नन्हें कदमों की आहट सुनने का चाव...
अवयस्क बेटा,
अवयस्क बहू...
पर,
अपराधबोध नहीं...
चार माह बाद,
शायद ख़ुशखबरी?,
जाँच...
रिपोर्ट..
लड़की!
अपराधबोध!!!
बहू क्यों ढ़ोये?
अनावश्यक भार,
बहा दो,
दलदल
बहता हुआ अंश
दे रहा अपराधबोध
मगर
माँ चुप...
आखिर,
त्याग परम्परा है!
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29 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत खूब शायद कल इस सवाल को हर घर मे उठाना होगा अगर अभी भी न सुधरे तो जब न बहू होगी न बच्चे
त्याग सदा औरत को ही क्यूँ देना पडता है कब जागेगी औरत? खुद अपना अस्तित्व कब तक अधंकार के हवाले करती रहेगी,..आपकी कविता सच्चाई का आईना है,...बहुत सुंदर,...
सुनीता(शानू)
छोटे छोटे शब्द..गहरे गहरे भाव
किंतु करें गंभीर,भीतर तक के घाव
*** राजीव रंजन प्रसाद
Itne kam sabdo me...itna kuch kahana hi aapki kaabiliyat ka udaharan hai.....
ऐसी रचनाएं पढ़कर ग़ुस्सा आता है. कोफ़्त होती है. क्यूं हम नहीं समझते कि प्रकृति संतुलन चाहती है और हम उसके ख़िलाफ़ जाते हैं? मुझे पहले पता होता कि यहां कन्या भ्रूण हत्या पर रचना छपी है तो न आता. लानत है हम पर कि ऐसा हो रहा है. ऐसा सोचना भी हमारे इंसान होने पर सवाल खड़ा कर देता है. लानत है.. शर्म है.
सच्चाई बयां करती आपकी रचना दिल को छू गई।
कम शब्दों में आपने बहुत कुछ कहा है। बधाई स्वीकारें।
किस अपराधबोध की बात कर रहे हैं भईया.....?
जो आज इस माँ के साथ हूआ, कल वो भी यही काम करेगी... कल फिर अपनी बहू के साथ यही खेल खेलेगी.... तो अपराधबोध कहा हैं?
माना कि त्याग नारी का जीवन है... पर क्या सीख नही लेनी चाहिये कि कम से कम मै इस घृणित परंपरा का निर्वाह ना करूँ... पर सदियो से ऐसा हो रहा है...
कहाँ है अपराधबोध ???
स्त्री भ्रुण हत्या में किसकी सक्रिय भूमिका रहती है?
बाप-दादा या माँ-दादी की?
स्त्री त्याग कर रही है, या खूद को ही खत्म?
स्त्री की दुर्दशा के पीछे जितना हाथ पुरूष का नही है उतना खूद स्त्री का है.
नीरजभाई सही कह रहे है, प्रकृति का संतुलन बनाए रखना अतिआवश्यक है. सिर्फ पुरूष ही पुरूष हो गए तो नतिजे भयावह होंगे.
बधाई कविराज
अच्छी कविता है
सस्नेह
गौरव
"अपराधबोध!!!"
कहते है कि नारी ही नारी की सबसे बडी दुशमन होती है और कम से कम पुत्र मोह के लिये तो वह भी कम जिम्मेदार नही है . मैने अक्सर देखा है कि अल्ट्रासांऊड सेन्ट्ररों मे और निजी चिकित्सकों के पास फ़रमाइश करने वाले कम और करने वाली ही अधिक होती हैं . कहने को तो सरकार ने भ्रूण परी़क्षणों पर रोक लगा दी है लेकिन यह सब कुछ आसानी से निर्विरोध चलता रहता है . मै अपने निजी अनुभव से कह सकता हूं कि गर्भपात कराने की इच्छुक इन औरतॊ मे पशचाताप नाम की कोई चीज मैने कभी नही देखी और यह भी नही कि इन औरतॊ को दबाब उनकी सास या पति ने दिया हो , अब इसको क्या कहे सारी की सारी व्यवस्था औरतों की स्वंय ही बनाई हुयी है और शायद यही इस कुचक्र के लिये जिम्मेदार भी हैं .लेकिन इस परदे के पीछे हमारी धार्मिक सोच भी जिम्मेदार है जो हमे पुत्र संन्तति के लिये बढावा देती है.
