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Friday, April 27, 2007

देखो मेरी नज़र से


(१)

अकसर फुटपाथ पर ही सोते हैं
मेरे सपने
क्योंकि
वे कई गुना बड़े हैं उस बिल्डिंग से
जिसमें मैं रहता हूँ

(२)

कल
ताशब*
इस क़दर धूआँ उठा
कि चाँद काला पड़ गया
किसी ने डाल दिया था
लकड़ियों की ज़गह
दिल चूल्हे में

*पूरी रात, सम्पूर्ण रात्रि

(३)

बहुत आसान है
चार लोगों के बीच
चेहरे पर तरह-तरह की मुस्कुराहटें सज़ाना
कभी तन्हा रहकर देखो
मुस्कुराने के सारे हुनर भूल जाओगे

कवि- मनीष वंदेमातरम्

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8 कविताप्रेमियों का कहना है :

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

मनीष जी..
क्षणिकायें तीनों ही बहुत अच्छी हैं। विशेश रूप से मुझे यह पसंद आयी:

बहुत आसान है
चार लोगों के बीच
चेहरे पर तरह-तरह की मुस्कुराहटें सज़ाना
कभी तन्हा रहकर देखो
मुस्कुराने के सारे हुनर भूल जाओगे

*** राजीव रंजन प्रसाद

रंजू भाटिया का कहना है कि -

बहुत आसान है
चार लोगों के बीच
चेहरे पर तरह-तरह की मुस्कुराहटें सज़ाना
कभी तन्हा रहकर देखो
मुस्कुराने के सारे हुनर भूल जाओगे

बहुत ही सुंदर लगी यह...

सीखा है हमने दर्द में भी मुस्कराना
जैसे फ़ूल कोई काँटो के बीच रह के मुस्कराता है
:)

ghughutibasuti का कहना है कि -

बहुत सुन्दर!
बहुत आसान है
चार लोगों के बीच
चेहरे पर तरह-तरह की मुस्कुराहटें सज़ाना
कभी तन्हा रहकर देखो
मुस्कुराने के सारे हुनर भूल जाओगे
वाह! अरे तभी तो इस virtual world....में बैठे मुस्कराते रहते हैं !
घुघूती बासूती

पंकज का कहना है कि -

मनीष जी, की इन क्षणिकाओं के क्या कहने।
थोड़े में ही वो बहुत कह जाते हैं , यही उनकी ख़ासियत है और करामात भी।

Anonymous का कहना है कि -

कभी तन्हा रहकर देखो
मुस्कुराने के सारे हुनर भूल जाओगे



क्या तन्हाई इतनी बुरी होती है?????

Anonymous का कहना है कि -

बहुत खूब!!!

सभी क्षणिकाएँ लाजवाब है!

विश्व दीपक का कहना है कि -

किसी ने डाल दिया था
लकड़ियों की ज़गह
दिल चूल्हे में।

दिल का दर्द इससे बढिया तरीके से कैसे बयां हो सकता है।

तीसरी क्षणिका के बारे में कुछ न कहूँगा । मेरे मित्र लोग इसके बारे में सब कुछ कह चुके हैं। मैं अब निशब्द हो गया हूँ।

मनीष जी को मेरी तरफ से बधाई ।

Anonymous का कहना है कि -

बहुत आसान है
चार लोगों के बीच
चेहरे पर तरह-तरह की मुस्कुराहटें सज़ाना
कभी तन्हा रहकर देखो
मुस्कुराने के सारे हुनर भूल जाओगे

short and touchy...

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