"अनुपमा चौहान को उनके जन्मदिवस पर हार्दिक बधाई!!!"
पूरे एक लाख सत्तर हजार में
पंडितजी को मनाने के बाद
वे दोनों बहुत खुश थे
हवन-कुंड के समक्ष
मंत्रोच्चार के बीच
एक-दूजे को अपनाने की
भारतीय परम्परा निभाकर
गर्व महसूस कर रहे थे
पंडितजी भी इसे यादगार बनाकर
बाज़ार में अपनी मांग
फिर से सतयुग सी करने को लालायित थे
.
.
.
तैयारियाँ पूर्ण हो चूकी थी
दूल्हा, दूल्हन एवं परिजनों को,
‘कॉन्फ्रेंस’ में ले लिया गया था
मंत्रोच्चार के बीच सभी को
पाणिग्रहण शुरू होने का इंतजार था
.
.
.
पंडितजी के तकनीकी साथी
अपने कार्य को बखूबी सम्भाले थे।
समय की सिकुड़न के बीच
भारतीय परम्परा से विवाह रचाकर,
अपनी संस्कृति के प्रति
वे अटूट श्रद्धा दिखलाने को आतुर थे।
.
.
.
सभी रस्में ठीक-ठाक चल रही थी
फेरे, वादे, मंत्र सभी निर्बाधित,
पंडितजी के तकनीकी साथी
गौरवान्वित महसूस कर रहे थे,
आखिर चार फेरे सफलतापूर्वक हो चुके थे
.
.
.
पाँचवे फेरे से ठीक पहले
दूल्हन को ‘अर्जेंट’ कॉल आ गया
वे अपने ‘लेपटॉप’ पर,
किसी समस्या का समाधान कर रही थी,
दूल्हा यह सब अपनी ‘स्क्रीन’ पर देख रहा था।
.
.
.
विवाह अंतिम चरण में था,
मंगलसूत्र पहनाना था
”अब उठो भी...”
एक कर्कश आवाज ने उसे जगा दिया।
.
.
.
विश्व की सबसे बड़ी
आई.टी. कम्पनी का कर्मचारी
व्यथित हो उठा
35 साल अमेरिका में रहने के बाद भी
उसे कितना चाव था
अपने बेटे का विवाह
भारतीय परम्परा से करे...
.
.
.
मगर अफसोस
उसका यह सपना
सपने में भी पूरा न हो सका
पंडितजी को मनाने के बाद
वे दोनों बहुत खुश थे
हवन-कुंड के समक्ष
मंत्रोच्चार के बीच
एक-दूजे को अपनाने की
भारतीय परम्परा निभाकर
गर्व महसूस कर रहे थे
पंडितजी भी इसे यादगार बनाकर
बाज़ार में अपनी मांग
फिर से सतयुग सी करने को लालायित थे
.
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तैयारियाँ पूर्ण हो चूकी थी
दूल्हा, दूल्हन एवं परिजनों को,
‘कॉन्फ्रेंस’ में ले लिया गया था
मंत्रोच्चार के बीच सभी को
पाणिग्रहण शुरू होने का इंतजार था
.
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पंडितजी के तकनीकी साथी
अपने कार्य को बखूबी सम्भाले थे।
समय की सिकुड़न के बीच
भारतीय परम्परा से विवाह रचाकर,
अपनी संस्कृति के प्रति
वे अटूट श्रद्धा दिखलाने को आतुर थे।
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सभी रस्में ठीक-ठाक चल रही थी
फेरे, वादे, मंत्र सभी निर्बाधित,
पंडितजी के तकनीकी साथी
गौरवान्वित महसूस कर रहे थे,
आखिर चार फेरे सफलतापूर्वक हो चुके थे
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पाँचवे फेरे से ठीक पहले
दूल्हन को ‘अर्जेंट’ कॉल आ गया
वे अपने ‘लेपटॉप’ पर,
किसी समस्या का समाधान कर रही थी,
दूल्हा यह सब अपनी ‘स्क्रीन’ पर देख रहा था।
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विवाह अंतिम चरण में था,
मंगलसूत्र पहनाना था
”अब उठो भी...”
एक कर्कश आवाज ने उसे जगा दिया।
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विश्व की सबसे बड़ी
आई.टी. कम्पनी का कर्मचारी
व्यथित हो उठा
35 साल अमेरिका में रहने के बाद भी
उसे कितना चाव था
अपने बेटे का विवाह
भारतीय परम्परा से करे...
.
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मगर अफसोस
उसका यह सपना
सपने में भी पूरा न हो सका
"अनुपमा चौहान को उनके जन्मदिवस पर हार्दिक बधाई!!!"
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
18 कविताप्रेमियों का कहना है :
ye kawitaa satya jaroor hogi ek din.. shayad pramparaayen yun hi nibhaayi jaayengi... jis teji se hum takniki yug mein prawesh kar rahe hain.. satya aisa hi hoga.. sapney jaisa..
हमारी तरफ़ से भी जन्मदिन की शुभकामनायें!
