साहित्य-प्रेमियो,
जैसाकि कल बताया गया था कि रंजना भाटिया हमारी सदस्यता स्वीकारने के बाद इस वृहस्पतिवार से साप्ताहिक रूप से अपनी कविताएँ प्रकाशित करेंगी। अभी उनका फ़ोन आया था कि उनका नेट कल से ही डाउन है। अतः उनकी ओर से 'हिन्द-युग्म यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता' के मार्च अंक में आई कविता प्रकाशित की जा रही है। यह कविता अंतिम छः कविताओं में ज़गह भी बनाई थी।
ना जाने किसकी तलाश में जन्मों से भटकती रही हूँ मैं
अपनी रूह से तेरे दिल की धड़कन तक अपना नाम पढ़ती रही हूँ मैं
लिखा जब भी कोई गीत या ग़ज़ल
तू ही लफ़्ज़ों का लिबास पहने मेरी कलम से उतरा है
यूँ चुपके से ख़ामोशी से तेरे क़दमो की आहट
हर गुजरते लम्हे में सुनती रही हूँ मैं
खिलता चाँद हो या फिर बहकती बसंती हवा
सिर्फ़ तेरे छुअन के एक पल के एहसास से
ख़ुद ही महकती रही हूँ मैं
यूँ ही अपने ख़्यालों में देखा है
तेरी आँखो में प्यार का समुंदर
खोई सी तेरी इन नज़रो में
अपने लिए प्यार की इबादत पढ़ती रही हूँ मैं
पर आज तेरे लिखे मेरे अधूरे नाम ने
अचानक मुझे मेरे वज़ूद का एहसास करवा दिया
की तू आज भी मेरे दिल के हर कोने में मुस्कराता है
और तेरे लिए आज भी एक अजनबी रही हूँ मैं
कवयित्री- रंजना भाटिया
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23 कविताप्रेमियों का कहना है :
Aapki yeh kavita padh kar jitni mujhe khushi hai vo shayad hi kisi aur ko hogi...bahut aacha laga ise pad kar
लिखा जब भी कोई गीत या ग़ज़ल
तू ही लफ़्ज़ों का लिबास पहने मेरी कलम से उतरा है
यूँ चुपके से ख़ामोशी से तेरे क़दमो की आहट
हर गुजरते लम्हे में सुनती रही हूँ मैं
waah kya baat hai
रंजना जी बहुत अच्छे भाव है विशेषतया कुछ आखिरी पक्तिंया जियादा पसन्द आई कि जिसे सारी जिन्दगी अपना समझा उसके लिए आज भी अजनबी हैं
पर आज तेरे लिखे मेरे अधूरे नाम ने
अचानक मुझे मेरे वज़ूद का एहसास करवा दिया
की तू आज भी मेरे दिल के हर कोने में मुस्कराता है
और तेरे लिए आज भी एक अजनबी रही हूँ मैं
बहुत उम्दा लिखती है आप ,..एक बार फ़िर बधाई स्वीकार करें।
सुनीता(शानू)
सर्वप्रथम, रंजना भाटिया का हिन्द-युग्म पर स्वागत तथा अभिनंदन।
अब तक मैंने इस कविता को बहुत ध्यान से नहीं पढ़ा था। मगर जब आज पढ़ रहा हूँ तो अंदाज़ा लगा पा रहा हूँ कि सच में तृतीय चरण के ज़ज़ को छः में से चार तीन चुनने में बहुत मुश्किलात आये होगें।
हरेक अंतरा खूबसूरत है। मुझे यह कुछ ज़्यादा ही पसंद आया-
यूँ ही अपने ख़्यालों में देखा है
तेरी आँखो में प्यार का समुंदर
खोई सी तेरी इन नज़रो में
अपने लिए प्यार की इबादत पढ़ती रही हूँ मैं
As everyone said the poem is excellent with all the Sahityik bhav with in it. i am in touch with Ranjana ji from quite some time and i whole heartedly appreciate her work. In this particular poem,"The beauty of this poem is Emptyness" which attracted me very much. keep writing Ranjana ji,
"Dard ko aaj kalam ki takdeer bana de, Utha kagaz aur aag laga de"
Ranjana ji aap bahut hi khoob likthi ho
Meri to yeh dua hai ke aap bas issi tarah likhti raho
Wow Di, simply superbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbb!!!
