कब तुम आते हो
कब तुम जाते हो
वायुमंडल के मध्यांतर में
सुगन्ध बिखरी सी है
धुंध आप ही छँट जाता है
अन्धकार सब हट जाता है
मेरी बेकरारी को कितना तरसते हो
कब तुम ....
हर मोड़ से कई रास्ते निकलते हैं
हर रास्ते पर कई मोड़ मिलते हैं
फासलों को छुओ तो कुछ दूर और खिसकते हैं
चलते-चलते बडी दूर चले आये
हर मोड को पलों में छोड आये
मेरी सुलझनों को कितना उलझाते हो?
कब तुम ....
अरे! ये शोर कैसा है?
कहाँ से आ रहा है?
ये तो पानी के छपावले हैं
शायद कोई जीवन-ज्योति
डूबी होगी वहाँ
और संध्या समाप्त हुई यहाँ
मुझसे यह किसकी राह तकवाते हो?
कब तुम...
पलट कर फिर वहीं चले
जहाँ थे तुमसे मिले
मुझसे तुम्हारे तो वास्ते थे
पर तुमसे मुझ तक जो रास्ते थे
घने वनों में सारे खो गये
अधूरे सपने सब सो गये
जा कर दुबारा क्यूँ चले आते हो?
कब तुम...
वो पंछी पड़ा ताल के किनारे
अब जाना वो छपावले कैसे थे
बस अन्तर्मन अब रुक जाते हैं
पंछी को समेट पुनः अपनी राह जाते हैं
जानते नहीं खुद को ढो रहे
या तुम्हें लिये जाते हैं
कौन मृत क्या जीवित है आभास नहीं
तुमसे मुक्त हो सकूँ ऐसा कोई प्रयास नहीं
कितनी बार मुझे तुम मृत्यु के समीप ले जाते हो
कब तुम.....
पलों को बरस में बदलते देखते हैं
औंधे पड़े एकटक सोचते हैं
क्या सत्य था क्या झूठ
मेरे बिन न रह पाना क्या बीता कल था?
क्या तुम्हारा आना मात्र छल था?
क्यूँ इतना कराहते हो
कोई दर्द हो या चुभन तो दे देना
रिक्त है थोड़ा सा मन मेरा
सब कहते हैं तुम कही नहीं हो
जहाँ फेरूँ निगाह तुम ही तुम दिख जाते हो
कब तुम.....
***************अनुपमा चौहान****************
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
पलों को बरस में बदलते देखते हैं
औंधे पड़े एकटक सोचते हैं
क्या सत्य था क्या झूठ
मेरे बिन न रह पाना क्या बीता कल था?
क्या तुम्हारा आना मात्र छल था?
बहुत सुंदर ...सूफ़ी रचना सी लगी मुझे यह आपकी रचना अनुपमा जी
दिल ने चाहा की कुछ लिख दूं पर लाजवाब है यह ..
रिक्त है थोड़ा सा मन मेरा
सब कहते हैं तुम कही नहीं हो
जहाँ फेरूँ निगाह तुम ही तुम दिख जाते हो
कब तुम.....
सुन्दर रचना है।
घुघूती बासूती
सुन्दर कविता है। कुछ पँक्तियाँ वास्तव में बहुत अच्छी हैं।
हर मोड़ से कई रास्ते निकलते हैं
हर रास्ते पर कई मोड़ मिलते हैं
बहुत खूब। सचमुच आपकी काव्य प्रतिभा का ये मोड़ भी बहुत खूबसूरत है।
ये तो पानी के छपावले हैं
शायद कोई जीवन-ज्योति
डूबी होगी वहाँ
रचनाकार की सोच इतनी मौलिक होनी चाहिए।
तुमसे मुक्त हो सकूँ ऐसा कोई प्रयास नहीं
आसक्ति की पराकाष्ठा है यह
कोई दर्द हो या चुभन तो दे देना
रिक्त है थोड़ा सा मन मेरा
इससे अधिक सूफियाना कोई और क्या लिखेगा!
अनुपमा जी,
यादें होती ही हैं इतनी दिलकश।
किसी ने लिखा है;
"एक मामले में तुम्हारी यादें तुमसे भी अच्छी हैं,
क्योंकि तुम आते ही जाने लगती ,
पर आने के बाद जाने का नाम ही नहीं लेतीं,
तुम्हारी यादें।"
अनुपमा जी
फिर एक सुन्दर रचना। जैसे कोई रेल चल रही हो (पुराने जमाने की छुक छुक वाली) कविता कुछ एसे गुजर गयी मनःपटल से।
"हर मोड़ से कई रास्ते निकलते हैं
हर रास्ते पर कई मोड़ मिलते हैं
फासलों को छुओ तो कुछ दूर और खिसकते हैं"
"हर मोड को पलों में छोड आये
मेरी सुलझनों को कितना उलझाते हो?"
"कौन मृत क्या जीवित है आभास नहीं
तुमसे मुक्त हो सकूँ ऐसा कोई प्रयास नहीं
कितनी बार मुझे तुम मृत्यु के समीप ले जाते हो"
"कोई दर्द हो या चुभन तो दे देना
रिक्त है थोड़ा सा मन मेरा
सब कहते हैं तुम कही नहीं हो"
कविता किसी भी घायल हृदय पर नमक रख सकते है। कविता और काव्य की कलात्मकता का हर तत्व है इस रचना में।
*** राजीव रंजन प्रसाद
एक्सीलेन्ट !
गुड़।
लिखती रहें।
जिसे ढूंढती नज़र हो...फिर वो कहां कहां नही है..
बहुत बढिया.. अपने विचारों को आपने मौलिक जामा पहना कर अपनी रचना को जीवन्त कर दिया
फासलों को छुओ तो कुछ दूर और खिसकते
outstanding!!
आपकी हीं कुछ पंक्तियाँ यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ->
"ये तो पानी के छपावले हैं
शायद कोई जीवन-ज्योति
डूबी होगी वहाँ"
"हर मोड़ से कई रास्ते निकलते हैं
हर रास्ते पर कई मोड़ मिलते हैं
फासलों को छुओ तो कुछ दूर और खिसकते हैं"
"कोई दर्द हो या चुभन तो दे देना
रिक्त है थोड़ा सा मन मेरा
सब कहते हैं तुम कही नहीं हो"
पूरे जीवन का सारा सार लिख डाला है आपने यहाँ। बधाई स्वीकारें।
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