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Sunday, April 22, 2007

यह जग - दोजख


ऎ यार मेरे ,दिल से तेरे , उसकी सूरत मिट जाए मगर,
सिसकेगा तू भी उसके बिन ,मचलेगा तब तेरा भी जिगर।

पौरूष तुझमें इतना है तो
चट्टानों से टकरा के दिखा,
वायु की राह बदल दे फिर,
सूरज की अग्नि बुझा के दिखा।
क्यों मयखानों में डूबा है,
क्यों अनजानों में डूबा है,
इन आँखों में पानी कितना,
पैमानों को छलका के दिखा।

बुज्दिल है तू, संगदिल है तू , दिल के टुकड़ों से खेल रहा,
कायरता की परिभाषा क्या, हर हद से बढकर तू कायर।

हर पल जिसने तुझको पूजा,
उसको तूने धिक्कार दिया।
हर पल जिसने तुझको मांगा,
उसको तूने इनकार दिया।
क्यों उसके दिल को तोड़ दिया,
क्यों उससे मुँह है मोड़ लिया।
हर पल जिसने दी थी खुशियाँ,
गम तूने उसे उपहार दिया।

क्यों पाप किया , क्यों शाप दिया , दो पग में दोजख नाप दिया,
काँप पड़े यम का भी कहर, जीवन में घोल दिया है जहर ।

उसकी आँखों में देख जरा,
वहाँ रक्त की हीं परछाई मिले,
उसके सपनों को देख जरा,
मातम की हीं अगुवाई मिले।
क्यों न मिलता जीवन है वहाँ,
क्यों न मिलता साजन है वहाँ।
उसकी दुनिया में देख जरा,
हर पल तुझको तन्हाई मिले ।

क्या तेरा गया, क्या तुझे हुआ ,औरों का जग लूट जाए तो क्या,
अब भी तो संभल , संभलेगा कब, ऎसे हीं लूटे ना तेरा घर ।

-विश्व दीपक 'तन्हा'

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12 कविताप्रेमियों का कहना है :

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

तनहा जी..
गीत का शिल्प और आपके भाव सोने पर सुहागा हैं। आग हैं आपके शब्दो में, और आप जैसे युवाओं से ही उम्मीद बंधती है कि बदलेगा अवश्य इस देश का भाग्य। आपकी ललकार की मैं सराहना करता हूँ:

पौरूष तुझमें इतना है तो
चट्टानों से टकरा के दिखा,
वायु की राह बदल दे फिर,
सूरज की अग्नि बुझा के दिखा।

...इस पर जो आपने लिखा है, वह आपकी सोच की महानता को दर्शाता है:

"इन आँखों में पानी कितना,
पैमानों को छलका के दिखा।
"कायरता की परिभाषा क्या,
हर हद से बढकर तू कायर"
"हर पल जिसने तुझको पूजा,
उसको तूने धिक्कार दिया"
"क्या तेरा गया, क्या तुझे हुआ ,
औरों का जग लूट जाए तो क्या,
अब भी तो संभल , संभलेगा कब,
ऎसे हीं लूटे ना तेरा घर"

एक मेरा छोटा सा सुझाव है, यदि नीचे लिखी पंक्ति से आप "तो" शब्द हटा देंगे तब भी अर्थ में अंतर नहीं आयेगा और गीत गुनगुनाने में अधिक सहज हो जायेगा।
"ऎ यार मेरे ,दिल से तेरे , उसकी सूरत मिट जाए तो मगर"

*** राजीव रंजन प्रसाद

सुनीता शानू का कहना है कि -

तनहा जी बहुत सुंदर लिखा है,...

पौरूष तुझमें इतना है तो
चट्टानों से टकरा के दिखा,
वायु की राह बदल दे फिर,
सूरज की अग्नि बुझा के दिखा।
क्यों मयखानों में डूबा है,
क्यों अनजानों में डूबा है,
इन आँखों में पानी कितना,
पैमानों को छलका के दिखा।
नवयुवको को एक अच्छी सीख देती है आपकी रचना
सुनीता(शानू)

Pramendra Pratap Singh का कहना है कि -

बहुत खूब तन्‍हा जी

अच्‍छा लिखा है।

Anonymous का कहना है कि -

सुन्दर गीत!

तन्हाजी, गीत के भाव बहुत ही सुन्दर है, आपका यह गीत नवयुवकों के लिये शिक्षाप्रद भी है।

बधाई!!!

Kamlesh Nahata का कहना है कि -

bahut khub !!!

Mohinder56 का कहना है कि -

सुन्दर गीत के लिये तन्हा जी आप बधायी के पात्र हैं

रंजू भाटिया का कहना है कि -

उसकी आँखों में देख जरा,
वहाँ रक्त की हीं परछाई मिले,
उसके सपनों को देख जरा,
मातम की हीं अगुवाई मिले।
क्यों न मिलता जीवन है वहाँ,
क्यों न मिलता साजन है वहाँ।
उसकी दुनिया में देख जरा,
हर पल तुझको तन्हाई मिले

सुंदर..... बहुत ही सुंदर लिखा है आपने ...

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

महबूब की बेवफ़ाई हो या अनमने कार्यों में मिली असफलता आज का युवा फ़्रस्टेट होकर मयखानों की ही शरण लेता है या हर फ़िक्र को धुएँ में उगलता है। ऐसे लोगों पर अगर आपका यह शस्त्र काम कर गया तो दुनिया की हालत सुधरेगी-

पौरूष तुझमें इतना है तो
चट्टानों से टकरा के दिखा,
वायु की राह बदल दे फिर,
सूरज की अग्नि बुझा के दिखा।


गाली इनको देना ही होगी वो भी ऐसी नहीं, इससे भी भयानक

बुज्दिल है तू, संगदिल है तू , दिल के टुकड़ों से खेल रहा,
कायरता की परिभाषा क्या, हर हद से बढकर तू कायर।


कहते हैं कि दो लम्हों में आपकी पूरी ज़िंदगी बदलने की ताकत होती है , जिन्हें पता नहीं होता वे नर्क के दो कदम चलकर जीवन को नाशाद कर लेते हैं-

क्यों पाप किया , क्यों शाप दिया , दो पग में दोज़ख़ नाप दिया,
काँप पड़े यम का भी कहर, जीवन में घोल दिया है जहर


और प्रयास कीजिए तन्हा जी और कोशिश कीजिए कि कविता छोटी से छोटी हो और शब्द में धार असाधारण।

ghughutibasuti का कहना है कि -

अच्छा लिखा है । किन्तु कायर यदि पहले ही मैदान छोड़कर भाग जाएँ तो बाद में जीवन भर के दुख से बचा जा सकता है । यदि एक बार पौरुष दिखा दें और फिर वही कायरता तो क्या लाभ?
घुघूती बासूती

Nishant Neeraj का कहना है कि -

इस अदने से चलचित्र-प्रेमी को क्षमा करें, परन्तु हमें इस बात से बहुत खेद है कि तन्हा जी 'देवदास' के सिद्धान्त-विपरीत हैं. और एक बात और, तन्हा जी ने कविता कि नायिका के नैनों मे अपनेआप को बैठा रखा है** (सारी कल्पना का कच़रा कर दिया.) भाई प्रेमी के लिए भी ज़गह छोडो.

** "...हर पल तुझको तन्हाई मिले"

आनन्द मनाएं
-निशान्त

Anonymous का कहना है कि -

ati sundar!!!!!!hriday sparshi

SahityaShilpi का कहना है कि -

सुंदर गीत के लिये बधाई।

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