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Saturday, April 07, 2007

बचपन और जीवन


आशा और निराशा के कितने ही झूले झूले
जीवन की इस खींचातानी में जीना यदि भूले;
तो फ़िर याद करो कैसे छुटपन में तुम जीते थे,
नवल-कपोल-करों से उचक-उचक अम्बर छूते थे।

घड़ी घड़ी जब कभी तुनककर पैर पटकते भू पर,
और दिखाते थे गुस्सा झूठा जब माँ के ऊपर;
अब भी आस लिये बैठे हो, आये कोई मनाने?
बचपन की ही तरह प्यार से लोरी सुना सुलाने!

उस जीवन,इस जीवन में,कितना भारी अंतर है?
एक पुष्प उद्यान ,दूसरा सूख चला बंजर है।
कितना अच्छा हो,यदि जीवन में फ़िर से वह रस हो,
और समय के आगे फ़िर से कोई नहीं विवश हो।

सच, यदि नन्हे शिशुओं- सा हर कोई कपट-रहित हो,
बचपन की ही तरह जवानी भी सौहार्द - सहित हो;
तब तो खेल खेल में ही जीवन सबका कट जाये,
पल भर में ही मन से सब दुख के बादल छँट जायें।

चलो, बहुत भागे-दौड़े ,थोड़ा तो रुकना सीखें,
आज बुढ़ापे में थोड़ा बचपन से जीना सीखें।

- आलोक शंकर

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16 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

बहुत ही अच्छा लिखा है और ये साईडबार मे सलाईड शो के साथ टाईटल भी ख़ूब लगा।

Anonymous का कहना है कि -

अगर जीवन में फ़िर से बचपन में वापस जाने का मौका मिलता तो जीवन का सही रास्ता मिल जाता और सही दोस्त भी मिल जाते । आलोक शंकर की कविता ने मुझे फ़िर से बचपन में वापस ला दिया ।
धन्यवाद मित्र आलोक!

मसिजीवी का कहना है कि -

अच्‍छा लिखा है।

princcess का कहना है कि -

ek baar fir se ek jivankaal ko jee liyaa maine,,aalokjee bahut hi achha likha hai.

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

आलोक शंकर जी..
कविता इतनी पसंद आयी कि यदि इस वक्त मेरे पास आपका फोन नं होता तो मैं आपको व्यक्तिगत तौर पर बधाई देता। एक एक शब्द इस गीत का मोती है और प्रत्येक मोती में भावनाओं का आपने सागर भर दिया है..अगर कोई आपसे पूछे कि कविता क्या होती है तो उसे केवल यह रचना पढा दे..वाह.....

सच, यदि नन्हे शिशुओं- सा हर कोई कपट-रहित हो,
बचपन की ही तरह जवानी भी सौहार्द - सहित हो;
तब तो खेल खेल में ही जीवन सबका कट जाये,
पल भर में ही मन से सब दुख के बादल छँट जायें।

चलो, बहुत भागे-दौड़े ,थोड़ा तो रुकना सीखें,
आज बुढ़ापे में थोड़ा बचपन से जीना सीखें।

*** राजीव रंजन प्रसाद

रंजू भाटिया का कहना है कि -

"फिर से लौटा दो मुझे वो बचपन के दिन सुहाने
जहाँ हर लम्हा था एक जादू और हम थे हर दर्द से अनजाने "

बहुत बहुत सुंदर .....
इसको पढ़ के क्या क्या ना बचपन का याद आया ,
वो रुठना ,वोह मनाना वो मासूम सा पल आज फिर मेरे लबो पर मुस्कराया!!

बहुत बधाई इतनी सुंदर रचना के लिए

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

उस जीवन,इस जीवन में,कितना भारी अंतर है?
एक पुष्प उद्यान ,दूसरा सूख चला बंजर है।


इस बात से तो अधिकाधिक इत्तेफ़ाक रखते होंगे।

और आपने 'आलोक-दर्शन' भी दे दिया है, काश कोई इन्हें पूरी धरा पर मूर्त रूप दे पाता!