gabheer samasyaa....man ko fir sui chbhata hua prashna.....sundar kalpana sundar baav......utaam kavita
एक सुंदर और विचार करने लायक रचना है यह
इसका ज़िम्मेवार हर कोई ख़ुद ही है किस को दोष देना बेकार है |
सुन्दर रचना,
देखें हम अपने गिरेबान में झांक कर
तो शायद हमें किसी से गिला ना हो
हम भी इस समाज में फ़ैली कुरीतियों का एक हिस्सा हैं...
baat wahin aa kar ruk jati hai ki iska zimmedar kaun hai?
ek survey ke anusar gharon me mahilayen hi sabse adhik bhedbhav karti hain ladko aur ladkiyon me....
bhrun hatya ke samay bhi yahi hota hai, sasur se adhik saas aatur hoti hai, ye jaanne ke liye ki aane wala baalak hai ya baalika,
ise kya kahen, badle ki bhawna ki uske saath jo hua wo uski bahu ke saath hona chahiye, ya samaaj ka dabaav.....
Very delicate issue still ignored by our society. All have said most of the facts present in our society.
I agree that elder ladies at family are often seen more responsible for fueling such issues and creating guilty feeling as if girls are liabilities while boys are assets for sure. This is definitely yet another debate issue,isn't it?
Aapne thode shabdonmein samasya varnit ki hai.
बहुत अच्छा व सच लिखा है । पर अभी से क्यों करें अपराधबोध ? वह और पश्चात्ताप तो तब करेंगे , जब बेटे, प्यारे दुलारे बेटे कुँवारे रह जाएँगे । या तब जब समलैंगिगकता ही एकमात्र उपाय बचेगा । जब कहीं से भी कैसी भी , अधेड़ , जो भी मिले उससे पैसे दे कर लाडले का विवाह कराया जाएगा । आओ ऐसे स्वर्णिम युग की मिलकर प्रतिक्षा करें और फिर स्वागत !
घुघूती बासूती
Hi Giri,
in few words u say a lot which is rearlity. balance in enviorment is necessary other wise one day will cum no girl will be there if this will be continue...
- Anjali Katariya
प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं है..............;आप सचमुच कविराज हैं
गिरि जी,
निःसंदेह आपकी काव्य-प्रतिभा में दिन प्रतिदिन निखार आता जा रहा है। उम्मीद है इस बार मानस जी की शिकायत भी थोड़ी कम होगी। कम शब्दों में पूरी कविता उसे और सुंदर बनाती है और वैसे जब वो सामाजिक सरोकार से जुड़ी हो तो क्या कहने, कविता लिखना सार्थक हो जाता है।
sundar kalpana !!!
अपने ही अंग को काटकर
इस तरह फ़ेंक देने की पीङा
बहुत मर्मांतक होती है .
आपकी लेखनी बहुत सम्वेदनशील है
गिरिराज जी
बधाई
कितने आसान शब्दों मे कितनी मुश्किल बात कह गये।
क्या कुछ लोग सुन पा रहे हैं?
गिरिराज, अच्छी कविता
विषय गूढ़
उतना भी नहीं...
बना दिया जितना
हमें खुद
सुबह लानी होगी...
एक कटु सत्य को सरल शब्दों में रेखांकित करती आपकी ये कविता अच्छी लगी। हालाँकि कई पाठकों की इस बात से मैं सहमत हूँ कि प्रायः नारी की भूमिका भी इसमें सदा सही नहीं होती।
ek kavi ke kandhe per is baat ki bhi zimmedaari hoti hai ki vo samajh ki her aane wali samsya ko prakisht kare.....aur sahi dager ki rah de......
aapne us zimmedari ko bakhoobhi nibhaya hai...
prashansha ke patra hai aap
archana
mujhe ye rachna.......sabse behtar lagi.....jo haalat hai sab jaante hai...phir bhi female foeticide ho raha hai....ladkiyon ki sankhya saal dar saal kam hoti jaa rahi hai....baaten hoti hai hoti rahengi.....tosh kadam kab uthenge....log kab jaagrukh honge kab?jab sab khatam ho chuka hoga...
om sai ram....
sach me its nice poem.........
sach me hamare desh me aj b ye prob. hai .......kisliye log ladke ko boj samjte hai?????? aap k is poem ne bahot kuch kah diya....kisliye har bar kise lady ko hi tyag karna padta hai????? kis liye har bar lady hi tyag kare????? paap kare??????
ye kalak hamare samaj se kab mitega......
sai un sab ko sahi rah dikhaye......
sai bless all of........
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