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Sunday, March 18, 2007

हुंकार


अब खल्क को खंगालने का वक्त आ गया है,
नेत्रों से नीर टालने का वक्त आ गया है।
मुमकिन है छले जाएँगे खल के खिलौनों से,
अस्त्रों में खुद को ढालने का वक्त आ गया है।

पैरों तले दबे हैं छाले हृदय के अब तक,
सड़कों पे दर्द डालने का वक्त आ गया है।

मनुहार करे मिट्टी मौसम से कब तलक यूँ,
सीने से जल उछालने का वक्त आ गया है।

जौहर दिखाने की यहाँ बात जो चली है,
गौहर यह तन उबालने का वक्त आ गया है।

माशूक की नज़रें भी अब सालने लगी हैं,
हर इश्क को संभालने का वक्त आ गया है।

मायूस हों परिंदे मेरे गगन के अब क्यों,
शब से सहर निकालने का वक्त आ गया है।

महफिल में उम्मीद की रौशन हों चिरागें अब,
'तन्हा' यह शौक पालने का वक्त आ गया है।

-विश्व दीपक 'तन्हा'

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15 कविताप्रेमियों का कहना है :

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

विश्वदीपक जी..
इस रचना को मैं कलम में धार का उदाहरण मानता हूँ। गज़ल हिन्दी की विधा नहीं है, लेकिन हिन्दी गज़लों में नफासत हो न हो आप जैसे कवि/शायर बारूद जरूर भर देंगे। शायद आप जैसी कलम की ही इस दौर को आवश्यकता है, हाँ आप सही कह रहे हैं वक्त कलम उबालने का आ गया है।

एक एक बात से मेरी सहमति है कि:
"नेत्रों से नीर टालने का वक्त आ गया है"
"अस्त्रों में खुद को ढालने का वक्त आ गया है"
"सड़कों पे दर्द डालने का वक्त आ गया है"
"सीने से जल उछालने का वक्त आ गया है"
"गौहर यह तन उबालने का वक्त आ गया है"
"हर इश्क को संभालने का वक्त आ गया है"
"शब से सहर निकालने का वक्त आ गया है"

उम्मीद होनी ही चाहिये, और आप जैसी कलम से यह उम्मीद बढ भी जाती है:

महफिल में उम्मीद की रौशन हों चिरागें अब,
'तन्हा' यह शौक पालने का वक्त आ गया है।

*** राजीव रंजन प्रसाद

Anonymous का कहना है कि -

hind yugm ka niyam hai ki aprakashit rachanayen hi yaha dali jaati hain.. par vishva deepak ki is kavita ko main mahino pahle orkut par padh chuka hoon .. agar inke jaise purane member aise niyam torenge to fir ye shobha nahi deta... yadi aap nayi kavita nahi likh sakte to mat laaiye yaha par niyam to niyam hai..
no offences .. but its truth

Mohinder56 का कहना है कि -

रचना अवश्य ही बहुत बढिया है .. परन्तु जैसा एक पाठक ने लिखा है कि यह अप्रकाशित नही है और आर्कुट पर पहले डाली जा चुकी है तो चिन्ता का विषय है...हमें हिन्द-युग्म की मर्यादा का पालन करना ही होगा .
दूसरी बात यह है कि मैं इस पोस्ट को कविमित्र ब्लाग पर नही देख पा रहा हूं और नारद पर ही देख कर अपनी टिप्पणी दे रहा हूं.. क्या अन्य सदस्य भी इस समस्या का सामना कर रहे है ?

विश्व दीपक का कहना है कि -

मित्रों , मैं झूठ न कहूँगा कि यह कविता मैंने औरकुट पर नहीं दी थी। अगर मैं सच कहूँ तो इन दिनों मैं कोई नई रचना नहीं लिख पा रहा हूँ । और मैंने अपनी सारी पुरानी रचना औरकुट पर कभी-न-कभी प्रकाशित कर रखी है।
यदि 'anonymous ' भाई जो पता नहीं किस कारण से अपनी पहचान छुपा रहे है, चाहते हैं कि मैं इस community में लिखना छोड़ दूँ तो मैं इसके लिए तैयार हूँ। कृप्या आप लोग अपने विचारों से मुझे अवगत कराएँ।

विश्व दीपक का कहना है कि -

अपने पिछले जवाब के लिए क्षमा चाहता हूँ। आगे से ऐसी गलती न होगी । और आगे से कोई पूर्व-प्रकाशित रचना भी यहाँ प्रेषित नहीं करूँगा, मैं आप सब को यह विश्वास दिलाता हूँ।
नमस्कार।

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

अनाम जी,

मैं विश्व दीपक की ओर से क्षमाप्रार्थी हूँ। जैसाकि कवि ने बताया कि आजकल व्यस्तता के कारण नया नहीं लिख पा रहे हैं। वस्तुतः रविवार के लिए दूसरे कवि गिरिराज जी के यहाँ पिछले १० दिनों से नेट डाउन है। सम्भवतः यह सोचकर 'तन्हा' जी ने अपनी कविता डाल दी होगी कि पाठक निराश होंगे। हालाँकि आपजैसे सुधी पाठक पुरानी रचना पाकर फिर भी निराश ही हुए, मगर नये पाठकों को कम से कम निराशा नहीं हुयी। आगे से हम पूरी सावधानी बरतेंगे।