सच, यदि नन्हे शिशुओं- सा हर कोई कपट-रहित हो,
बचपन की ही तरह जवानी भी सौहार्द - सहित हो;
तब तो खेल खेल में ही जीवन सबका कट जाये,
पल भर में ही मन से सब दुख के बादल छँट जायें।


साथ ही साथ आशा राम जी बापू टाइप बाबाओं-सा उपदेश भी-

चलो, बहुत भागे-दौड़े ,थोड़ा तो रुकना सीखें,
आज बुढ़ापे में थोड़ा बचपन से जीना सीखें।


आप एक उच्च कोटि के कवि हैं। शुभकामनाएँ आपको।

Reetesh Gupta का कहना है कि -

कविता बहुत अच्छी लगी ....बधाई..

Pramendra Pratap Singh का कहना है कि -

सच मे कविता मे एक एक शब्‍द मोती के समान है, और कविता मोतियों की माला।

बस इसके आगे कहने को कुछ शेष नही है, केवल शुभकामनाओं के।

इस प्रकार अच्‍छी रचना रचते रहे।

Pramendra Pratap Singh का कहना है कि -

सच मे कविता मे एक एक शब्‍द मोती के समान है, और कविता मोतियों की माला।

बस इसके आगे कहने को कुछ शेष नही है, केवल शुभकामनाओं के।

इस प्रकार अच्‍छी रचना रचते रहे।

Unknown का कहना है कि -

......dost aapne jis bachpan ki tasveer khichni chahi hai wo kaafi sukhdaayak tha..........hum badhe the aasma chune lekin dhrti ki mamta hi sukhdaayak hai,aaj jub maalum hua schchai to jana hum pahle hi dharti ke laayak the...humra anter man tha pavitra,tha uska shiringaar anokha, hum aaker duniyagiri me kha gaye waqt se dhokha...chor aaye unlogon ko hi jinse tha hamin pyaar anokha......aur wo bachpan!!! .......is pe bas itna kahana hai.....YE DAULAT BHI LE LO .........YE SHOHARAT BHI LE LO .....BHALE CHIN LO MUJH SE MERI JAWAANI.........MAGAR MUJHKO LAUTADO WO BACHPAN KA SAWAN ...WO KAAGAZ KI KASTI ...WO BAARISH KA PAANI!!!!!!!!!!!11

Mohinder56 का कहना है कि -

बचपन ही जीवन का सबसे सुन्दर पहर है..
अच्छी रचना लगी

सुनीता शानू का कहना है कि -

काश कि एसा हो पाता मगर ये तो एक मॄग्तृष्णा है,..आपकी कविता बचपन की याद दिलाती है,...

यदि नन्हे शिशुओं- सा हर कोई कपट-रहित हो,
बचपन की ही तरह जवानी भी सौहार्द - सहित हो;
तब तो खेल खेल में ही जीवन सबका कट जाये,
पल भर में ही मन से सब दुख के बादल छँट जायें।

बेहद खूबसूरत और भावपूर्ण रचना है,..

सुनीता(शानू)

पंकज का कहना है कि -

सच, यदि नन्हे शिशुओं- सा हर कोई कपट-रहित हो,
बचपन की ही तरह जवानी भी सौहार्द - सहित हो;
तब तो खेल खेल में ही जीवन सबका कट जाये,
पल भर में ही मन से सब दुख के बादल छँट जायें।

सच कहा है आप ने, ऊपर की पंक्तियों में।
हमारे गाँव में एक कहावत है कि बचपन का जीवन नवाबों के जीवन जैसा होता है;
आक जब कभी भी बैठकर सोचता हूँ तो वह कहावत कितनी सही लगती है।
आज आप की कविता ने मुझे मेरा बचपन याद दिलाया;
----धन्यवाद।
कविता के लिये साधुवाद।

Gaurav Shukla का कहना है कि -

बहुत सुन्दर आलोक जी
जीवन के दर्शन का गंभीर चित्रण किया है आपने

"उस जीवन,इस जीवन में,कितना भारी अंतर है?
एक पुष्प उद्यान ,दूसरा सूख चला बंजर है।"
कविता का अंत भी बहुत सुन्दर है
"चलो, बहुत भागे-दौड़े ,थोड़ा तो रुकना सीखें,
आज बुढ़ापे में थोड़ा बचपन से जीना सीखें।"

बहुत बधाई

सस्नेह
गौरव

Anonymous का कहना है कि -

मैं तो खुद को ही भूला जा रहा हूँ, बहुत ही सुन्दर, आलोक।

आपकी प्रतिभा का आलोक चारों दिशाओं में फ़ैले।

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