कभी दोराहों पे खडे हो,
तो जो रास्ता मेरी तरफ आता हो,
उसे मत चुनना,
जब सब लोग दे रहे हों
अलग अलग मशविरे,
तो मेरी मत सुनना,
मैं हाथ थाम लूं तुम्हारा कभी गलती से
तो झटक देना हाथ मेरा,
अगर मैं आवाज लगाऊं पीछे से कभी,
तो बिल्कुल ना रुकना,
कभी कुछ चेहरे लगें,
मेरी शक्ल से मिलते हुए,
पास मत आने देना उन्हें,
और अगर कोई मेरा हवाला दे,
तो उससे बात मत करना,
जिन परिंदों को मैं पसंद करता हूं,
कभी मत खरीदना उन्हें,
मेरी पसंद के चित्रों की कभी
तारीफ मत करना,
मेरे शहर का नाम मिटा देना,
अपने घर में टंगे नक्शे से,
और मेरे हमनामों पे
कभी यकीन मत करना,
मेरे गीत यदि सुनाई पडे कहीं,
तो बन्द कर लेना कान अपने,
और अगर बन्द करवा सको तो
गाने वालों के मुँह बन्द करवा देना,
अगर मैं हो गया गुलाम तुम्हारा,
तो रात दिन कोडे बरसाना मुझपे,
और तुम कहीं काज़ी बन जाओ अगर,
तो सज़ा-ए-मौत मेरे नाम करना.
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
गौरव जी..
इस कविता को मैं सादगी से गंभीर बात कहने का अनुपम उदाहरण मानता हूँ। आपकी विलक्षण प्रतिभा को मेरा नमन।
*** राजीव रंजन प्रसाद
गॊरव जी रचना अच्छी है मगर कहीं दर्द सा समेटे हुए है,..जो सीधे दिल पर चोट करती है,...
सुनीता(शानू)
गौरव जी, महबूबा को भुलाने के तरीके अच्छे लगे।
लेकिन क्या वास्तव में कभी ये तरीक़े कारगर साबित हुये हैं?
किसी ने कभी ये कहकर भुलाने की कोशिश कि थी-----
अब नहीं आऊँगा मुझको नहीं बुलाना तुम ;
कि गुज़रे वक्त की माफिक हुझे भुलाना तुम।
गौरव जी आपको स्थाई रूप से हिन्द युग्म पर देख कर अच्छा लगा।
कितने सरल शब्दों मे आपने कि भावनात्मक कविता लिखी है।
एक दर्द का अजब सा एहसास लिए हुए हैं यह रचना
कोई बात जैसे अनकही सी सब दर्द बयान कर गयी ....
"इसी एहीतियात में मैं रहा,इसी एहीतियात में वो रहा
वो कहाँ कहाँ मेरे साथ है किसी और को को यह पता ना हो !! "
अच्छी कविता है गौरव जी. आप मेरी बची हुई प्रतिक्रिया यहाँ सुनिये
http://tusharvjoshi.mypodcast.com/2007/04/Mujhsedoor_Gaurav_Solanki-9650.html
यह अच्छी कविता है. लेकिन मुझे लगता है कि अगर जनाब यह भी बता देते कि उनके दिल में एसे खयालात क्यों उपजित हुए तो और भी अच्छा होआ. कहने का तात्पर्य है कि कविता के अंत को १-२ पंक्ति जोड कर थोडा और सुस्वादित किया जा सकता है.
साधारण शब्दों में सादगी से छूपा असाधारण दर्द झलक रहा है। काव्य के रूप में अपनी बात कहने का आपका यह सरल अंदाज भाया।
हिन्द-युग्म पर आपका हार्दिक स्वागत!
बहुत सुन्दर, गौरव ।
bhulane ke sare raste kavine preyasiko bataaye,par usi rastope chal kar vo bhi kya use bhul paaye?
कई पाठकों ने इस कविता से यह निकाल लिया कि यह प्रेमिका से विरक्ति का उदाहरण है। मैं तो नहीं निकाल पा रहा हूँ भाई। खैर यह तो कबीर के जमाने से चला आ रहा है, लिखने वाला क्या लिखता है, निकालने वाले क्या निकालते हैं।।
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