अच्छा विषय चुना है।
एक प्रकार से लीक से हट कर , बधाई।
अनुपमा जी आपको भी ढेरा शुभकामनाऐ, आप के जीवन मे हमेशा खुशियॉं मुस्कराती रहे।
janamdin ki ek baar fir se bhaut bhaut badhyi ho aapko anupama ji
अनुपमा जी को जन्म दिन की ढ़ेरों बधाईयाँ। आप अपनी जिन्दगी में बहुत सफल हों ऐसी परमपिता से प्रार्थना करते हैं
हमें कविता करनी तो नहीं आती पर आपकी कवितायें आगे भी नियमित पढ़ने को मिलेगी ऐसी उम्मीद करते हैं।
गिरीराज जी को अच्छी कविता के लिये बधाई।
आधुनिक कविताओं को भी बिल्कुल गद्य की भाँति न होकर गद्यगीत जैसा होना चाहिए। यद्यपि कविता के केन्द्र में भाव होता है, और वह आपकी कविता से दृष्टिगोचर होता है, फिर मेरा यह आग्रह है कि अलयबद्ध कविताओं में भी अतिरिक्त शब्दों का भार नहीं होना चाहिए।
अच्छी कविता हैं।
अनुपमा जी जन्मदिन की शुभकामनायें!
Aapke ye "shabd" or "sachhai" me jayda fark nahi hai..shayaad dunia ke kise kone me esa hota bhi hoga... haa fere ke time to nahi par varmala ke just baad dulhe ko phone par problem(more than 30min.) solve karte humne bhi dekha hai ...baarati Dulhe ke free hone ka intzaar kar rehe the :-)...
Please keep on writing..it a god gift for you !
अनुपमा जी को जन्मदिन हार्दिक बधाई
उनके सफल सुखद भविष्य के लिये मेरी शुभकामना|
सुन्दर रचना पढने को मिली कविराज
धन्यवाद
:)
सस्नेह
गौरव
गिरिराज जी को लीक से हट कर एक नवीन व सुन्दर कविता लिखने के लिये बधायी..
एंव अनुपमा जी को जन्म दिन की हार्दिक बधायी.. आने वाला हर पल आपके लिये सुख समृधि एंव स्वास्थय लाये.
जन्म दिवस की शुभकामनाएं टनुपमा को हमारी ओर से भी।
अनुपमा जी को जन्मदिन पर अनेकों शुभकामनायें और बधाई.
कविता में नया प्रयोग किया है इस बार आपने गिरिराज जी और इस लिये बधाई के पात्र भी हैं। चित्रण और व्यंग्य दोनों प्रभावी है। कविता के इस नये आस्वादन कराने का धन्यवाद..
*** राजीव रंजन प्रसाद
कविता का भाव पक्ष अच्छा है, परन्तु शब्द संयोजन में बात कुछ बनती सी नहीं लगती। आशा है कि आगे कविराज जी की कलम से कुछ और बेहतर पढ़ने को मिलेगा।
अनुपमा जी को जन्मदिवस की ढेरों शुभकामनाएं। (देरी के लिये क्षमाप्रार्थी हूँ।)
आप सभी की शुभकामनाओं के लिये शुक्रिया!!!
खुदा आपको मह्फूज़ रखे,खुश रखे...
स्नेह
अनुपमा चौहान
aachi alag vishay par zara hat kar kavita hai.bhadhaai aapko
गिरिराज जो लिखना चाहते हैं, जितना, जिस भांति लिखना चाहते थे, और जितना मैं समझ सका हूं...
बदलते समय के साथ पुराने का चाव.....और सपने मे भी उसे पूरा न देख पाने को अभिशप्त आगे और आगे भागते लोगों का चेहरा...दोमुहा जीवन, पर्तों मे ढकी आशायें कुछ पुरानी यादें, अभिलाषायें, व्यंग के साथ परोसी गयी है ।
पर बात केवल इतनी ही होती तो और बात थी.....गिरिराज वयंग में, थोड़ा सा आगे बढ गये हैं...तीखी मिर्च सी बातें कह गये हैं कहीं कहीं.....
"समय की सिकुड़न के बीच
भारतीय परम्परा से विवाह रचाकर,
अपनी संस्कृति के प्रति
वे अटूट श्रद्धा दिखलाने को आतुर थे।" .........चुभती है, यह बात...हां यहां भी...
"पंडितजी भी इसे यादगार बनाकर
बाज़ार में अपनी मांग
फिर से सतयुग सी करने को लालायित थे".........कितना सच इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं पर समय के साथ मुखॊटों मे जीना अगर मजबूरी बन जाये तो किया भी क्या जाये...गिरिराज इस बारे में जाने क्या सोंचते हैं.....
व्यंग इन मुखॊटों पर है तो एक बार स्वीकार्य भी हो सकता है, पर यदि कवि का निशाना...समय के साथ बढते हुये भी,कहीं मन के अन्धेरे कोने मे अपनी जड़ॊ से जुड़े रह सकने के मोह को हास्य का पात्र बनाने की मन्शा है तो एक बार फ़िर सोंचने की आवश्यकता है....
nice imaginative poem.....rendeed well:)
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