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Friday, April 06, 2007

औरत क्या है?


औरत क्या है?
एक निकलती हुई सुबह
सुबह,
जो रात का मदमाता दामन
छोड़कर आती है,
ताकि
परिंदे गायें,
फूल महके,
इंसान जागे
ऐसे ही औरत................


औरत क्या है?
एक जवान होती दोपहरी,
जिसकी मरीचिका में
आदमी,
इधर-उधर आकुल सा
दौड़ता है,
पर पाता कुछ नहीं,
जिसकी बेअन्त आग में आदमी
सबकुछ जला बैठता है,
पर बनाता कुछ भी नहीं।


औरत क्या है?
एक ढलती हुई शाम,
शाम,
जो दिन के झंझावतों को झेलते-झेलते,
अंत में मुस्कुराते हुए
दम तोड़ जाती है,
लेती कुछ भी नहीं बल्कि
जाते-जाते भी अपनी
आखिरी निशानी छोड़ जाती है।।

कवि- मनीष वंदेमातरम्


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15 कविताप्रेमियों का कहना है :

रंजू भाटिया का कहना है कि -

कब तक यह ज़माना तलेषेगा मुझ में
सिर्फ़ एक माँ ,एक बहन या एक पत्नी
इन दुनिया से बाहर भी मेरी एक दुनिया है
जो सदियो से अपना वजूद तलाश कर रही है !!

बहुत ही दिल को छू जाने वाली है यह आपकी रचना ....

Anonymous का कहना है कि -

बहुत ही सुन्दर कल्पना । बधाई।

पंकज का कहना है कि -

ऐसा लगता है कि मनीष जी ने औरत को काफी करीब से देखा है।
तभी तो उन्होंने उसके इतने सारे रूपों का वर्णन कितनी खूबसूरती के साथ किया है।

ghughutibasuti का कहना है कि -

आपके लिये पहेली हो, किन्तु स्वयं के लिये केवल एक व्यक्ति है वह!
घुघूती बासूती

Anonymous का कहना है कि -

एक निकलती हुई सुबह
सुबह,
जो रात का मदमाता दामन
छोड़कर आती है,
ताकि
परिंदे गायें,
फूल महके,
इंसान जागे


शुरूआत में "औरत" की सुबह से तुलना फिर दोपहर से और अंत में -

एक ढलती हुई शाम,
शाम,
जो दिन के झंझावतों को झेलते-झेलते,
अंत में मुस्कुराते हुए
दम तोड़ जाती है,
लेती कुछ भी नहीं बल्कि
जाते-जाते भी अपनी
आखिरी निशानी छोड़ जाती है..


ढलती हुई शाम से तुलना! कवि की सोच अच्छी लगी। नारी के कईं रूप हैं, और आपने हर घड़ी नारी की महत्ता का अच्छा वर्णन किया है। बधाई!!!

Kamlesh Nahata का कहना है कि -

औरत क्या है?
एक जवान होती दोपहरी,
जिसकी मरीचिका में
आदमी,
इधर-उधर आकुल सा
दौड़ता है,
पर पाता कुछ नहीं,
जिसकी बेअन्त आग में आदमी
सबकुछ जला बैठता है,
पर बनाता कुछ भी नहीं।

iss chandd ki antim pankti se, shayad kuch log sahmat na ho .

Anonymous का कहना है कि -

Manish Ji,

2nd and 3rd stanzaa kee aakri panktiyon se aap kaa kyaa abhipraay hai ??

Ripudaman

Alok Shankar का कहना है कि -

औरत के सभी रूपों को उकेरने में शायद कोई कवि कभी सफ़ल न हो पाये , पर आपका प्रयास अच्छा है ।

Anonymous का कहना है कि -

आपका अंदाज़ बहुत पसंद आया - सुंदर लिखा है

princcess का कहना है कि -

aurat kya hai? sadiyose yahi to saval jaga hai harek ke man me.,,
subah,dopahri aur sandhya ke siva kuchh aur bhi hai vo,zmaneke dard aur gamko sametnewala raatka daman bhi vohi hai,jiske pahlume insan sabkuchh bhul sukun ki nind leta hai...

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

मनीष जी..
औरत को लेकर प्रयुक्त आपके तीनों बिम्ब पसंद आये..कविता अच्छी है।

*** राजीव रंजन प्रसाद

SahityaShilpi का कहना है कि -

औरत को कुछ अलग तरह से प्रस्तुत करने का ये प्रयास प्रशंसनीय है, हालाँकि कुछ पँक्तियों से मैं सहमत नहीं हो सकता।

Mohinder56 का कहना है कि -

मनीष जी,
आपकी कविता से, औरत के बारे में मेर्री जानकारी मे‍ इजाफ़ा हुआ, धन्यवाद

सुनीता शानू का कहना है कि -

बहुत ही सुन्दर चित्रण किया है,...ऒरत का अस्तित्व क्या है,...इतनी कुर्बानीयाँ देने के बाद भी अबला,बेबस, लाचार का ही तो तमगा मिला है उसे मगर आपकी रचना ने ऐक नारी के स्वरूप का अच्छा चित्रण किया है,..आपकी रचना कि कुछ पक्तिंयो से मै सहमत नही हूँ
औरत क्या है?
एक जवान होती दोपहरी,
जिसकी मरीचिका में
आदमी,
इधर-उधर आकुल सा
दौड़ता है,
पर पाता कुछ नहीं,
जिसकी बेअन्त आग में आदमी
सबकुछ जला बैठता है,
पर बनाता कुछ भी नहीं।
क्या वजह है जो आपने औरत को इस कदर गिरा दिया कि उसे पाने के कि चाह मे जो पङ जाता है वो अपना सब गंवा बैठता है,..जर विस्तार से समझाईये,...
सुनीता(शानू)

satya का कहना है कि -
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