तन्हा जी, आपको अनाम भाई का बुरा नहीं मानना चाहिए। यह तो हमारे लिए खुशी की बात है कि पाठक हमारे हरेक गतिविधि पर नज़र रखे हुए हैं। ऐसे ही पाठक मिलकर किसी मंच का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

विश्वदीपक जी..
मैं बस यही कहूँगा कि विचलित न हों। बेनाम जी का धन्यवाद करें कि वो आपको इतने ध्यान से पढते है।

महफिल में उम्मीद की रौशन हों चिरागें अब,
'तन्हा' यह शौक पालने का वक्त आ गया है।

अभिभूत हूँ कि आप जैसे कवियों को युग्म पर पढ पाता हूँ। आप युग्म की कीमती निधियों मे से एक हैं।

12:48 पूर्वाह्न

Kamlesh Nahata का कहना है कि -

यह कविता तब भी पसंद आयी थी और आज भी पसंद आयी है। अच्छी कविता का यही असर होता है। लिखते रहिए ।

Alok Shankar का कहना है कि -

कविता बहुत ही अच्छी है दीपक जी ,
आप के जैसे कवि से कुछ कम की उम्मीद नहीं थी …बधाई
मैं आप सब को याद दिला दूँ कि दीपक जी IIT में अध्ययनशील हैं जहाँ शायद ही कविता लिखने के लिये समय मिल पाता हो । फ़िर भी आप समय निकाल कर इस मंच पर आते हैं यह अपने आप में प्रशंसनीय है । और रही बात दुबारा छापने की , तो इतनी अच्छी कविता कितनी बार भी पढ़ने को मिले पाठकों को मजा ही आयेगा ।

SahityaShilpi का कहना है कि -

बहुत अच्छी ग़ज़ल है। हिन्दी ग़ज़ल की जो परम्परा दुष्यन्त कुमार जी श्रद्धेय कवियों ने शुरू की थी, निश्चय ही आम लोगों तक ग़ज़ल की पहुँच बढ़ाने में कामयाब हुई है। आपकी रचना भी इसी बढ़ती पहुँच का मूर्तिमान रूप है। हिन्दी युग्म के नियमों के प्रति आपकी प्रतिबद्धता में कोई संदेह नहीं। आशा है कि आगे से नियमों के पालन में सभी सदस्य अधिक सावधान रहेंगे। इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिये एक बार फिर बधाई।

Anonymous का कहना है कि -

'तन्हाजी' बाकि साथियों की तरह मैं भी यही कहना चाहूँगा कि अनामजी की टिप्पणी का सकारात्मक पहलू देखें।

हालांकि मैं भी आपकी इस रचना को पहले ऑरकुट पर पढ़ चुका हूँ मगर आज दूबारा पढ़कर भी बहुत आनन्द आया, यही एक अच्छी रचना की खासियत होती है।

सभी मित्रों से क्षमा-प्रार्थी हूँ कि मैं पिछले दो रविवार से कोई रचना पोस्ट नहीं कर पाया, हालांकि शैलेशजी कारण बतला चुके है मगर फिर भी मुझे खेद है।

Anonymous का कहना है कि -

वाह वाह वाह !

सुन्दर।

Gaurav Shukla का कहना है कि -

पैरों तले दबे हैं छाले हृदय के अब तक,
सड़कों पे दर्द डालने का वक्त आ गया है।

.
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बहुत अच्छा तनहा जी

और अनाम जी की बातों को अन्यथा न लें यह तो सचमुच प्रसन्नता का विषय है|:)
यह आपकी प्रसिद्ध गज़ल है जो मैने भी पढी है, अच्छा लेखन बार-बार पढ्ने को मिले तो क्या बुराई है :)

और यह तो अद्भुत गज़ल है
बहुत बधाई आपको

सस्नेह
गौरव

Anonymous का कहना है कि -

Bahut khoob maza man tarr ho gaya yah rachna padkar...likhte rahiye
bhadhaai sweekaaren

Upasthit का कहना है कि -

तन्हा की हुंकार, आज के युवा की हुंकार है, युवामन की हुंकार है । एक मीठी सी बोली से जोशीले कसीदे कैसे गढे जाते हैं तन्हा सिखाते है, सीख चुके है भरपूर...बहुत खूब तन्हा.....बहुत खूब...
जोश इस हद तक कि सीने से जल उछालने और तन उबालने को तत्पर......जोश सराहनीय है, बस कविताओं तक ही ना रहे, यह लेखक भी याद रखे और पाठक भी....और मेरे जैसे प्रतिक्रिया देने मे शेखी बघारने वाले भी....
(ऐसी कवितायें तन्हा तुम चाहे जितनी बार चाहो पोस्ट करो भाईजान...इन्हे पढने वाले और इनसे सीखने वाले कम नहीं ...कम हों सकें... ये आशा है)

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