहूत सुन्दर भाव हैं
जब मिला दिल से दिल बन गया ये हमारा प्यार...
बूँद से सरिता तक मचलता प्यार
सूक्ष्म से मोक्ष सा विषैला प्यार
पहली बरसात की मिट्टी सा गीला प्यार
चातक हुई तृप्त जब मुझे मिला प्यार
कविता बहुत सुन्दर बन पडी है.
बधाई
सस्नेह
गौरव शुक्ल
कभी शबनम तो कभी शोला
कभी बरसात, कभी तृष्णा
कभी बन्धन तो कभी मुक्ति
कभी आँसू कभी अंगार
बूँद से सरिता तक मचलता प्यार
सूक्ष्म से मोक्ष सा विषैला प्यार
पहली बरसात की मिट्टी सा गीला प्यार
चातक हुई तृप्त जब मुझे मिला प्यार
प्यार के विभिन्न भावोँ को विभिन्न उपमाये देती हुयी सुन्दर कविता..
कितना सही तरीके से आप ने प्यार को महसूस करवाया, मज़ा आ गया।
कभी शबनम तो कभी शोला
कभी बरसात, कभी तृष्णा
कभी बन्धन तो कभी मुक्ति
कभी आँसू कभी अंगार।
प्यार में दोनों ही स्वाद होते हैं, जिन्होंने चखा है ; बखूबी जानते होंगे।
अनुपमा जी,
यह आपका पसंदीदा विषय है और इस पर आपकी पकड गहरी भी है।
कभी शबनम तो कभी शोला
कभी बरसात, कभी तृष्णा
कभी बन्धन तो कभी मुक्ति
कभी आँसू कभी अंगार
तुम्हारा प्यार...
कविता विष्लेषणात्मकता से भरी पूरी है और कई पहलू जो आपने दिखाने का यत्न किया है वह प्रभावी बन पडा है।
*** राजीव रंजन प्रसाद
अनुपमा जी बहुत सुदंर प्यार की परिभषा दी है,...
भावो से ओत-प्रोत आपकी रचना बहुत सुंदर है,
सुनीता(शानू)
प्रेम को विभिन्न उपमाएँ देती आपकी पंक्तियाँ सिधे दिल में उतर गई अनुपमाजी, प्रेम को बहुत ही सुन्दरता से अभिव्यक्त किया है आपने।
कभी शबनम तो कभी शोला
कभी बरसात, कभी तृष्णा
कभी बन्धन तो कभी मुक्ति
कभी आँसू कभी अंगार
तुम्हारा प्यार...
वाह!
अनुपमा जी..मैंने प्रथम बार आपकी कोई कविता पढी है..और यकीन मानिये इतने अद्भुत तरीके से आपने प्यार की परिभाषा करी है..उसका मैं कायल हो गया हूँ..जो एक बात मुझे अच्छी लगी वो थी आपकी प्रकृति को इतने करीब से जानने की समझ..आपने बहुत खूबसूरती से प्रकृति से ही उदाहरण ले कर अपनी कविता में पिरोया है..वो काबिले तारीफ़ है।
बूँद से सरिता तक मचलता प्यार
सूक्ष्म से मोक्ष सा विषैला प्यार
पहली बरसात की मिट्टी सा गीला प्यार
चातक हुई तृप्त जब मुझे मिला प्यार
बहुत खूब!!
ek hi pankti hai jiske liye bahut shabad nasht kiye gaye hain..
यह कविता कम निबंध अधिक लगती है। लिखा है ऐसे गया है जैसे इसमें प्रवाह हो, मगर प्रवाह कहीं-कहीं ही है। एक पाठक की टिप्पणी भी ग़ौर करने लायक है कि 'एक बात के लिए बस कई शब्द तैयार किये गये हैं' । लगता है कि बस कविता लिखने के नाम पर लिखी गई है। भावनाएँ गायब हैं। फ़िर एक उपमा बहुत अच्छी लगी-
पहली बरसात की मिट्टी सा गीला प्यार
कभी आँसू कभी अंगार
तुम्हारा प्यार...
एक साथ कई पल ठिठक गये। अच्छी कविता।
अनुपमा जी, इस बार कुछ बात बनी नहीं। लगता है जैसे जल्दबाजी में बस कुछ भी लिख दिया है। आपसे इस के मुकाबले बहुत बेहतर की उम्मीद रहती है।
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