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Monday, April 23, 2007

अग्नि से आहत उसके कपोल


प्यार है कैसा तेरा मेरा,
ऍक सुनहरे सपने सा,

रात अंधेरी काली पीली,
जीते हुये हारे हर बाज़ी,

नाचे मृत्यु वक्ष पे जीवन,
जलधि सम हर फूल क्यों रोये?

जैसे ऍक दिन चिता की अग्नि,
झफ-झफ की उस ध्वनि से हर्षित,
भय से भम्रित भाग्य की भगिनी,
दारुण दुख के दंश से दुषित।

जैसे ऍक दिन कहा था तुने,
उठी ये पलकें क्यों देखें तुझी को?
जैसे ऍक दिन सहा था मैने,
कयों बोलूं अब बारम्बार उसी को?

नाच किया था गान किया भी,
ऍसे-वैसे उल्लास किया भी,
अठ्ठहास किया परिहास किया भी,
तेरे नयनो ने निज नयनो संग,
हरपल नुतन सहवास किया भी।

संञा के चित में ऍक कथा सी,
जैसे देह ने कहा हो उसको,
वृत्ति से पहले, मृत्यु से पहले,

दुर हवा में उड़ता ऍरावत,
ऍक पल में धरा पर गिरा हो जैसे,
पेड़ पे जड़ा ऍक लाल सा पत्ता,

वारि से स्नाता, कोमल कन्या,
मुख पे बहता नीरव नीर,
उसी में मिलता, उसी में घुलता,
दानव समान उसी पे हंसता,
शहद के जैसा नयनों का नीर।

झर-झर करके बरसे बारिश,
काला मेघ अति दुखदायक,
कैसे रोकुँ उसको
जो चला गया,
कैसे रोकुँ उसको,
जो चला गया था,

जो चले गये और चले जायेंगे,
सबके सब
सबके सब

मत जाऒ

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11 कविताप्रेमियों का कहना है :

Unknown का कहना है कि -

देरी से कविता प्रकाशित करने के लिये क्षमा चाहता हुँ।

Kamlesh Nahata का कहना है कि -

bahut bahut hi prabhavshali aur gahri rachna hai .
vishesh roop se

"
जैसे ऍक दिन चिता की अग्नि,
झफ-झफ की उस ध्वनि से हर्षित,
भय से भम्रित भाग्य की भगिनी,
दारुण दुख के दंश से दुषित।

जैसे ऍक दिन कहा था तुने,
उठी ये पलकें क्यों देखें तुझी को?
जैसे ऍक दिन सहा था मैने,
कयों बोलूं अब बारम्बार उसी को? "

uparlikhit chandd pasand aaye .

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

आपकी कविता में ध्वनि का बहुत सुन्दर प्रयोग होता है जैसे - "झफ-झफ" "झर-झर" । यह मैं पिछली कई कविताओं के आधार पर कह रहा हूँ। इस कविता ने भी आनंदित किया। कई बिम्ब बहुत सुन्दर बन पडे है और कविता गहरी है। बधाई।

*** राजीव रंजन प्रसाद

Unknown का कहना है कि -

कमलेश जी, ऍवम राजीव जी, आपकी टिप्पणीयों के लिये धन्यवाद। परन्तु इस बार शैलेष जी की भाषा को लेकर टिप्पणी को miss कर रहा हुँ। कदाचित वयस्त प्रतीत होते हैं शैलेष जी। या तो त्रुटियाँ बहुत कम हैं अथवा बहुत अधिक।

Anonymous का कहना है कि -

very good rythm...n nice lyrics..keep it up...congratulations

Anonymous का कहना है कि -

बहुत सुन्दर वरूणजी,

नाच किया था गान किया भी,
ऍसे-वैसे उल्लास किया भी,
अठ्ठहास किया परिहास किया भी,
तेरे नयनो ने निज नयनो संग,
हरपल नुतन सहवास किया भी।


वाह! कितना सुन्दर वर्णन किया है आपने।

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

वरुण जी ऐसी बात नहीं है कि मैं व्यस्त था और न ही ऐसी बात है कि इस बार टंकण की गलतियाँ कम हैं, मैं तो बस औरों के विचारों की प्रतीक्षा कर रहा था। आपकी कविता भाव प्रधान है, मगर अगर आपको याद हो जब हम मिले थे तो आपने कहा था कि आज की कविता में आज के चलते-फिरते शब्द होने चाहिए, मगर आप कहते हैं मगर आप नहीं करते खुद, आपकी कविता में संस्कृतनिष्ठ शब्द अधिक हैं।

मात्रा में सुधार करें-

ऍक- एक
भम्रित- भ्रमित
दुषित- दूषित
तुने- तूने
उठी ये पलकें क्यों देखें तुझी को- उठीं ये पलकें क्यों देखे तूझी को
मैने- मैंने
कयों बोलूं- क्यों बोलूँ
अठ्ठहास- अट्टहास
नयनो- नयनों
नुतन- नूतन
संञा के चित में ऍक कथा सी- क्या यहाँ 'संज्ञा' होगा
दुर- दूर
हंसता- हँसता
रोकुँ- रोकूँ
मत जाऒ- मत जाओ

हो सकता है और भी गलतियाँ जो मुझसे पकड़ में न आ पाई हों।

Upasthit का कहना है कि -

हद्द है...कमाल है, लिखायी भी पढाई भी...लेखक पाठक दोनो हद्द हैं...नत्मस्तक हूं...अभीभूत हूं...शब्द नहीं मिल रहे...मत ही कहलाओ कुछ...

Unknown का कहना है कि -

@गिरिराज जी, अनुपमा जी
टिप्पणीयों के लिये सादर धन्यवाद।

@शैलेश जी,
मुझे तो लगने लगा है की मुझे काफी समय लगेगा अभी, हिन्दी टंकण सीखने में।

उपस्थित महाराज आपकी बात कुछ समझ नही आयी, क्षमा करें।

SahityaShilpi का कहना है कि -

वरुन जी, आपकी कविता की ध्वन्यात्मकता का तो मैं भी कायल हूँ। छोटे छोटे शब्दों का प्रयोग आपकी कविता को गति देता है, परंतु कविता में इस एक विशेषता के सिवाय ऐसा कुछ नहीं जो याद रखा जा सके। भाव भी कुछ स्पष्ट नहीं और शब्द सौन्दर्य के लिहाज से भी यह कविता आपकी ही पूर्ववर्ती रचनाओं के समक्ष कहीं नहीं ठहरती।

Unknown का कहना है कि -

अजय जी, भाव स्पष्ट करना मेरा आश्य नही था, यह कविता स्वयं ऎक भाव ही है। हर भाव स्वयं को भी ठीक से समझ नही आता, और फिर सब कुछ साफ लिखना ठीक सा नही लगा।

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