Its really awesome!!!!!!!!!!!!!
Mazaa aa gaya kasam se!!!!!!!!!
Wonderfull Ranjana ji....ek ek lafz ko tabiyet se sawaara hai aapne....harr line ka apna hee alaga meaning hai...its really fantastic
रंजना जी,
सर्वप्रथम तो युग्म पर आपका हार्दिक अभिनंदन। आपकी कविता से आपकी रूह बात कहवा रही है, अनमोल पंक्तियाँ हैं:
"अपनी रूह से तेरे दिल की धड़कन तक अपना नाम पढ़ती रही हूँ मैं"
"लफ़्ज़ों का लिबास पहने मेरी कलम से उतरा है"
"एक पल के एहसास से,ख़ुद ही महकती रही हूँ मैं"
"तू आज भी मेरे दिल के हर कोने में मुस्कराता है
और तेरे लिए आज भी एक अजनबी रही हूँ मैं"
*** राजीव रंजन प्रसाद
wow!!
bahut khoob likha hai aapne ranjana ji really superbb.
keep it up dear...
आपका हिन्द युग्म से जुडने पर हार्दिक स्वागत और अभिनंदन
आपने बहुत अच्छी कविता लिखी है।
बधाई
aapkee kavita yahaan par dekhkar main gad-gad ho uthee hun.
bahut achhee kavita yaa ye kahen ki prem kee paraakaashtha...
abhibhoot hun bas.
ranjana jee aapko bahut bahut badhaee
or haardik shubh-kaamnaaen
ssneh
gita (shama)
नमस्कार रंजना जी
हिन्द्-युग्म परिवार से जुडने पर आपका स्वागत है.
आपकी इस कविता पर पहले भी टिप्पणी कर चुका हूं और सोना तो सोना ही रहता है किसी भी रूप में हो.
अब अक्सर मिलेंगे हिन्द्-युग्म पर
bahaut hi sunder kavita hain,
ji kehne ko chahta hai ke,
Chala hai ek falsafa aur,
aakhen moond li hai kab ki,
Paas aagayi hai khushiyan sari,
ke bahar laut aayi hai ab ki..
बेहद खूबसूरत और भावपूर्ण कविता है, रंजना जी। कविता का अंत विशिष रूप से प्रभावित करता है।
पर आज तेरे लिखे मेरे अधूरे नाम ने
अचानक मुझे मेरे वज़ूद का एहसास करवा दिया
कि तू आज भी मेरे दिल के हर कोने में मुस्कराता है
और तेरे लिए आज भी एक अजनबी रही हूँ मैं
बहुत बहुत बधाई।
mujhe samjh nahi aa raha hai ki kya kahu mein is kya samjhu dil ke taar baja diye isne apna sa laga yeh mujhe thanx
रंजना जी , सर्वप्रथम मैं आपका हिन्द-युग्म पर स्वागत करता हूँ। आपकी रचना दिल को छूती है, दिमाग के अंदर उतर जाती है। प्रेम की परिभाषा आपने जिस तरह से दी है, वह काबिलेतारीफ है। प्रेम अपने परवान पर है। अपने प्रियवर से किसी भी चीज की आशा न रखना और अपने प्रियवर को अपना सब-कुछ मान लेना ,प्रेम को एक नई दिशा देता है।
मैं आपकी रचना से जुड़ चुका हूँ।
बधाई स्वीकारें।
प्रेम का बहुत सुन्दर काव्य-प्रस्तुतिकरण. आपके प्रत्येक शब्द में निस्वार्थ प्रेम झलक रहा है।
हिन्द-युग्म मंच पर आपका हार्दिक स्वागत है।
रंजना जी जन्मदिवस की आपको बहुत बहुत बधाई।
*** राजीव रंजन प्रसाद
हाज़िरी लगा दिए हैं
हिंदी युग्म पर आने के लिए बधाई
Acchaa likhaa hai bahan ji.
saadar naman
bahut khob mam, apki har kavita main ek ajeab si kashish hoti hai. jo dil or dimag mai utar jati hai.
good very good
अच्छी कविता है. पारदर्शी मन का पारदर्शी आइना.
रंजना जी बहुत अच्छे भाव है.......
हसीन इंतिख़ाब है, ख़्याल लाजवाब है।
हर एक शब्द-शब्द में खिला हुआ गुलाब है॥
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
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